पालखेड़ की लड़ाई
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पालखेड़ की लड़ाई | |||||||
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योद्धा | |||||||
मराठा साम्राज्य | साँचा:flagicon image हैदराबाद के निज़ाम | ||||||
सेनानायक | |||||||
बाजीराव प्रथम | आसफ जाह प्रथम |
पालखेड की लड़ाई 1728 ईस्वी में मराठा साम्राज्य के पेशवा बाजीराव प्रथम और हैदराबाद निज़ामी के आसफ जाह प्रथम (जो कि मुगल वजीर थे) के बीच में हुई थी, और जिसमे बाजिराओ ने निज़ाम को हराया था ।[२]
पृष्ठभूमि
इस लड़ाई के बीज वर्ष 1713 में जाती गई, जब मराठा राजा शाहू ने बालाजी विश्वनाथ को अपना पेशवा या प्रधान मंत्री नियुक्त किया था। एक दशक के भीतर, बालाजी खंडित मुग़ल साम्राज्य से एक महत्वपूर्ण मात्रा में क्षेत्र और धन जीतने में कामयाब रहे। 1724 में, हैदराबाद पर मुगल नियंत्रण समाप्त हो गया, और हैदराबाद के पहले निजाम आसफ जाह प्रथम ने खुद को मुगल शासन से स्वतंत्र घोषित कर दिया, और अपना राज्य 'हैदराबाद डेक्कन' स्थापित किया गया। निज़ाम ने अपने प्रांत को मजबूत करने के लिए मराठों के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित में लाने को उपयुक्त सोचा। उसने कोल्हापुर के शाहू और संभाजी द्वितीय दोनों द्वारा राजा की उपाधि के दावे के कारण मराठा साम्राज्य में बढ़ते ध्रुवीकरण का फायदा उठाने का नीर्णय लिया। निज़ाम ने संभाजी द्वितीय गुट का समर्थन करना शुरू कर दिया, जिस से शाहू, जिन्हें राजा घोषित किया गया था, क्रोधित हो गए। निज़ाम ने दक्कन प्रांत के जमींदारों द्वारा मराठों को दिए गए चौथ को रोकने का फैसला किया।
लड़ाई
मई 1727 में, बाजी राव ने शाहू से निज़ाम आसफ़ जाह I के साथ वार्ता को तोड़ने के लिए कहा और एक सेना को संगठित करना शुरू कर दिया। मानसून खत्म होने पर बाजीराव ने अपनी सारी फौजी कर्नाटक से बुला ली और इस अभियान के लिए औरंगाबाद की ओर बढ़ गए। बाजीराव ने अपने दिमाग की चाल को चलते हुए और रणनीति के तहत निजाम की सेनाओं को वापस हैदराबाद से जाने से पहले ही और पालखेड के निकट निजाम की सेनाओं को पकड़ लिया और उन्हें एक दलदल नदी के किनारे ला खड़ा किया जिससे उनकी सेनाओं को आत्मसमर्पण करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा।[३]
परिणाम
निजाम ने संभाजी द्वितीय से मदद मांगी परंतु संभाजी द्वितीय ने निजाम की मदद करने से इंकार कर दिया क्योंकि वह बाजीराव पेशवा से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहता था। अंततः 6 मार्च 1728 को मुंगी शेगाव नामक स्थान पर निजाम और बाजीराव प्रथम ने संधि के लिए जिसके तहत छत्रपति शाहू को मराठा साम्राज्य का छत्रपति घोषित कर दिया। दक्कन में सरदेशमुखी और चौथ वसूल करने की भी अनुमति निजाम ने बाजीराव को दे दी।
बाजीराव कि यह जीत एक बहुत ही बड़ी जीत थी और इससे उन्होंने संपूर्ण मराठा साम्राज्य को एक बार फिर से बढ़ाना शुरू कर दिया और उनका प्रभाव संपूर्ण दक्षिण भारत में फैल गया। बाजीराव ने सिर्फ अपने दिमाग की और रणनीति के तहत ही बिना युद्ध लड़े ही निजाम को पराजित कर दिया यह बाजीराव के महान मस्तिष्क और एक महान सेनापति होने को दर्शाता है।