अटक का युद्ध १७५८
अटक का युद्ध १७५८ | |||||||||
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योद्धा | |||||||||
मराठा साम्राज्य |
दुर्रानी साम्राज्य | ||||||||
सेनानायक | |||||||||
रघुनाथराव तुकोजीराव होलकर महादजी शिंदे |
करीम शाह वजीरुल्लाह खान |
अटॉक की युद्ध 28 अप्रैल 1758 को मराठा साम्राज्य और दुर्रानी साम्राज्य के बीच हुई थी जसमे रघुनाथराव (राघोबा) के नेतृत्व में मराठा साम्राज्य ने एक निर्णायक जीत हासिल की और अटक पर कब्जा कर लिया। मराठा साम्राज्य के लिए इस लड़ाई को एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने अटॉक में मराठा झंडा फहराया। रघुनाथराव ने तीन महीने बाद पंजाब छोड़ दिया और अफ़गानों से किले की रक्षा के लिए 4000 मराठा सैनिकों के साथ मराठा सरदार नरसोजी पंडित को नियुक्त किया। यह हुजुरती सैनिकों और शिंदे सैनिकों की संयुक्त सेना की जीत थी। शिंदे सैनिक श्रीनाथ महादजी शिंदे, उनके बड़े भाई तुकोजीराव और चाचा शंभुजी शिंदे की सक्षम कमान के अधीन थे।[१]
युद्ध के बाद
8 मई 1758 को, पेशावर की लड़ाई में मराठों ने दुर्रानी सेना को हराया और पेशावर शहर पर कब्जा कर लिया। मराठा अब अफगानिस्तान की सीमा पर पहुंच चुके थे। अहमद शाह दुर्रानी मराठों की इस सफलता से चिंतित हो गए और अपने खोए हुए प्रदेशों को फिर से हासिल करने की योजना बनाने लगे। [२][३]
संदर्भ
Other sources
- Duff, James Grant (1921). A history of the Mahrattas, Volume 2
- साँचा:cite book