मोटेश्वर महादेव
मोटेश्वर महादेव | |
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धर्म संबंधी जानकारी | |
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देवता | भीमाशंकर (शिव) |
त्यौहार | महाशिवरात्रि |
अवस्थिति जानकारी | |
अवस्थिति | साँचा:if empty |
ज़िला | उधम सिंह नगर |
राज्य | उत्तराखण्ड |
देश | भारत |
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भौगोलिक निर्देशांक | साँचा:coord |
निर्माता | साँचा:if empty |
ध्वंस | साँचा:ifempty |
मंदिर संख्या | ०१ |
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मोटेश्वर महादेव मंदिर भारत के उत्तरी राज्य उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर जिले के काशीपुर तहसील में स्थित एक मन्दिर है। यहां के चैती मैदान में महादेव नगर के किनारे चैती मंदिर स्थित यह मंदिर महाभारत कालीन बताया जाता है और इसका शिवलिंग बारहवां उप ज्योतिर्लिंग माना जाता है। शिवलिंग की मोटाई अधिक होने के कारण यह मोटेश्वर महादेव मंदिर के नाम से विख्यात है। स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव ने कहा कि जो भक्त कांवड़ कंधे पर रखकर हरिद्वार से गंगा जल लाकर यहां चढ़ाएगा, उसे मोक्ष मिलेगा। इसी मान्यता के कारण लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर यहा लोग कांवड़ चढ़ाते हैं। मोटेश्वर महादेव मंदिर दूसरी मंजिल पर है। इस शिवलिंग के चारों ओर तांबे का फर्श बना है और इसे जागेश्वर के एक कारीगर ने बनाया था। शिवलिंग की मोटाई अधिक होने के कारण इसे कोई अपने दोनों हाथों से घेर नहीं पाता है।
उत्सव
यहां रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु पूजा करने आते हैं। हर साल महाशिवरात्रि पर्व पर यहां भव्य मेला लगता है जिसमें उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, रामपुर, बिजनौर, ठाकुरद्वारा से कई श्रद्धालु यहां हर साल कांवड़ चढ़ाने आते हैं। इस अवसर पर एक दिन पहले से मंदिर में भक्तों की लाइन लग जाती है और आधी रात से कांवड़ चढ़नी शुरू हो जाती है।
मन्दिर
मान्यतानुसार यह शिवलिंग स्थापित नहीं है बल्कि जमीन से टिका है। इसे बारहवां उप ज्योतिर्लिंग माना जाता है।[१] कहते हैं कि यह मूल रूप से महाराष्ट्र स्थित भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का ही रूप है।[२] कई लोगों ने इसकी गहराई नापने की कोशिश की लेकिन नहीं नाप सके। लोगों का अनुमान है कि शिवलिंग की गहराई लगभग ३० फुट है। पहले इसका भूतल खुला था किन्तु १९४२-४३ में मंदिर के भूतल में भगदड़ मचने से तीन-चार लोगों की मृत्यु हो गई थी अतः सुरक्षा की दृष्टि से तब से भूतल बंद कर दिया गया। अब ऊपरी मंजिल पर मंदिर है।[२] कहते हैं पहले मंदिर का फर्श शुद्ध पीतल का था। तब एक श्रद्धालु ने उसके स्थान पर जयपुर से बैलगाड़ियों पर संगमर्मर का पत्थर मंगाकर लगवाया और ने पीतल को गलाकर उसका घंटा बनवा कर लगवा दिया। मंदिर की अन्दरूनी दीवारें कई कोणों में बनी हैं। बहुत से श्रद्धालुओं ने कई बार मंदिर का जीर्णोद्धार किया। १९८० में सेठ मूलप्रकाश की मन्नत पूरी होने पर उन्होंने संपूर्ण मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।
यहां के पुजारी के अनुसार यह मंदिर द्वापरयुगीन हैं। मान्यता है कि गुरु द्रोणाचार्य गोविषाण में कौरव-पांडवों को शिक्षा दे रहे थे, तभी द्रोणाचार्य को शिवलिंग दिखाई दिया। तब भीम ने वहां पर मंदिर बनाकर द्रोणाचार्य को गुरुदक्षिणा में दिया।[१] किसी समय इस मंदिर को घेरे हुए १२० शिव मंदिर थे।[२] एक गुजराती नागर ब्राह्मण परिवार नौ पीढ़ियों से मंदिर की सेवा कर रहा हैं। उन्हीं के अनुसार बुक्शा जनजाति के लोगों के कुल देवता महादेव हैं। यह भी मान्यता है कि यह शिवलिंग भगवाण राम के जन्म से भी पहले का है और यहां माता सीता ने भी तपस्या, अर्चना की थी।[३]
सन्दर्भ
बाहरी सूत्र
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- वीडियो यू ट्यूब पर देखें:मोटेश्वर महादेव मन्दिर