चिरसम्मत यांत्रिकी
भौतिक विज्ञान में चिरसम्मत यांत्रिकी, यांत्रिकी के दो विशाल क्षेत्रों में से एक है, जो बलों के प्रभाव में वस्तुओं की गति से सम्बंधित भौतिकी के नियमो के समुच्चय की विवेचना करता है। वस्तुओं की गति का अध्ययन बहुत प्राचीन है, जो चिरसम्मत यांत्रिकी को विज्ञान, अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी सबसे प्राचीन विषयों में से एक और विशाल विषidupdt
इतिहास
कुछ प्राचीन यूनानी दार्शनिकों के अनुसार, जैसे अरस्तु, अरस्तु भौतिकी का जनक के अनुसार "हर घटना के पिछे कोई कारण होता है", हो सकता है यह इस तरह का प्रथम विचार है और सैद्धांतिक विचार प्रकृति को समझने में बहुत सहायक है। जबकि एक आधुनिक पाठक के लिये ये विचार बहुत उचित नजर आते हैं, यहाँ एक सुस्पष्ट गणितिय सिद्धांत और नियंत्रित प्रायोगिक खामियाँ शामिल थी। ये चिरसम्मत यांत्रिकी से आरम्भ हुए और आधुनिक भौतिकी के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
ग्रहों की गति से सम्बन्धित कारण सहित व्याख्या सर्वप्रथम १९०५ में जॉन्स केप्लर एस्ट्रोनोमा नोवा से मिली।
सैद्धान्तिक विवरण
अन्तर्राष्ट्रीय इकाई प्रणाली द्वारा किलोग्राम, मीटर और सैकण्ड में व्युत्पन यांत्रिक इकाईयां (विद्युत चुम्बकीय या तापीय नहीं)। | |
लम्बाई (स्थिति) | m (मीटर) |
कोणीय स्थिति/कोण | मात्रकहीन (रेडियन) |
वेग | m·s−1 (मीटर प्रति सैकण्ड) |
कोणीय वेग | s−1(रेडियन प्रति सैकण्ड) |
त्वरण | m·s−2(मीटर प्रति वर्ग सैकण्ड) |
कोणीय त्वरण | s−2(रेडियन प्रति वर्ग सैकण्ड) |
jerk | m·s−3 |
"angular jerk" | s−3 |
विशिष्ट ऊर्जा | m2·s−2(वर्ग मीटर प्रति वर्ग सैकण्ड) |
absorbed dose rate | m2·s−3(वर्ग मीटर प्रति घन सैकण्ड) |
जड़त्वाघूर्ण | kg·m2(किग्रा-मीटर) |
संवेग | kg·m·s−1(किग्रा-मीटर प्रति सैकण्ड) |
कोणीय संवेग | kg·m2·s−1 (किग्रा वर्ग मीटर प्रति सैकण्ड) |
बल | kg·m·s−2 (किग्रा मीटर प्रति वर्ग सैकण्ड) |
बलाघूर्ण | kg·m2·s−2 (किग्रा वर्ग मीटर प्रति वर्ग सैकण्ड) |
ऊर्जा | kg·m2·s−2 (किग्रा वर्ग मीटर प्रति वर्ग सैकण्ड) |
शक्ति | kg·m2·s−3 (किग्रा वर्ग मीटर प्रति घन सैकण्ड) |
दाब और ऊर्जा घनत्व | kg·m−1·s−2 (किग्रा प्रति मीटर प्रति वर्ग सैकण्ड) |
पृष्ठ तनाव | kg·s−2 (किग्रा प्रति सैकण्ड) |
स्प्रिंग नियतांक | kg·s−2 (किग्रा प्रति वर्ग सैकण्ड) |
प्रकाश विकीरण और ऊर्जा फलक्स | kg·s−3 (किग्रा प्रति घन सैकण्ड) |
शुद्ध गतिक श्यानता | m2·s−1 (वर्ग मीटर प्रति सैकण्ड) |
गतिक श्यानता | kg·m−1·s−1 (किग्रा प्रति मीटर प्रति सैकण्ड) |
घनत्व (द्रव्यमान घनत्व) | kg·m−3 (किग्रा प्रति घन मीटर) |
घनत्व (भार घनत्व) | kg·m−2·s−2 (किग्रा प्रति मीटर प्रति वर्ग सैकण्ड) |
संख्या घनत्व | m−3 (प्रति घन मीटर) |
क्रिया | kg·m2·s−1 (किग्रा वर्ग मीटर प्रति सैकण्ड) |
बिन्दु कण की स्थिति किसी समष्टि में निर्देश तन्त्र में यादृच्छिक रूप से स्थिर निर्देश बिन्दु O के सापेक्ष परिभाषित की जाती है जहाँ निर्देश बिन्दु O मुल बिन्दु पर स्थित होता है। इसे बिन्दु O से कण तक सदिश r द्वारा परिभाषित किया जाता है। सामान्य रूप से बिन्दु कण का O के सापेक्ष स्थिर होना आवश्यक नहीं है अतः r समय का फलन होता है। आइन्सटीन से पूर्व की आपेक्षिकता में (गैलिलियन सापेक्षिकता के रूप में जानि जाती है) समय को निरपेक्ष माना जाता था अतः किन्हीं दो घटनाओं के मध्य समय अन्तराल समान सभी प्रेक्षकों के लिए समान रहता है।[१]
स्थिति और और उसके अवकलन
वेग और चाल
निर्देश तन्त्र
बल, न्यूटन का द्वितीय नियम
साँचा:main सर्वप्रथम न्यूटन ने संवेग और बल के मध्य सम्बन्ध को गणितीय रूप में व्यक्त किया। कुछ भौतिक विज्ञानी न्यूटन के गति के द्वितीय नियम को द्रव्यमान एवं बल की परिभाषा के रूप में देखते हैं, जबकि अन्य इसे प्रकृति का नियम एवं एक मूलभूत अभिगृहीत मानते हैं। दूसरी व्याख्या गणितीय परिणाम है जिसे ऐतिहासिक रूप से "न्यूटन का द्वितीय नियम" के नाम से जाना जाता है:
- <math>\mathbf{F} = {\mathrm{d}\mathbf{p} \over \mathrm{d}t} = {\mathrm{d}(m \mathbf{v}) \over \mathrm{d}t}.</math>
जहाँ राशी mv को कण संवेग कहा जाता है। अतः कण पर कार्यरत कुल बल कण के संवेग में परिवर्तन की दर के बराबर होगा। चूँकि त्वरण की परिभाषानुसार साँचा:nowrap, द्वितीय नियम को सरल रूप में निम्न प्रकार लिखा जा सकता है:
- <math>\mathbf{F} = m \mathbf{a} \, .</math>
अतः किसी कण पर कार्यरत बल ज्ञात होने पर, न्यूटन का द्वितीय नियम उसकी गति को समझने के लिए पर्याप्त है। जब कण पर कार्यरत सभी बलों के स्वतंत्र सम्बंध ज्ञात होने पर, साधारण अवकल समीकरण प्राप्त करने के लिए न्यूटन के द्वितीय नियम में रखा जा सकता है जिसे गति की समीकरण कहा जाता है।
एक उदाहरण के रूप में, माना कि एक कण पर केवल घर्षण बल कार्यरत है एवं इसे कण के वेग के फलन के रूप में लिखा जा सकता है:
- <math>\mathbf{F}_{\rm R} = - \lambda \mathbf{v} \, </math>
जहाँ λ एक धनात्मक नियतांक है। अतः गति की समीकरण निम्न प्रकार होगी
- <math>- \lambda \mathbf{v} = m \mathbf{a} = m {\mathrm{d}\mathbf{v} \over \mathrm{d}t} \, .</math>
इसे समाकलित करने पर
- <math>\mathbf{v} = \mathbf{v}_0 e^{- \lambda t / m}</math>
जहाँ v0 प्रारम्भिक वेग है। अर्थात कण का वेग चरघातांकी रूप से कम हो रहा है और समय के साथ शून्य की और अग्रसर है। इस अवस्था में तुल्य दृष्टिकोण यह दिया जा सकता है कि कण की गतिज ऊर्जा घर्षण (जो यहाँ ऊर्जा संरक्षण के नियमानुसार उष्मा ऊर्जा के रूप में परिवर्तित कर रहा है।) द्वारा अवशोषित की जा रही है और कण अवमन्दित हो रहा है। इस समीकरण को कण की स्थिति r को समय के फलन के रूप में ज्ञात करने के लिए आगे भी समाकलित किया जा सकता है।
मुख्य बलो में गुरुत्वाकर्षण बल और विद्युतचुम्बकत्व के लिए लोरेन्ट्स बल प्रमुख हैं।
कार्य और ऊर्जा
न्यूटन के नियमों से परे
वैधता की सीमाएं
विशिष्ट आपेक्षिकता के लिए न्यूटनीय सन्निकटन
प्रमात्रा यांत्रिकी में चिरसम्मत सन्निकटन
शाखाएं
ये भी देखें
टिप्पणी
सन्दर्भ
- ↑ MIT physics 8.01 lecture notes (page 12) स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। (PDF)