केरलीय गणित सम्प्रदाय

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

केरलीय गणित सम्प्रदाय केरल के गणितज्ञों और खगोलशास्त्रियों का एक के बाद एक आने वाला क्रम था जिसने गणित और खगोल के क्षेत्र में बहुत उन्नत कार्य किया। इसकी स्थापना संगमग्राम के माधव द्वारा की गयी थी। परमेश्वर, नीलकण्ठ सोमजाजिन्, ज्येष्ठदेव, अच्युत पिशारती, मेलापतुर नारायण भट्टतिरि तथा अच्युत पान्निकर इसके अन्य सदस्य थे। यह सम्प्रदाय १४वीं शदी से लेकर १६वीं शदी तक फला-फूला। खगोलीय समस्याओं के समाधान के खोज के चक्कर में इस सम्प्रदाय ने स्वतंत्र रूप से अनेकों महत्वपूर्ण गणितीय संकल्पनाएँ सृजित की। इनमें नीलकंठ द्वारा तंत्रसंग्रह नामक ग्रन्थ में दिया गया त्रिकोणमितीय फलनों का श्रेणी के रूप में प्रसार सबसे महत्वपूर्ण है।

केरलीय गणित सम्प्रदाय माधवन के बाद कम से कम दो शताब्दियों तक फलता-फूलता रहा। ज्येष्ठदेव से हमें समाकलन का विचार मिला, जिसे संकलितम कहा गया था, (हिंदी अर्थ संग्रह), जैसा कि इस कथन में है:

एकाद्येकोथर पद संकलितम समं पदवर्गठिन्ते पकुति

जो समाकलन को एक ऐसे चर (पद) के रूप में अनुवादित करता है जो चर के वर्ग के आधे के बराबर होगा; अर्थात् x dx का समाकलन x2 / 2 के बराबर होगा। यह स्पष्ट रूप से समाकलन की शुरुआत है। इससे सम्बंधित एक अन्य परिणाम कहता है कि किसी वक्र के अन्दर का क्षेत्रफल उसके समाकल के बराबर होता है। इसमें से अधिकांश परिणाम यूरोप में ऐसे ही परिणामों के अस्तित्व से कई शताब्दियों पूर्व के हैं। अनेक प्रकार से, ज्येष्ठदेव की युक्तिभाषा कलन पर विश्व की पहली पुस्तक मानी जा सकती है।

इस समूह ने खगोल विज्ञान में अन्य कई कार्य भी किये; वास्तव में खगोलीय परिकलनों पर विश्लेषण संबंधी परिणामों की तुलना में कहीं अधिक पृष्ठ लिखे गए हैं।

केरल स्कूल ने भाषाविज्ञान (भाषा और गणित के मध्य सम्बन्ध एक प्राचीन भारतीय परंपरा है, देखें, कात्यायन) में भी योगदान दिया है। केरल की आयुर्वेदिक और काव्यमय परंपरा की जड़ें भी इस स्कूल में खोजी जा सकती हैं। प्रसिद्ध कविता, नारायणीयम, की रचना नारायण भात्ताथिरी द्वारा की गयी थी।

परिचय

यद्यपि ऐसा लगता है कि इस्लामी फतह के बाद उत्तरी भारत के अधिकांश भागों में गणित में मौलिक कार्य रुक गये, बनारस गणित अध्ययन केंद्र के रूप में बचा रहा और केरल में गणित का एक महत्वपूर्ण स्कूल पल्लवित हुआ।

14वीं सदी में कोच्चि में माधव ने गणित में महत्वपूर्ण अनुसंधान किए जिसे यूरोपीय गणितज्ञ कम से कम दो सदियों बाद ही जान पाये। उनके ज्या और कोज्या फलन के श्रेढी विस्तारण को जानने में न्यूटन को इसके बाद 300 वर्ष और लगे थे। गणित के इतिहासकार राजगोपाल, रंगाचारी और जोसेफ का मानना है कि गणित में उनकी देन इसे अगले सोपान पर - आधुनिक शास्त्रीय विश्लेषण पर - ले जाने में बहुत सहायक थी।

15वीं सदी में तिरूर, केरल के नीलकंठ ने माधव द्वारा प्राप्त परिणामों को विस्तृत किया और व्याख्या की। 16 वीं सदी में केरल के ज्येष्ठदेव ने माधव और नीलकंठ की कृतियों में शामिल प्रमेयों के विस्तृत प्रमाण और नियमों के डेरिवेशन्स दिये। यह भी ध्यान देने योग्य है कि ज्येष्ठदेव की पुस्तक ’’युक्तिभाषा’’ में नीलकंठ की पुस्तक ’’तंत्र संग्रह’’ पर टिप्पणियां तो हैं ही इसके अलावा उसमें ग्रहीय सिद्धांत की भी व्याख्या है जिसे टाइको व्राहे ने बहुत बाद में अपनाया; इसके अलावा परवर्ती यूरोपीय विद्वानों द्वारा कल्पित गणित की भी उन्होंने पूर्व में व्याख्या की थी। चित्रभानु, 16 वीं सदी, केरल ने परिणाम हासिल करने के लिए बीजगणितीय और ज्यामितीय दोनों रीतियों का प्रयोग किया और इसके द्वारा दो बीजगणितीय समीकरणों की 21 प्रकार की प्रणालियों के राशि हल दिए। केरल के गणितज्ञों द्वारा किए गए महत्वपूर्ण अनुसंधानों में न्यूटन-गॉस का प्रक्षेप सूत्र, एक असीम श्रेणी के योगफल का सूत्र और पाइ का मान एक श्रेढ़ी के रूप में भी शामिल हैं। चाल्र्स व्हिश 1835 में ’’ट्रांसैक्शन्स ऑफ दी रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एण्ड आयरलैंड’’ में प्रकाशित उन प्रथम पश्चिमी विद्वानों में से एक थे जिन्होंने इस तथ्य को स्वीकार किया कि इस क्षेत्र में हुए यूरोपीय विकास को केरल स्कूल ने 300 वर्ष पहले ही कल्पित कर लिया था।

केरलीय गणित सम्प्रदाय का प्रभाव

’’क्रेस्ट ऑफ पीकॉक’’ के लेखक जोसेफ कहते हैं कि गणित की भारतीय पांडुलिपियां यूरोप में संभवतया जेसुइट पादरियों द्वारा लाई गई जैसे कि मात्तिओ रिक्सी जिसने 1580 में चर्च द्वारा निर्देश प्राप्त होने के बाद गोवा से कोचीन जाकर वहां दो साल बिताये। कोचीन त्रिचूर से केवल 70 किमी दूर स्थित है। त्रिचूर उस समय ज्योतिर्विद्या के अभिलेखों का सबसे बड़ा संग्रहालय था। व्हिश और हाइन, दो यूरोपीय गणितज्ञों ने त्रिचूर के केरलीय गणितज्ञों की कृतियों की नकल प्राप्त की थी और यह बड़ा स्वाभाविक लगता है कि जेसुइट पादरियों ने इन कृतियों की नकल पीसा या पदाउ या पेरिस में पहुंचाई। पीसा में गैलिलियो, कैवेलियरी और वालिस, पदाउ में जेम्स ग्रेगरी और पेरिस में मरसेन जो फर्मट और पास्कल के संपर्क में थे, इन गणितीय अवधारणाओं के प्रसार के अभिकर्ता बने।

सन्दर्भ


इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ