समन्तभद्र

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साँचा:sidebar with collapsible lists आचार्य समन्तभद्र दूसरी सदी के एक प्रमुख दिगम्बर आचार्य थे। वह जैन दर्शन के प्रमुख सिद्धांत, अनेकांतवाद के महान प्रचारक थे।साँचा:sfnसाँचा:sfn उनका जन्म कांचीनगरी (शायद आज के कांजीवरम) में हुआ था। उनकी सबसे प्रख्यात रचना रत्नकरण्ड श्रावकाचार हैं।[१]

जैन ग्रन्थ

 रत्नकरण्ड श्रावकाचार का अंग्रेजी अनुवाद
  • आप्त-मीमंसा- ११४ श्लोकों में जैन धर्म के अनुसार केवल ज्ञान समझाया गया हैं इसमें केवली के गुणों का वर्णन हैं। [५]
  • युक्तानुशासन – 'युक्तानुशासन' एक काव्य रचना है जिसके ६४ श्लोकों में तीर्थंकर महावीर स्वामी की स्तुति की गयी है।साँचा:sfn

व्याधि

आचार्य समन्तभद्र मुनि को संन्यास जीवन के शुरुवाती वर्षों में भस्मक नाम की व्याधि हो गयी थी जिसमें तिर्ष्ण भूख लगती हैं। चूँकि दिगंबर मुनि एक बार से ज्यादा आहार नहीं लेते, उन्हें इससे काफी कष्ट होने लगा[७] जिसके कारण अंत में उन्होंने सल्लेखना व्रत धारण करने का सोचा जब उन्होंने अपने गुरु से इसके लिए आज्ञा मांगी तो गुरु ने इसकी आज्ञा नहीं दी।[८] उनके गुरु ने उन्हें मुनि व्रतों का त्याग कर रोग उपचार करने को कहा।साँचा:sfn उपचार के बाद आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने दोबारा मुनि व्रतों को धारण किया और महान आचार्य हुए।[९]

सन्दर्भ

  1. Jain 1917, पृ॰ iv.
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  3. Jain 1917, पृ॰ v.
  4. Ghoshal 2002, पृ॰ 7.
  5. Jain 2015, पृ॰ xvii.
  6. Jain 2015, पृ॰ xi.
  7. Jain 2015, पृ॰ xviii.
  8. Long 2013, पृ॰ 110.
  9. Jain 2015, पृ॰ xx.

ग्रन्थ

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बाहरी कड़ियाँ

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