बसंती देवी
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बसंती देवी | |
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जन्म |
साँचा:birth date |
मृत्यु |
७ मई १९७४ |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
जातीयता | बंगाली |
प्रसिद्धि कारण | स्वतंत्रता कार्यकर्ता |
राजनैतिक पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
जीवनसाथी | चित्तरंजन दास |
बसंती देवी (२३ मार्च १८८० - ७ मई १९७४) भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता थी। वह अन्य कार्यकर्ता चित्तरंजन दास की पत्नी थीं। १९२१ में दास की गिरफ्तारी और १९२५ में मृत्यु के बाद, उन्होंने विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई और स्वतंत्रता के बाद सामाजिक कार्य जारी रखा। १९७३ में उन्हें भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
जीवन और कार्य
बसंती देवी का जन्म २३ मार्च १८८० को अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन के तहत असम राज्य में हुआ। उनके पिता, बराडनाथ हल्दार, एक दिवान (वित्तीय मंत्री) थे। उन्होंने कोलकाता के लोरेतो हाउस में अध्ययन किया और सत्रह वर्ष की आयु में चित्तरंजन दास से शादी की।[१] इन दोनों के तीन बच्चे १८९८ और १९०१ के बीच पैदा हुए थे।[२]
अपने पति के साथ, बसंती देवी ने १९२० में सविनय अवज्ञा आंदोलन, खिलाफत आंदोलन और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नागपुर सत्र जैसे विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया। १९२१ में दास की बहनों, उर्मिला देवी और सुनीता देवी के साथ उन्होंने "नारी कर्म मंदिर" नामक महिला कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण केंद्र बनाया।[३]
१९१५ में जब महात्मा गांधी भारत में सक्रिय राजनीति में शामिल हुए, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सुधार किया। राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करने के लिए कांग्रेस को धन की कमी का सामना करना पड़ता था। गांधी ने एक करोड़ रुपये से अधिक का धन जमा किया और इसे बाल गंगाधर तिलक के स्मरण में "तिलक स्वराज कोष" का नाम दिया।[४][५] देश भर से स्वयंसेवक धन इकट्ठा करने और दान करने लगे। १९२०-२१ में देवी ने जलपाईगुड़ी से तिलक स्वराज कोष के लिये स्वर्ण गहने और २००० सोने के सिक्के इकट्ठा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।[६]
१९२१ में असहयोग आंदोलन के दौरान, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने विदेशी वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने का और धरना देने का आह्वान किया। कोलकाता में ५ स्वयंसेवकों के छोटे समूह सड़कों पर हाथों से बने खादी कपड़े को बेचने के लिए कार्यरत थे। दास कोलकाता में इस आंदोलन के प्रमुख व्यक्ति थे और उन्होंने अपनी पत्नी बसंती देवी के साथ ऐसा एक समूह बनाने का फैसला किया। सुभाष चंद्र बोस के विरोध करने के बावजूद देवी सड़क पर चली गई और उन्होंने अंग्रेजों को उन्हें गिरफ्तार करने के लिए उकसाया। हालांकि उन्हें आधी रात से पहले रिहा कर दिया गया परंतु बसंती देवी की गिरफ्तारी व्यापक आंदोलन का प्रमुख प्रोत्साहन साबित हुई। कोलकाता की दो जेल ऐसे स्वयंसेवकों से भरे हुए थे और अधिक गिरफ्तार कार्यकर्ताओं के लिए निरोधक शिविरों की स्थापना करनी पड़ी। १० दिसंबर १९२१ को अंग्रेजों ने दास और बोस को गिरफ्तार कर लिया। यह ब्रिटिशों द्वारा बोस की ग्यारह गिरफ्तारियों में से पहली गिरफ्तारी थी।[७]
दास की गिरफ्तारी के बाद, बसंती देवी उनके साप्तहिक प्रकाशन बंगलार कथा (बंगाल की कहानी) की प्रभारी बनी।[८] वह १९२१-२२ में बंगाल प्रांतीय कांग्रेस की अध्यक्ष थी। अप्रैल १९२२ चटगांव सम्मेलन में उनके भाषण के माध्यम से उन्होंने निम्नतम स्तर के आंदोलन को प्रोत्साहित किया। भारत में चारों ओर यात्रा कर उन्होंने उपनिवेशवाद का विरोध करने के लिए कला के सांस्कृतिक विकास का समर्थन किया।[२]
चूँकि चित्तरंजन दास सुभाष चंद्र बोस के राजनीतिक सलाहकार थे, इसलिए बोस के देवी के साथ पारिवारिक संबंध थे। १९२५ में दास की मृत्यु के बाद, बोस देवी से अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक संदेहों पर चर्चा करते।[९] बोस ने उन्हे अपनी "दत्तक मां" माना था और वह बोस के जीवन में चार प्रमुख महिलाओं में से एक थी; अन्य तीनों में उनकी मां प्रभाबाती, उनकी भाभी बिभाती (शरतचंद्र बोस की पत्नी) और उनकी पत्नी/साथी एमिली शेंकल थी। [१०]
१९४७ में भारत की आजादी के बाद बसंती देवी ने सामाजिक कार्य जारी रखा।[११] कोलकाता में १९५९ में पहला महिला महाविद्यालय बना जिसे सरकार द्वारा वित्त पोषित किया गया और उसका नाम बसंती देवी महाविद्यालय रखा गया। [२][१२] उन्हें १९७३ में भारत गणराज्य का दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्म विभूषण, से सम्मानित किया गया। [१३]