जाबालोपनिषद
जाबालोपनिषद | |
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चित्र:उपनिषद.gif | |
लेखक | वेदव्यास |
चित्र रचनाकार | अन्य पौराणिक ऋषि |
देश | भारत |
भाषा | संस्कृत |
श्रृंखला | शुक्ल यजुर्वेदीय उपनिषद |
विषय | ज्ञान योग, द्वैत अद्वैत सिद्धान्त |
प्रकार | हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ |
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जाबालोपनिषद शुक्ल यजुर्वेदीय शाखा के अन्तर्गत एक गौण उपनिषद है। यह उपनिषद बीस संन्यास उपनिषदों में से एक है। इसकी रचना ईसापूर्व ३०० ई के पहले हुई थी और यह सबसे प्राचीन उपनिषदों में से एक है। इसमें आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए सांसारिक जीवन से संन्यास लेने की बात कही गयी है। जाबालोपनिषद में सर्वप्रथम चारों आश्रमों का उल्लेख मिलता है।
इस उपनिषद में काशी को 'अविमुक्त' नगर कहा गया है। यह भी वर्णित है कि यह नगर कैसे 'पवित्र' बना। इसके बाद कहा गया है कि 'आत्मन' (स्वयं /आत्मा) ही सबसे पवित्र स्थान है जहाँ विचरण करना चाहिए। इस उपनिषद में यह भी कहा गया है कि किसी भी आश्रम में स्थित व्यक्ति संन्यास ले सकता है, यह केवल व्यक्ति पर ही निर्भर करता है। जाबाल उपनिषद कुछ परिस्थितियों में आत्महत्या का समर्थन करता हुआ प्रतीत होता है जबकि इसके पूर्व के वैदिक ग्रन्थों और मुख्य उपनिषदों में आत्महत्या का विरोध है।
जो लोग बहुत रोगग्रस्त हैं वे अपने मन में ही सांसारिक जीवन से संन्यास ले सकते हैं। सच्चा संन्यासी वह है जो सच्चे धर्म का पालन करता है जिसमें मन, कर्म और वाणी से किसी को भी आहत न करना भी शामिल है। ऐसा संन्यासी सभी कर्मकाण्डों का परित्याग कर देता है, किसी भी वस्तु या व्यक्ति से कोई मोह नहीं रहता और वह आत्मा और ब्रह्म की एकता में विश्वास करता है।
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- जाबालोपनिषद (संस्कृत विकिस्रोत)
- उपनिषदों ने आत्मनिरीक्षण का मार्ग बताया
मूल ग्रन्थ
अनुवाद
- Translations of major Upanishads
- 11 principal Upanishads with translations
- Translations of principal Upanishads at sankaracharya.org
- Upanishads and other Vedanta texts
- डॉ मृदुल कीर्ति द्वारा उपनिषदों का हिन्दी काव्य रूपान्तरण
- Complete translation on-line into English of all 108 Upaniṣad-s [not only the 11 (or so) major ones to which the foregoing links are meagerly restricted]-- lacking, however, diacritical marks