पौराणिक बृद्धकेदार

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
imported>रोहित साव27 द्वारा परिवर्तित १२:३४, १७ जुलाई २०२१ का अवतरण (122.176.18.196 (Talk) के संपादनों को हटाकर रोहित साव27 के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया)
(अन्तर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अन्तर) | नया अवतरण → (अन्तर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
पौराणिक बृद्धकेदार
लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:i18n' not found।
रामगंगा के तट पर पौराणिक बृद्धकेदार (1915)
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धतासाँचा:br separated entries
शासी निकायग्राम-सभा अफौं व केदार
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिसाँचा:if empty
लुआ त्रुटि Module:Location_map में पंक्ति 422 पर: No value was provided for longitude।
वास्तु विवरण
प्रकारकत्यूरी काल
निर्मातासाँचा:if empty
ध्वंससाँचा:ifempty
साँचा:designation/divbox
साँचा:designation/divbox

साँचा:template otherस्क्रिप्ट त्रुटि: "check for unknown parameters" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।साँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main otherसाँचा:main other

पौराणिक बृद्धकेदार भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा जिले के अन्तर्गत पाली पछांऊॅं इलाके में रामगंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। इसे बृद्धकेदार अथवा बूढ़ाकेदार भी कहा जाता है। स्थानीय अनुभववेत्ताओं के मतानुसार इस वैदिक काल के शिवालय को पहला नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मन्दिर का अंश समझा जाता है तो दूसरी ओर केदारनाथ मन्दिर की शाखा। परन्तु यह सत्य है, विनोद नदी व रामगंगा नदी के संगम से शुरू हुई पर्वत माला के ऊत्तरी छोर पर केदारनाथ मन्दिर विराजमान है। भारतवर्ष में शायद यही एक शिवालय है जहॉं पर महाशिव का धड़ स्थापित है। इसकी स्थापना का अनुमान पन्द्रहवीं व सोलहवीं शताब्दी के मध्य का माना जाता रहा है।[१]

इतिहास

यह एक पौराणिक शिवालय है।[२] इस भगवान शंकर के आराध्य शिवालय की स्थापना का कोई सटीक अनुमान प्राप्त नहीं हैं। यह साक्षात है यह रामगंगा नदी व विनोद नदी के संगम से शुरू हुई पर्वत माला के ऊत्तरी छोर पर केदारनाथ मन्दिर विराजमान है तथा प्राचीन काल में केदारनाथ व बद्रीनाथ जाने वाले तीर्थयात्री पहले यही पर आराधना करते थे। यहीं से यह प्राचीन मार्ग है जिसके किनारे तत्समय के अवशेष भग्नानशेष पाये जाते हैं। भारतवर्ष में शायद यही एक शिवालय है जहॉं पर महाशिव का धड़ स्थापित है। इसकी प्रथम स्थापना का ठीक-ठीक अनुमान अज्ञात है। अधिकांश स्थानीय लोगों व अनुभववेत्ताओं के मतानुसार इस मन्दिर का पुनर्निर्माण चन्दवंशीय राजा रूद्रचन्द जी ने 1400-1500 ईंसवी के मध्य करवाया था। जिनके के अभिलेख तथा ताम्रपत्र पौराणिक बृद्धकेदार समिति के पास सुरक्षित हैं। श्री करणचन्द राजसिंह भी चन्दवंशीय राजाओं के वंशज हैं, जो अभी यानि वर्तमान में काशीपुर के राजा के नाम से प्रसिद्ध हैं तथा अपने पैतृक महल काशीपुर किले में रहते हैं।

पौराणिक महिमा व मान्यताऐं

यह एक पौराणिक शिवालय होने के साथ-साथ मान्यताऐं भी सारगर्भित हैं। विशेषत: यह शिवालय प्राचीन काल में नि:सन्तान दम्पतियों का ही आराध्य केन्द्र हुआ करता था। बैकुंठ चतुर्दशी का विशेष महत्व होता है, इसी उपललक्ष में यहॉं प्रतिवर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा को भक्तगण दूर-दूर इलाकों से आते रहे हैं। नि:सन्तान दम्पति पूरी रात रामगंगा नदी में खड़े होकर, हाथों में दीप प्रज्वलित कर श्रधासुमनों के साथ शिव भक्ति में लीन रहते हैं। भोर होने उस दीपक रूपी साधना को रामगंगा में प्रवाहित कर देते हैं। अपनी-अपनी मनोकामनाओं को साकार करने की अस्रुपूर्ण अभिलाषा करते हैं। तत्पश्चात ही महादेव का जलाभिषेक करते हैं। कालांतर में नि:सन्तान दम्पतियों के साधना संगम का अपभ्रंश होकर मेला हो गया। अब इसे कार्तिक मास की पूर्णिमा का मेला यानि केदारौ कौतीक (स्थानीय बोली में) कहने लगे हैं।

यहॉं पर महाशिवरात्रि के पर्व का भी विशेष महत्व होता है।

कथा व किंवदंती

मन्दिर वास्तुशिल्प

दर्शन का समय

आवागमन के स्रोत

पौराणिक बृद्धकेदार के लिए प्राचीन काल से ही आवागमन का अभाव नहीं रहा है। तराई से भिकियासैंण होकर आता और उत्तर की ओर बद्रीनाथ धाम, केदारनाथ धाम इत्यादि इलाकों का तत्कालीन मार्ग यहीं होकर निकलता था। बाद में ब्रिटिशकाल के दौरान जिसके समानान्तर मौजूदा मोटर मार्ग बना जो अाज यातायात की मुख्य सड़क है। दूसरा रानीखेत से जालली होते हुए काला चौनामॉंसी तक जातेे मोटर मार्ग से मॉंसी से भिकियासैंण के मध्य में पड़ता है। यह मॉंसी से मात्र सात किलोमीटर की दूरी पर है।

वायु मार्ग

निकटतम हवाई अड्डा रामनगर व हल्द्वानी के मध्य में स्थित पंतनगर विमानक्षेत्र है। यह सड़क द्वारा लगभग 175 से 200 किलोमीटर की दूरी पर पंतनगर में ही है। जहॉ से सुविधानुसार टैक्सी अथवा कार से पहुंचा जाता है।

रेल मार्ग

रेलवे जंक्‍शन काठगोदाम जो कि लगभग 155 किलोमीटर की दूरी पर तथा दूसरा रेलवे जंक्शन लगभग 105 किलोमीटर पर रामनगर में है। दोनों स्थानों से सुविधानुसार उत्तराखंड परिवहन की बस अथवा टैक्सी कार द्वारा आसानी से यहॉ पहुंचा जा सकता है।

सड़क मार्ग

दिल्‍ली के आनन्द विहार आईएसबीटी से यहॉ के लिए उत्तराखंड परिवहन की बसें नियमित रूप से उपलब्ध होती हैं। जिनके द्वारा 10-12 घंटों में यहॉ पहुंचा जाता है। प्रदेश के अन्‍य स्थानों से भी बसों की सुविधाऐं उपलब्ध हैं। दिल्‍ली से रूट: राष्‍ट्रीय राजमार्ग 24 से हापुड़, गजरौला, मुरादाबाद, रामनगर, भतरोंजखान या घट्टी से भिकियसैण तथा जैनल होते हुए पहुंंच जा सकता है।

चित्र वीथिका


इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

साँचा:reflist