भारतीकृष्ण तीर्थ

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
चित्र:Bharti krishna.jpg
भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज

भारती कृष्णतीर्थ जी महाराज (14 मार्च 1884 - 2 फ़रवरी 1960) जगन्नाथपुरी के शंकराचार्य थे। शास्त्रोक्त अष्टादश विद्याओं के ज्ञाता, अनेक भाषाओं के प्रकांड पंडित तथा दर्शन के अध्येता पुरी के शंकराचार्य भारती कृष्णतीर्थ जी महाराज ने वैदिक गणित की खोज कर समस्त विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया था। वे एक ऐसे अनूठे धर्माचार्य थे जिन्होंने शिक्षा के प्रसार से लेकर स्वदेशी, स्वाधीनता तथा सामाजिक क्रांति में अनूठा योगदान कर पूरे संसार में ख्याति अर्जित की थी।

परिचय

14 मार्च 1884 को तिरुन्निवल्ली में डिप्टी कलेक्टर पी. नृसिंह शास्त्री के पुत्र के रूप में जन्में वेंकटरमण जन्मजात असाधारण प्रतिभा के स्वामी थे। उन्होंने सन्‌ 1904 में एक साथ सात विषयों में एम.ए. किया। साहित्य, भूगोल, इतिहास, संगीत, गणित, ज्योतिष जैसे विषयों में उनकी गहरी पैठ थी।

जिन दिनों वे बड़ौदा कॉलेज में विज्ञान तथा गणित के प्राध्यापक थे, उसी कॉलेज में महर्षि अरविंद दर्शनशास्त्र का अध्यापन करते थे। दोनों संपर्क में आए तथा राष्ट्रीय चेतना जागृत कर देश को स्वाधीन कराने के लिए योजना बनाने लगे। सन्‌ 1905 में बंगाल में , आंदोलन ने जोर पकड़ा। वेंकटरमण शास्त्री तथा महर्षि अरविंद दोनों ने कलकत्ता पहुंचकर उसे गति प्रदान की। उनके ओजस्वी तथा तर्कपूर्ण भाषणों से बंगाल का प्रशासन कांप उठा था। वेंकटरमण शास्त्री की रुचि आध्यात्म की ओर बढ़ी तथा उन्होंने शृंगेरी के शंकराचार्य सच्चिदानंद शिवाभिनव नृसिंह सरस्वतीजी महाराज के सानिध्य में कठोरतम योग साधना की। गोवर्धनपीठ, पुरी के शंकराचार्य मधुसूदन तीर्थ ने उन्हें संन्यास दीक्षा देकर वेंकटरमण की जगह भारती कृष्णतीर्थ नामकरण कर दिया।

सन्‌ 1921 में उन्हें शंकराचार्य पद पर अभिषिक्त किया गया। उसी वर्ष उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस महासमिति की कार्यकारिणी का सदस्य मनोनीत किया गया। स्वामीजी ने राजधर्म और प्रजाधर्म विषय पर एक भाषण दिया जिसे सरकार ने राजद्रोह के लिए भड़काने का अपराध बताकर उन्हें गिरफ्तार कर कराची की जेल में बंद कर दिया। बाद में स्वामीजी कांग्रेस के चर्चित अली बंधुओं के साथ बिहार की जेल में भी रहे। कारागार के एकांतवास में ही स्वामीजी ने अथर्ववेद के सोलह सूत्रों के आधार पर गणित की अनेक प्रवृत्तियों का समाधान एवं अनुसंधान किया। वे बीजगणित, त्रिकोणमिति आदि गणितशास्त्र की जटिल उपपत्तियों का समाधान वेद में ढूढ़ने में सफल रहे। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने अनेक विश्ववविद्यालयों में गणित पर व्याख्यान दिए। कुछ ही दिनों में देश-विदेश में उनकी खोज की चर्चा होने लगी।

स्वामीजी ने अंगरेजी में लगभग पांच हजार पृष्ठों का एक वृहद ग्रंथ ‘वंडर्स ऑफ वैदिक मैथेमेटिक्स’ लिखा। स्वामीजी के इस ग्रंथ का वैदिक गणित के नाम से हिंदी अनुवाद किया गया। स्वामी जी ने वैदिक गणित के अलावा ब्रह्मासूत्र भाष्यम, धर्म विधान तथा अन्य अनेक ग्रंथों का भी सृजन किया। ब्रह्मासूत्र के तीन खंडों का प्रकाशन कलकत्ता विश्वविद्यालय ने किया। सन्‌ 1953 में उन्होंने विश्वपुनर्निर्माण संघ की स्थापना की। उनका मत था कि आध्यात्मिक मूल्यों के माध्यम से ही विश्वशांति स्थापित की जा सकती है।

स्वामी भारती कृष्णतीर्थ आ शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित मठों के शंकराचार्य की शृंखला में एक ऐसे अनूठे धर्माचार्य थे। जिनके व्यक्तित्व में बहुमुखी प्रतिभा तथा विभिन्न विधाओं का अनूठा संगम था। अनूठे ज्ञान से मंडित होने के बावजूद वे परम विरक्त तथा परमहंस कोटि के संन्यासी थे। वे अस्वस्थ हुए-उनके भक्तों की इच्छा थी कि उन्हें अमेरिका ले जाकर चिकित्सा कराई जाए। उन्होंने 2 फ़रवरी 1960 को निर्वाण प्राप्त करने से एक सप्ताह पूर्व ही कह दिया था कि संन्यासी को नश्वर शरीर की चिंता नहीं करनी चाहिए, जब भगवान का बुलावा आए उसे परलोक गमन के लिए तैयार रहना चाहिए।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ