हरीश चंद्र

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(हरीश चन्द्र से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

साँचा:distinguish


हरीश चंद्र महरोत्रा (११ अक्टूबर १९२३ - १६ अक्टूबर १९८३) भारत के महान गणितज्ञ थे। वह उन्नीसवीं शदाब्दी के प्रमुख गणितज्ञों में से एक थे। इलाहाबाद में गणित एवं भौतिक शास्त्र का प्रसिद्ध केन्द्र "मेहता रिसर्च इन्सटिट्यूट" का नाम बदलकर अब उनके नाम पर हरीशचंद्र अनुसंधान संस्थान कर दिया गया है। 'हरीश चंद्र महरोत्रा' को सन १९७७ में भारत सरकार द्वारा साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

जीवनी

हरिश्चन्द्र का जन्म ११ अक्टूबर १९२३ को कानपुर में हुआ था। उनकी की प्रारंभिक शिक्षा कानपुर में ही हुई। फिर उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से सैद्धांतिक भौतिकी में उच्च शिक्षा प्राप्त की। इसके पश्चात् उन्होंने क्वांटम यांत्रिकी पर पॉल डिराक के विनिबंध[१] का अध्ययन किया। उन्होंने 1943 में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की तथा सैद्धांतिक भौतिकी में कार्य करने के लिए वे बंगलौर चले गये।

यहां से वे होमी जहांगीर भाभा के साथ कैम्ब्रिज चले गये जहाँ उन्होंने डिराक के मार्गदर्शन में पी.एच.डी. किया। कैम्ब्रिज प्रवास के दौरान उन्हें भौतिकी से हटकर गणित में अधिक रूचि हो गई। कैम्ब्रिज में ही वे पाउली के व्याख्यान में उपस्थित हुए तथा उन्होंने पाउली के कार्य में हुई गलती को उजागर किया। इसके बाद से जीवन भर वे दोनों मित्र रहे। प्रो. हरीश-चन्द्र 1947 में डिग्री प्राप्त कर अमेरिका चले गये।

डिराक एक वर्ष के लिए प्रिंस्टन आये तथा इस अवधि में हरीशचन्द्र ने उनके सहायक के रूप में कार्य किया। यद्यपि, वह गणितज्ञ हर्मन वेल तथा क्लाउड चेवेली से काफी प्रभावित थे। 1950-1965 की अवधि उनके लिए काफी उपयोगी रहा। यह अवधि उन्होंने कोलम्बिया विश्वविद्यालय में बितायी। इस अवधि में उन्होंने सेमी-सिम्पल ली ग्रुप के निरूपण पर कार्य किया। इसी अवधि में वे आंड्रे विल के संपर्क में भी रहे।

प्रो. हरीश-चन्द्र, एक उद्धरण के अनुसार[२], विश्वास करते थे कि गणित में उनकी पृष्ठभूमि की कमी, एक तरह से, उनके कार्य में अनूठेपन के लिए जिम्मेदार थी :

मैंने प्राय: खोज की प्रक्रिया में एक ओर ज्ञान या अनुभव की भूमिका तथा दूसरी ओर कल्पना या अंत:प्रज्ञा की भूमिका पर चिंतन किया है। मुझे विश्वास है कि इन दोनों के बीच कुछ मौलिक अंतर्विरोध हैं तथा ज्ञान, सावधानी पूर्वक विचार करने पर, कल्पना की उड़ान में बाधा उत्पन्न करती है। इसलिए पारंपरिक विवेक द्वारा भारमुक्त अनुभवहीनता कभी- कभी सकारात्मक मूल्य के हो सकते हैं।

प्रो. हरीश-चन्द्र 1963 में प्रिंसटन में इंस्टीटयूट फॉर एडवांस स्टडी में कार्य किया। वे 1968 में आई.बी.एम. वान न्यूमैन प्रोफेसर नियुक्त हुए। प्रिंसटन में एक सम्मेलन के दौरान दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।

पुरस्कार एवं सम्मान

प्रो. हरीश-चन्द्र अपने जीवन में कई पुरस्कारों से सम्मानित किये गये। वे रॉयल सोसाइटी, लंदन तथा राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के सदस्य थे। सेमी-सिम्पल ली अल्जेब्रा एवं ग्रुप के निरूपण तथा अपने विशेष पत्र[३] की प्रस्तुति के लिए उन्हें सन् 1954 में अमेरिकन मैथेमेटिकल सोसाइटी द्वारा कोल पुरस्कार प्रदान किया गया। 1974 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (INSA) द्वारा श्रीनिवास रामानुजन मेडल से सम्मानित किया गया।

सन्दर्भ

  1. पी.ए.एम. डिराक, प्रिंसपुल्स ऑफ क्वांटम मैकेनिक्स, क्लेरेंडन प्रेस, ऑक्सफोर्ड, 1930.
  2. रॉबर्ट लैंगलैंड्स, हरीश-चन्द्र, बायोग्रा. मेमॉयर ऑफ फेल्लोज ऑफ द रॉयल सोसाइटी, 31 (1985), 197–225.
  3. प्रो. हरीश-चन्द्र, ऑन सम एप्लीकेशन्स ऑफ द यूनिवर्सल इनवेलपिंग अलजेब्रा ऑफ ए सेमी-सिम्पल ली अल्जेब्रा, ट्रांस. अमर.मैथ.सो., 37 (1951), 813-818.

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ