ज्येष्ठदेव

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ज्येष्ठदेव
जन्म साँचा:circa CE
मृत्यु साँचा:circa CE
आवास Alattur, near Tirur in Kerala
राष्ट्रीयता Indian
जातीयता नम्पुतिरी
व्यवसाय खगोलशास्त्री-गणितज्ञ
प्रसिद्धि कारण Authorship of युक्तिभाषा
धार्मिक मान्यता हिन्दू
संबंधी Parangngottu (Sanskritised as Parakroda) family
Notes
Pupil of Damodara, contemporary of Nilakantha Somayaji, teacher of Achyuta Pisharati

ज्येष्ठदेव (मलयालम: ജ്യേഷ്ഠദേവന് ; 1500 ई -- 1575)[१][२] भारत के एक खगोलशास्त्री एवं गणितज्ञ थे। वे केरलीय गणित सम्प्रदाय से सम्बन्धित थे जिसकी स्थापना संगमग्राम के माधव (1350 -- 1425) ने की थी। युक्तिभाषा उनकी प्रसिद्ध रचना है जो नीलकण्ठ सोमयाजि द्वारा रचित तन्त्रसंग्रह की मलयालम भाषा में टीका है। युक्तिभाषा में ज्येष्ठदेव ने तन्त्रसंग्रह में दिये गये गणितीय कथनों का सम्पूर्ण उपपत्ति दिया है तथा उनके औचित्य के बारे में लिखा है। युक्तिभाषा में वर्णित विषयों को देखते हुए कई विद्वान इसे 'कैलकुलस का प्रथम ग्रन्थ' कहते हैं।[३] ज्येष्ठदेव ने 'दृक्करण' नामक ग्रन्थ भी रचा जिसमें उनके खगोलीय प्रेक्षणों का संग्रह है।[४]

ज्येष्ठदेव ने समाकलन का विचार दिया है, जिसे उन्होने संकलितम कहा है, (हिंदी अर्थ, संग्रह), जैसा कि इस कथन में है:

एकाद्येकोथर पद संकलितम समं पदवर्गठिन्ते पकुति

जो समाकलन को एक ऐसे चर (पद) के रूप में बदल देता है जो चर के वर्ग के आधे के बराबर होगा; अर्थात x dx का समाकलन x2 / 2 के बराबर होगा। यह स्पष्ट रूप से समाकलन की शुरुआत है। इससे सम्बंधित एक अन्य परिणाम कहता है कि किसी वक्र के अन्दर का क्षेत्रफल उसके समाकल के बराबर होता है। इसमें दिये हुए अधिकांश परिणाम ऐसे हैं जो यूरोप में कई शताब्दियों बाद देखने को मिलते हैं।

अनेक प्रकार से, ज्येष्ठदेव की युक्तिभाषा कलन पर विश्व की पहली पुस्तक मानी जा सकती है।[५][६][७]

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite journal
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  3. साँचा:cite journal
  4. साँचा:cite web
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बाहरी कड़ियाँ