सतलुज नदी

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सतलज नदी
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River Sutlej in Rupnagar, Punjab, India
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The Sutlej is a tributary to the Indus
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Location
Countryसाँचा:flag, साँचा:flag, साँचा:flag
StateTibet, हिमाचल प्रदेश, Punjab, हरयाणा, राजस्थान, पंजाब
Physical characteristics
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MouthConfluence with Chenab to form the Panjnad River
 • location
Bahawalpur district, Punjab, Pakistan
 • coordinates
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 • elevation
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Lengthसाँचा:convertapproxसाँचा:error
Basin sizeसाँचा:convertapprox.साँचा:main other
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Basin features
Tributaries 
 • leftBaspa
 • rightSpiti, Beas

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1857 में रामपुर में सतलज नदी का दृश्य

सतलुज (पंजाबी: ਸਤਲੁਜ, अँग्रेजी:Sutlej River, उर्दू: دريائے ستلُج) उत्तरी भारत में बहनेवाली एक सदानीरा नदी है। इसका पौराणिक नाम शतुर्दि है। जिसकी लम्बाई पंजाब में बहने वाली पाँचों नदियों में सबसे अधिक है। यह पाकिस्तान में होकर बहती है।

उद्गम

दक्षिण-पश्चिम तिब्बत में समुद्र तल से 4,600 मीटर की ऊंचाई पर इसका उद्गम मानसरोवर के निकट राक्षस ताल से है, जहां इसका स्थानीय नाम लोगचेन खम्बाव है।

अपवाह

उद्गम स्थल से हिमाचल प्रदेश में प्रवेश करने से पहले यह पश्चिम की ओर मुड़कर कैलाश पर्वत के ढाल के पास बहती है। यहाँ से यह नदी गहरे खड्डों से होकर बहती है और पर्वत श्रेणियों की क्रमिक ऊंचाई सतलुज घाटी में चबूतरों में परिवर्तित हो जाती है। हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों से अपना रास्ता तय कराते हुये यह नदी पंजाब के रुपनगर जिला के उत्तरनांगल में प्रवेश करती है। नांगल से शहीद भगत सिंह जिला, लुधियाना , जालिंदर ,मोगा ,फिरोजपुर फाजिल्का से बह कर छ किलोमीटर ऊपर हिमाचल प्रदेश के भाखड़ा में सतलुज पर बांध बनाया गया है। बांध के पीछे एक विशाल जलाशय का निर्माण किया गया है, जो गोविंद सागर जलाशय कहलाता है। भाखड़ा नांगल परियोजना से पनबिजली का उत्पादन होता है, जिसकी आपूर्ति पंजाब और आसपास के राज्यों को की जाती है। पंजाब में प्रवेश के बाद यह नदी दक्षिण-पूर्व के रोपड़ जिले में शिवालिक पहाड़ियों के बीच बहती है। रोपड़ में ही यह पहाड़ से मैदान में उतरती है, यहाँ से यह पश्चिम की ओर तेजी से मुड़कर पंजाब के मध्य में बहती है, जहां यह बेस्ट दोआब (उत्तर) और मालवा (दक्षिण) को विभाजित करती है। हरिके में ब्यास नदी सतलुज में मिलती है, जहां से यह दक्षिण-पश्चिम की ओर मुड़कर भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा निर्धारित करती है। इसके बाद यह भारत को छोडकर कुछ दूरी के लिए पाकिस्तान में फाजिल्का के पश्चिम में बहती है। बहावलपुर के निकट पश्चिम की ओर यह चनाब नदी से मिलती है। दोनों नदियां मिलकर पंचनद का निर्माण करती है।[२]

नामोल्लेख

ऋग्वेद के नदीसूक्त में इसे शुतुद्रि कहा गया है।[३]वैदिक काल में सरस्वती नदी 'शुतुद्रि' में ही मिलती थी। परवर्ती साहित्य में इसका प्रचलित नाम 'शतद्रु या शतद्रू' (सौ शाखाओं वाली) है। वाल्मीकि रामायण में केकय से अयोध्या आते समय भरत द्वारा शतद्रु के पार करने का वर्णन है।[४] महाभारत में पंजाब की अन्य नदियों के साथ ही शतद्रु का भी उल्लेख है।[५]श्रीमदभागवत[६] में इसका चंद्रभागा तथा मरूदवृधा आदि के साथ उल्लेख है-'सुषोमा शतद्रुश्चन्द्रभागामरूदवृधा वितस्ता'।विष्णु पुराण[७] में शतद्रु को हिमवान पर्वत से निस्सृत कहा गया है- 'शतद्रुचन्द्रभागाद्या हिमवत्पादनिर्गताः'। वास्तव में सतलुज का स्रोत रावणह्नद नामक झील है जो मानसरोवर के पश्चिम में है। वर्तमान समय में सतलुज 'बियास' (विपासा) में मिलती है। किंतु 'दि मिहरान ऑफ़ सिंध एंड इट्रज ट्रिव्यूटेरीज' के लेखक रेबर्टी का मत है कि '1790 ई. के पहले सतलुज, बियास में नहीं मिलती थी। इस वर्ष बियास और सतलज दोनों के मार्ग बदल गए और वे सन्निकट आकर मिल गई।' शतद्रु वैदिक शुतुद्रि का रूपांतर है तथा इसका अर्थ शत धाराओं वाली नदी किया जा सकता है। जिससे इसकी अनेक उपनदियों का अस्तित्व इंगित होता है। ग्रीक लेखकों ने सतलज को हेजीड्रस कहा है। किंतु इनके ग्रंथों में इस नदी का उल्लेख बहुत कम आया है। क्योंकि अलक्षेंद्र की सेनाएं ब्यास नदी से ही वापस चली गई थी और उन्हें ब्यास के पूर्व में स्थित देश की जानकारी बहुत थोड़ी हो सकी थी।

योगदान

पंजाब की समृद्धि के पीछे सतलुज का भी योगदान है। सतलुज पर भाखड़ा पर बने बांध से न सिर्फ बिजली की आपूर्ति होती है, बल्कि इससे राज्य का बड़ा हिस्सा बाढ़ से भी बचा रहता है। नागल बांध की नहर, सरहिंद और बेस्ट दोआब की नहर, जो रोपड़ से निकलती है, सरहिंद जैसी सहायक नहर, राजस्थान नहर और बीकानेर नहर, जो हुसैनीवाला से निकलती है, सभी सतलुज से ही पानी प्राप्त करती हैं।राजस्थान कि जीवन रेखा कही जाने वाली प्रमुख इंदिरा गांधी नहर में जल का एक मात्र स्रोत इस नदी से है राजस्थान कि समृद्धि में भी सतलुज का योगदान है

सहायक नदियां

ब्यास नदी

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite web
  2. भारत ज्ञानकोश, खंड-5, पृष्ठ-335, प्रकाशक-पोप्युलर प्रकाशन, आई एस बी एन 81-7154-993-4
  3. ऋग्वेद 10,75,5, श्लोक: इमं में गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमं परुषण्या असिक्न्यामयदवृधे वितस्तयर्जीकीये शृणुह्मा सुषोमया।
  4. 'ह्लादिनीं दूरपारां च प्रत्यक् स्रोतस्तरंगिणीम् शतद्रुमतस्च्छीमान्नदीमिक्ष्वाकुनन्दनः' रामायण, अयोध्या कांड 71, 2 अर्थात श्रीमान इक्ष्वाकुनन्दन भरत ने प्रसन्नता प्रदान करने वाली, चौड़े पाट वाली और पश्चिम की ओर बहने वाली शतद्रु पार की।
  5. महाभारत भीष्म पर्व 9, 15, श्लोक: 'शतद्रु-चंद्रभागां च यमुनां च महानदीम्, दृषद्वतीं विपाशां च विपापां स्थूलवालुकाम्'।
  6. सुषोमा शतद्रुश्चन्द्रभागामरूदवृधा वितस्ता श्रीमदभागवत 5, 18, 18
  7. विष्णु पुराण 2, 3, 10