मदर इण्डिया
मदर इण्डिया | |
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निर्देशक | महबूब खान |
निर्माता | महबूब खान |
लेखक |
महबूब ख़ान वजाहत मिर्ज़ा एस अली रज़ा |
अभिनेता |
नर्गिस सुनील दत्त बलराज साहनी राजेन्द्र कुमार राज कुमार कन्हैया लाल कुमकुम चंचल मुकरी सिद्दीक़ी गीता |
संगीतकार | नौशाद |
छायाकार | फरेदूं ए ईरानी |
संपादक | शमसुदीन कादरी |
प्रदर्शन साँचा:nowrap | 25 अक्तुबर 1957 |
समय सीमा | 172 मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
मदर इण्डिया (साँचा:lang-en, साँचा:lang-ur) १९५७ में बनी भारतीय फ़िल्म है जिसे महबूब ख़ान द्वारा लिखा और निर्देशित किया गया है। फ़िल्म में नर्गिस, सुनील दत्त, राजेंद्र कुमार और राज कुमार मुख्य भूमिका में हैं। फ़िल्म महबूब ख़ान द्वारा निर्मित औरत (१९४०) का रीमेक है। यह गरीबी से पीड़ित गाँव में रहने वाली औरत राधा की कहानी है जो कई मुश्किलों का सामना करते हुए अपने बच्चों का पालन पोषण करने और बुरे जागीरदार से बचने की मेहनत करती है। उसकी मेहनत और लगन के बावजूद वह एक देवी-स्वरूप उदाहरण पेश करती है व भारतीय नारी की परिभाषा स्थापित करती है और फिर भी अंत में भले के लिए अपने गुण्डे बेटे को स्वयं मार देती है। वह आज़ादी के बाद के भारत को सबके सामने रखती है।
यह फ़िल्म अबतक बनी सबसे बड़ी बॉक्स ऑफिस हिट भारतीय फ़िल्मों में गिनी जाती है और अब तक की भारत की सबसे बढ़िया फ़िल्म गिनी जाती है। इसे १९५८ में तीसरी सर्वश्रेष्ठ फीचर फ़िल्म के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से नवाज़ा गया था। मदर इण्डिया क़िस्मत (१९४३), मुग़ल-ए-आज़म (१९६०) और शोले (१९७५) के साथ उन चुनिन्दा फ़िल्मों में आती है जिन्हें आज भी लोग देखना पसंद करते हैं और यह हिन्दी सांस्कृतिक फ़िल्मों की श्रेणी में विराजमान है। यह फ़िल्म भारत की ओर से पहली बार अकादमी पुरस्कारों के लिए भेजी गई फ़िल्म थी।[१]
संक्षेप
फिल्म की शुरुआत वर्तमान काल में गाँव के लिए एक पानी की नहर के पूरा होने से होती है। राधा (नर्गिस), गाँव की माँ के रूप में, नहर का उद्घाटन करती है और अपने भूतकाल पर नज़र डालती है जब वह एक नई दुल्हन थी।
राधा और शामू (राज कुमार) की शादी का ख़र्चा राधा की सास ने सुखीलाला से उधार लेकर उठाया था। इस के कारण गरीबी और मेहनत के कभी न खत्म होने वाले चक्रव्यूह में राधा फँस जाती है। उधार की शर्तें विवादास्पद होती है परन्तु गाँव के सरपंच सुखीलाला के हित में फैसला सुनाते हैं जिसके तहत शामू और राधा को अपनी फ़सल का एक तिहाई हिस्सा सुखीलाला को ₹ ५०० के ब्याज़ के तौर पर देना होगा। अपनी गरीबी को मिटाने के लिए शामू अपनी ज़मीन की और जुताई करने की कोशिश करता है परन्तु एक पत्थर तले उसके दोनों हाथ कुचले जाते है। अपनी मजबूरी से शर्मिंदा व औरों द्वारा बेईज़्ज़ती के कारण वह फैसला करता है कि वह अपने परिवार के किसी काम का नहीं और उन्हें छोड़ कर हमेशा के लिए चले जाता है। जल्द ही राधा की सास भी गुज़र जाती है। राधा अपने दोनों बेटों के साथ खेतों में काम करना जारी रखती है और एक और बेटे को जन्म देती है। सुखीलाला उसे अपनी गरीबी दूर करने के लिए खुद से शादी करने का प्रस्ताव रखता है पर राधा खुद को बेचने से इंकार कर देती है। एक तूफ़ान गाँव को अपनी चपेट में ले लेता है और सारी फ़सल नष्ट हो जाती है। तूफ़ान में राधा का छोटा बेटा मारा जाता है। सारा गाँव पलायन करने लगता है परन्तु राधा के मनाने पर सभी रुक कर वापस गाँव को स्थापित करने की कोशिश करते है।
फ़िल्म कई साल आगे पहुँचती है जब राधा के दोनों बचे हुए बेटे, बिरजू (सुनील दत्त) और रामू (राजेंद्र कुमार) अब बड़े हो चुके है। बिरजू अपने बचपन में सुखीलाला के बर्ताव का प्रतिशोध लेने के लिए गाँव की लड़कियों को छेड़ना शुरू कर देता है, ख़ास कर सुखीलाला की बेटी को। इसके विपरीत रामू बेहद शांत स्वभाव का है और जल्द ही शादी कर लेता है। हालांकि अब वह एक पिता है पर उसकी पत्नी जल्द ही परिवार में मौजूद गरीबी का शिकार हो जाती है। बिरजू का ग़ुस्सा आख़िरकार ख़तरनाक रूप ले लेता है और उकसाने पर सुखीलाला और उसकी बेटी पर हमला कर देता है। उसे गाँव से निकाल दिया जाता है और वह एक डाकू बन जाता है। सुखीलाला की बेटी की शादी के दिन वह बदला लेने वापस आता है और सुखीलाला को मार कर उसकी बेटी को भगा ले जाने की कोशिश करता है। राधा, जिसने यह वादा किया था कि बिरजू किसी को कोई हानि नहीं पहुँचाएगा, बिरजू को गोली मार देती है जो उसकी बाँहों में दम तोड़ देता है। फ़िल्म वर्तमान काल में राधा द्वारा नहर खोले जाने पर लाल रंग के बहते हुए पानी से समाप्त होती है जो धीरे धीरे खेतों में पहुँच जाता है।
मुख्य कलाकार
- नर्गिस - राधा
- सुनील दत्त - बिरजू
- राजेन्द्र कुमार - रामू
- राज कुमार - शामू
- कन्हैया लाल - सुखीलाला
- कुमकुम - चम्पा
- मुकरी - शम्भू
- अज़रा - चंद्रा
- साजिद खान - छोटा बिर्जू
- सुरेन्द्र - छोटा रामू
विकास
कथा
फ़िल्म का शीर्षक अमरीकी लेखिका कैथरीन मायो द्वारा १९२७ में लिखित पुस्तक मदर इण्डिया से लिया गया है जिसमे उन्होंने भारतीय समाज, धर्म और संस्कृति पर हमला किया था।[२] पुस्तक में भारतीय स्वतंत्रता की मांग के विरोध में मायो ने भारतीय महिलाओं की दुर्दशा, अछूतों के प्रति भेद-भाव, जानवरों, धुल मिट्टी और राजनेताओं पर हमला किया था। मायो ने पुरे भारत में गुस्से का माहोल उत्पन्न कर दिया और उनकी पुस्तकों को उनके पुतले सहित जलाया गया।[३] महात्मा गाँधी ने भी पुस्तक का विरोध किया और कहा कि "यह गटर इंस्पेक्टर द्वारा लिखी गई कोई रिपोर्ट है"।[४] इस पुस्तक के विरोध में पचास से अधिक पुस्तकें और चिट्ठियां प्रकाशित की गई जिसमें मायो की गलतियों और अमरीकी लोगों में भारत के प्रति गलत विचारों के इतिहास को दर्शाया गया।[५]
खान को फ़िल्म और उसके शीर्षक का ख्याल १९५२ में आया। उस वर्ष अक्टूबर में उन्होंने आयात अधिकारीयों के पास फ़िल्म के निर्माण का प्रस्ताव रखा।[६] १९५५ में भारतीय मंत्रालय के सूचना व प्रौद्योकीकरण विभाग को आगामी फ़िल्म के शीर्षक के बारे में पता किया और उन्होंने महबूब खान को फ़िल्म की कथा भेजने को कहा ताकि उसकी समीक्षा की जा सके। उन्हें इस बात का डर था कि कहीं फ़िल्म भारत के राष्ट्रिय हित को ठेस न पहुंचाए।[७]
"हमारी फ़िल्म और मायो की मदर इण्डिया को लेकर काफ़ी असमंजस की स्थिति पैदा हो गई थी। दोनों ही वस्तुएँ बेहद अलग और एक दूसरे के विपरीत हैं। हमने जानबूझ कर फ़िल्म को मदर इण्डिया कहा है ताकि पुस्तक को हम चुनौती दे सकें और लोगों के दिमाग में से मायो की बकवास को बाहर निकल सके।"[८]
इस फ़िल्म की कहानी जानबूझ कर इस तरह लिखी गई जिससे भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति, पुरषों के बढ़ते आकर्षण का विरोध और अपने स्वाभिमान पर दृढ़ निश्चय को दर्शाया गया। खान को प्रेरणा अमरीकी लेखक पर्ल एस. बक और उनकी द गुड अर्थ (१९३१) व द मदर (१९३४) पुस्तकों से मिली जिन्हें सिडनी फ्रेंकलिन ने १९३७ और १९४० में फ़िल्मों में रुपंतारित किया था।[८] खान ने इन सब चीज़ों को अपनी १९४० में बनी फ़िल्म औरत में प्रयोग किया था जो मदर इण्डिया की असली प्रेरणा थी।[९] खान ने संवेदनशील तरीके से कहानी पर कार्य किया और उन्हें डायलॉग लिखने में वजाहत मिर्ज़ा व एस. अली रज़ा ने मदद की। यह फ़िल्म आगे चलकर कई फ़िल्मों, जैसे यश चोपरा की दीवार फ़िल्म के लिए प्रेरणास्रोत रही जिसमे अमिताभ बच्चन ने उन्दा अभिनय किया था और बाद में जिसे तेलगु में बंगारू तल्ली (१९७१) और तमिल में पुनिया बूमी (१९७८) में बनाया गया।[१०]
चित्रीकरण
फ़िल्म के कई अंदरूनी दृश्यों का चित्रीकरण बांद्रा, बोम्बे में स्थित महबूब स्टूडियो में १९५६ में किया गया। महबूब खान और छायाचित्रकार फरेफूं ईरानी ने कोशिश की कि ज़्यादा से ज़्यादा बाहरी दृश्यों को चित्रित किया जाए जिससे फ़िल्म वास्तविकता के करीब हो।[११] अन्य दृश्य महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तरप्रदेश के कई शहरों में फिल्माए गए।[१२] महबूब ने आग्रह किया कि फ़िल्म ३४मिलीमीटर में चित्रित कि जाए।[१३]
संगीत
मदर इण्डिया | ||||
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साउंडट्रैक नौशाद द्वारा | ||||
जारी | 1957 | |||
रिकॉर्डिंग | महबूब स्टूडियो[१४] | |||
संगीत शैली | फ़िल्म साउंडट्रैक | |||
लेबल | सा रे गा मा | |||
नौशाद कालक्रम | ||||
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क्र॰ | शीर्षक | गायक (का) | अवधि |
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1. | "चुन्दरिया कटती जाये" | मन्ना डे | 3:15 |
2. | "नगरी नगरी द्वारे द्वारे" | लता मंगेशकर | 7:29 |
3. | "दुनिया में हम आये हैं" | लाता मंगेशकर, मीना मंगेशकर, उषा मंगेशकर | 3:36 |
4. | "ओ गाडीवाले" | शमशाद बेगम, मोहम्मद रफ़ी | 2:59 |
5. | "मतवाला जिया डोले पिया" | लाता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी | 3:34 |
6. | "दुःख भरे दिन बीते रे भैया" | शमशाद बेगम, मोहम्मद रफ़ी, मन्ना डे, आशा भोसले | 3:09 |
7. | "होली आई रे कन्हाई" | शमशाद बेगम | 2:51 |
8. | "पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली" | शमशाद बेगम | 3:19 |
9. | "घूँघट नहीं खोलूंगी सैयां" | लाता मंगेशकर | 3:10 |
10. | "ओ मेरे लाल आजा" | लाता मंगेशकर | 3:11 |
11. | "ओ जानेवालों जाओ ना" | लाता मंगेशकर | 2:33 |
12. | "ना मैं भगवन हूँ" | मोहम्मद रफ़ी | 3:24 |
नामांकन और पुरस्कार
सन्दर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
- ↑ मृणालिनी सिन्हा:Introduction. In: सिन्हा (ed.): सिलेक्शन फ्रॉम मदर इण्डिया। वुमेन्स प्रेस, नई दिल्ली 1998.
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ चैटर्जी (2002), p.10
- ↑ चैटर्जी (2002), p.20
- ↑ अ आ सिन्हा (2006), p.248
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ साँचा:cite book
- ↑ चैटर्जी (2002), p.21
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ चैटर्जी (2002), p.21
- ↑ साँचा:cite web