आर्यभट की ज्या सारणी
आर्यभट द्वारा रचित आर्यभटीय में दिये गये २४ संख्याओं का समुच्चय आर्यभट की ज्या-सारणी (Āryabhaṭa's sine table) कहलाता है। आधुनिक अर्थ में यह कोई गणितीय सारणी (टेबुल) नहीं है जिसमें संख्याएँ पंक्ति व स्तम्भ के रूप में विन्यस्त (arranged) हों।[१][२]
परम्परागत अर्थों में यह त्रिकोणमिति में प्रयुक्त ज्या फलन (sine function) के मानों की सूची भी नहीं है बल्कि यह ज्या फलन के मानों के प्रथम अन्तर (first differences) है। इसी लिये इसे 'आर्यभट की ज्या-अन्तर सारणी (Āryabhaṭa's table of sine-differences) भी कहा जाता है।[३][४]
आर्यभट की यह सारणी, गणित के इतिहास में, विश्व की सबसे पहले रचित ज्या-सारणी है।[५]
श्लोक के रूप में ज्या-सारणी
मूल सारणी
आर्यभटीय का निम्नांकित श्लोक ही आर्यभट की ज्या-सारणी को निरूपित करता है:
मखि भखि फखि धखि णखि ञखि ङखि हस्झ स्ककि किष्ग श्घकि किघ्व।
घ्लकि किग्र हक्य धकि किच स्ग झश ंव क्ल प्त फ छ कला-अर्ध-ज्यास् ॥
आधुनिक निरूपण
उपरोक्त श्लोक कूट रूप में है। आर्यभटीय में ही इसकी सहायता से ज्या-मान निकालने की विधि भी बतायी गयी है। इस विधि का उपयोग करके जो मान प्राप्त होते हैं वे नीचे की सारणी में दिये गये हैं।
क्रमांक | कोण (A) (डिग्री, आर्कमिनट में) |
आर्यभट के संख्यात्मक निरूपण के रूप में मान |
आर्यभट के संख्यात्मक निरूपण का (ISO 15919 लिप्यन्तरण) |
संख्या के रूप में मान | ज्या (A) का आर्यभट द्वारा दिया मान |
ज्या (A) का आधुनिक मान (3438 × sin (A) |
---|---|---|---|---|---|---|
1 | 03° 45′
|
मखि
|
makhi
|
225
|
225′
|
224.8560
|
2 | 07° 30′
|
भखि
|
bhakhi
|
224
|
449′
|
448.7490
|
3 | 11° 15′
|
फखि
|
phakhi
|
222
|
671′
|
670.7205
|
4 | 15° 00′
|
धखि
|
dhakhi
|
219
|
890′
|
889.8199
|
5 | 18° 45′
|
णखि
|
ṇakhi
|
215
|
1105′
|
1105.1089
|
6 | 22° 30′
|
ञखि
|
ñakhi
|
210
|
1315′
|
1315.6656
|
7 | 26° 15′
|
ङखि
|
ṅakhi
|
205
|
1520′
|
1520.5885
|
8 | 30° 00′
|
हस्झ
|
hasjha
|
199
|
1719′
|
1719.0000
|
9 | 33° 45′
|
स्ककि
|
skaki
|
191
|
1910′
|
1910.0505
|
10 | 37° 30′
|
किष्ग
|
kiṣga
|
183
|
2093′
|
2092.9218
|
11 | 41° 15′
|
श्घकि
|
śghaki
|
174
|
2267′
|
2266.8309
|
12 | 45° 00′
|
किघ्व
|
kighva
|
164
|
2431′
|
2431.0331
|
13 | 48° 45′
|
घ्लकि
|
ghlaki
|
154
|
2585′
|
2584.8253
|
14 | 52° 30′
|
किग्र
|
kigra
|
143
|
2728′
|
2727.5488
|
15 | 56° 15′
|
हक्य
|
hakya
|
131
|
2859′
|
2858.5925
|
16 | 60° 00′
|
धकि
|
dhaki
|
119
|
2978′
|
2977.3953
|
17 | 63° 45′
|
किच
|
kica
|
106
|
3084′
|
3083.4485
|
18 | 67° 30′
|
स्ग
|
sga
|
93
|
3177′
|
3176.2978
|
19 | 71° 15′
|
झश
|
jhaśa
|
79
|
3256′
|
3255.5458
|
20 | 75° 00′
|
ंव
|
ṅva
|
65
|
3321′
|
3320.8530
|
21 | 78° 45′
|
क्ल
|
kla
|
51
|
3372′
|
3371.9398
|
22 | 82° 30′
|
प्त
|
pta
|
37
|
3409′
|
3408.5874
|
23 | 86° 15′
|
फ
|
pha
|
22
|
3431′
|
3430.6390
|
24 | 90° 00′
|
छ
|
cha
|
7
|
3438′
|
3438.0000
|
आर्यभट की गणना-विधि
आर्यभटीय के 'गणितपाद' नामक अध्याय में ज्या-सारणी की गणना की विधि बतायी गयी है।
सन्दर्भ
इन्हें भी देखे
- माधवाचार्य की ज्या सारणी
- भास्कर प्रथम का ज्या सन्निकटन सूत्र (Bhaskar I's Sine approximation formula)