म्लेच्छित विकल्प
म्लेच्छित विकल्प, वात्स्यायन के कामसूत्र में वर्णित ६४ कलाओं में से एक कला है। वस्तुतः यह बीजलेखन (क्रिप्टोग्राफी) और गुप्तसंचार की कला है। डेविड कान (David Kahn) ने १९६७ में रचित बीजलेखन से सम्बन्धित कोडब्रेकर्स नामक एक ग्रन्थ में यह मत व्यक्त किया है कि म्लेच्छित विकल्प इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन भारत में बीजलेखन की विधियाँ बहुतायत में प्रचलित थीं।
कौटिलीयम्
यशोधर के अनुसार हस्व स्वर, दीर्घ स्वर, अनुस्वार, विसर्ग तथा स्पर्शी वर्णों को अन्य व्यंजनों तथा संयुक्ताक्षरों के स्थान पर रखने से कौटिलीय लिपि बन जाती है। [१] यह नीचे की सारणी में दिखायी गयी है। अन्य वर्ण जो सारणी में नहीं दिए गये हैं, अपरिवर्तित रहते हैं। प्रत्येक शब्द का प्रथम वर्ण भी अपरिवर्तित रखा जाता है। अतः इस लिपि में 'मग' के स्थान पर 'मा' लिखा जाएगा।
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ लृ लॄ ए ऐ ओ औ अं अः ञ श ष स इ र ल उ ख ग घ ङ छ ज झ ञ ठ ड ढ ण थ द ध न फ ब भ म य र ल व
इस योजना का एक सरलीकृत रूप भी है जिसका नाम दुर्बोध है।
मूलदेवीयम्
मूलदेवीय का उल्लेख यशोधर द्वारा रचित कामसूत्र की जयमंगला टीका में आया है। इसके अनुसार, अ और क, ख और ग, घ और ङ, चवर्ग और टवर्ग, तवर्ग और पवर्ग तथा य और श, इनका परस्पर व्यत्यय कर देने से मूलदेवी लिपि बन जाती है। 'मूलदेव' नाम से प्राचीन जैन कथाओं के बहुत प्रसिद्ध चतुर व धूर्त्त नायक पाये जाते हैं।
अ ख घ च त ञ न र ल य क ग ङ ट प ण म ष स श