धौलीनाग मंदिर
धौलीनाग मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के बागेश्वर जनपद में धौलीनाग देवता को समर्पित एक पुराना मंदिर है। धौलीनाग मंदिर विजयपुर के पास एक पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है। धौलीनाग मंदिर मे रोजाना पूजा होती है और कुछ खास दिनों मे बहुत भीड़-भाड़ होती है, मुख्य रूप से नवरात्रि के दौरान तो यह भक्तों से भरा रहता है। प्रत्येक नाग पंचमी को मंदिर में मेला लगता है। नवंबर २०१६ में उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री, हरीश रावत ने इस मंदिर को गंगोलीहाट के महाकाली मंदिर और पाताल भुवनेश्वर से पर्यटन सर्किट द्वारा जोड़ने की घोषणा की थी।[१]
धौलीनाग देवता
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान कृष्ण ने कालियनाग को यमुना छोड़कर चले जाने को कहा था, तो उसने उन्हें बताया कि उनके वाहन गरुड़ के डर के कारण ही वह यमुना में छुपा बैठा था।[२] इस पर कृष्ण ने उसके माथे पर एक निशान बनाकर उसे उत्तर में हिमालय की ओर भेज दिया।[२] कालियनाग कुमाऊँ क्षेत्र में आया, तथा शिव की तपस्या करने लगा।[२] स्थानीय लोगों की कई प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करने पर उसे कुमाऊं क्षेत्र में भगवान का दर्जा दिया जाने लगा।
धवल नाग (धौलीनाग) को कालियनाग का सबसे ज्येष्ठ पुत्र माना जाता है।[३] धवल नाग ने प्रारम्भ में कमस्यार क्षेत्र के लोगों को काफी परेशान किया, जिसके बाद लोगों ने उसकी पूजा करना शुरू कर दिया, ताकि वह उन्हें हानि न पहुंचाए।[३] लोगों के पूजन से उसके स्वभाव पर विपरीत असर पड़ने लगा, और फिर उसने लोगों को तंग करने की जगह उनकी रक्षा करना शुरू कर दिया।[३] महर्षि व्यास जी ने स्कंद पुराण के मानस खण्ड के ८३ वें अध्याय में धौली नाग की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा है:
कुमाऊँ में नागों के अन्य भी कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनमें छखाता का कर्कोटकनाग मंदिर, दानपुर का वासुकीनाग, सालम के नागदेव तथा पद्मगीर, महार का शेषनाग तथा अठगुली-पुंगराऊँ के बेड़ीनाग, कालीनाग, फेणीनाग, पिंगलनाग, खरहरीनाग तथा अठगुलीनाग अन्य प्रसिद्ध मंदिर हैं।[६]
पंचमी मेला
पंचमी मेला यहां का एक बहुत प्रसिद्ध और पुराना त्योहार है, जिसमें कांडा-कमस्यार के २२ गांवों के लोगों के अलावा बड़ी संख्या में बाहर से भी लोग आते हैं। लोक मान्यता है कि जब धौलीनाग भगवान इस पहाड़ी में आए तो उन्होंने ग्रामीणों को आवाज देकर अपने पास बुलाया था। आवाज सुनकर रात में ही धपोलासेरा के धपोला लोग २२ हाथ लंबी चीड़ के छिलके से बनी जलती मशाल को हाथ में लेकर मंदिर क्षेत्र में पहुंचे तो वहां पंचमी के नवरात्र पर्व पर एक दिव्यशिला मिली, जिसे उन्होंने शिला को शक्ति रूप में स्थापित कर दिया।[७] तब से ही प्रत्येक वर्ष पंचमी मेला मनाया जाता है। इस मेले के लिए धपोलासेरा के भूल जाति के लोग चीड़ के छिलके की मशाल तैयार करते हैं, जिसे लेकर धपोला लोग गाजे बाजे के साथ मंदिर के लिए निकलते हैं।[७] मंदिर परिसर से कुछ दूरी पर स्थित भगवती मंदिर के पास पहुँचने पर वे पोखरी के चंदोला लोगाें का इंतजार करते हैं, जिनके साथ देव डांगर भी अवतरित होकर गाजे बाजे के साथ मंदिर पहुंचते हैं।[७] यहां से दोनों दल जयकारा करते हुए मंदिर की परिक्रमा करते हैं, और फिर जलती मशाल को मंदिर के सामने रख कर वहां रात्रि भर सांस्कृतिक आयोजन चलते हैं।[७]
आवागमन
धौलीनाग मंदिर विजयपुर के पास एक पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है। मंदिर विजयपुर से पैदल दूरी पर है लेकिन छोटी गाड़ियों के लिए, सड़क मार्ग भी बना है। इसके अतिरिक्त बिगुल की तरफ से भी मंदिर के लिए एक पैदल रास्ता है, जिसे मोटर मार्ग में बदला जा रहा है।[८] पोखरी, खांतोली ग्रामों की ओर से भी जंगलों से होकर एक कच्चा रास्ता आता है, जिसपर बंजायण, मूलनारायण इत्यादि देवों को समर्पित मंदिर स्थित हैं।
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite news
- ↑ अ आ इ साँचा:cite book
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- ↑ १८/१९ मानस खण्ड ८३
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- ↑ साँचा:cite book
- ↑ अ आ इ ई साँचा:cite news
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