नागरहोल अभयारण्य

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साँचा:infoboxसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main other कर्नाटक में स्थित नागरहोल अपने वन्य जीव अभयारण्य के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। यह उन कुछ जगहों में से एक है जहां एशियाई हाथी पाए जाते हैं। हाथियों के बड़े-बड़े झुंड यहां देखे जा सकते हैं। मानसून से पहले की बारिश में यहां बड़ी संख्या में रंगबिरंगे पक्षी दिखाई देते हैं। उस समय पूरा वातावरण उनकी चहचहाट से गूंज उठता है। पशुप्रेमियों के लिए यहां देखने और जानने के लिए बहुत कुछ है।

एक जमाने में यह जगह मैसूर के राजाओं के शिकार का स्‍थल था। लेकिन बाद में इसे अभयारण्य बना दिया गया। अब यह राजीव गांधी अभयारण्य के नाम से जाना जाता है। यह पार्क दक्कन के पठार का हिस्सा है। जंगल के बीच में नागरहोल नदी बहती है, जो कबीनी नदी में मिल जाती है। कबीनी नदी पर बने बांध के कारण पार्क के दक्षिण में एक झील बन गई है जो इस उद्यान को बांदीपुर टाइगर रिजर्व से अलग करती है।

मुख्य आकर्षण

सफारी का मजा

640 वर्ग किलोमीटर में फैले नागरहोल अभयारण्य में अनेक जानवर पाए जाते हैं। इसलिए जंगल की सफारी से इनको करीब से देखना रोमांचक अनुभव होता है। यद्यपि यहां बहुत सारे शेर और चीते हैं, फिर भी इन्हें ढूंढ़ और देख पाना इतना आसान नहीं हैं। शेर और चीतों के अलावा हिरन, चार सींग वाला हिरन, कलगी वाला साही और काली गर्दन वाले खरगोश भी यहां देखे जा सकते हैं। पर्यटक अभयारण्य में केवल 30 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में ही घूम सकते हैं। यहां जीप और बस की सफारी उपलब्ध है। समय: सुबह 6 बजे-शाम 6 बजे तक

निकटवर्ती दर्शनीय स्थल

ब्रह्मगिरी अभयारण्य

साँचा:main 181 वर्ग किलोमीटर में फैला ब्रह्मगिरी वन्यजीव अभयारण्य कुट्टा से माकुट्टा के बीच बना हुआ है। यह अभयारण्य केरल के अरलम वन्यजीव अभयारण्य के नजदीक है। ये जंगल गौर, भालू, हाथी, हिरन, चीते, जंगली बिल्ली, शेर जैसी पूंछ वाला बंदर और नीलगिरी लंगूर का घर है। ब्रह्मगिरी पक्षियों से रुबरु होने वाले के उचित जगह है। इस अभयारण्य में आने का सही समय अक्टूबर से मई है। यहां आने से पहले अनुमति लेना आवश्यक है।

इपरू फॉल्स और ईश्वर मंदिर

यह झरना ब्रह्मगिरी पर्वत श्रृंखला की तराई में स्थित है। इपरू फॉल्स इन पर्वतों के प्रवेश द्वार की भूमिका निभाता है। यह कूर्ग का प्रमुख पर्यटक केंद्र है। नागरहोल से इर्पू कुट्टा के रास्ते यहां आया जा सकता हैं। बारिश के बाद यहां की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है। तब यहां चारों तरफ हरियाली ही दिखाई देती है। यहां पास ही ईश्वर मंदिर है जिसके बारे में माना जाता है कि यहां पर प्रभु राम ने स्वयं शिवलिंग की पूजा की थी। यहां परंपरा है कि लक्ष्मण तीर्थ में डुबकी लगाने से पहले इस मंदिर का दर्शन करना जरूरी है। शिवरात्रि के दौरान बड़ी संख्या में भक्त यहां दर्शनों के लिए आते हैं।

कुट्टा

नागरहोल के दक्षिण में 7 किलोमीटर दूर कुट्टा नामक नगर है। इसके बारे में माना जाता है कि यहां पर देवी काली ने निम जाति के कुरुबस से विवाह किया। उनके पुत्र का नाम कुट्टा था। उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम पड़ा। उनकी याद में यहां प्रतिवर्ष अप्रैल के मध्य से मई तक उत्सव मनाया जाता है।

आवागमन

वायु मार्ग

नजदीकी हवाई अड्डा मैसूर है। इसके अलावा बैंगलोर हवाई अड्डा भी है जो देश के सभी प्रमुख शहरों और कुछ विदेशी शहरों से जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग

यहां से सबसे पास कुट्टा (7 किलोमीटर) नामक शहर है। इसके अलावा मदिकेर (93 किलोमीटर), मैसूर (96 किलोमीटर) और बैंगलोर (256 किलोमीटर) से यह सडक मार्ग से जुडा हुआ है।

चित्र दीर्घा

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

Wildlife Times: Article on Predators of Nagarahole