प्रगतिशील त्रयी
प्रगतिशील त्रयी स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी साहित्य में मार्क्सवादी विचारधारा-सम्पन्न प्रगतिवादी कवि के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाले तीन प्रमुख कवियों नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल एवं त्रिलोचन के लिए 'वृहत्त्रयी' की तरह प्रयुक्त होने वाला पद है।
स्वतंत्रता के पश्चात् हिन्दी साहित्य में जिन नयी विचारधाराओं का जन्म हुआ उसमें प्रगतिशील विचारधारा प्रमुख थी। नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल और त्रिलोचन इस विचारधारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। इन तीनों को प्रगतिशील त्रयी के नाम से सम्बोधित किया जाता है।
रेवती रमण के शब्दों में साँचा:quote
वस्तुतः मुक्तिबोध की तरह शमशेर भी प्रगतिशील धारा के सबसे बड़े कवियों में परिगणित हैं;[१] परंतु कुल मिलाकर इन्हें प्रचलित अर्थ में 'प्रगतिवाद' अथवा 'प्रयोगवाद' के अंतर्गत न रखकर 'नयी कविता' के अंतर्गत रखा और विवेचित किया जाता है।[२]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ नन्दकिशोर नवल, आधुनिक हिन्दी कविता का इतिहास, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण-2012, पृष्ठ-330 एवं 384.
- ↑ डॉ॰ रामदरश मिश्र, हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग-१४, संपादक- डॉ॰ हरवंशलाल शर्मा एवं कैलाश चंद्र भाटिया, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, संस्करण-१९७० ई॰, पृष्ठ-१३५.