कैलाश संहिता
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कैलाश संहिता (शिवपुराण)में ओंकार के महत्व का वर्णन है। इसके अलावा योग का विस्तार से उल्लेख है। [१]इसमें विधिपूर्वक शिवोपासना, नान्दी श्राद्ध और ब्रह्मयज्ञादि की विवेचना भी की गई है। गायत्री जप का महत्त्व तथा वेदों के बाईस महावाक्यों के अर्थ भी समझाए गए हैं।[२]
अध्ययन क्षेत्र
कैलाश संहिता में निम्न अध्याय उपलब्ध हैं-
- प्रणव के वाच्यार्थ रूप सदाशिव के स्वरूप का ध्यान, वर्णाश्रम-धर्म के पालन का महत्त्व, ज्ञानमयी पूजा, संन्यास के पूर्वांगभूत नान्दीश्राद्ध एवं ब्रह्मयज्ञ आदि का वर्णन
- संन्यासग्रहण की शास्त्रीय विधि -गणपति- पूजन, होम, तत्त्व- शुद्धि, सावित्री-प्रवेश, सर्वसंन्यास और दण्ड-धारण आदि का प्रकार
- प्रणव के अर्थों का वर्णन
- शैवदर्शन के अनुसार शिवत्त्व, जगत्-प्रपंच और जीवतत्त्व के विषय में विशद विवेचन तथा शिव से जीव और जगत्की अभिन्नता का प्रतिपादन
- महावाक्यों के अर्थपर विचार तथा संन्यासियों के योगपट्ट का प्रकार
- यति के अन्त्येष्टि कर्म की दशाहपर्यन्त विधि का वर्णन
- यति के लिये एकादःशाह-कृत्य का वर्णन
- यति के द्वादशाह-कृत्य का वर्णन,स्कन्द और वामदेव का कैलास पर्वत पर जाना तथा सूतजी के द्वारा इस संहिता का उपसंहार[३]