तयम्मुम

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तयम्मुम (इंग्लिश: Tayammum) इस्लाम में वुज़ू और ग़ुस्ल के लिए पानी उपलब्ध ना हो तो पाकी (पवित्रता) की नियत से मिट्टी को चेहरा और हाथ पर विशेष ढंग से जरा सा मलने (मसह) करने को ” तयम्मुम[१] कहते हैं। त्वचा पर पानी लगने से किसी रोग में परेशानी हो तो वो आस्थावान मुसलमान भी वुज़ू और ग़ुस्ल के लिए तयमुम करते हैं।

तयम्मुम कब? और कैसे? क़ुरआन में:

ऐ ईमान वालो! जब तुम नमाज़ के लिए उठो तो अपने चहरों को और हाथों को कुहनियों तक धो लिया करो और अपने सिरों पर हाथ फेर लो और अपने पैरों को भी टखनों तक धो लो। और यदि नापाक हो तो अच्छी तरह पाक हो जाओ। परन्तु यदि बीमार हो या सफ़र में हो या तुममें से कोई शौच करके आया हो या तुमने स्त्रियों को हाथ लगया हो, फिर पानी न मिले तो पाक मिट्टी से काम लो। उसपर हाथ मारकर अपने मुँह और हाथों पर फेर लो। अल्लाह तुम्हें किसी तंगी में नहीं डालना चाहता। अपितु वह चाहता हैं कि तुम्हें पवित्र करे और अपनी नेमत तुमपर पूरी कर दे, ताकि तुम कृतज्ञ बनो (क़ुरआन 5:6) 

तयम्मुम का तरीक़ा हदीस में:

" बल्कि आपको इस तरह करना ही काफ़ी था और फिर रसूल करीम सल्ल. ने अपने दोनों हाथ ज़मीन पर मारे और उन्हें झाड़कर अपनी हथेली के साथ अपने बाएं पर फेरा, या बाएं को हथेली पर फेरा और फिर दोनों हाथ अपने चेहरे पर फेरे (सही बुख़ारी हदीस नंबर 347)

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ