ओड़िया भाषा

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colspan=3 style="text-align: center; font-size: 125%; font-weight: bold; color: black; background-color: साँचा:infobox Language/family-color" | ओड़िया
colspan=3 style="text-align: center; font-weight: bold; color: black; background-color: साँचा:infobox Language/family-color" | ଓଡ଼ିଆ (साँचा:transl)
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बोली जाती है भारत
क्षेत्र ओड़िशा
कुल बोलने वाले ३ करोड़ १० लाख (१९९६)
श्रेणी ३१ (१९९६)
भाषा परिवार हिन्द-यूरोपीय
लेखन प्रणाली ओड़िआ लिपि
colspan=3 style="text-align: center; color: black; background-color: साँचा:infobox Language/family-color" | आधिकारिक स्तर
आधिकारिक भाषा घोषित ओड़िशा
नियामक कोई आधिकारिक नियमन नहीं
colspan=3 style="text-align: center; color: black; background-color: साँचा:infobox Language/family-color" | भाषा कूट
ISO 639-1 or
ISO 639-2 ori
ISO 639-3 ori
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भारत में निवासी ओड़िआ भाषी
Indic script
इस पन्ने में हिन्दी के अलावा अन्य भारतीय लिपियां भी है। पर्याप्त सॉफ्टवेयर समर्थन के अभाव में आपको अनियमित स्थिति में स्वर व मात्राएं तथा संयोजक दिख सकते हैं। अधिक...

ओड़िया (ଓଡ଼ିଆ, साँचा:transl ओड़िआ) भारत के ओड़िशा प्रान्त में बोली जाने वाली भाषा है। यह भाषा यहाँ के राज्य सरकार की राजभाषा भी है। भाषाई परिवार के तौर पर ओड़िआ एक आर्य भाषा है और नेपाली, बांग्ला, असमिया और मैथिली से इसका निकट संबंध है। ओड़िशा की भाषा और जाति दोनों ही अर्थो में उड़िया शब्द का प्रयोग होता है, किंतु वास्तव में ठीक रूप ओड़िआ होना चाहिए। इसकी व्युत्पत्ति का विकासक्रम कुछ विद्वान् इस प्रकार मानते हैं ओड्रविषय, ओड्रविष, ओडिष, आड़िषा या ओड़िशा। सबसे पहले भरत के नाट्यशास्त्र में उड्रविभाषा का उल्लेख मिलता है।

शबराभीरचांडाल सचलद्राविडोड्रजाः।
हीना वनेचराणां च विभाषा नाटके स्मृताः ॥

भाषातात्विक दृष्टि से ओड़िआ भाषा में आर्य, द्राविड़ और मुंडारी भाषाओं के संमिश्रित रूपों का पता चलता है, किंतु आज की ओड़िआ भाषा का मुख्य आधार भारतीय आर्यभाषा है। साथ ही साथ इसमें संथाली, मुंडारी, शबरी, आदि मुंडारी वर्ग की भाषाओं के और औराँव, कुई (कंधी) तेलुगु आदि द्राविड़ वर्ग की भाषाओं के लक्षण भी पाए जाते हैं।

लिपि

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ओड़िआ लिपि

इसकी लिपि का विकास भी नागरी लिपि के समान ही ब्राह्मी लिपि से हुआ है। अंतर केवल इतना है कि नागरी लिपि की ऊपर की सीधी रेखा ओड़िआ लिपि में वर्तुल हो जाती है और लिपि के मुख्य अंश की अपेक्षा अधिक जगह घेर लेती है। विद्वानों का कहना है कि ओड़िआ में पहले तालपत्र पर लौह लेखनी से लिखने की रीति प्रचलित थी और सीधी रेखा खींचने में तालपत्र के कट जाने का डर था। अत: सीधी रेखा के बदले वर्तुल रेखा दी जाने लगी और ओड़िआ लिपि का क्रमश: आधुनिक रूप आने लगा।

इतिहास

सम्पूर्ण ओड़िआ भाषा के इतिहास को निम्न वर्गों में बांटा जा सकता है -

ओड़िआ एक पूर्वी इंडो-आर्य भाषा होने के नाते इंडो-आर्य भाषा परिवार का सदस्य है। इसे पूर्व मागधी नामक प्राकृत भाषा का वंशधर माना जाता जिसे कि १५०० साल पहले पूर्व भारत में प्रयोग किया जाता था। इस का आधुनिक बांग्ला, मैथिली, नेपाली एवं असमिया भाषाओं से निकट संबंध है। अन्य उत्तर भारतीय भाषाओं के मुकाबले में ओड़िआ, पार्सी भाषा द्वारा सबसे कम प्रभावित हुआ है। लिखित ओड़िआ भाषा का प्राचीनतम उदाहरण मादला पांजि (पुरी के जगन्नाथ मंदिर की पंजिका) में मिलता है जिन्हे ताड़ के पत्तों पर लिखा गया था।

प्रमुख बोलियाँ

साहित्य

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ओड़िआ भाषा के प्रथम महान कवि झंकड के सारला दास थे जिन्होने देवी दुर्गा की स्तुति में चंडी पुराण और विलंका रामायण की रचना की थी। अर्जुन दास के द्वारा लिखित राम-विवाह ओड़िआ भाषा की प्रथम दीर्घ कविता है। प्रारंभिक काल के बाद से लगभग १७०० तक के समय को ओड़िआ साहित्य में पंचसखा युग के नाम से जाना जाता है। इस युग का प्रारंभ श्रीचैतन्य के वैष्ण्ब धर्म के प्रचार से हुआ। बलराम दास, जगन्नाथ दास, यशोवंत दास, अनंत दास एवं अच्युतानंद दास-इन पांचों को पंचसखा कहा जाता है। इस युग के अन्य साहित्यिकों की तरह इनकी रचनाएं भी धर्म पर आधारित थीं। इस काल के रचनाएं प्रायः संस्कृत से अनुवादित की हुई होति थीं या उन्हि पर आधारित होति थीं। अनुवादों में आक्षरिक के अपेक्षा भावानुवाद का प्रचलन ज्यादा था।

स्रोत

बाहरी कड़ियाँ