होमी व्यारावाला
होमी व्यारावाला | |
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चित्र:Homai-vyarawalla.jpg | |
जन्म |
साँचा:birth date नवसारी, गुजरात, भारत |
मृत्यु |
साँचा:death date and age वडोदरा, गुजरात, भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शिक्षा | सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट |
व्यवसाय | फोटो पत्रकार |
जीवनसाथी | मानेकशॉ व्यारावाला |
बच्चे | फ़ारूक़[१] |
होमी व्यारावाला (9 दिसंबर 1913-15 जनवरी 2012) को भारत की पहली महिला फोटो पत्रकार माना जाता है।[२][३] होमी अपने लोकप्रिय उपनाम “डालडा 13” से मशहूर रही हैं। 1930 में बतौर छायाकार अपनी करियर शुरू करने के बाद होमी 1970 में स्वेच्छा से सेवानिवृत्त हो गईं। होमी को उनकी विशिष्ट उपलब्धियों को देखते हुए 2011 में भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। [४]
गूगल ने उनकी विरासत का सम्मान करते हुए उनके जन्म की 104वीं सालगिरह पर अपने ‘डूडल’ के साथ सम्मानित किया। गूगल ने भारत की पहली महिला फोटो पत्रकार होमी व्यारावाला को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें ‘लेंस के साथ पहली महिला’ के रूप में सम्मान दिया। इस डूडल का रेखांकन मुंबई के चित्रकार समीर कुलावूर द्वारा किया गया।
जीवन परिचय
व्यारावाला का जन्म 09 दिसम्बर 1913 को गुजरात के नवसारी के एक मध्यवर्गीय पारसी परिवार में हुआ था।[५] उनके पिता पारसी उर्दू थियेटर में अभिनेता थे। उनका पालन पोषण मुंबई में हुआ तथा उन्होंने पहले-पहल फोटोग्राफी अपने मित्र मानेकशाॉ व्यारावाला से तथा बाद में जे०जे० स्कूल ऑफ आर्ट से सीखी।
उनकी पहली तस्वीर बॉम्बे क्रॉनिकल में प्रकाशित हुई जहां उन्हेें प्रत्येक छायाचित्र के लिए एक रुपया बतौर पारिश्रमिक प्राप्त होता था। होमी का विवाह टाइम्स ऑफ इंडिया में बतौर छायाकार काम करने वाले मानेकशाॉ जमशेतजी व्यारावाला के साथ हुआ। वह अपने पति के साथ दिल्ली आ गईं और ब्रिटिश सूचना सेवा के कर्मचारी के रूप में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान चित्र लेने का काम शुरू कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने इलेस्ट्रेटिड वीकली ऑफ इंडिया मैगजीन के लिए कार्य करना शुरू किया जो 1970 तक चला। इस दौरान उनके कई श्वेत-श्याम छायाचित्र चर्चित हुए। उनके कई फोटोग्राफ टाइम, लाइफ, दि ब्लैक स्टार तथा कई अन्य अन्तरराष्ट्रीय प्रकाशनों में फोटो-कहानियों के रूप में प्रकाशित हुए। अपने पति के देहान्त के बाद होमी दिल्ली छोड़कर वडोदरा आ गईं।
1982 में वो अपने बेटे फारूख के पास राजस्थान के पिलानी में चली आईं, जहां फारूख पिलानी के बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (बिट्स) में अध्यापन कार्य करते थे। लेकिन 1989 में कैंसर से बेटे की मौत के बाद होमी एक बार फिर अकेली हो गईं। बाद का जीवन उन्होंने अकेलेपन में वडोदरा के एक छोटे से घर में बिताया।
छायांकन द्वारा पत्रकारिता
दिल्ली आते ही होमी को अपने काम को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलनी शुरू हो कई। सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और मुहम्मद अली जिन्ना की उतारी गईं उनकी कई तस्वीरें चर्चा में रहीं। बाद के दिनों में उनके छायांकन के प्रिय विषय भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू रहे।
उनके ज्यादातर चित्र उनके उपनाम ‘डालडा-13’ के साथ प्रकाशित हुए। उनके इस नाम के पीछे एक रोचक वाकया रहा। उनका जन्म 1913 में हुआ, अपने होने वाले पति से उपनकी पहली मुलाकात 13 साल की उम्र में हुई और उनकी पहली कार का नंबर प्लेट था डी.एल.डी 13।
1970 में अपने पति की मृत्य के बाद होमी व्यारावाला ने अचानक अपने पेशे से संन्यास ले लिया।[६] इसकी वजह उन्होंने नई पीढ़ी के छायाकारों के बुरे बर्ताव को बताया। बाद में तकरीबन 40 वर्षों तक उन्होंने कैमरे से एक भी चित्र नहीं उतारा। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने अपने करियर के उत्कर्ष पर छायांकन को क्यों छोड़ दिया, तो उनका जवाब था,
“अब इसका कोई औचित्य नहीं रह गया था। हमारी पीढ़ी के पास छायाकारों के लिए कुछ उसूल थे। यहां तक की हम लोगों ने अपने लिए एक ड्रेसकोड का भी पालन किया। हमने एक दूसरे को सहकर्मी के रूप में सहयोग और सम्मान दिया। लेकिन अचानक सबकुछ बुरी तरह से बदल गया। नई पीढ़ी जिस किसी भी प्रकार से पैसे कमाने के पीछे पड़ी थी। मैं इस भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहती थी।"
बाद के दिनों में व्यारावाला ने अपने चित्रों का संग्रह दिल्ली स्थित अल-काज़ी फाउंडेशन ऑफ आर्ट्स को दान कर दिया। जिसके बाद 2010 में राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, मुंबई ने अल-काज़ी फाउंडेशन ऑफ आर्ट्स के साथ मिलकर उनके छायाचित्रों की एक प्रदर्शनी का आयोजन किया।
उपलब्धियां
अपनी तस्वीरों के माध्यम से उन्होंने राष्ट्र के तत्कालीन सामाजिक तथा राजनैतिक जीवन को दर्शाया। उन्होंने 16 अगस्त 1947 को लाल किले पर पहली बार फहराये गये झंडे, भारत से लॉर्ड माउन्टबेटन के प्रस्थान, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू तथा लाल बहादुर शास्त्री की अंतिम यात्रा के भी छायाचित्र लिए। उनके कार्य में चार दशकों का फैलाव है, जिसमें स्वतंत्रता की ललक के साथ-साथ नए राष्ट्र में नहीं निभाये गए वायदों के प्रति हताशा भी दिखाई देती है।
सिगरेट पीते हुए जवाहरलाल नेहरू और साथ ही भारत में तत्कालीन ब्रिटिश उच्चायुक्त की पत्नी सुश्री सिमोन की मदद करते हुए एक तस्वीर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री की एक अलग ही छवि दर्शाती है।
वह ब्लैक एण्ड व्हाइट माध्यम को वरीयता देती थीं। वो दिन की रौशनी के दौरान, लो-एंगल शॉट तथा छवियों के विस्तार के लिए बैक लाइट का उपयोग करती थी, जिससे विषय-वस्तु की गहराई तथा ऊचाई को दिर्शाया जा सके।
सन्दर्भ
- ↑ साँचा:cite news
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- ↑ साँचा:cite news
- ↑ साँचा:cite web
- ↑ Haresh Pandya, "Homai Vyarawalla, Pioneering Indian Photojournalist, Dies at 98" स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।, New York Times, 29 January 2012.
बाहरी कड़ियाँ
- प्रथम महिला फोटो जर्नलिस्ट होमी व्यारावाला को मिलेगी युवाओं की चहेती पहली नैनो"
- Homai Vyarawalla: India's First Woman Photo Journalist