महान चोल मंदिर
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महान चोल मन्दिर | |
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विश्व धरोहर सूची में अंकित नाम | |
देश | साँचा:flag/core |
प्रकार | सांस्कॄतिक |
मानदंड | i, ii, iii, iv |
सन्दर्भ | 250 |
युनेस्को क्षेत्र | एशिया-प्रशांत |
शिलालेखित इतिहास | |
शिलालेख | 1987 (11वां सत्र) |
विस्तार | 2004 |
महान चोल मन्दिर चोल शासकों द्वारा दक्षिण भारत में बनवाये गये थे। यह मन्दिर हैं:
- बॄहदेश्वर मन्दिर, तंजावुर
- गंगईकोंडा चोलीश्वरम का मन्दिर
- ऐरावतेश्वर मन्दिर, दारासुरम में।
बॄहदेश्वर मन्दिर को युनेस्को द्वारा 1987 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। ऐरावतेश्वर मन्दिर, दारासुरम को सन2004 में इस सूची में जोड़ा गया था। इस स्थल को अब "महान जीवित चोल मन्दिर" नाम दिया गया है।
सन्दर्भ
- UNESCO की विश्व धरोहर स्थल घोषित चोल मन्दिर
बृहदेश्वर अथवा बृहदीश्वर मन्दिर तमिलनाडु के तंजौर में स्थित एक हिंदू मंदिर है जो 11वीं सदी के आरम्भ में बनाया गया था। इसे तमिल भाषा में बृहदीश्वर के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण 1003-1010 ई. के बीच चोल शासक राजाराज चोल १ ने करवाया था। उनके नाम पर इसे राजराजेश्वर मन्दिर का नाम भी दिया जाता है। यह अपने समय के विश्व के विशालतम संरचनाओं में गिना जाता था। इसके तेरह (13) मंजिले भवन (सभी हिंदू अधिस्थापनाओं में मंजिलो की संख्या विषम होती है।) की ऊँचाई लगभग 66 मीटर है। मंदिर भगवान शिव की आराधना को समर्पित है। यह कला की प्रत्येक शाखा - वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, प्रतिमा विज्ञान, चित्रांकन, नृत्य, संगीत, आभूषण एवं उत्कीर्णकला का भंडार है। यह मंदिर उत्कीर्ण संस्कृत व तमिल पुरालेख सुलेखों का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इस मंदिर के निर्माण कला की एक विशेषता यह है कि इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती। शिखर पर स्वर्णकलश स्थित है। जिस पाषाण पर यह कलश स्थित है, अनुमानत: उसका भार 2200 मन (80 टन) है और यह एक ही पाषाण से बना है। मंदिर में स्थापित विशाल, भव्य शिवलिंग को देखने पर उनका वृहदेश्वर नाम सर्वथा उपयुक्त प्रतीत होता है। मंदिर में प्रवेश करने पर गोपुरम् के भीतर एक चौकोर मंडप है। वहां चबूतरे पर नन्दी जी विराजमान हैं। नन्दी जी की यह प्रतिमा 6 मीटर लंबी, 2.6 मीटर चौड़ी तथा 3.7 मीटर ऊंची है। भारतवर्ष में एक ही पत्थर से निर्मित नन्दी जी की यह दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है। तंजौर में अन्य दर्शनीय मंदिर हैं- तिरुवोरिर्युर, गंगैकोंडचोलपुरम तथा दारासुरम्।