अजिंक्यतारा
साँचा:infobox अजिंक्यतारा (Ajinkyatara) भारत के महाराष्ट्र राज्य के सतारा ज़िले में स्थित एक दुर्ग है। मराठा साम्राज्य के काल का यह दुर्ग साँचा:convert ऊँची अजिंक्यतारा पहाड़ी पर स्थित है, और यह दुर्ग सातारा नगर के इर्द-गिर्द स्थित सात पहाड़ी दुर्गों में से एक है। अजिंक्यतारा दुर्ग का दक्षिणोत्तर विस्तार साँचा:convert मीटर है। आज इस किले पर वृक्षारोपण जैसे अनेक सामाजिक कार्यक्रम लिए जाते हैं।[१][२]
नामार्थ
"अजिंक्यतारा" का अर्थ "अजेय तारा" है। सातारा नगर का नाम "सात तारा" के संक्षिप्तिकरण से हुआ है, जिसमें तारों का तात्पर्य नगर को घेरने वाले सात पहाड़ी दुर्ग हैं।
आवागमन
अजिंक्यतारा किला सातारा शहर में ही होने से शहरासे अनेक मार्ग द्वारा किले पर जाया जा सकता है। सातारा एस.टी. स्थानक से अदालत बाजार मार्ग से जानेवाली कोई भी गाडीसे अदालत बाडे पर उतरकर किलेपर जा सकते हैं। दुपहिया से भी अजिंक्यातारा पर जा सकते हैं। सातारा से राजवाडा एेसी बससेवा हर १०-१५ मिनिट में उपलब्ध है।’राजवाडा’ बस स्थानक से अदालत बाड्डा तक चलते हुए आने के लिए १० मिनिट लगते हैं। अदालत बाडे के बाजूसे जो मार्ग है वही पर किले पर जानेवाली गाडी रस्तेपर लगती है। उस रस्ते से १ कि.मी. चलते हुए जाने पर व्यक्ति दरवाजे के पास पहुँचता है। अजिंक्यतारा किले पर जाने के लिए सीधा गाडी रस्ता भी है।सुद्धा आहे. गोडोली नाका परिसर से भी कोई भी मार्ग से किलेपर जा सकते हैं। कही से भी जाने पर लगभग एक घन्टा समय लगता है। किलेपर सुबह चढकर जाना स्वास्थ की दृष्टी से अच्छा है।
इतिहास
सातारा का किला (अजिंक्यतारा) मतलब मराठो की चौथी राजधानी। पहली राजगड फिर रायगड उसके बाद जिंजी और चौथी अजिंक्यतारा। शिलाहार वंश के दुसरे भोजराजाने इ.स. ११९० में बांधा। आगे यह किला बहामनी सत्ता के पास और फिर बिजापूर के आदिलशाह के पास गया।इ.स.१५८० में पहले आदिलशहा की पत्नी चांदबिबी यहाँ कैद में थी। शिवाजी के राज्य का विस्तार होते समय २७ जुलाई १६७३ में यह किला शिवाजी महाराज के हाथ आया इस किलेपर शिवराया को ज्वर आने के कारण दो महिने विश्रांती लेनी पडी। शिवाजी महाराज की मृत्यु के पश्चात १६८२ में औरंगजेब महाराष्ट्र में आयी। इ.स. १६९९ में औरंगजेब ने सातारा के दुर्ग को घेरा। उस समय किले के किलेदार प्रयागजी प्रभू थे। १३ एप्रिल १७०० की सुबह मुघलाे ने सुरुंग लगाने के कारण दाे सुरंग खोदी और बत्ती देते ही क्षणभर में मंगलाई का बुरूज आकाश में गया। तट पर के कुछ मराठे मारे गए इतने में दूसरा स्फोट हुआ। बड़ा तट आगे घुसनेवाले मुगलो पर गिरा व देढ हजार मुघल सैनिक मारे गए। किले पर सब बारूद, खाद्यपदार्थ खत्म हुए और २१ अप्रे को किला सुभानजीने जिता। किले पर मोगली निशाण लहराने के लिए साडेचार महिने लगे।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ "RBS Visitors Guide India: Maharashtra Travel Guide स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।," Ashutosh Goyal, Data and Expo India Pvt. Ltd., 2015, ISBN 9789380844831
- ↑ "Mystical, Magical Maharashtra स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।," Milind Gunaji, Popular Prakashan, 2010, ISBN 9788179914458