ग़ायबाना नमाज़-ए-जनाज़ा
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इस्लाम में ग़ायबाना नमाज़-ए-जनाज़ा (उर्दू: غائبانہ نماز جنازہ) या सलात अल-ग़ाइब (अरबी: صلاة الغائب) ऐसी नमाज़ होती है जो किसी मुस्लिम व्यक्ति की मृत्यु पर तब पढ़ी जाती है जब मृतक के पास कोई जीवित नामाज़ पढ़ सकने वाला मुस्लिम मौजूद न हो। यानि यह मृतक के लिए उसके शव की ग़ैर-मौजूदगी में पढ़ी जाती है। हदीस के अनुसार यह मृत्यु के एक मास के भीतर पढ़ी जानी चाहिए। इसके विपरीत यदी मरणोपरांत मृतक के लिए नमाज़ पढ़ी जा चुकी हो तो यह अनावश्यक होती है।[१][२][३]