फ़िक़्ह

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अरबी
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लिप्यंतरण
साँचा:transl
अनुवाद
"गहरी समझ "
"पूर्ण बोध"

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फ़िक़्ह (साँचा:lang-ar ,फ़िक़्ह या फ़िक़ः) (Fiqh) इस्लामी धर्मशास्त्र (मज़हबी तौर-तरीके) को कहा जाता है।[१] फ़िक़्ह मुसलमानों के लिये इस्लामी जीवन के हर पहलू पर अपना असर रखता है। जबकि शरियत उस समुच्चय निति को कहते हैं। जो इस्लामी कानूनी, परंपराओं और इस्लामी व्यक्तिगत और नैतिक आचरणों पर आधारित होती है।

फ़िक़्ह इस्लामी न्यायशास्त्र के लिए शब्दावली है, जो इस्लामी न्यायविदों के फैसलों से बना है। इस्लामी अध्ययन का बुनियादी घटक, फ़िक़्ह उस पद्धति को विस्तार से बतलाता है जिसके जरिए से इस्लामी कानून को प्राथमिक और माध्यमिक स्रोतों से बाहर निकाला गया है।

इतिहास

साँचा:main articleइस्लामी न्यायशास्त्र का इतिहास "प्रथानुसार आठ अवधियों में विभाजित" किया गया है।

  • 11 हिजरी में मुहम्मद की मौत के साथ समाप्त होने वाली पहली अवधि।
  • दूसरी अवधि में "निजी व्याख्याओं द्वारा वर्णित" सहाबा द्वारा कैनन, 50 हिज़्री तक चली।
  • 50 हिजरी से प्रारंभिक दूसरी हिजरी शताब्दी तक एक प्रतिस्पर्धा थी पश्चिमी अरबिया में "न्यायशास्त्र के प्रति परंपरावादी रुझान" और ईराक में "न्यायशास्त्र के प्रति तर्कवादी रुझान"।
  • प्रारंभिक द्वितीय से मध्य-चौथी सदी जब शिया और सुन्नी आठ "सबसे महत्वपूर्ण" न्यायशास्र के स्कूल प्रकट हुए।
  • चौथी के मध्य शताब्दी से लेकर सातवीं के मध्य हिजरी तक इस्लामी न्यायशास्त्र "मुख्य न्यायिक स्कूलों के अंदर विस्तारण" तक ही सीमित था।
  • मध्य-सातवीं हिजरी (1258 ई) से 293 हिजरी / 1876 ई में "अंधेरे युग" बगदाद के पतन के बाद इस्लामी न्यायशास्त्र अधिक फैला।
  • 1293 हिजरी (1876 सीई) में तुर्कों ने हनफ़ी न्यायशास्त्र को संहिताबद्ध किया।
  • वर्तमान

संघटक

महत्वता के क्रम में फ़िक़्ह के स्रोत हैं:

  1. क़ुरआन
  2. हदीस
  3. इज्मा, अर्थात् एक ख़ास पीढ़ी(जनरेशन) के अधिकृत मुसलमानों से मिलकर सामूहिक तर्क और सहमति, और इस्लामिक विद्वानों द्वारा इसकी व्याख्या।
  4. क़ियास, यानी समानताएं जो तैनात की गई हैं अगर इस मुद्दे पर इज्मा या ऐतिहासिक सामूहिक तर्क उपलब्ध नहीं है।[२]

क़ुरआन कई मुद्दों पर स्पष्ट निर्देश देता है जैसे कि अनिवार्य दैनिक प्रार्थना (नमाज़) से पहले शुद्धिकरण अनुष्ठान (वुज़ू) कैसे करें, लेकिन अन्य मुद्दों पर, कुछ मुसलमानों का मानना हैं कि अकेले क़ुरआन ही चीजें स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। उदाहरण के लिए, क़ुरआन के अनुसार— रमज़ान के महीने के दौरान, दैनिक प्रार्थनाएं (नमाज़ ) और उपवास (सौम ) में संलग्न (मुलवविस) होने की ज़रूरत है लेकिन मुसलमानों का मानना ​​है कि इन कर्तव्यों का पालन करने के तरीके के बारे में उन्हें और हिदायत की आवश्यकता है। इन मुद्दों के बारे में स्पष्टीकरण पैग़ंबर मुहम्मद की परंपराओं में पाया जा सकता है, इसलिए अधिकांश मामलों में दलीलें क़ुरआन और सून्नत (शरियत ) का आधार हैं।

इस्लाम के प्रारंभिक काल में कुछ विषय बिना मिसाल के हैं उन मामलों में, मुसलमान न्यायविद (फ़ुक़ाहा ) अन्य तरीकों से निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयास करते हैं।सुन्नी न्यायविद समुदाय की ऐतिहासिक सहमति (इज्मा ) का प्रयोग करते हैं; आधुनिक युग में अधिकांश न्यायविद भी सादृश्य (क़ियास ) और नए विषयों के नफ़ा और नुक़सान की तुलना (इस्तिसलाह ) का उपयोग करते हैं। इन अतिरिक्त उपकरणों की सहायता से निष्कर्ष आने पर शरिया के हिसाब से कानूनों की एक व्यापक सरणी बनती है और इसे फ़िक़्ह कहा जाता है।

इस प्रकार, शरीयत के सामने, फिक़्ह को पवित्र नहीं माना जाता है, और 'विचार-प्रक्रिया के विद्यालयों' के तफ़सीलात पर अन्य निष्कर्षों को पवित्रतापूर्ण रूप में बिना देखे ही असमान विचार हैं। अधिक विस्तृत मुद्दों में व्याख्या के यह विभाजन विचार-प्रक्रिया के विभिन्न स्कूलों में परिणामस्वरूप मिला है (मज़हब ) इस्लामी न्यायशास्त्र की यह व्यापक अवधारणा विभिन्न विषयों में कई कानूनों का स्रोत है जो रोजमर्रा की जिंदगी में मुसलमानों को निर्देशित करता है।

न्यायशास्त्र के तरीके

फ़तवा

सुधार के पक्ष और विपक्ष में तर्क

न्यायशास्त्र के क्षेत्र

न्यायशास्त्र के स्कूल (मज़हब)

शरियत की निति को नींव बना कर न्यायशास्त्र के अध्य्यन को फ़िक़्ह या फ़िक़ह कहते हैं। फ़िक़्ह के मामले में इस्लामी विद्वानों की अलग अलग व्याख्याओं (तजवीज़) के कारण इस्लाम में न्यायशास्त्र कई भागों में बट गया और कई अलग अलग न्यायशास्त्र से संबंधित विचारधारओं का जन्म हुआ। इन्हें मज़हब कहते हैं। सुन्नी इस्लाम में प्रमुख मज़हब हैं:

  • हनफी मज़हब– इसके अनुयायी दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में हैं।
  • मालिकी मज़हब–इसके अनुयायी पश्चिम अफ्रीका और अरब के कुछ हिस्सों में हैं।
  • शाफ्यी मज़हब– इसके अनुयायी अफ्रीका पूर्वी अफ्रीका, अरब के कुछ हिस्सों और दक्षिण पूर्व एशिया में हैं।
  • हंबली मज़हब– इसके अनुयायी सऊदी अरब में हैं।

अधिकतम मुसलमानों का मानना है कि चारों मज़हब बुनियादी तौर पर सही हैं और इनमें जो मतभेद हैं वह न्यायशास्त्र (फ़िक़्ह) की बारीक व्याख्याओं को लेकर है।

पश्चिमी कानून से संभावित संबंध

सन्दर्भ

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  • Doi, Abd ar-Rahman I., and Clarke, Abdassamad (2008). Shari'ah: Islamic Law. Ta-Ha Publishers Ltd., ISBN 978-1-84200-087-8स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।स्क्रिप्ट त्रुटि: "check isxn" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। (hardback)
  • Cilardo, Agostino, "Fiqh, History of", in Muhammad in History, Thought, and Culture: An Encyclopedia of the Prophet of God (2 vols.), Edited by C. Fitzpatrick and A. Walker, Santa Barbara, ABC-CLIO, 2014, Vol I, pp. 201–206.
  • साँचा:cite book
  • Gaudiosi, Monica M (April 1988). "The Influence of the Islamic Law of Waqf on the Development of the Trust in England_ The Case of Merton College". University of Pennsylvania Law Review. The University of Pennsylvania Law Review. 136 (4): 1231–1261. doi:10.2307/3312162. JSTOR 3312162. {{cite journal}}: Invalid |ref=harv (help)
  • स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
  • Makdisi, John A. (June 1999). "The Islamic Origins of the Common Law". North Carolina Law Review. 77 (5): 1635–1739. {{cite journal}}: Invalid |ref=harv (help)

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टिप्पणियाँ

  1. Fiqh स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। Encyclopædia Britannica
  2. साँचा:cite book