बापूजी भांगरे
नाईक बापूजी राव भांगरे भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी थे।[१][२][३] इनका जन्म ही एक क्रांतिकारी कोली परिवार मे हुआ था। बापूजी भांगरे के पिताजी रामजी भांगरे जो मराठा साम्राज्य मे सुबेदार थे ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे और उनको अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह पर सेल्यूलर जेल मे काले पानी की सजा सुनाई गई थी साथ ही भांगरे के दादाजी के सगे भाई वालोजी भांगरे भी क्रांतिकारी थे जिन्होने पेशवा के खिलाफ विद्रोह किया था और तोप से उड़ा दिया गया इतना ही नही बापूजी भांगरे के साथ सगे भाई राघोजी भांगरे ने भी अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाए थे और शहिदी प्रात की।[४][३][५]
नाईक बापूजीराव रामजीराव भांगरे | |
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बापूजी भांगरे के भाई राघोजी भांगरे के समाधि के महाराष्ट्र पुलिस सलामी देते हुए | |
विकल्पीय नाम: | वंडकरी |
जन्म - स्थान: | देवगांव, अकोले, मराठा साम्राज्य |
मृत्यु - तिथि: | १८ अगस्त १८४५ |
मृत्यु - स्थान: | सेंट्रल जेल , अहमदनगर, ब्रिटिश भारत |
आंदोलन: | भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन |
धर्म: | हिन्दू कोली |
प्रभाव | रामजी भांगरे |
1818 मे जब मराठा साम्राज्य ब्रिटिश सरकार द्वारा हराया जा चुका था और ब्रिटिश राज स्थापित किया जा रहा था तो ब्रिटिश सरकार को महाराष्ट्र मे जगह जगह विद्रोहों का सामना करना पड़ा जिनमे से एक तरफ विद्रोह बापूजी के पिताजी रामजी भांगरे के ने दहकाया हुआ था रामजी भांगरे की मृत्यु के पश्चात स्वतंत्रता की चिनगारी को उनके बेटे बापूजी भांगरे और राघोजी भांगरे ने व्यापक रुप दे दिया।
क्रांतिकारी गतिविधियों
१८४४ मे बापूजी भांगरे ने अपने भाई राघोजी भांगरे के साथ मिलकर एक क्रांतिकारी लोगों को इकट्ठा करके क्रांतिकारी सेना बनाई। बापूजी का मुख्यालय उत्तर-पश्चिम पूना का पहाड़ी क्षेत्र था। बापूजी भांगरे ने ब्रिटिश आधिन क्षेत्रों मे हमले करने सुरू कर दिये जो की ब्रिटिश सरकार को विफल करने का प्रयास था।[६][७] बापूजी भांगरे ने सरकारी खजाने, सरकारी कार्यालयों और सरकारी बंगलों पर हमला बोल दिया।[८]
कुछ वनिया और चीतपावन ब्राह्मणों के प्रयाश पर ब्रिटिश सरकार ने बापूजी भांगरे की मां को बिच गांव मे प्रताड़ित किया एवं पिटाई लगा दी जिसके पश्चात बापूजी भांगरे ने दो बार गांव के वनिया और चीतपावन ब्राह्मणों की नाक और कान काट दिए जिसके बाद बापूजी भांगरे को कुख्यात डकैत घोषित कर दिया गया। ब्रिटिश सरकार ने कैप्टन गिवेर्ण के नेतृत्व मे ब्रिटिश सेना भेजी और मुठभेड़ में बापूजी भांगरे के ७८ साथी पकड़े गए परंतु बापूजी भांगरे को पकड़ने में असफल रहे।[९]
१८४५ मे बापूजी भांगरे के साथ ओर भी क्रांतिकारी लोग मिल ल गए। बापूजी भांगरे के विद्रोह ने व्यापक रूप धारण कर लिया एवं पूणे से सतारा तक फैल गया। ब्रिटिश सरकार ने कुछ लालची स्थानिय लोगों की मदद लेनी चाही परंतु कामयाबी नहीं मिली लेकिन कुछ रमोसी जाती के लोगों ने ब्रिटिश सरकार का पूरा साथ दिया जिसके चलते १८ अगस्त १८४५ को ब्रिटिश सेना ने कैप्टन गिवर्ण के नेतृत्व में बापूजी भांगरे और उसके कुछ साथीयों को पकड लिया एवं फांसी पर लटका दिया जिसके फलस्वरूप विद्रोह का ओर आक्रामक रुख हो गया एवं ब्रिटिश आधिन कई गांवों को लुट लिया गया, अंग्रेजों के दफ्तरों को लुट लिया गया और एक ब्रिटिश प्रशासक को मार दिया गया।[१०][९]
संदर्भ
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