होयसल राजवंश

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होयसल प्राचीन दक्षिण भारत का एक राजवंश था। इसने दसवीं से चौदहवीं शताब्दी तक राज किया। होयसल शासक पश्चिमी घाट के पर्वतीय क्षेत्र वाशिन्दे थे पर उस समय आस पास चल रहे आंतरिक संघर्ष का फायदा उठाकर उन्होने वर्तमान कर्नाटक के लगभग सम्पूर्ण भाग तथा तमिलनाडु के कावेरी नदी की उपजाऊ घाटी वाले हिस्से पर अपना अधिकार जमा लिया। इन्होंने ३१७ वर्ष राज किया। इनकी राजधानी पहले बेलूर थी पर बाद में स्थानांतरित होकर हालेबिदु हो गई।

Siegessäule in चेन्नकेशव मंदिर, बेलूर
Shiva und Parvati, होयसलेश्वर मंदिर, हालेबिदु

शासक

हरिहर राय १ ने इसके पश्चात विजयनगर साम्राज्य स्थापित किया।

कला एवं स्थापत्य

होयसल राजाओं का काल कला एवं स्थापत्य की उन्नति के लिये विख्यात है।

होयसल काल में मंदिर निर्माण की एक नई शैली का विकास हुआ। इन मंदिरों का निर्माण भवन के समान ऊँचे ठोस चबूतरे पर किया जाता था। चबूतरों तथा दीवारों पर हाथियों, अश्वारोहियों, हंसों, राक्षसों तथा पौराणिक कथाओं से संबंधित अनेक मूर्तियाँ बनाई गयी हैं। उनके द्वारा बनवाये गये सुन्दर मंदिरों के कई उदाहरण आज भी हलेबिड, बेलूर तथा श्रवणबेलगोला में प्राप्त होते हैं। होयसलों की राजधानी द्वारसमुद्र का आधुनिक नाम हलेबिड है, जो इस समय कर्नाटक राज्य में स्थित है। वहाँ के वर्तमान मंदिरों में होयसलेश्वर होयसलेश्वर का प्राचीन मंदिर सर्वाधिक प्रसिद्ध है, जिसका निर्माण विष्णुवर्धन के शासन काल में हुआ। यह 160 फुट लम्बा तथा 122 फुट चौड़ा है। इसमें शिखर नहीं मिलता। इसकी दीवारों पर अद्भुत मूर्तियाँ बनी हुई हैं, जिनमें देवताओं, मनुष्यों एवं पशु-पक्षियों आदि सबकी मूर्तियाँ हैं।

विष्णुवर्द्धन ने 1117 ई. में बेलूर में चेन्नाकेशव मंदिर का भी निर्माण करवाया था। वह 178 फुट लंबा तथा 156 फुट चौड़ा है। मंदिर के चारों ओर वेष्टिनी है, जिसमें तीन तोरण बने हैं। तोरण-द्वारों पर रामायण तथा महाभारत से लिये गये अनेक सुन्दर दृश्यों का अंकन हुआ है। मंदिर के भीतर भी कई मूर्तियाँ बनी हुयी हैं। इनमें सरस्वती देवी का नृत्य मुद्रा में बना मूर्ति-चित्र सर्वाधिक सुन्दर एवं चित्ताकर्षक है। होयसल मंदिर अपनी निर्माण-शैली, आकार-प्रकार एवं सुदृढता के लिये प्रसिद्ध हैं।

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