नारोमुरार
साँचा:if empty Naromurar | |
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32 फ़ीट की विशालकाय हनुमान प्रतिमा - नारोमुरार ठाकुरवाड़ी, संत हनुमान दास द्वारा 2001 इसवी में निर्मित | |
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निर्देशांक: साँचा:coord | |
देश | साँचा:flag/core |
प्रान्त | बिहार |
ज़िला | नवादा ज़िला |
प्रखण्ड | वारिसलिगंज |
पंचायत | कुटरी |
संस्थापक | नारो सिंह व मुरार सिंह |
जनसंख्या (2011)[१] | |
• कुल | २,०३५ |
• घनत्व | साँचा:infobox settlement/densdisp |
भाषा | |
• प्रचलित | हिन्दी, मगही |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 805130 |
टेलीफोन कोड | 06324 |
वाहन पंजीकरण | BR-27 |
लिंगानुपात | 1000 - 944 ♂/♀ |
वेबसाइट | www |
नारोमुरार (Naromurar) भारत के बिहार राज्य के नवादा ज़िले में स्थित एक गाँव है।[२][३]
विवरण
नारोमुरार वारिसलिगंज प्रखण्ड के प्रशाशानिक क्षेत्र के अंतर्गत राष्ट्रीय राजमार्ग 31 से 10 KM और बिहार राजमार्ग 59 से 8 KM दूर बसा एकमात्र गाँव है जो बिहार के नवादा और नालंदा दोनों जिलों से सुगमता से अभिगम्य है। प्रकृति की गोद में बसा नारोमुरार गाँव, अपने अंदर असीम संस्कृति और परंपरा को समेटे हुए है। यह भारत के उन प्राचीनतम गांवो में से एक है जहाँ 400 वर्ष पूर्व निर्मित मर्यादा पुरुषोत्तम राम व् परमेश्वर शिव को समर्पित एक ठाकुर वाड़ी के साथ 1920 इसवी, भारत की स्वतंत्रता से 27 वर्ष पूर्व निर्मित राजकीयकृत मध्य विद्यालय और सन 1956 में निर्मित एक जनता पुस्तकालय भी है। पुस्तकालय का उद्घाटन श्रीकृष्ण सिंह के समय बिहार के शिक्षा मंत्री द्वारा की गयी थी।
नामोत्पत्ति
वस्तुतः नार का शाब्दिक अर्थ पानी और मुरार का शाब्दिक अर्थ कृष्ण, जिनका जन्म गरुड़ पुराण के अनुसार विष्णु के 8वें अवतार के रूप में द्वापर युग में हुआ, अर्थात नारोमुरार का शाब्दिक अर्थ विष्णुगृह - क्षीरसागर है।[४] ऐसा माना जाता है की 1352 इसवी में नारो सिंह व् मुरार सिंह नामक दो भाई पहले प्रवासी थे जो सपरिवार यहाँ बसे, समयानुसार यह स्थान फल-फूल कर इन्ही दो भाईयों के नाम पर नारोमुरार गाँव के रूप में विकसित हुआ।साँचा:citation needed
वृत्तांत
ब्लैक डेथ
ब्लैक डेथ मानव इतिहास में सबसे विनाशकारी महामारी में से एक था। ब्लैक डेथ मध्य एशिया के टार्टरी मैदान से उत्पन्न माना जाता है, जो सिल्क रुट और समुद्री व्यापर मार्ग से होते हुए मुग़ल सैनिक व् व्यापारियों के साथ पुरे चीन, भारत में फैलते हुए 1346 ईसवी में यूरोप के बंदरगाह तक पहुँच गयी। ऐसा माना जाता है की यूरोप में प्रवेश के पूर्व इस महामारी के कारण लगभग 2.5 करोड़ चीनी व् अन्य एशियाई की मृत्यु हो गयी थी। इस महामारी से यूरोप की कुल आबादी का 30 से 60% के मारे जाने का अनुमान है।[५][६]
पण्डारक से स्थानांतरण
1340 इसवी में यह महामारी पूर्वी भारत से विस्तरित होते हुए पण्डारक, एक गाँव जो वर्तमान में बिहार के पटना जिले में है, पहुँच गयी।[६] महामारी से अपनी जान बचाने के लिए कुछ लोग या तो अफ़सर या आंती गाँव स्थानांतरित हो गएसाँचा:cn, जो वर्तमान में नवादा जिले के अंतर्गत है। समयानुसार एक जन समूह अफसर से नारोमुरार स्थानांतरित हो गए।साँचा:cn
मंदिरों का इतिहास
नारोमुरार मुख्यत: एक हिन्दू गाँव है। गाँव के पवित्र नाम से प्रेरित होकर तथा ईश्वर के प्रति असीम श्रद्धा व् धार्मिक विश्वास की साधना के लिए ग्रामवासियों ने गाँव के सभी दिशाओं में समयानुसार हिन्दू देवी - देवताओं के मंदिरों की स्थापना की - दक्षिण में देवी स्थान, उत्तर में ठाकुर स्थान, पूर्व में दुर्गा स्थान, पश्चिम में शिव मंदिर, केंद्र में शिवालय के साथ गाँव के पास ठाकुर वाड़ी, मथुराधाम सूर्यमंदिर व् विष्णु मंदिर की स्थापना की गयी। गाँव के सभी दिशाओं में देवालय व ग्रामवासियों में असीम श्रद्धा को देखते हुए, इसे मिनी भुवनेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। साँचा:citation needed
देवी स्थान
1352 इसवी में जब नारो सिंह व् मुरार सिंह के द्वारा गाँव की स्थापना की गयी तब भगवन के प्रति आस्था व् धार्मिक विश्वास की साधना के लिए एक देवी स्थान का भी निर्माण किया गया था, देवीस्थान गाँव की प्राचीनतम मंदिर है। बिभिन्न हिन्दू देवी - देवताओं की प्राचीन मूर्तियों से घिरी देवी की अर्धगोलाकार प्रतिमा देवीस्थान के मध्य में प्रस्थापित है। देवीस्थान गाँव ही नहीं बल्कि निकटतम गांवो के लिए भी पवित्र स्थानों में से एक जानी जाती है। आस-पास के ग्रामवासी भी यहाँ चर्मरोग व् अन्य रोगों के पारंपरिक आयुर्वेदिक शैली से निवारण हेतु आते हैं।साँचा:citation needed
ठाकुर स्थान
ठाकुर स्थान परमेश्वर शिव को समर्पित गाँव की उत्तर पूर्व दिशा में प्रतिस्थापित दूसरी प्राचीनतम मंदिर है। समयांतराल ठाकुर स्थान परिसर में एक पार्वती मंदिर की भी स्थापना की गयी।
ठाकुर वाड़ी
करीब 400 वर्ष पूर्व गाँव के दक्षिण-पश्चिम दिशा में एक विशाल व् भव्य ठाकुर वाड़ी का निर्माण किया गया। प्राचीनतम वास्तु कला से निर्मित इस ठाकुर वाड़ी परिसर में जगह-जगह पारंपरिक कुएं आज भी देखे जा सकते है, जो ठाकुर वाड़ी को पेय जल उपलब्ध कराने व् उद्यानों की सिचाईं के लिए बनायीं गयी थी।
ठाकुर वाड़ी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम व परम परमेश्वर शिव को समर्पित दो मंदिर हैं। ठाकुर वाड़ी के परवरिश व् देख-रेख के लिए 2 बीघा में निर्मित परिसर के अलावा तत्कालीन महंत के नाम गाँव की 10 बीघा जमीन भी आवंटित है। महंत के साथ एक संत समूह भी परिसर की सेवा के लिए नियुक्त किये जाते हैं। ठाकुर वाड़ी परंपरा के अनुसार एक संत का नाम नये महंत के रूप में घोषित होने के बाद उन्हें एक नयी उपाधि दास के द्वारा प्रतिष्ठित किया जाता है।
क्रमांक | महंत के नाम | पूर्व नाम | ग्राम |
---|---|---|---|
1. | गंगा दास | गंगा सिंह | नारोमुरार |
2. | जयमंगल दास | जयमंगल सिंह | नारोमुरार |
3. | रामुदित दास | रामुदित सिंह | कुमार |
4. | रामावतार दास | रामावतार सिंह | नारोमुरार |
5. | रामलखन दास | रामलखन सिंह | नारोमुरार |
6. | रामचन्द्र दास | रामचंद्र सिंह | नारोमुरार |
दुर्गा स्थान
आदि पराशक्ति माँ दुर्गा स्थान, गांव के कचहरी परिसर में है। दुर्गा पूजा के भव्य आयोजन के लिए आदर्श नाट्यकला परिषद नामक एक समर्पित सांस्कृतिक संगठन है। माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के साथ साथ पुरे नवरात्र में भांति-भांति के सांस्कृतिक कार्यक्रम पुरे गांव में होते हैं। आदर्श नाट्यकला परिषद के द्वारा आयोजित जागरण से एकादशी की रात्रि तक पंच दिवसीय नाट्यकला की श्रृंखला वारिसलिगंज क्षेत्र के साथ साथ आस-पास के ग्रामीण इलाको में भी सुप्रसिद्ध और अद्वितीय मानी जाती है।
शिव पार्वती हनुमान मंदिर
भगवान शिव पार्वती व् रामभक्त हनुमान को समर्पित तीन मंदिर का निर्माण भी गाँव की कचहरी परिसर में समयांतराल किया गया है। एक सामुदायिक सभागार भी हिन्दू पर्व होली व् रामनवमी के अवसर पे सांस्कृतिक कार्यक्रम हेतु मंदिर परिसर से संलग्न है।
मथुराधाम सूर्यमंदिर
सन 2002 इसवी में गाँव के दक्षिण-पूर्व दिशा में श्यामदेव सिंह के द्वारा एक सूर्यमंदिर का निर्माण किया गया। ग्रामवासियों के द्वारा श्यामदेव सिंह के पिता मथुरा सिंह के सम्मान में मंदिर का नाम मथुराधाम सूर्यमंदिर रखा गया। पवित्र हिन्दू पर्व छठ पुजा मनाने हेतु परिसर में एक श्यामकुण्ड की भी निर्माण की गयी। 2002 इसवी में एक शिव मंदिर की भी स्थापना चन्देश्वर सिंह द्वारा की गयी।
शिव पार्वती लक्ष्मी मंदिर
गाँव के पश्चिम दिशा में भगवान शिव पार्वती व् लक्ष्मी को समर्पित तीन मंदिर हैं। शिव मंदिर का निर्माण अजय सिंह के द्वारा 2006 इसवी, पार्वती मंदिर का निर्माण गायत्री देवी द्वारा 2014 इसवी में और लक्ष्मी मंदिर का निर्माण 2015 इसवी में प्रवीण सिंह के द्वारा की गयी है। लक्ष्मी पुजा के अवसर पे मंदिर की सुन्दरता पुरे गाँव व् आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रवासियों को आकर्षित करती है। गाँव में भव्य लक्ष्मी पुजा के लिए एक समर्पित सांस्कृतिक संगठन तरुण लक्ष्मी पुजा समिति है जो हर वर्ष पुरे गाँव में लक्ष्मी पुजा का आयोजन करती है।
प्रशासनिक इतिहास
सन 1947 इसवी के स्वतन्त्रता आगमन के पूर्व, बिहार, ब्रिटिश राज के अधीन प्रान्तों में से एक था। बेहतर शाशन व्यवस्था के लिए एक प्रान्त कई हिस्सों में विभाजित थी, प्रत्येक भाग का शाशन किसी न किसी जमींदार के अधिकार क्षेत्र में दे दिया गया, नारोमुरार, टिकारी महाराज के अधिकार क्षेत्र में आने वाले दक्षिणी बिहार के 2046 गांवो में से एक था। 1764 इसवी में बक्सर जो तब बंगाल प्रेसीडेंसी के अंतर्गत था, में संयुक्त बंगाल के नवाब-मुग़ल व् अवध नवाब के साथ हुए बक्सर के युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी की निर्णायक जीत के बाद 1973 इसवी में ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाली जमींदारों के बीच परमानेंट सेटलमेंट एक्ट नामक, भूमि से आने वाले राजश्व को सुनिश्चित करने हेतु एक समझौता हुआ। इस समझौते से पूर्व बंगाल, बिहार व् ओडिशा के जमींदारों के पदाधिकारी मुग़लों की ओर से आधिकारिक तौर पर राजश्व वसूली किया करते थे।
पारंपरिक कचहरी में सामन्यतः चार लोग थे जिनका पद व् अधिकार इस तरह था -
- गोमस्ता - जमींदार द्वारा राजश्व वसूली के लिए नियुक्त प्रबंधक
- पटवारी - हिसाब-किताब के उदेश्य से कार्यरत
- बराहिल - वसूले हुए राजश्व को जमींदार तक पहुँचाने के लिए
- चौकीदार - सुरक्षा प्रदान करने हेतु
गाँव के मध्य पीपल का एक विशाल वृक्ष हुआ करता था, जमींदार की ओर से एक प्रतिनिधि मंडल नियमित रूप से इस पीपल वृक्ष के नीचे नारोमुरार कचहरी के अधिकार क्षेत्र में आने वाले गांवों से आधिकारिक रूप से कर वसूली का काम किया करते थे। गाँव का यह स्थान आज भी कचहरी (court) के नाम से जाना जाता है, स्वंतंत्रता के उपरांत कचहरी परिसर में कई हिन्दू देवी- देवताओं के मंदिर का निर्माण किया गया पर पीपल का विशाल वृक्ष आज भी देखा जा सकता है जो हमें आज भी ज़मींदारी प्रथा का स्मरण कराती है। नारोमुरार कचहरी के अधिकार क्षेत्र में नारोमुरार के अलावा 9 और गाँव थे जिसके ग्रामीण, कर भुगतान के लिए नारोमुरार आते थे, नारोमुरार कचहरी के आधिकार क्षेत्र में आने वाले गाँव - नारोमुरार, खिरभोजना, कुटरी, रामपुर, तुल्ला पुर, गोडा पर, पैंगरी, मसलखामा, शंकर बीघा और बासोचकसाँचा:citation needed
प्रशासन
नारोमुरार वारिसलिगंज प्रखंड, नवादा जिला के प्रशाशनिक क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले 75 गांवों में से एक है। गिरिराज सिंह नवादा लोकसभा क्षेत्र के वर्तमान सांसद व् अरुणा देवी वारिसलिगंज विधानसभा क्षेत्र की विधायिका हैं।
ग्राम पंचायत
वारिसलिगंज नवादा जिला परिषद् के अंतर्गत आने वाली 16 पंचायत समितियों में से एक है।[७] वारिसलिगंज पंचायत समिति को बेहतर शाशन व्यवस्था हेतु 16 ग्राम पंचायतों में विभाजित किया गया है, नारोमुरार गाँव वारिसलिगंज पंचायत समिति के कुटरी ग्राम पंचायत के अंतर्गत है।
क्रमांक | PRI पद | पदाधिकारी |
---|---|---|
1. | ग्राम पंचायत मुखिया | सत्यभामा देवी [८] |
2. | पंचायत समिति प्रमुख | नरेश पासवान |
3. | जिला पार्षद | धर्मशीला देवी |
नारोमुरार वार्ड
नारोमुरार में चार वार्ड हैं, वर्तमान वार्ड के नाम -
- शत्रुघ्न कुमार
- रामाशीष मोची
- वीणा देवी
- बुनी देवी
नारोमुरार सेवक संघ
नारोमुरार सेवक संघ गाँव की सर्वांगीण उन्नति के लिए नयी पीढ़ी के एक ग्रामीण समूह द्वारा एक गैर सरकारी व बिना फायदे के उद्देश्य से स्थापित की हुई, बिना किसी उम्मीद के हर संभव गाँव की सेवा में समर्पित एक संस्था है। वर्तमान में संस्था का अधिकार क्षेत्र नारोमुरार गाँव तक सिमित है, सेवक संघ का उद्देश्य गाँव के विशेषाधिकृत नागरिकों की तमाम कुशलता से गाँव का उत्थान करना है। संस्था के सह- संस्थापक आश्विन माह के पवित्र विजयादशमी, 20 OCT 2015 के दिन राजकीयकृत मध्य विद्यालय परिसर में गाँव की सर्वांगीण सेवा के सामान उदेश्य से मिले थे।
जनसांख्यिकी
जनसंख्या व लिंगानुपात
नारोमुरार, नवादा जिले के वारिसलिगंज प्रखंड अंतर्गत 290 परिवारों का एक गाँव है। जनगणना -2011 के अनुसार, नारोमुरार की कुल जनसँख्या 2035 है, जिसमे 1047 पुरुष व् 988 महिला हैं। नारोमुरार में शुन्य से छः वर्ष की आयु के बच्चों की संख्या 377, कुल जनसँख्या का 16.5 प्रतिशत है। नारोमुरार का औसतन लिंगानुपात 944 है, जो की बिहार राज्य के औसतन लिंगानुपात 918 से अधिक है। जनगणना-2011 के अनुसार गाँव के बच्चों का लिंगानुपात 764, बिहार के औसतन 918 से कम है।
साक्षरता दर
नारोमुरार गाँव की साक्षरता दर बिहार की तुलना में उच्चतर है। 2011 में, बिहार की 61.80 की तुलना में 73.20 थी! गाँव में पुरुषों की साक्षरता दर 84.81 प्रतिशत जबकि महिलाओं की साक्षरता दर 61.40 प्रतिशत है।
व्यवसाय
नारोमुरार की कुल जनसँख्या में से 685, व्यावसायिक गतिविधियों में संलग्न हैं। कुल कामगारों में से 45.55% ने इसे अपना प्रमुख व्यवसाय (6 माह से अधिक दिनों से कार्यरत) बताया है जबकि 54.45% ने अपनी कार्यावधि 6 माह से कम बताई हैं। 210 लोगों का व्यवसाय खेती (स्वामी या सह-स्वामी) है, जबकि 49 कृषि से सम्बंधित श्रमिक हैं। ग्रामवासियों का प्रमुख व्यवसाय कृषि और पशुपालन है, चावल व् गेंहू प्रमुख फसलों में से एक है। गाँव की खेतों के बीच से एक नहर गुजरती है, जो मिट्टी को कृषि के लिए और उपजाऊ बनाने का काम करती है। ग्रामवासी फलों के राजा आम के बहुत शौक़ीन है और अपनी दिलचस्पी के लिए गाँव के आस-पास कई आम के बगीचे भी लगाये है, जो गाँव में चार चाँद लगाने का काम करती है। कई ग्रामीण भारतीय सशस्त्र सेनाएँ, पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स, सरकारी महाविद्यालयों व् बहुराष्ट्रीय कम्पनीयों में भी क्रमशः सशस्त्र सेना, मैनेजर, प्रोफेसर व् इंजिनीयर्स के पदों पे कार्यरत है। कुछ ग्रामीण भारत के विख्यात शिक्षण संस्थानों जैसे - राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली विश्वविद्यालय, मगध विश्वविद्यालय, VIT विश्वविद्यालय, KIIT विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय, अन्नामलाई विश्वविद्यालय से भी शिक्षा ग्रहण कर चुके हैं।
शिक्षा
राजकीयकृत मध्य विद्यालय नारोमुरार
स्कूल कोड : 10361403401
विद्यालय की स्थापना सन 1920 इसवी में शिक्षा विभाग के द्वारा की गयी थी। विद्यालय में कक्षा प्रथम से कक्षा अष्टम तक की शिक्षा दी जाती है। शिक्षा निर्देशन का माध्यम हिंदी है। वर्तमान में विद्यालय आवासीय नहीं है व् विद्यालय के परिचालन का समय 9 पूर्वाहन से 3 अपराहण तक है। विद्यालय की शैक्षणिक सत्र अप्रैल माह में प्रारंभ होती है। विद्यालय परिचालन के लिए एक सरकारी भवन है, जिसमे शिक्षण सम्बंधित निर्देशन के लिए आठ कक्षाएं हैं। पेयजल के स्रोत के लिए विद्यालय में एक चापाकल है जो क्रियाशील है। विद्यालय में पुरुष व् महिला के लिए दो अलग अलग शौचालय है और दोनों क्रियाशील है। विद्यालय परिसर में 900 पुस्तकों की एक पुस्तकालय भी है। विद्याथियों के लिए साल में एक बार चिकित्सा जाँच की भी व्यवस्था की जाती है। दिव्यांग विद्याथियों को कक्षा के उपयोग हेतु विद्यालय को रैंप की आवश्यकता नहीं है। विद्यालय परिसर में विद्यार्थियों के लिए नियमित रूप से मध्याहन भोजन की भी व्यवस्था की जाती है। वर्तमान में विद्यालय में प्रधानाध्यापक का पद रिक्त है, सन 2008 से 2012 तक रामानुज सिन्हा विद्यालय के प्रधानाध्यापक के तौर पे कार्यरत थे। वर्तमान में दो महिला शिक्षक सहित विद्यालय में कुल 5 नियमित शिक्षक है। संक्षेप में, सभी कार्यरत शिक्षकों की स्नातक या इस से अधिक की योग्यता है। दूसरी ओर, सभी शिक्षकों को पेशेवर प्रमाणीकरण या डिग्री है। स्कूल के अध्यापक-छात्र अनुपात (पीटीआर) 71:1 और कक्षा-छात्र अनुपात (एससीआर), 44:1 है। वर्तमान कार्यरत शिक्षक - मणि देवी, मनोज कुमार, मीना कुमारी, संतोष कुमार सिन्हा और सारंगधर कुमार हैं।
जनता पुस्तकालय नारोमुरार
सन 1956 में निर्मित एक जनता पुस्तकालय का उद्घाटन श्रीकृष्ण सिंह के समय बिहार के शिक्षा मंत्री द्वारा की गयी थी। नारोमुरार सेवक संघ द्वारा जनता पुस्तकालय को दीवाली के पावन पर्व के दिन 12 NOV को विधायिका अरुणा देवी व् कृष्णनंदन सिंह की उपस्थिति में पुनः प्रारंभ किया गया। पुस्तकालय सभी ग्रामीणों के लिए दिन भर खुला रहता है, पुस्तकालय में सभी आयु वर्ग के लिए, ऋग वेद से मनोहर पोथी और प्रतियोगिता दर्पण से लेकर सुमन सौरभ तक सारी पुस्तकें उपलब्ध हैं।
सेवक संघ गुरुकुल
पवित्र हिन्दू पर्व छठ की संध्या 21 NOV 2015 को नारोमुरार सेवक संघ द्वारा दीर्घकालिक परियोजना के तहत , संस्था की दूसरी इकाई सेवक संघ गुरुकुल की उद्घाटन की गयी।
सेवक संघ गुरुकुल के उद्देश्य:
- आर्थिक रूप से वंचित क्षमतावान बच्चों तक एक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को पहुँचाना।
- ऐसी शिक्षा प्रदान करना जो विद्यार्थी को भविष्य में एक उत्तम जीवन पाने में उसकी मदद करे, साथ ही उसे उसकी जन्मभूमि के प्रति उसके कर्तव्यों को भी बताये।
- राष्ट्र का निर्माण तथा विश्व को जीवनोपार्जन की एक बेहतर जगह बनाना।
गुरुकुल की कार्यप्रणाली इस प्रकार है: गुरुकुल में अध्ययन की शुल्क 20 रुपये प्रति माह है। वर्तमान में गुरुकुल में शून्य वर्ग से दशमी कक्षा तक के सभी विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती है। आर्थिक रूप से वंचित छात्रों को जनता पुस्तकालय से एक शैक्षिक वर्ष के लिए निः शुल्क पुस्तक दी जाती है। एक गुरुकुल इन्वेस्टर्स नेटवर्क का गठन गुरुकुल को हर प्रकार की आर्थिक सहायता के लिए किया गया है, नेटवर्क के सदस्यों की संख्या, सदस्य व् उनके योगदान का निर्णय गुरुकुल की वर्तमान स्थिति के अनुसार हर चार माह के बाद एक बार होती है, जो गुरुकुल के आने वाले चार माह के लिए बीते चार माह के अनुसार अपना अपेक्षित वित्तीय योगदान करते है। विद्यार्थियों की शैक्षिक योग्यता, संख्या व् गुणवत्ता के अनुसार वर्तमान में गुरुकुल को चार अनुभागों में विभाजित किया गया है, गणेश श्रेणी - शुन्य वर्ग से द्वितीय वर्ग, विद्यापति श्रेणी - तृतीय व् चुतर्थ वर्ग, आर्यभट्ट श्रेणी - पंचम व् षष्टम वर्ग, चाणक्य श्रेणी - सप्तम से दशम वर्ग तक। प्रत्येक अनुभाग के लिए एक नियमित अध्यापक हैं, साथ ही गुरुकुल टीचर्स नेटवर्क से एक सहायक शिक्षक भी। भविष्य में सेवक संघ गुरुकुल की नवोदय विद्यालय में प्रवेश के इच्छुक क्षमतावान विद्यार्थियों के लिए एक समर्पित एकलव्य श्रेणी अनुभाग भी प्रारंभ करने की योजना है।
गुरुकुल सरस्वती विनती, ऋग वेद, दशम मंडल में उल्लखित सरस्वती सूक्ति का देवनारायण भरद्वाज के द्वारा की गयी भावार्थ से ली गयी है।[९]
- सरस्वतीं देवयन्तो हवन्ते सरस्वतीमध्वरे तायमाने।
- सरस्वतीं सुक्र्तो अह्वयन्त सरस्वती दाशुषे वार्यं दात॥
- सरस्वति या सरथं ययथ सवधाभिर्देवि पित्र्भिर्मदन्ती।
- आसद्यास्मिन बर्हिषि मादयस्वानमीवा इष आधेह्यस्मे॥
- सरस्वतीं यां पितरो हवन्ते दक्षिणा यज्ञमभिनक्षमाणाः।
- सहस्रार्घमिळो अत्र भागं रायस्पोषं यजमानेषु धेहि॥
सरस्वती विनती के उपरांत गुरुकुल में भारतीय संविधान की उद्देशिका का पाठ भी नियमित रूप से किया जाता है।
सांस्कृतिक संस्थान
आदर्श नाट्यकला परिषद
इसकी स्थापना अशोक सिंह, अनंत सिंह व् रामनिवास सिंह के द्वारा गाँव में भव्य दुर्गा पुजा के आयोजन के उद्देश्य से की गयी थी। शुरुआती समय में संस्था का कार्यालय दामोदर सिंह के दालान में स्थित थी। माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के साथ साथ पुरे नवरात्र में भांति-भांति के सांस्कृतिक कार्यक्रम पुरे गांव के कण-कण को ऊर्जा व् खुशीयों से भर देते है। आदर्श नाट्यकला परिषद के द्वारा आयोजित जागरण से एकादशी की रात्रि तक पंच दिवसीय नाट्यकला की श्रृंखला वारिसलिगंज क्षेत्र के साथ साथ आस-पास के ग्रामीण इलाको में भी सुप्रसिद्ध और अद्वितीय मानी जाती है।
तरुण लक्ष्मी पुजा समिति
इस सांस्कृतिक संसथान की स्थापना सन 2011 इसवी में कौशलेन्द्र सिंह, नवीन कुमार, सिनोद सिंह, उमेश सिंह व् प्रवीण सिंह क द्वारा की गयी। लक्ष्मी पुजा के अवसर पे मंदिर की सुन्दरता पुरे गाँव व् आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रवासियों को आकर्षित करती है। गाँव में भव्य लक्ष्मी पुजा का आयोजन हर वर्ष तरुण लक्ष्मी पुजा समिति के द्वारा की जाती है।
सुविधाएं
नारोमुरार डाक घर
सरकार के द्वारा गाँव में एक डाक घर की भी स्थापना की गयी है जो आस-पास के आधिकारिक क्षेत्रों में डाक सुविधाएँ प्रदान करती है। आधिकार क्षेत्र - कुटरी ग्राम पंचायत। पता : नारोमुरार डाक घर, नारोमुरार ग्राम, वारिसलिगंज, नवादा, बिहार, भारत, पिन - 805130[१०]
नारोमुरार गोदाम
कुटरी ग्राम पंचायत का गोदाम नारोमुरार गाँव में स्थित है। इसके वर्तमान प्रमुख कृष्णनंदन सिंह है। सरकार की सार्वजानिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत आने वाली सारी सुविधाएँ नारोमुरार गोदाम के द्वारा पुरे ग्राम पंचायत में वितरित की जाती है।
प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र नारोमुरार
ग्रामीणों की प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने हेतु गाँव में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है।
आंगनवाड़ी केन्द्र नारोमुरार
केंद्र सरकार द्वारा गाँव में एक आंगनवाड़ी केंद्र की स्थापना, छः वर्ष के शिशु व् माता को मुलभुत स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करने के उदेश्य से की गयी है।
परिवहन
रेल नेटवर्क
- वारिसलिगंज (पटना → गया → वारिसलिगंज / पटना → किउल → वारिसलिगंज) नारोमुरार से निकटतम रेलवे स्टेशन है। नारोमुरार गाँव वारिसलिगंज से 7 KM दूर है, गाँव के लिए निजी टैक्सी स्टेशन परिसर में आसानी से उपलब्ध हैं।
- पावापुरी (पटना → पावापुरी) नारोमुरार से 25 KM दूर है, पावापुरी से खराट मोड़ (NH 31) तक नियमित रूप से सार्वजानिक परिवाहन उप्प्लब्ध है, खराट मोड़ से वासोचक के रास्ते नारोमुरार तक निजी टैक्सी उपलब्ध हैं।
रोड नेटवर्क
- मीठापुर, पटना या गाँधी मैदान, पटना → वारिसलिगंज
- मीठापुर, पटना या गाँधी मैदान, पटना → नवादा → वारिसलिगंज (रेल व् बस सुविधाएँ उपलब्ध)
- मीठापुर, पटना या गाँधी मैदान, पटना → बिहार शरीफ → खराट मोड़ → नारोमुरार
फोटो गैलरी
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ "Bihar Tourism: Retrospect and Prospect," Udai Prakash Sinha and Swargesh Kumar, Concept Publishing Company, 2012, ISBN 9788180697999
- ↑ "Revenue Administration in India: A Case Study of Bihar," G. P. Singh, Mittal Publications, 1993, ISBN 9788170993810
- ↑ Garuda Puran published by Geeta Press Gorkhpur ISBN 81-293-0393-0
- ↑ India was depopulated, Tartary, Mesopotamia, Syria, Armenia were covered with dead bodies - जस्टस हेकर द्वारा लिखित पुस्तक Epidemics of the Middle Ages, पृष्ठ संख्या 21.
- ↑ अ आ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ साँचा:cite web
पश्चिमोत्तर | खिरभोजना | पूर्वोत्तर | ||
कटौना | कोचगाँव | |||
नारोमुरार | ||||
दक्षिण पश्चिम | कुटरी | दक्षिण पूर्व |