महानदी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

साँचा:pp-template

महानदी
Mahanadi River.JPG
ओड़िशा में महानदी
देश भारत
मुख्य शहर धमतरी, आरंग, सिरपुर, शिवरीनारायण, चन्‍द्रपुर, संबलपुर, कटक, चंपारण, संबलपुर
लम्बाई ८८५ कि.मी. (५५० मील)
उद्गम सिहवा रायपुर छत्तीसगढ़
मुख बंगाल की खाड़ी
मुख्य सहायक नदियाँ
 - वामांगी शिवनाथ, पैरी, सोंढुर, हसदेव, अरपा
 - दक्षिणांगी जोंक, जोंक, खारून
महानदी उपग्रह से लिया गया चित्र
महानदी उपग्रह से लिया गया चित्र

छत्तीसगढ़ तथा ओड़िशा अंचल की सबसे बड़ी नदी है। प्राचीनकाल में महानदी का नाम चित्रोत्पला[क] था। महानन्दा एवं नीलोत्पला भी महानदी के ही नाम हैं। महानदी का उद्गम रायपुर के समीप धमतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी से हुआ है। महानदी का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की तरफ है। सिहावा से निकलकर राजिम में यह जब पैरी और सोढुल नदियों के जल को ग्रहण करती है तब तक विशाल रूप धारण कर चुकी होती है। ऐतिहासिक नगरी आरंग और उसके बाद सिरपुर में वह विकसित होकर शिवरीनारायण में अपने नाम के अनुरुप महानदी बन जाती है। महानदी की धारा इस धार्मिक स्थल से मुड़ जाती है और दक्षिण से उत्तर के बजाय यह पूर्व दिशा में बहने लगती है। संबलपुर में जिले में प्रवेश लेकर महानदी छ्त्तीसगढ़ से बिदा ले लेती है। अपनी पूरी यात्रा का आधे से अधिक भाग वह छत्तीसगढ़ में बिताती है। सिहावा से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरने तक महानदी लगभग ८५५ कि॰मी॰ की दूरी तय करती है। छत्तीसगढ़ में महानदी के तट पर धमतरी, कांकेर, चारामा, राजिम, चम्पारण, आरंग, सिरपुर, शिवरी नारायण और ओड़िशा में सम्बलपुर, बलांगीर, कटक आदि स्थान हैं तथा पैरी, सोंढुर, शिवनाथ, हसदेव, अरपा, जोंक, तेल आदि महानदी की प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। महानदी का डेल्टा कटक नगर से लगभग सात मील पहले से शुरू होता है। यहाँ से यह कई धाराओं में विभक्त हो जाती है तथा बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इस पर बने प्रमुख बाँध हैं- रुद्री, गंगरेल तथा हीराकुंड। यह नदी पूर्वी मध्यप्रदेश और उड़ीसा की सीमाओं को भी निर्धारित करती है।

इतिहास

अत्यंत प्राचीन होने के कारण महानदी का इतिहास पुराण श्रेणी का है। ऐतिहासक ग्रंथों के अनुसार महानदी और उसकी सहायक नदियाँ प्राचीन शुक्लमत पर्वत से निकली हैं। इसका प्राचीन नाम मंदवाहिनी भी था ऐसा उल्लेख न केवल इतिहासकार ही नहीं बल्कि भूगोलविद भी करते हैं। महानदी के सम्बंध में भीष्म पर्व में वर्णन है जिसमें कहा गया है कि भारतीय प्रजा चित्रोत्पला का जल पीती थी। अर्थात महाभारत काल में महानदी के तट पर आर्यो का निवास था। रामायण काल में भी पूर्व इक्ष्वाकु वंश के नरेशों ने महानदी के तट पर अपना राज्य स्थापित किया था। मुचकुंद, दंडक, कल्माषपाद, भानुमंत आदि का शासन प्राचीन दक्षिण कोसल में था। महानदी की घाटी की अपनी विशिष्ट सभ्यता है। इस ऐतिहासिक नदी के तटों से शुरु हुई यह सभ्यता धीरे धीरे नगरों तक पहुँची।

भूगोल

महानदी का उद्गम धमतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी से हुआ है। महानदी का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की तरफ है। यह प्रवाह प्रणाली के अनुरुप स्थलखंड के ढाल के स्वभाव के अनुसार बहती है इसलिए एक स्वयंभू जलधारा है। प्रदेश की सीमान्त उच्च भूमि से निकलने वाली महानदी की अन्य सहायक नदियाँ केन्द्रीय मैदान की ओर प्रवाहित होती हुई महानदी से समकोण पर मिलकर जल संचय करती हैं। नदियों की जलक्षमता के हिसाब से यह गोदावरी नदी के बाद दूसरे क्रम पर है। छत्तीसगढ़ में 286 कि॰मी॰ की यात्रा के इस पड़ाव में महानदी सीमांत सीढ़ियों से उतरते समय छोटी-छोटी नदियाँ प्रपात भी बनाती हैं। महानदी की अनेक सहायक नदियाँ हैं। शिवनाथ नदी छत्तीसगढ़ की दूसरी सबसे बड़ी नही है जो महानदी में शिवरीनारायण में मिलती है। पैरी नदी एक और सहायक नदी है जो वृन्दानकगढ़ जमींदारी से निकलती ही राजिम क्षेत्र में महानदी से मिलती है। इसके अतिरिक्त खारून तथा अरपा नदियाँ भी शिवनाथ नदी में समाहित होकर महानदी की विशाल जलराशि का हिस्सा बनती हैं।

धार्मिक महत्व

राजिम में प्रयाग की तरह महानदी का सम्मान है। हजारों लोग यहाँ स्नान करने पहुँचते हैं। शिवरीनारायण में भी भगवान जगन्नाथ की कथा है। गंगा के समान पवित्र होने के कारण महानदी के तट पर अनेक धार्मिक, सांस्कृतिक और ललित कला के केंद्र स्थित हैं। सिरपुर, राजिम, मल्हार, खरौद, शिवरीनारायण, चंद्रपुर और संबलपुर प्रमुख नगर हैं। सिरपुर में गंधेश्वर, रूद्री में रूद्रेश्वर, राजिम में राजीव लोचन और कुलेश्वर, मल्हार पातालेश्वर, खरौद में लक्ष्मणेश्वर, शिवरीनारायण में भगवान नारायण, चंद्रचूड़ महादेव, महेश्वर महादेव, अन्नपूर्णा देवी, लक्ष्मीनारायण, श्रीरामलक्ष्मणजानकी और जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का भव्य मंदिर है। गिरौदपुरी में गुरू घासीदास का पीठ और तुरतुरिया में लव कुश की जन्म स्थली बाल्मिकी आश्रम होने के प्रमाण मिलते हैं। इसी प्रकार चंद्रपुर में मां चंद्रसेनी और संबलपुर में समलेश्वरी देवी का वर्चस्व है। इसी कारण छत्तीसगढ़ में इन्हें काशी और प्रयाग के समान पवित्र और मोक्षदायी माना गया है। शिवरीनारायण में भगवान नारायण के चरण को स्पर्श करती हुई रोहिणी कुंड है जिसके दर्शन और जल का आचमन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। सुप्रसिध्द प्राचीन साहित्यकार पंडित मालिकराम भोगहा इसका वर्णन करते हुए कहते हैं कि इस नदी में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।[घ]

व्यावसायिक महत्व

महानदी

एक समय में महानदी आवागमन का साधन बन जाती थी। नाव के द्वारा लोग महानदी के माध्यम से यात्रा करते थे। व्यापारिक दृष्टि से भी यह यात्रा उपयोगी थी। इतिहासकार उल्लेख करते हैं कि पहले इस नदी के जलमार्ग से कलकत्ता तक वस्तुओं का आयात-निर्यात हुआ करता था। छत्तीसगढ़ के उत्पन्न होने वाली अनेक वस्तुओं को महानदी और उसकी सहायक नदियों के मार्ग के समुद्र-तट के बाजारों तक भेजा जाता था। महानदी पर जुलाई से फरवरी के बीच नावें चलती थी। आज भी अनेक क्षेत्रों में लोग महानदी में नाव से इस पार से उस पार या छोटी-मोटी यात्रा करते हैं। महानदी के तटवर्ती क्षेत्रों और आसपास हीरा मिलने के तथ्य भी मिले हैं। गिब्सन नामक एक अंग्रेज़ विद्वान ने अपनी रिपोर्ट में इसका उल्लेख भी किया है। उसके अनुसार संबलपुर के निकट हीराकूद अर्थात् हीराकुंड नामक स्थान एक छोटा-सा द्वीप है। यहाँ हीरा मिला करता था। इन हीरों की रोम में बड़ी खपत थी। महानदी में रोम के सिक्के के पाये जाने को वे इस तथ्य से जोड़ते हैं। व्हेनसांग ने भी अपनी यात्रा में लिखा था कि मध्यदेश से हीरा लेकर लोग कलिंग में बेचा करते थे, यह मध्यदेश संबलपुर ही था। अली युरोपियन ट्रेव्हलर्स इन नागपुर टेरीटरी नामक ब्रिटिश रिकार्ड जो सन १७६६ का है में उल्लेख है कि एक अंग्रेज़ को इस बात के लिए भेजा गया था कि वह संबलपुर जाकर वहाँ हीरे के व्यापार की संभावनाओं का पता लगाये। हीराकुंड बांध भी इसी महानदी को बांध कर बनाया गया है।

सांस्कृतिक महत्व

महानदी ने छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक नदी-सभ्यता को जन्म दिया है। छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी सिरपुर महानदी के तट पर स्थित है। महानदी की घाटी की अपनी विशिष्ट सभ्यता है जो इतिहास में दर्ज है। महानदी और उसकी सहायक नदियाँ पंजाब की सिंधु और उसके सहायक नदियों के समान गौरव-गाथा से समृद्ध है। महानदी की विशालता और इसके महत्व को देखकर इसे महानदी की उपाधि दी गयी है।[१] महाभारत के भीष्म पर्व में चित्रोत्पला नदी को पुण्यदायिनी और पाप विनाशिनी कहकर स्तुति की गयी है[ख]सोमेश्वरदेव के महुदा ताम्रपत्र में महानदी को चित्रोत्पला-गंगा कहा गया है[ग]। महानदी को गंगा कहने के बारे में मान्यता है कि त्रेतायुग में श्रृंगी ऋषि का आश्रम सिहावा की पहाड़ी में था। वे अयोध्या में महाराजा दशरथ के निवेदन पर पुत्रेष्ठि यज्ञ कराकर लौटे थे। उनके कमंडल में यज्ञ में प्रयुक्त गंगा का पवित्र जल भरा था। समाधि से उठते समय कमंडल का अभिमंत्रित जल गिर पड़ा और बहकर महानदी के उद्गम में मिल गया। गंगाजल के मिलने से महानदी गंगा के समान पवित्र हो गयी।

सन्दर्भ

टीका टिप्पणी

   क.    ^ “चित्रोत्पला चित्ररथां मंजुलां वाहिनी तथा। मन्दाकिनीं वैतरणीं कोषां चापि महानदीम्।।” --(महाभारत – भीष्मपर्व – 9/34)
“मन्दाकिनीदशार्णा च चित्रकूटा तथैव च। तमसा पिप्पलीश्येनी तथा चित्रोत्पलापि च।।” --(मत्स्य पुराणभारतवर्ष वर्णन प्रकरण – 50/25)
“चित्रोत्पला वेत्रवपी करमोदा पिशाचिका। तथान्यातिलघुश्रोणी विपाया शेवला नदी।।” (ब्रह्म पुराणभारतवर्ष वर्णन प्रकरण – 19/31)
   ख.    ^ उत्पलेशं सभासाद्या यीवच्चित्रा महेश्वरी। चित्रोत्पलेति कथिता सर्वपाप प्रणाशिनी॥ (महाभारत भीष्मपर्व)
   ग.    ^ यस्पाधरोधस्तन चन्दनानां प्रक्षालनादवारि कवहार काले। चित्रोत्पला स्वर्णावती गताऽपि गंगोर्भि संसक्तभिवाविमाति॥
   घ.    ^ रोहिणि कुंडहि स्पर्श करि चित्रोत्पल जल न्हाय। योग भ्रष्ट योगी मुकति पावत पाप बहाय॥