श्रीकृष्ण सिंह
श्रीकृष्ण सिंह | |
---|---|
बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री
| |
पद बहाल 2 अप्रिल 1946 – 31 जनवरी 1961 | |
राज्यपाल | Hugh Dow Jairamdas Daulatram Madhav Shrihari Aney R. R. Diwakar Zakir Husain |
सहायक | Dr. Anugrah Narayan Sinha |
पूर्वा धिकारी | Office Established |
उत्तरा धिकारी | दीप नारायण सिंह |
बिहार के द्वितीय वित्तमंत्री
| |
पद बहाल 5 जुलाई 1957 – 31 जनवरी 1961 | |
मुख्यमंत्री | स्वयं |
पूर्वा धिकारी | अनुग्रह नारायण सिंह |
उत्तरा धिकारी | दीप नारायण सिंह |
भारतीय संविधान सभा के सदस्य
| |
पद बहाल 9 दिसम्बर 1946 – 26 जनवरी 1950 | |
पूर्वा धिकारी | Post Created |
उत्तरा धिकारी | Post Abolished |
बिहार राज्य के मुख्यमंत्री
| |
पद बहाल 20 जुलाई 1937 – 31 अक्टूबर 1939 | |
राज्यपाल | Maurice Garnier Hallett Sir Thomas Alexander Stewart साँचा:small |
पूर्वा धिकारी | मुहम्मद युनुस |
उत्तरा धिकारी | राज्यपाल शासन् |
जन्म | साँचा:br separated entries |
मृत्यु | साँचा:br separated entries |
राजनीतिक दल | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
बच्चे | 2 |
शैक्षिक सम्बद्धता | कोलकाता विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय |
व्यवसाय | अभिभाषक राष्ट्रवादी राजनेता शिक्षाविद् प्रशासक |
उपनाम | बिहार केसरी, श्री बाबू |
साँचा:center |
"बिहार केसरी" डॉ. श्रीकृष्ण सिंह (श्री बाबू) (1887–1961), भारत के अखंड बिहार राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री (1946–1961) थे। उनके सहयोगी डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह उनके मंत्रिमंडल में उपमुख्यमंत्री व वित्तमंत्री के रुप में आजीवन साथ रहे। उनके मात्र 10 वर्षों के शासनकाल में बिहार में उद्योग, कृषि, शिक्षा, सिंचाई, स्वास्थ्य, कला व सामाजिक क्षेत्र में की उल्लेखनीय कार्य हुये। उनमें आजाद भारत की पहली रिफाइनरी- बरौनी ऑयल रिफाइनरी, आजाद भारत का पहला खाद कारखाना- सिन्दरी व बरौनी रासायनिक खाद कारखाना, एशिया का सबसे बड़ा इंजीनियरिंग कारखाना-भारी उद्योग निगम (एचईसी) हटिया, देश का सबसे बड़ा स्टील प्लांट-सेल बोकारो, बरौनी डेयरी, एशिया का सबसे बड़ा रेलवे यार्ड-गढ़हरा, आजादी के बाद गंगोत्री से गंगासागर के बीच प्रथम रेल सह सड़क पुल-राजेंद्र पुल, कोशी प्रोजेक्ट, पुसा व सबौर का एग्रीकल्चर कॉलेज, बिहार, भागलपुर, रांची विश्वविद्यालय इत्यादि जैसे अनगिनत उदाहरण हैं। उनके शासनकाल में संसद के द्वारा नियुक्त फोर्ड फाउंडेशन के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री श्री एपेल्लवी ने अपनी रिपोर्ट में बिहार को देश का सबसे बेहतर शासित राज्य माना था और बिहार को देश की दूसरी सबसे बेहतर अर्थव्यवस्था बताया था।
अविभजित बिहार के विकास में उनके अतुलनीय, अद्वितीय व अविस्मरणीय योगदान के लिए "बिहार केसरी" श्रीबाबू को आधुनिक बिहार के निर्माता के रूप में जाना जाता है । अधिकांश लोग उन्हें सम्मान और श्रद्धा से "बिहार केसरी" और "श्रीबाबू" के नाम से संबोधित करते हैं।
स्मरणीय स्थान
जन्म स्थान - खनवां गांव (नवादा जिला) जहां उनका ननिहाल है। वहां मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने लगभग दो सौ करोड़ की लागत से कई योजनाओं को धरातल पर उतारने का काम किया है। इनमें उनकी स्मृति में एक स्मारक भवन, पार्क, पॉलीटेक्निक कॉलेज, हॉस्पिटल, पावर हाउस, पावर ग्रिड इत्यादि का निर्माण प्रमुख हैं।
पैतृक गांव- माउर (शेखपुरा जिला) यहां उनकी स्मृति में एक प्रवेश द्वार बनाया गया है, श्रीबाबू के पैतृक आवास पर व बरबीघा चौक पर एक-एक प्रतिमा स्थापित की गई है, विभिन्न शिक्षण संस्थाओं का नामांकरण श्रीबाबू की स्मृति में किया गया है इत्यादि।
कर्मभूमि गढ़पुरा- सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान गांधी जी ने गुजरात में साबरमती आश्रम से लगभग 340 किलोमीटर की पदयात्रा कर दांडी में अंग्रेजी हुकूमत के काले नमक कानून को भंग किया था। गांधी जी के आहवान पर बिहार में "बिहार केसरी" डॉ. श्रीकृष्ण सिन्हा "श्रीबाबू" ने मुंगेर से गंगा नदी पार कर लगभग 100 किलोमीटर लंबी दुरूह व कष्टप्रद पदयात्रा कर गढ़़पुरा के दुर्गा गाछी में अपने सहयोगियों के साथ अंग्रेजों के काले नमक कानून को तोड़ा था। इस दरम्यान ब्रिटिश फौज़ के जूल्म से उनका बदन नमक के खौलते पानी से जल गया था,पर वह हार नहीं माने थे। गढ़़पुरा के इस ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह के बाद महात्मा गांधी ने उन्हें बिहार के प्रथम सत्याग्रही कहा था। 82 वर्षों की घोर उपेक्षा के बाद गढ़़पुरा नमक सत्याग्रह गौरव यात्रा समिति बेगूसराय की पहल पर 2012 में उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, 2013 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व 2014 में मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी वहां पहुंचे और बाधाओं के बावजूद, स्वतंत्रता संग्राम की इस अनमोल विरासत व श्रीबाबू की कर्मभूमि के दिन बहुरने लगे हैं। यहां एक स्मारक निर्माणाधीन है, इस हेतु भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया चल रही है।
ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह की स्मृति में पिछले 8 वर्षों से एक पदयात्रा "गढ़़पुरा नमक सत्याग्रह गौरव यात्रा" का आयोजन किया जा रहा है। वर्तमान में यह पदयात्रा प्रतिवर्ष 17 अप्रैल को मुंगेर के श्रीकृष्ण सेवा सदन से प्रारंभ होकर वाया बलिया, बेगूसराय, मंझौल, रजौड़ 21 अप्रैल को गढ़़पुरा पहुंचती है। सरकार ने बेगूसराय से गढ़़पुरा नमक सत्याग्रह स्थल तक जाने वाली लगभग 34 किलोमीटर लंबी सड़क का नामांकरण "नमक सत्याग्रह पथ" किया है। किसी भी ऐतिहासिक घटना की स्मृति में नामांकित देश की यह सबसे लंबी सड़क है। गढ़़पुरा के छोटे से हॉल्ट जैसे स्टेशन का नामांकरण श्रीबाबू की स्मृति में "डॉ.श्रीकृष्ण सिंह नगर-गढ़पुरा" किया गया है जिसका स्टेशन कोड DSKG है। यहां करोड़ों की लागत से कई उल्लेखनीय विकास कार्य हुए हैं और यात्री सुविधाओं का विस्तार हुआ है।
मुंगेर में कष्टहरणी घाट के निकट गंगा नदी पर नवनिर्मित रेल सह सड़क पुल का आधिकारिक रूप से नामांकरण "श्रीकृष्ण सेतु" किया गया है। पटना में गांधी मैदान के उत्तरी भाग में राजधानी का सबसे बड़ा सभागार "श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल" का निर्माण किया गया है जहां उनकी एक आदमकद प्रतिमा भी स्थापित किया गया है। गांधी मैदान,पटना के पश्चिमी छोड़ पर श्रीबाबू की स्मृति में "श्रीकृष्ण विज्ञान केन्द्र" की स्थापना की गई है।
बेगूसराय के जीडी कॉलेज, श्रीकृष्ण महिला कॉलेज, नगर निगम चौक, कचहरी रोड, श्रीकृष्ण इंडोर स्टेडियम व रिफाइनरी टाउनशिप में "बिहार केसरी" श्रीबाबू की स्मृति में प्रतिमा स्थापित की गई है। श्रीबाबू की स्मृति में यहां एक इनडोर स्टेडियम और कचहरी रोड पर जिला परिषद का एक विशाल कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स भी है।
उनके नाम से झारखंड की राजधानी राँची में एक पार्क है[१]। किसी समय में झारखंड बिहार ही का भाग था।
सन्दर्भ
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
श्रीकृष्ण अभिनंदन ग्रंथ
बाहरी कड़ियाँ
- Dr. S. K. Sinha
- Sri Babu & Anugrah Babu
- Biography: Anugrah Narayan Sinha
- Bihar's first exemplary government:The Sri Babu-Anugrah Babu regime
- Rajendra Prasad :Letters to Sri Babu & Anugrah Babu
गढ़़पुरा नमक सत्याग्रह गौरव यात्रा समिति बेगूसराय Freedom Fighters of India