बालाजी बाजी राव

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बालाजी बाजी राव
Painting at Prince of Wales museum.jpg

पद बहाल
1740–1761
राजा छत्र शाहू
राजाराम द्वितीय
पूर्वा धिकारी बाजीराव प्रथम
उत्तरा धिकारी माधवराव प्रथम

जन्म साँचा:br separated entries
मृत्यु साँचा:br separated entries
संबंध रघुनाथ राव (भाई)
बच्चे विश्वासराव, माधवराव
धर्म हिन्दू
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बालाजी बाजी राव (8 दिसम्बर 1720 – 23 जून 1761) को नाना साहेब के नाम से भी जाना जाता है। वे मराठा साम्राज्य के पेशवा (प्रधानमंत्री) थे। इनके शासनकाल में मराठा साम्राज्य अपनी चरम उत्कर्ष पर पहुंचा जहाँ।। बालाजी बाजीराव 1740 में अपने पिता बाजीराव प्रथम की मृत्यु के बाद पेशवा के पद की जिम्मेदारी छत्रपति शाहू ने उन्हें अपना पेशवा नियुक्त किया. और वह चितपावन ब्राह्मण कुल के तीसरे पेशवा थे 1740 में अपने पिता बाजीराव प्रथम कीमृत्यु के बाद यह पेशवा के पद को इन्होंने संभाला 1741 में इन्होंने नागपुर के और बेरार के राजा रघुजी भोसले को बंगाल में अभियान करने के लिए प्रेरित किया।हालांकि रघुजी भोसले के बालाजी बाजीराव से संबंध अच्छे नहीं थे परंतु उन्होंने छत्रपति शाहू चाहिए करवाया भी कि वे पेशवा बालाजी बाजीराव को उनके पद से हटा दें परंतु शाहू ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया अंत में रघुजी भोसले ने कर्नाटक पर एक बार फिर से हमला किया और वहां के नवाब ने रघुजी भोसले से मदद मांगी थी जिसके तहत उन्होंने कर्नाटक के नए नवाब दोस्त अली खान का कत्ल कर वापस पुराने नवाब को कर्नाटक नवाब बनाया उन्होंने बंगाल में भी लूट मचाई उन्होंने कर्नाटक में भी अपने प्रभाव को बढ़ाया और साथ ही साथ कई सारे मराठा सरदारों को एक कर इन्होंने दिल्ली के तक को भी अपने अधीन कर लिया 1743 से लेकर 1749 तक इन्होंने बंगाल में खूब सारे लूट मचाई। रघुजी भोसले ने बंगाल में अपने प्रभाव को स्थापित किया हालांकि वहां के नवाब अलीवदी खान ने उन्हें रोक कर रखा परंतु अली वर्दी खान अंत में पछताने के बाद ढ़ेर सारे रुपए और पैसे मराठों को दिए। बाजीराव ने सदाशिव राव भाऊ को दक्षिण अभियान पर भेजा , जो इनके पिता के भाई के लड़के थे । सदाशिव राव भाऊ ने दक्षिण में 1758 में निजाम की सेनाओं को उदगीर में पराजित किया। जिसके बाद उनके प्रभाव में काफी वृद्धि और इसी के प्रभाव के चलते 1761 में पानीपत के तृतीय युद्ध में पेशवा बालाजी बाजीराव ने उन्हें मराठा सेना का सेनापति भी नियुक्त किया। उत्तर में युद्ध के लिए भेजा था कि उन्होंने कई और सरदारों पर विश्वास नहीं किया यही उनकी सबसे बड़ी भूल थी। उन्होंने और उनके रघुनाथ राव महादजी शिंदे और भी कई सरदार जिस बात से नाखुश थे हालांकि 1757-58 में मराठा साम्राज्य दिल्ली के साथ साथ अटक,पाकिस्तान तक फैल चुका था। 1758 में उन्होंने पेशावर पर अपना कब्जा जमा लिया। 1757 में उन्होंने इमाद उल मुलक दिल्ली सम्राट का एक ताकतवर मंत्री था उसके साथ संबंध स्थापित कर संपूर्ण दिल्ली पर भी अपना प्रभाव जमाने में काफी सफल हुये। 1749 ईसवी में छत्रपति शाहू की मृत्यु के बाद उन्होंने ताराबाई के पोते राजाराम द्वितीय को जिन्हें रामराज के नाम से भी जाना जाता है उन्हें छत्रपति घोषित कर दिया परंतु ताराबाई ने रामराज कहा कि वे पेशवा बालाजी बाजीराव को उनके पद से हटाकर दूसरा पेशवा चुने। रामराज ने इस बात सेे मना कर दिया जिस कारण तारा बाई रामराज से नाराज हो गई और उन्हें सतारा में कैद कर लिया । बालाजी बाजीराव की खबर मिलते ही बालाजी बाजीराव ने ताराबाई के खिलाफ सैन्य अभियान छेड़ दिया। ताराबाई ने दाभादे परिवार से मदद मांगी जो उस वक्त गुजरात का बहुत शक्तिशाली परिवार था और गुजरात का राजस्व संभालता था और उन्होंने दामाजी गायकवाड और दाभाडे के खिलाफ साजिश रची हालांकि दामाजी राव गायकवाड की 15000 की सेना को बालाजी बाजीराव ने नष्ट कर दी और 1752 के नवंबर महीने में ताराबाई की हार के बाद उन्होंने रामराज को अपना पोता ना होना घोषित कर दिया । जिससे छत्रपति की सारी शक्तियां पेशवा के हाथ में चली गई और इसे पेशवा मराठा समाज का सबसे ताकतवर पद बन गया । इससे अब पूरे देश के राजा महाराजाओं का मराठों से खतरा पैदा हो गया था। 1752 ईसवी में जयपुर के राजा जयसिंह द्वितीय का निधन हो गया जिसके बाद उनके दोनों पुत्रों ईश्वरी सिंह और माधो सिंह के बीच राजगद्दी प्राप्त करने के लिए लड़ाई छिड़ गई। मराठों ने माधव सिंह का सपोर्ट नहीं किया उनकी जगह पर ईश्वरी सिंह को जयपुर का राजा बनाने के लिए प्रस्ताव रखा जबकि माधव सिंह को मुगल वंश का समर्थन हासिल हुआ लेकिन बाद में उन्होंने मराठों के समर्थन के चलते मुगलो ने उनका समर्थन तोड़ दिया परंतु माधव सिंह को मल्हार राव होलकर का समर्थन प्राप्त हुआ और ईश्वरी सिंह को जयपाजी सिंधिया का समर्थन प्राप्त हुआ । परंतु बाद में रधुनाथराव और मराठों ने ईश्वरी सिंह को गद्दी पर बैठाया और उसे काफी सारी रकम अदा करने के लिए विवश किया परंतु ईश्वरी सिंह ऐसा करने में सफल ना हो सका । जिस पर मराठों ने उसके ऊपर दबाव डाला को देने के लिए भी तैयार नहीं था क्योंकि इसके लिए वह अपनी जनता पर करों का दबाव न डाला और ईश्वरसििंग ने आत्महत्या कर ली। इसके बाद रघुनाथ राव के अंतर्गत माधव सिंह के शासन में भी अपना आतंक फैलाना जारी रखा । इन सब से परेशान होकर माधव सिंह भी मराठों से काफी नाराज हो गया। 1754 में मराठों ने सूरजमल जाट की सीमा पर हमला किया और उनसे काफी बड़ी रकम मांगी परंतु उन्होंने ₹4000000 देना ही स्वीकार किया इन सब बातों से मराठी काफी परेशान हो गए और उन्होंने भरतपुर राज्य पर धेरा डाल दिया 3 महीने के बाद भरतपुर के राजा सूरजमल जाट की रानी हँसिया देवी ने मल्हारराव होल्कर और सूरजमल के मध्य संधि करा दी मान ली और को 3 साल में 9000000 देने का वादा किया जिसके तहत मराठो ने भरतपुर छोड़ दिया अब संपूर्ण मध्य भारत पर मराठों का आधिपत्य स्थापित हो चुका था। उसके बाद 1748 ईस्वी में नजीब खान रोहिल्ला ने अहमद शाह दुर्रानी को भारत पर आक्रमण करने के लिए पहली बार आमंत्रित किया परंतु मुगल वजीर सफदरजंग मराठों की मदद मांगी जिसके तहत मराठों ने उसकी मदद की 1748 में मुगल सेना ने अहमद शाह दुर्रानी को पराजित कर दिया और मराठों की सहायता से ही सफदरजंग में अहमदशाह बहादुर नामक मुगल सम्राट को कैद कर लिया और उसे अंधा करके आलमगीर को दिल्ली की गद्दी पर बैठाया की संपूर्ण भारत में चुकी थी। मराठे हमेशा लूटपाट कर ही लूट जाते थे इसलिए सभी ने ठाना की मराठो को सबक सिखाया जाना चाहिए अवध के नवाब सिराजुद्दोला और रोहिल्ला सरदार नजीब उन दोनों ने मिलकर यह रणनीति बनाई अहमद दुरानी को भारत में बुलाकर मराठों पर आक्रमण करवाया जाए इसमें उन्होंने सभी राजपूत राजाओं जैसे जयपुर के राजा माधव सिंह और मेवाड़ के राजा भी कहा कि मराठो कि कोई समर्थन न करे। भरतपुर के जाट राजा सूरजमल जाट ने मराठों को समर्थन किया जिसके कारण रोहिल्ला सरदार उनसे नाराज हो गया।मराठों ने अपनी सेनाओं को और ताकतवर बनाने के लिए बालाजी बाजीराव ने मार्केट जी बद्री नामक एक फ्रेंच सेनापति को मराठों की सेना में आने के लिए आमंत्रित किया मार्केस डी बसी(Marquiss de bussy) उस वक्त निजाम की सेना में कार्य करता था और तो थाने में वह बहुत ही महान अनुभव प्राप्त कर चुका था परंतु उसने मराठों की ओर आने से इंकार कर दिया क्योंकि मराठी अपनी सेनाओं को यूरोपियन तरीके से डालना चाहते थे और बालाजी बाजीराव इस बात को समझता था कि अगर उसे अपने भारत में अपने कब्जे को और बढ़ाना है तो उसे यूरोपियन शैली से अपनी सेनाओं को तैयार करना होगा परंतु उसके बाद उसने इब्राहिम खान गर्दी नामक एक और तोपखाने के अनुभवी व्यक्ति को जो कि उस वक्त हैदराबाद के निजाम की सेना में थे उनको अपनी और कर लिया और इसके तहत उनको तोपखाने का अध्यक्ष बनाया।जब सभी भारतीय राजाओं ने मिलकर अहमद शाह दुर्रानी को भारत पर आक्रमण करने के लिए सन 1761 में बुलाया तब बालाजी बाजीराव ने सदाशिव राव भाऊ को एक बड़ी विशाल सेना लेकर उत्तर की ओर जाने के लिए कहा उस वक्त सदाशिव राव भाऊ दक्षिण में उदगीर में थे जहां पर उन्होंने 1758 ईस्वी में निजाम की सेनाओं को हराया हुआ था परंतु बालाजी बाजीराव ने रघुनाथ राव और महादजी शिंदे जैसे महान सेनापतियों पर विश्वास नहीं किया यही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हुई सदाशिवराव अपनी पर उतर गए और वहां वे दिल्ली पहुंचे उस वक्त अहमद शाह दुर्रानी उत्तर प्रदेश के अनूपशहर तक पहुंच गया था दिल्ली को पार कर कर और उसमें 1758 में एक युद्ध में दत्ताजी सिंधिया को मार दिया था जो कि उस वक्त पेशावर और अटक में ठहरे हुए थे इसके तहत भारत में घुस आया था मराठो में पहुंचने के बाद कुंजपुरा पर हमला करा और वहां के 15000 अफगान सैनिकों को तबाह कर करीब 800000 टन गेहूं प्राप्त किया। और वहां से पानीपत की ओर चले गए जहां पर अहमद शाह अब्दाली की सेना उनके पीछे आ गई और अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली से मराठों का संपर्क काट दिया और मराठों ने अफगानिस्तान का संपर्क काट दिया जिसके तहत मराठों को परंतु मराठों को रसद ना मिलने के लिए रोहिलो ने सभी जगह से पानीपत में उनके रास्ते काट दिए और अब मराठों को रसद की आमद मात्र पंजाब से ही हो सकती थी मराठों को लिया पानीपत का युद्ध जरूरी हो गया हालांकि पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की एक भयानक हार हुई जिसमें करीब एक लाख मराठा सैनिक मारे गए और 40000 तीर्थयात्री जो कि उस वक्त मराठा सेना के साथ गए हुए थे उत्तर भारत में उन सब का भी कत्लेआम कर दिया गया जिसमें कई सारे बच्चे औरतें भी शामिल थी एक इतिहासकार के अनुसार वह भारतीय इतिहास का सबसे काला दिन था। उस दिन महाराष्ट्र में ऐसा कोई परिवार नहीं था जहां किसी को मौत की खबर ना पहुंचे और इस हार के बाद हालांकि उस युद्ध में सदाशिवराव भाऊ जानकोजी सिंधिया व इब्राहिम गर्दी तो इन सभी की मौत हो गई। हालांकि महादजी सिंधिया और नाना फडणवीस से भाग निकले बालाजी बाजीराव कोई खबर पहुंची तो वे बड़ी मराठा सेना लेकर फिर पानीपत की ओर चल पङे। अहमद शाह दुर्रानी का पता चली उन्होंने बालाजी बाजीराव से युद्ध करने से पहले ही हार मान ली। उसकी सेना में बहुत बड़ा नुकसान पहले से ही हो चुका था जिसके कारण उन्होंने [बाला जी बाजीराव]] को पत्र लिखा और कहा कि मैं दिल्ली आपको सकता हूं मेरी सेना में भी बहुत अधिक नुकसान हो चुका है और मैं आप मराठा सेना से लड़ना नहीं चाहता पर सदाशिव राव भाऊ ने युद्ध को प्रेरित किया मैं अफगानिस्तान जा रहा हूं दिल्ली पर शासन करें यह खबर मिलते हैं। बालाजी बाजीराव दिल्ली से वापस पुणे लोद गये। जहां जून 1761 में डिप्रेशन के चलते पार्वती हिल मंदिर में उसकी मृत्यु हो गई। उसके बाद उस युद्ध में उसका पुत्र विश्वास राव भी मारा गया इस कारण इस दुख को सहन न हुआ। इस युद्ध की हार का मुख्य कारण सदाशिवराव भाऊ का हाथी से उतरकर युद्ध के मैदान में आना था विश्वासराव की मौत को देखकर उतरकर उनके शरीर को ढूंढने चले गए जिसके कारण पूरी मराठा सेना में अफरा-तफरी मच गई यह एक मुख्य कारण था उस युद्ध में मराठों की हार का और यह सदाशिवराव भाऊ के कम नेतृत्व को दर्शाता है उस युद्ध के बाद मराठा साम्राज्य का उत्थान एकदम खतम किया। परंतु महादजी शिंदे नाना फडणवीस और बालाजी बाजी राव के दूसरे पुत्र माधव राव ने अपनी शक्ति को वापस बढ़ाया और पूरा उत्तर भारत में अपने प्रभाव को स्थापित किया उन्होंने रोहिल्ला सरदारों को परेशान किया रोहिलो को पराजित किया और साथ ही साथ ही जितने की मराठों के खिलाफ विरोध किया था नजीब उद दोला की कब्र को तबाह कर के उनके शहर को पूरी तरीके से विध्वंस कर दिया। 1772 के आते ही तो उन्होंने वापस दिल्ली के साथ-साथ संपूर्ण उत्तर भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया इस युद्ध में महादजी सिंधिया ने मराठा साम्राज्य की भूमिका निभाई मराठा साम्राज्य माधवराव पेशवा मराठा साम्राज्य के पुनरुत्थान में बहुत ही बड़ा योगदान दिया परंतु माधवराव पेशवा की मृत्यु के बाद एकदम सही मराठा साम्राज्य का विस्तार रुक गया और 1818 के आते-आते मराठा साम्राज्य का अंत हो गया यह पानीपत युद मराठों के लिए बहुत ही भारी साबित हुआ। इसमें कई सारे तीर्थ यात्री मारे गए थे 1760 के आते-आते मराठा साम्राज्य मराठा साम्राज्य दक्षिण में ढक्कन से लेकर उत्तर भारत में वर्तमान पाकिस्तान के अटक जिले तक पहुंच चुका था और वह कांधार तक अपना राज अफगानिस्तान में वहां तक ले जाना चाहते थे तो ऐसा नहीं होने दिया परंतु बालाजी बाजीराव को भी खो दिया डिप्रेशन के कारण उनकी मौत 1761 में हो गई उसके बाद अहमद ने भारत पर आक्रमण किया और कुछ दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई मराठा महादाजी सिंधिया के नेतृत्व में एक बार फिर से उतर भारत पर आक्रमण किया।कुछ इतिहासकारों के अनुसार बालाजी बाजीराव अपने पिता बाजीराव प्रथम से कुछ खास महान नहीं था बल्कि उसका ध्यान लूट और दंगों में ज्यादा रहता था जिसके कारण ही मराठा साम्राज्य का पतन शुरू हुआ राजनीतिक रूप से कमजोर और बालाजी बाजीराव को पानीपत के तृतीय युद्ध के समय कोई भी साथी नहीं मिला और यही उसकी हार का सबसे मुख्य कारण साबित हुआ यह बाजीराव की दूरदर्शिता ना होने का संकेत है।

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सन्दर्भ

https://www.jatland.com/home/Balaji_Baji_Rao