शमशेर बहादुर सिंह

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शमशेर बहादुर सिंह
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हस्ताक्षर
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शमशेर बहादुर सिंह १३ जनवरी १९११ - १२ मई १९९३ सम्पूर्ण आधुनिक हिन्दी कविता में एक अति विशिष्ट कवि के रूप में मान्य हैं। हिन्दी कविता में निरन्तर प्रयोगशील रहने वाले, बिम्ब को काव्य-भाषा के रूप में प्रयुक्त करने वाले, प्रेम और सौन्दर्य के कवि तथा अनूठे माँसल ऐन्द्रिय बिम्बों के रचयिता होने पर भी शमशेर आजीवन प्रगतिवादी विचारधारा से जुड़े रहे। दूसरा सप्तक से शुरुआत कर 'चुका भी हूँ नहीं मैं' के लिए साहित्य अकादमी सम्मान पाने वाले शमशेर ने कविता के अलावा निबन्ध, कहानी एवं डायरी विधा में भी लिखा तथा अनुवाद-कार्य के अतिरिक्त हिन्दी-उर्दू शब्दकोश का संपादन भी किया।

जीवन-वृत्त

शमशेर का जन्म १३ जनवरी १९११ को देहरादून के एक प्रतिष्ठित जाट परिवार में हुआ था।[१] प्रमाण-पत्रों में उनकी जन्म तारीख ३ जनवरी है।[२] देहरादून उनका ननिहाल था। उनका ददिहाल (पैतृक) गाँव उत्तरप्रदेश के मुज़फ्फ़रनगर जिले का एल्लम था, जहाँ वे कभी नहीं गये।[३] उनके पिता का नाम तारीफ सिंह और माँ का प्रभुदेई था।[४] उनके भाई तेज बहादुर उनसे दो साल छोटे थे। शमशेर ८-९ साल के थे जब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। लेकिन दोनों भाइयों का संग-साथ किसी ना किसी रूप में शमशेर के इलाहाबाद में रहने तक बना रहा। बाद में दोनों भाइयों में यदा-कदा ही मिलना-जुलना हो पाया।[५] उनकी आरंभिक शिक्षा उर्दू में हुई थी। वह जमाना ही उर्दू-फ़ारसी का था; लेकिन बचपन से ही माँ के भागवत-पाठ तथा सहपाठियों की पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से वे हिन्दी से भी जुड़ते चले गये। अनजाने ही हिन्दी और उर्दू दोनों के संस्कार उन्हें मिलते चले गये।[६] उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके ननिहाल देहरादून के पी मिशन हाई स्कूल में हुई। १९२८ में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करके १९३१ में उन्होंने गोंडा (उत्तर प्रदेश) से इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। फिर १९३३ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी॰ए॰ उत्तीर्ण करके १९३८ में वहीं से एम॰ए॰ प्रीवियस भी उत्तीर्ण हुए। कुछ कारणों से फाइनल नहीं कर पाये।[४] १९३५-३६ में उन्होंने उकील बंधुओं से कला-प्रशिक्षण लिया।

सन् १९२९ में १८ वर्ष की अवस्था में उनका विवाह धर्मवती के साथ हुआ। छः वर्ष के साथ के बाद १९३५ में यक्ष्मा से धर्मवती की मृत्यु हो गयी। १९३९ में उनके पिता बाबू तारीफ़ सिंह का भी देहावसान हो गया।[७]

शमशेर के जीवन का बहुत बड़ा भाग बेहद अभाव से भरा रहा है। उनके भाई तेज बहादुर के शब्दों में "जिस भी इच्छा के लिए पिपासा जागती थी बस उसी का ही अभाव सामने आ जाता था।... वे दुर्दिन तो थे ही, अभाव से ग्रसित दारिद्र जीवन के उस अंधकार में रचनाएँ, चित्र लेख और अपनी उमंगों का सपना संजोए हुए यात्री उत्तरोत्तर अग्रसर होता गया। कपड़ों का अभाव, खाने का अभाव, धन-दौलत का अभाव, भूख-प्यास साहित्य सुभट ने सभी कुछ झेला।"[८] ऐसे समय में कुछ हितैषी भी सामने आये, जिनमें उनके मामा श्री लक्ष्मीचंद जी प्रमुख थे। सुप्रसिद्ध कवि त्रिलोचन शास्त्री तथा कुछ अन्य लोगों ने भी ने भी इन लोगों की सहायता की। जीवन के उत्तरकाल में उनकी सारी जिम्मेदारियाँ डॉ॰ रंजना अरगड़े ने संभालीं। उनकी पूरी देखभाल, तीमारदारी उन्होंने ही की और परिवार के बाहर की होकर भी परिवार के सारे रिश्ते उन्होंने अकेले निभाये।[९]

उनकी मृत्यु १२ मई १९९३ को अहमदाबाद में डॉ॰ रंजना अरगड़े के निवास में हुई।[७]

कार्यक्षेत्र

'रूपाभ', इलाहाबाद में कार्यालय सहायक (१९३९), 'कहानी' में त्रिलोचन के साथ (१९४०), 'नया साहित्य', बंबई में कम्यून में रहते हुए (१९४६), माया में सहायक संपादक (१९४८-५४), 'नया पथ' और 'मनोहर कहानियाँ' में संपादन सहयोग। दिल्ली विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय अनुदान की एक महत्वपूर्ण परियोजना 'उर्दू-हिन्दी कोश' का संपादन (१९६५-७७), प्रेमचंद सृजनपीठ, विक्रम विश्वविद्यालय के अध्यक्ष (१९८१-८५)।[१]

विचारधारा

शमशेर विचारों में प्रगतिवादी परंतु शैली से प्रयोगवादी कवि थे।[१०] उनकी कविताएँ 'दूसरा सप्तक' में सम्मिलित की गयी थी। 'दूसरा सप्तक' में अपने आरंभिक कथन में भी उन्होंने स्वीकार किया है कि "सन् '45 में नया साहित्य के संपादन के सिलसिले में बम्बई गया। वहाँ कम्यूनिस्ट पार्टी के संगठित जीवन में, अपने मन में अस्पष्ट से बने हुए सामाजिक आदर्शों का मैंने एक बहुत सुन्दर सजीव रूप देखा। मेरी काव्य-प्रतिभा ने उससे काफी लाभ उठाया।"[११] तथा बाद के वक्तव्य में भी उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि "...अपने चारों तरफ की ज़िन्दगी में दिलचस्पी लेना, उसकी ठीक-ठीक यानी वैज्ञानिक आधार पर (मेरे नज़दीक यह वैज्ञानिक आधार मार्क्सवाद है) समझना और अनुभूति और अपने अनुभव को इसी समझ और जानकारी से सुलझा कर स्पष्ट करके, पुष्ट करके, अपनी कला-भावना को जगाना। यह आधार इस युग के हर सच्चे और ईमानदार कलाकार के लिए बेहद जरूरी है।"[१२]

उन्होंने अपनी काव्य-यात्रा के प्रथम चरण में (सन् १९४५ में) "वाम वाम वाम दिशा/ समय साम्यवादी" जैसा ओजस्वी गीत लिखा था[१३][१४] तथा इसके सत्रह वर्ष बाद भी 'काल, तुझसे होड़ है मेरी' शीर्षक कविता में उन्होंने सहज भाव से स्वीकार किया -- "क्रान्तियाँ, कम्यून, कम्युनिस्ट समाज के / नाना कला विज्ञान और दर्शन के / जीवन्त वैभव से समन्वित / व्यक्ति मैं!"[१५] इसलिए विजयदेव नारायण साही ने जो निष्कर्ष निकाला था कि "शमशेर का प्रगतिवाद उनकी कविता के हाशिए तक सीमित रह गया"[१६] के प्रत्युत्तर में डॉ॰ नामवर सिंह का स्पष्ट मत है कि : साँचा:quote

निराला के प्रति विशिष्ट रचनात्मक लगाव भी उनकी विचारधारा को स्पष्ट करता है। उन्हें याद करते हुए शमशेर ने लिखा था-

" भूल कर जब राह--जब-जब राह... भटका मैं/ तुम्हीं झलके, हे महाकवि,/ सघन तम की आँख बन मेरे लिए। "[१७]

निराला के प्रति उनका यह आत्यन्तिक लगाव उनकी वादमुक्त प्रतिबद्धता को भी प्रतीकित करता है। निराला घोषित रूप से मार्क्सवादी नहीं थे, परंतु वह चेतना उनमें अंतर्निहित थी। शमशेर मार्क्सवाद अपनाने की बात कहते हैं, परंतु उसकी सीधी और स्पष्ट अभिव्यक्ति न दे सकने की बात भी स्वीकार करते हैं।[११] नन्दकिशोर नवल के अनुसार "हिंदी के प्रगतिशील आलोचकों के लिए वे एक समस्या रहे हैं, क्योंकि उनमें कविता की भाषा, रूप-शिल्प एवं छंद-लय में प्रयोग की प्रवृत्ति इतनी दृढ़ थी कि उन्होंने उन्हें केदार, नागार्जुन और त्रिलोचन की श्रेणी में न रखकर प्रयोगवादी कवियों की श्रेणी में रखा।"[१८] बाद में भी उन्हें प्रगतिशील रुझान वाला प्रयोगवादी कवि माना गया।[१८] वस्तुतः 'प्रगतिवाद' और 'प्रयोगवाद' (अतिशय व्यक्तिवादी मानसिक रुझान) का द्वन्द्व उनमें बराबर बना रहा। ऐसी बात डॉ॰ रामविलास शर्मा ही नहीं मलयज भी जोर देकर कहते हैं।[१०][१९] इसलिए विजयदेव नारायण साही का यह कथन काफी हद तक सही है कि : साँचा:quote

वस्तुतः मुक्तिबोध की तरह शमशेर भी प्रगतिशील धारा के सबसे बड़े कवियों में परिगणित हैं;[२०] परंतु कुल मिलाकर इन्हें प्रचलित अर्थ में 'प्रगतिवाद' अथवा 'प्रयोगवाद' के अंतर्गत न रखकर 'नयी कविता' के अंतर्गत रखा और विवेचित किया जाता है।[२१]

साहित्यिक वैशिष्ट्य

शमशेर सौन्दर्य के अनूठे चित्रों के स्रष्टा के रूप में हिंदी में प्रायः सर्वमान्य हैं।[२२] आरंभ में उन्होंने टेकनीक में एज़रा पाउण्ड को अपना सबसे बड़ा आदर्श बताया था। बाद में निराला तथा पाउण्ड के अतिरिक्त वर्ले, लारेन्स, इलियट तथा अन्य कई कवियों की शैली का भी प्रभाव उन्होंने स्वीकार किया है।[११] ये कवि भिन्न विचारधारा के थे। अतः इलियट और एज़रा पाउण्ड के शिल्प और कुछ हद तक भाव सौंदर्य के प्रति आकृष्ट होने के बावजूद विचारधारा में शमशेर उनसे दूर रहते थे।[२३]

वस्तुतः शमशेर की कविता सीधी विचारधारा की कविता नहीं है। डॉ॰ रामस्वरूप चतुर्वेदी के शब्दों में "जीवन के कटुतम संघर्षों को लेकर उन्हें कविता में एकदम तरल बना सकना शमशेरबहादुर सिंह के काव्य व्यक्तित्व की पहिचान है। और इस रचना-क्षमता का बराबर अप्रदर्शन कवि का चरित्र, जहाँ प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नयी कविता के तत्त्व एक दूसरे में घुलमिल जाते हैं। ...चित्रकला संगीत और कविता मिलकर उनके यहाँ रचना संभव करते हैं। भाषा में बोलचाल के गद्य का लहजा, और लय में संगीत का चरम अमूर्तन इन दो परस्पर प्रतिरोधी मनःस्थितियों को उनकी कला साधती है। यही कारण है कि जागतिक संदर्भों के कम-से-कम रहने पर भी शमशेर में हमें एक संपूर्ण रचना-संसार दिखाई देता है।"[२४] शमशेर की कविताएँ साधारणतया कठिन एवं दुरूह मानी जाती रही है। वस्तुतः जो पाठक वर्ग परंपरागत रूप से काव्यानुभूति को पहले अर्थ की दृष्टि से ग्रहण करके तभी सौन्दर्य-भावना तक पहुँचते हैं, उनके लिए शमशेर के विशिष्ट शिल्प से कोई परिपूर्ण अर्थ प्राप्त करना दूभर हो जाता है। इसकी अपेक्षा उनकी कविता उस पाठक वर्ग के लिए अधिक उपयुक्त है जो रागबोध की दृष्टि से अपेक्षाकृत अधिक विकसित है। उसके सामने अभिव्यक्ति का वाह्य पक्ष -- शिल्प, अर्थ आदि गौण रहता है और वह सीधे कविता में निहित सौन्दर्यानुभूति का सहभोग कर लेता है।[२५] स्वयं नामवर सिंह ने स्वीकार किया है कि शमशेर की कविताओं में विचारों का निषेध है। नामवर सिंह के शब्दों में "सम्भवतः वे इस आदर्श को मानते हैं कि कविता को कभी मत प्रकट नहीं करना चाहिए।.. विचारों का निषेध और भावनाओं का अनुशासन करने के बाद इन्द्रिय-बोध ही बचते हैं; जहाँ तक यथातथता का निर्वाह सम्भव है और शमशेर की कवित्व-शक्ति के प्रसार का यही प्रकृत क्षेत्र है।.. विविध इन्द्रिय-बोध सूचक चित्रों की संवेदनशीलता में शमशेर बेजोड़ हैं..। शमशेर की इस सफलता के साधन हैं बिम्ब। वे बिम्बों के सिवा किसी दूसरे माध्यम से बात ही नहीं करते।"[२६] वस्तुतः शमशेर 'बात बोलेगी, हम नहीं' के इतने कायल हैं कि उनकी सम्पूर्ण काव्य-अभिव्यक्ति प्रायः बिम्बों में ही होती है। वे अपनी अभिव्यक्ति-शैली के ऐसे स्थल पर खड़े हैं, जहाँ से वे नीचे उतरना नहीं चाहते, बल्कि वे अपने साथ ही अपने संवेदनशील पाठक को ऊँचा उठाकर एक अमूर्त, पारदर्शी, वर्णमय लोक में ले जाना चाहते हैं। यह लोक वर्तमान युग सत्य के तमाम हल्के-गहरे शेड्स के साथ कवि के 'मूड' का लोक है।[२७] इसलिए भी मलयज का मानना है कि : साँचा:quote और डॉ॰ नामवर सिंह का निष्कर्ष है कि "शमशेर के लिए इतना ही काफी है कि वे कवि हैं--सिर्फ कवि। न 'शुद्ध कविता' का कवि, न 'कवियों का कवि', न प्रयोग का कवि और न प्रगति का ही कवि! कुछ कवि ऐसे होते हैं जिन्हें हर विशेषण छोटा कर देता है।"[२८][२९] और शमशेर को तो डॉ॰ रामविलास शर्मा भी सारे विचारधारात्मक आत्म-संघर्ष और द्वंद्वात्मकता के बावजूद सिद्ध कवि मानते हैं।[३०]

प्रकाशित कृतियाँ

कविता-संग्रह-
  1. कुछ कविताएँ - १९५९ (चयनकर्ता और प्रकाशक- जगत शंखधर, कामाच्छा, वाराणसी)
  2. कुछ और कविताएँ - १९६१ (अब 'कुछ कविताएँ व कुछ और कविताएँ' नाम से संयुक्त संस्करण, राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली)
  3. चुका भी हूँ नहीं मैं - १९७५ (राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली)
  4. इतने पास अपने - १९८० (राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली)
  5. उदिता : अभिव्यक्ति का संघर्ष - १९८० (वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली)
  6. बात बोलेगी - १९८१ (सम्भावना प्रकाशन, हापुड़)
  7. काल तुझसे होड़ है मेरी - १९८८ (वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली)
  8. कहीं बहुत दूर से सुन रहा हूँ -१९९५ (संपादक- रंजना अरगड़े; राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली)
  9. सुकून की तलाश में -१९९८ (संपादक- रंजना अरगड़े; वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली)
चयनित-कविता-संग्रह-
  1. प्रतिनिधि कविताएँ - १९९० (संपादक- नामवर सिंह; राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली)
  2. टूटी हुई बिखरी हुई (चुनी हुई कविताएँ) - १९९० (संपादक- अशोक वाजपेयी; राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली)
गद्य रचनाएँ-
  1. दो आब (निबंध-संग्रह) -१९४८ (सरस्वती प्रेस, बनारस)
  2. प्लाट का मोर्चा (कहानी और स्केच-संग्रह) - १९५२ (न्यू लिटरेचर, इलाहाबाद)
  3. कु्छ गद्य रचनाएँ ('दो आब', 'प्लॉट का मोर्चा' एवं कुछ डायरियों का एकत्र संकलन; संपादक-मलयज एवं रंजना अरगड़े, संभावना प्रकाशन, हापुड़)
  4. कुछ और गद्य रचनाएँ (संपादक- रंजना अरगड़े)
अनुवाद-
  1. पृथ्वी और आकाश (रूसी के अंग्रेजी अनुवाद से) - १९४४ (मूल लेखक- वांदा वैसिल्युस्का; सरस्वती प्रेस, बनारस)
  2. षड्यंत्र (अंग्रेजी से) - १९४६ (मूल लेखक- माइकल सेयर्स और एल्बर्ट ई॰ कान; पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली)
  3. कामिनी (उर्दू से) - १९४८ (मूल लेखक- रतन नाथ सरसार; सरस्वती प्रेस, इलाहाबाद)
  4. हुश्शू (उर्दू से) - १९४८ (मूल लेखक- रतन नाथ सरसार; सरस्वती प्रेस, इलाहाबाद)
  5. पी कहाँ (उर्दू से) - १९४८ (मूल लेखक- रतन नाथ सरसार; सरस्वती प्रेस, इलाहाबाद)
  6. उर्दू साहित्य का संक्षिप्त इतिहास - १९५६ (मूल लेखक- प्रोफेसर एजाज़ हुसैन; राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली)
  7. आश्चर्यलोक में एलिस (अंग्रेजी से) - १९६१ (मूल लेखक- लुई कैरोल; राधाकृष्ण प्रकाशन, नयी दिल्ली)
रचना-समग्र-
  • शमशेर बहादुर सिंह रचनावली (छह खण्डों में; सजिल्द एवं पेपरबैक) - २०१७ (संपादक- रंजना अरगड़े; इसके चौथे एवं पाँचवें खण्ड में अनूदित कृतियाँ भी संकलित हैं। शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली से प्रकाशित)

शमशेर पर केन्द्रित विशिष्ट साहित्य

  1. आलोचना (पत्रिका), सहस्राब्दी अंक चालीस, शमशेर बहादुर सिंह पर केन्द्रित, जनवरी-मार्च २०११, संपादक- अरुण कमल
  2. एक शमशेर भी है -२०११ (संपादक-दूधनाथ सिंह; इसमें महत्त्वपूर्ण संस्मरणात्मक सामग्रियों के अतिरिक्त 'मलयज की डायरी' के शमशेर से सम्बद्ध अंश भी क्रमबद्ध रूप में संकलित हैं। राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित)
  3. समझ भी पाता तुम्हें यदि मैं (शमशेर की तेरह कविताओं पर एकाग्र) -२०१२ (संपादक- मदन सोनी; मेधा बुक्स, नवीन शाहदरा, दिल्ली से प्रकाशित)
  4. स्मरण में है जीवन : शमशेर बहादुर सिंह (गोदारण, अंक-10 की पुस्तक रूप में पुनर्प्रस्तुति, यश पब्लिकेशंस, नवीन शाहदरा, दिल्ली से प्रकाशित)
  5. शमशेर की आलोचना दृष्टि -२०११ (लेखक- गजेन्द्र पाठक; सामयिक प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित)
  6. शमशेर बहादुर सिंह की आलोचना-दृष्टि - २०१९ (लेखक- निर्भय कुमार; लोकभारती प्रकाशन, प्रयागराज से प्रकाशित)

सम्मान

  • साहित्य अकादमी पुरस्कार "चुका भी हूँ नहीं मैं" के लिये - १९७७
  • 'मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार' (मध्यप्रदेश सरकार) - १९८७
  • 'कबीर सम्मान' (मध्यप्रदेश सरकार) - १९८९

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. प्रतिनिधि कविताएँ, शमशेर बहादुर सिंह, संपादक- नामवर सिंह, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, पहला पेपरबैक संस्करण-१९९०, पृष्ठ-१.
  2. शमशेर बहादुर सिंह रचनावली, खंड-1, संपादक-रंजना अरगड़े, शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली, संस्करण-2017, पृष्ठ-21.
  3. शमशेर बहादुर सिंह रचनावली, खंड-3, संपादक-रंजना अरगड़े, शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली, संस्करण-2017, पृष्ठ-445 एवं 449.
  4. आजकल (पत्रिका), जनवरी २०११, प्रथम आवरण पृष्ठ पर 'कवि परिचय : एक दृष्टि' में उल्लिखित।
  5. गोदारण, अंक-१०, स्मरण में है जीवन : शमशेर बहादुर सिंह, प्रधान संपादक- भरत सिंह, संपादक-आलोक सिंह, पृष्ठ-२८.(पुस्तक रूप में 'यश पब्लिकेशंस, नवीन शाहदरा, दिल्ली से प्रकाशित।)
  6. शमशेर बहादुर सिंह रचनावली, खंड-3, संपादक-रंजना अरगड़े, शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली, संस्करण-2017, पृष्ठ-446-449.
  7. शमशेर बहादुर सिंह रचनावली, खंड-1, संपादक-रंजना अरगड़े, शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली, संस्करण-2017, पृष्ठ-511.
  8. गोदारण, अंक-१०, स्मरण में है जीवन : शमशेर बहादुर सिंह, प्रधान संपादक- भरत सिंह, संपादक-आलोक सिंह, पृष्ठ-२९-३०.(पुस्तक रूप में 'यश पब्लिकेशंस, नवीन शाहदरा, दिल्ली से प्रकाशित।)
  9. शमशेर बहादुर सिंह रचनावली, खंड-1, संपादक-रंजना अरगड़े, शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली, संस्करण-2017, पृष्ठ-9-10.
  10. मलयज की डायरी-2, संपादक-नामवर सिंह, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, द्वितीय संस्करण-2015, पृष्ठ-453.
  11. दूसरा सप्तक, संपादक-अज्ञेय, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, तीसरा पेपरबैक संस्करण-2009, पृष्ठ-84.
  12. दूसरा सप्तक, संपादक-अज्ञेय, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, तीसरा पेपरबैक संस्करण-2009, पृष्ठ-87-88.
  13. दूसरा सप्तक, संपादक-अज्ञेय, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, तीसरा पेपरबैक संस्करण-2009, पृष्ठ-103-4.
  14. शमशेर बहादुर सिंह रचनावली, खंड-1, संपादक-रंजना अरगड़े, शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली, संस्करण-2017, पृष्ठ-132-3.
  15. शमशेर बहादुर सिंह रचनावली, खंड-1, संपादक-रंजना अरगड़े, शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली, संस्करण-2017, पृष्ठ-248-9.
  16. विजयदेव नारायण साही, 'छठवाँ दशक, हिन्दुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद, संस्करण-२००७, पृष्ठ-२०४.
  17. शमशेर बहादुर सिंह रचनावली, खंड-1, संपादक-रंजना अरगड़े, शिल्पायन, शाहदरा, दिल्ली, संस्करण-2017, पृष्ठ-61.
  18. नन्दकिशोर नवल, आधुनिक हिन्दी कविता का इतिहास, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-2012, पृष्ठ-330.
  19. मलयज की डायरी-2, संपादक-नामवर सिंह, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, द्वितीय संस्करण-2015, पृष्ठ-288-9.
  20. नन्दकिशोर नवल, आधुनिक हिन्दी कविता का इतिहास, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-2012, पृष्ठ-330 एवं 384.
  21. डॉ॰ रामदरश मिश्र, हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग-१४, संपादक- डॉ॰ हरवंशलाल शर्मा एवं कैलाश चंद्र भाटिया, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, संस्करण-१९७० ई॰, पृष्ठ-१३५.
  22. प्रतिनिधि कविताएँ, शमशेर बहादुर सिंह, संपादक- नामवर सिंह, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, पहला पेपरबैक संस्करण-१९९०, पृष्ठ-७.
  23. डॉ॰ रामविलास शर्मा, नयी कविता और अस्तित्ववाद, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, पेपरबैक संस्करण-१९९३, पृष्ठ-९३.
  24. डॉ॰ रामस्वरूप चतुर्वेदी, हिंदी साहित्य और संवेदना का विकास, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, छठा संस्करण-१९९६, पृष्ठ-२४१-२.
  25. मलयज, अभिनव क़दम, संयुक्तांक 33-34 ('मलयज : ज़िन्दा होने का एहसास'), संपादक- जयप्रकाश 'धूमकेतु', 'शमशेर और आधुनिक कविता' शीर्षक आलेख, पृष्ठ-48.
  26. डॉ॰ नामवर सिंह, कविता की ज़मीन और ज़मीन की कविता, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-2010, पृष्ठ-158.
  27. अभिनव क़दम, संयुक्तांक 33-34, 'मलयज : ज़िन्दा होने का एहसास', संपादक- जयप्रकाश 'धूमकेतु', 'शमशेर और आधुनिक कविता' शीर्षक आलेख, पृष्ठ-52.
  28. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; प्रक नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  29. डॉ॰ नामवर सिंह, कविता की ज़मीन और ज़मीन की कविता, पूर्ववत्, पृष्ठ-167.
  30. डॉ॰ रामविलास शर्मा, नयी कविता और अस्तित्ववाद, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, पेपरबैक संस्करण-१९९३, पृष्ठ-१०१.

बाहरी कड़ियाँ