रामजी भांगरे
नाईक रामजी राव भांगरे | |
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रामजी भांगरे के बेटे नाईक राघोजी राव भांगरे की प्रतिमा अहमदनगर मे | |
विकल्पीय नाम: | सुबेदार सरदार रामजी राव भांगरे |
जन्म - स्थान: | देवगांव, मराठा साम्राज्य |
मृत्यु - तिथि: | १८३० |
मृत्यु - स्थान: | सेल्यूलर जेल, अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह, ब्रिटिश भारत |
आंदोलन: | भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन |
प्रमुख संगठन: | वंडकरी |
धर्म: | हिन्दू कोली |
रामजी राव भांगरे एक भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारी थे जिन्होने महाराष्ट्र मे अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाए थे और ब्रिटिश शासन का अंत घोषित कर दिया था।[१][२] रामजी भांगरे ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ हथियार उठाने से पहले भ्रष्ट पेशवा के खिलाप विद्रोह किया था। रामजी भांगरे का जन्म महाराष्ट्र में देवगांव के एक कोली परिवार मे हुआ था। ब्रिटिश सरकार ने उनहे काले पानी की सज़ा सुनाई थी। रामजी भांगरे प्रसिद्ध क्रांतिनायक राघोजी भांगरे के पिताजी थे एवं रामजी के चाचा वालोजी भांगरे ने पेशवा के खिलाफ विद्रोह किया था जिसने लिए उनको तोफ से उड़ा दिया गया।[३][४]
१७९८ मे नाईक रामजी राव भांगरे ने पेशवा के खिलाफ मोर्चा खोला कयोंकी पेशवा गरीब लोगों के अधिकारों का हनन करने मे व्यस्त था। भांगरे ने कोली जाती के लोगों को एक करके आवाज उठाई और कोंकण मे पेशवा की धज्जीयां उड़ा दी। भांगरे काफी तेज एवं चालाक था इस बात का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है की पेशवा सरकार भांगरे को पकड़ने में हर वार नाकाम रही जिसके चलते पेशवा को भांगरे के साथ समझोता करना पड़ा। समझोते के तहत पेशवा जनता को किसी भी प्रकार से ज्यादा कर नही लगएगा और पेशवा ने भांगरे को बतौर सुबेदार सेना मे नियुक्त किया।[३][४]
अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह एवं काले पानी की सजा
१८१८ मे जब ब्रिटिश सरकार ने मराठा साम्राज्य अंत किया तो उस समय ब्रिटिश सरकार को महाराष्ट्र मे जगह जगह विद्रोह का सिमना करना पड़ा जिनमें से एक विद्रोह भांगरे के नेतृत्व मे पनप रहा था। भांगरे ने कोली लोगों का एक क्रांतिकारी समूह बनाया और ब्रिटिश सरकार को चुनौती दी। इसके बाद भांगरे एक अन्य कोली क्रांतिकारी के साथ मिल गया जिसका नाम नाईक गोवींद राव खड़े था वो भी मराठा सरकार मे रतनगढ़ किले का सुबेदार था। इसके बाद कई सालों तक भांगरे ने ब्रिटिश आधिन क्षेत्रों मे लूटपाट एवं बमबारी की लेकिन उन्हे रोकने मे ब्रिटिश सरकार असमर्थ रही। १८२९ मे भांगरे के नेतृत्व में विद्रोह ने व्यापक रुप ले लिया।[५][६]
१८२९ मे ब्रिटिश सरकार ने भांगरे को मार गिराने के लिए केप्टन मैकिंटोश के नेतृत्व में पश्चिमी घाट से अंग्रेजी सेना भेजी लेकिन नाकाम शमी हाथ लगी। इसके बाद केप्टन ने स्थानीय लोगों से जानकारी जुटाने की कोशिश की परंतु कोई भी भांगरे के बारे में गुप्त जानकारी नही दे रहा था परन्तु कुछ समय बाद महाराष्ट्र के कुछ लालची चीतपावन ब्राह्मण अंग्रेजों के साथ मिल गए जिससे अंग्रेजों को काफी मदद मिली। जानकारी मिलने के बाद कैप्टन ने भीवंडी और कोंकण मे सेना तैनात कर दी साथ ही अहमदनगर, पूणे और मालेगांव से ब्रिटिश सेना ने क्रांतिकारीयों पर आक्रमण कर दिया लेकिन नाईक रामजी राव भांगरे बच कर निकल गया।[५][७]
इसके बाद भांगरे के साथ और भी क्रांतिकारी लोग मिल गए जो रामा किरवा के नेतृत्व में थे साथ ही कुछ भील जाती के लोग भी मिल गए जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ भड़के हुए थे। भांगरे और शक्तीसाली क्रांतिकारी सेना के साथ मिलकर भांगरे ने पश्चिमी घाट मे जैसे ब्रिटिश शासन को तोड़ के रख दिया था। विद्रोह के प्रकोप को देखते हुए फिर से ब्रिटिश सरकार ने अत्याधिक बल के साथ कैप्टन ल्युकिन, लैफ्टेनेंट ल्योड़ एवं लैफ्टेनेंट फोर्गस के नेतृत्व मे ब्रिटिश सेना भेजी जहां कुछ समय लड़ाई के पश्चात विद्रोहियों पर काबू पा लिया गया और नाईक रामजी राव भांगरे को बंंदी बनाकर काले पानी की सजा के लिए अंडमान निकोबार द्वीप पर मोजूद सेल्यूलर जेल भेज दिया गया।[५][६]
संदर्भ
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