भारत में उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारियाँ
भारत में उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारियाँ (एनटीडी) परजीवी, वायरस, फंगस और बैक्टेरियाई संक्रमणों का एक समूह है, जो भारत समेत अनेक कम-आय वाले देशों में फैली हुई हैं।
भारत की जनसंख्या 1.3 अरब है, जिसके कारण यह दुनिया की दूसरी सबसे अधिक आबादी वाला देश है।[१] हालाँकि अधिक जनसंख्या यह नहीं बताती है कि अन्य देशों की तुलना में भारत में एनटीडी के मामले अधिक हैं।[१] भारत में एनटीडी बीमारियों की एक विशेषता यह है कि वे शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में होते हैं।[१]
एस्कारियासिस, अंकुश कृमि, ट्राइकोराइसिस, डेंगू बुख़ार, लसीका फाइलेरियासिस, रोहे, सिस्टसरकोसिस, कुष्ठरोग, इचिंचोकोसिस, काला अज़ार, और रेबीज़ उन उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों में से हैं जो विशेष रूप से भारत को प्रभावित करते हैं।[२]
सूची
साँचा:main "उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग" एक सामाजिक अवधारणा है। विभिन्न संगठन एनटीडी की विभिन्न सूची प्रस्तुत करते हैं। ये रोग एक जैसे हैं क्योंकि ये उष्णकटिबन्धीय जलवायु में होते हैं, जो वैश्विक जनता का ध्यान नहीं खींच पाते हैं और कई लोगों को नुकसान पहुँचाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन विश्व स्तर पर 20 एनटीडी को मान्यता देता है। [३] इन 20 एनटीडी में से 12 भारत में भी मौजूद हैं। एक पत्रिका, प्लोस नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज की खुद की अपनी एक अलग सूची है।[४] प्लोस पत्रिका की श्रेणी प्रणाली के साथ क्रमबद्ध 20 एनटीडी विश्व स्वास्थ्य संगठन की सूची निम्नलिखित है:- साँचा:div col
- प्रोटोजोआ संक्रमण
- चगास रोग
- अफ्रीकी ट्रिपेनोसोमयासिस (नींद की बीमारी)
- काला अजार (लीशमैनियासिस)
- कृमिरोग (हेल्मिंथ संक्रमण)
- तेनियासिस / सिस्टसरकोसिस
- ड्रैकन्कुलस रुगणता (गिनी-कृमि रोग)
- फीताकृमिरोग
- खाद्यज ट्रीमाटोडीसेस
- लिम्फेटिक फाइलेरियासिस
- ऑंकोसर्कॉय्सिस
- सिस्टोसोमियासिस
- मिट्टी-संचारित हेलमनिथेसिस
- वायरल संक्रमण
- डेंगू और चिकनगुनिया
- रैबीज
- जीवाणु संक्रमण
- बुरुली अल्सर
- कुष्ठ रोग (हैन्सन रोग)
- रोहे
- यावस (एंडीमिक ट्रेपोनमेटोज)
- फंगल संक्रमण
- माइकोटोमा, क्रोमोब्लास्टोमाकोसिस
- एक्टोपारैसिटिक संक्रमण
- खाज और अन्य एक्टोपारासाइट्स
- अन्य
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी बीमारियाँ जिसकी भारत में कोई ख़ास समस्या नहीं हैं, ये हैं- चैगस रोग, ह्यूमन अफ्रीकन ट्रिपैनोसोमियासिस (नींद की बीमारी), खाद्यज ट्रापेटोडायसिस, ओंकोकोसेरिएसिस (रिवर ब्लाइंडनेस), शिस्टोसोमियासिस, चिकनगुनिया, बुरुली अल्सर, और यवस (एंडेमिक ट्रेपोनीमेटोसेस)।
प्रोटोजोआ संबंधित
काला-अज़ार (विसरल लीशमैनियासिस)
भारत सरकार का लक्ष्य है कि काला अजार को पूर्णत: ख़त्म किया जाए।[५] साथ ही इससे ग्रसित और ठीक हुए मामलों का पता लगाना, बीमारी का जल्द-से-जल्द पता लगाना, उसका उपचार करना और इस बीमारी को फैलाने वाले जीव जंतुओं पर नियंत्रण करना।[५][६]
सन 2000 से पहले काला आज़र को भारत से पूर्णत: ख़त्म करने की उम्मीद थी।[७] इन सालों में कई तरह के कार्यक्रम चलाए गए [७] ताकि इसकी बीमारी को रोकने और उसको ठीक करने के प्रयास किए जा सके। सन 2000 की रिपोर्ट के अनुसार काला अजार के परजीवी (पैरासाइट) में इस बीमारी को ठीक करने के लिए बनाई गयी पेंटावैलेंट एंटीमोनियल दवा, जो 50 साल से इस बीमारी को ठीक करने के लिए प्रयोग की जा रही है, को झेलने की क्षमता थी।।[८][९] इसके बाद जल्द ही ये बीमारी फिर से एक बड़ी समस्या बन गयी थी तथा उसके बाद इसका इलाज और भी कठिन हो गया था। भारत के गरीब इलाकों में इस बीमारी के बारे में जानकारी न होने के कारण ये बहुत तेजी से फ़ैल गई थी।[१०] उस समय इस बीमारी का इलाज बहुत महंगा था। [११]
सन 2000 के बाद काला अजार का इलाज करना बहुत मुश्किल हो गया है।[१२] भारत सरकार ने 2017 में इस बीमारी के इलाज को आसानी से हर इलाके में पहुंचाने के लिए चिकित्सा सुविधा मुहैया करवाई ताकि इस बीमारी को देश से पूर्णतः समाप्त कर दिया जाए।[१३] सरकार ने 2020 तक इस बीमारी को ख़त्म करने तथा पुनः इसके पैलाव को रोकने का लक्ष्य रखा है।[१४] चिकित्सक काला आज़र से ग्रसित रोगी को ठीक होने से पहले और बाद के लिए दवा देते है लेकिन इसका सही और सीमित मात्र में प्रयोग जरुरी है। भारत की स्वास्थ्य एजेंसियों ने इस संक्रामक बीमारी को जड़ से समाप्त करने के लिए जो प्रयास और कार्यक्रम चलाए वो भारत और अन्य देश के लिए एक उदाहरण साबित हो रहे है, कि कैसे किसी संक्रामक बीमारी को खत्म किया जा सकता है।[१५]
अफ्रीकी ट्रिपेनोसोमियासिस
अफ्रीकी ट्रिपेनोसोमियासिस (नींद की बीमारी) भारत में इस बीमारी की कोई समस्या नहीं है।[१६] साथ ही शोधकर्ता इस बीमारी की निगरानी करते रहते हैं।[१६] 2005 में, एक भारतीय किसान इस बीमारी के संक्रमण से बीमार हुआ था। इसे भारत में ट्रिपैनोसोमा इवान्सी कहा जाता है।[१७]
चगास रोग
चगास रोग के मामले भारत में देखने को नहीं मिलते है।[१६] अफ्रीकन ट्रिपैनोसोमियासिस की तरह चगास बीमारी का कारण ट्रिपेनोसोमा परजीवी से होता है।[१६][१७] यह परजीवी भारत में नहीं पाया जाता है।[१६][१७]
कीड़े
मृदा-संचारित हेलमनिथियसिस
मृदा (मिट्टी) संचारित हेलमनिथियसिस विभिन्न परजीविजन्य रोग रोगों का एक समूह है, जो अलग-अलग कारणों से होता है। बड़े सूत्रकृमि (राउंडवॉर्म) का कारण एस्कारियासिस, हुकवर्म संक्रमण है, और व्हिपवर्म ट्राइकोराइसिस का कारण बनता है। ये कीड़े संबंधित हैं और रोकथाम के लिए रणनीतियाँ हैं जो उन सभी पर लागू होती हैं।[१८]
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान अनुसार 2015 में, भारत में 75% बच्चों का, जिन्हें मृदा-संचारित हेलमनिथियसिस था, भी इलाज कराया गया।[१][१९]
लसीका फाइलेरियासिस
दुनिया के लसीका फाइलेरिया (लिम्फेटिक फाइलेरियासिस; एलएफ) मामलों में भारत का ४०% हिस्सा है। [२०] इसमें रोगी के उपचार में बहुत ज़्यादा समय लगना इस बीमारी के उपचार की जटिलता है। वर्ष २००० के एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में लगभग आधे लोगों को लिम्फेटिक फाइलेरियासिस के अनुबंध का खतरा था। [२१]पुरुषों और महिलाओं को यह बीमारी होने की समान रूप से संभावना है, लेकिन बीते समय में, सामान्य तरीके से उपचार तक पहुंच रखने वाली महिलाओं के लिए बाधाएं रही हैं।[२२]
१९५५ में भारत सरकार ने लसीका फाइलेरियासिस को कम करने के लिए राष्ट्रीय फाइलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम की स्थापना की।[२३] १९९७ में, भारत २०२० तक लसीका फाइलेरियासिस को खत्म करने के लिए विश्व स्वास्थ्य सभा के एक प्रस्ताव में शामिल हो गया। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत में लगभग हर उस व्यक्ति तक चिकित्सीय सुविधाएं सुलभ होनी चाहिए जिसे इस बीमारी से संक्रमण का खतरा हो।[२४] २०१५ में भारत सरकार ने लिम्फेटिक फाइलेरियासिस को खत्म करने में सार्वजनिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए हाथीपांव मुक्त भारत (फाइलेरिया फ्री इंडिया) नामक एक स्वास्थ्य अभियान शुरू किया।[२५]
२०१५ में कुछ समय सीमाएं चूकने के बाद और लसीका फाइलेरियासिस को खत्म करने के लिए २०२० की निर्धारित लक्ष्य तिथि से पहले, विभिन्न मीडिया आउटलेट ने चर्चा की कि भारत लक्ष्य को कैसे पूरा कर सकता है या अधिक समय की आवश्यकता होने पर आगे क्या करना चाहिए। [२६][२७][२८]
आयुर्वेद के प्राचीन ग्रन्थ सुश्रुत संहिता में लसीका फिलेरियासिस का वर्णन है।[२३]
फीताकृमिरोग
फीताकृमिरोग जो फीताकृमि नामक परजीवी से होता है।[२९][३०][३१][३२]
सिस्टिकइरकोसिस
टेनियासिस और सिस्टिकइरकोसिस दोनों परजीवी जनित रोग हैं जो तायनिडे परिवार के टेपवर्म के कारण होते हैं।
गिनी-वर्म रोग
गिनी-वर्म रोग भारत में वर्ष 2000 तक एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारी थी जब लोगों ने इस बीमारी को समाप्त कर दिया।[३३] 2003 से 2006 तक रोग का कोई भी मामला दर्ज नहीं किया गया है और इसके बाद यह घोषित किया गया कि अब भारत में इस रोग का कोई मामला नहीं हैं।[३४]
खाद्यज ट्रेमाटोड संक्रमण
खाद्यज ट्रेमाटोड संक्रमण भारत में कोई समस्या नहीं है।
1969-2012 तक भारत में कुछ ही लोगों के छेरा रोग (फास्कियोलोसिस) होने की कुछ रिपोर्टें आई हैं।[३५] भारत में गाय, भैंस, भेड़ और बकरियों में यह बीमारी स्थानिक है।[३६] 2012 के एक पेपर में दो मानव संक्रमणों की सूचना दी गई थी, जिसमें ध्यान दिलाया गया था कि मानव संक्रमण अधिक प्रचलित हो सकता है।[३७]
ऑङ्कोसर्कायसिस
ऑङ्कोसर्कायसिस (रिवर ब्लाइंडनेस) भारत में कोई समस्या नहीं है।
भारत में एक असामान्य मामले में आंकोसर्कायसिस पाया गया है।[३८]
सिस्टोसोमियासिस
सिस्टोसोमियासिस की भारत में कोई समस्या नहीं है।
2015 की एक रिपोर्ट में वर्णित किया गया था कि भारत में सिस्टोसोमियासिस की कोई नियमित रिपोर्ट नहीं है, हालाँकि यह बीमारी हो सकती है और ऐसा भी हो सकता है कि इसकी रिपोर्ट नहीं की गई हो सकती है।[३९] 1952 के एक पेपर में एक भारतीय गाँव में इस बीमारी के बारे में बताया गया था कि किस तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन के शोधकर्ताओं ने इस बीमारी का इलाज किया और इसके स्रोत की पहचान करने की कोशिश की थी।[४०][४१] बीती बातों की जांच करने पर ऐसा कहा जाता है कि या तो वह पुराना पेपर असामान्य था, या यह बीमारी भारत में असामान्य है या इसका पता लगाना मुश्किल है।[४०]
वायरस
डेंगू बुखार और चिकनगुनिया बुखार
विश्व स्वास्थ्य संगठन डेंगू और चिकनगुनिया बुखार को एक ही समूह में रखता है, लेकिन ये अलग-अलग बीमारियां हैं।
1973 से पहले इसके मामले देखने को मिलते थे, लेकिन बाद में इससे छुटकारा मिल गया। फिर यह घोषणा की गयी कि अब भारत में चिकनगुनिया के मामले नहीं है। हालांकि 2005 में भारत में इसका एक मामला सामने आया था।[४२][४३] अब भारत में चिकनगुनिया के मामले बढ़ रहे हैं।
रेबीज
रैबीज भारत में प्राचीन काल से एक समस्या रही है।[४४] रैबीज अक्सर कुत्ते के काटने से होता है।[४४]
भारत में आवारा कुत्तों की कोई कमी नहीं हैं और कई लोग उनके द्वारा काटे जाने की रिपोर्ट करते हैं।[४५] यह निर्धारित करने के लिए कि किसी को रैबीज के इलाज की आवश्यकता है या केवल काटने के लिए उपचार की आवश्यकता है। चिकित्सक को क्षेत्र में रैबीज की घटना के बारे में जानकारी होनी चाहिए।[४६] भारत में जिन लोगों को कुत्तों द्वारा काट लिया जाता है, उनमें से लगभग 2% को रेबीज वैक्सीन प्राप्त होता है।[४५][४७] 2012 के एक रिपोर्ट में तर्क दिया गया था कि भारत में रेबीज के बारे में अब पर्याप्त जानकारी है, और इस बीमारी को राष्ट्रीय स्तर पर नियंत्रित करने की योजना बनाई जा सकती है।[४८]
भारत में रेबीज से पीड़ित लोगों की मृत्यु दर लगभग 100% है।[४९]
जीवाणु
कुष्ठ रोग
साँचा:main साल 1983 से 2005 तक भारत ने सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में कुष्ठ रोग को खत्म करने के लिए कई सफल कार्यक्रम आयोजित किए थे।[५०] इससे फायदा भी हुआ और 10,000 कुष्ठ रोगियों की संख्या से 58 संख्या हुई।[५०] [५१] स्वास्थ्य पर ध्यान न देने से यह संभव है कि कुष्ठ दर बढ़ सकती है।[५२]
2018 के एक अध्ययन में बताया गया है कि भारत में गरीब क्षेत्रों में कुष्ठ रोग का पता लगाना आसान है, लेकिन अधिक पैसे वाले क्षेत्रों में बहुत सारे केस रह जाते है जिनका पता नहीं लगा पाते है।[५३]
2019 की एक रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे नई तकनीक से भारत में कुष्ठ रोग का पता लगाना और उसका इलाज आसान हो जाएगा।[५४]
ट्रेकोमा
दिसंबर 2017 में भारत के स्वास्थ्य मंत्री ने घोषणा की थी कि अब भारत ट्रेकोमा से मुक्त है।[५५][५६] इस घोषणा में एक बयान यह भी शामिल था कि भारत में ऐसा कोई भी बच्चा नहीं था जो ट्रेकोमा से ग्रसित था।[५७]
जबकि साल 2011 में एक पेपर ने यह अनुमान लगाया था कि भारत 10 साल के भीतर ट्रैकोमा को खत्म कर सकता है।[५८]
याज
भारत सरकार ने 1950 के दशक में याज नामक संक्रमण को ख़त्म करने के लिए कार्यक्रम शुरू किए थे।[५९] इस संक्रमण को पूर्णत: समाप्त करने के लिए भारत ने याज उन्मूलन कार्यक्रम शुरू किए और शुरुआत में ही उनके सामने 735 संक्रमित मामले आए।[६०] 2004 में भारत सरकार ने घोषणा की कि स्वास्थ्य सम्बंधित कार्यक्रमों के चलते लगता है कि इस बीमारी को समाप्त कर दिया गया है। याज संक्रमण ख़त्म होने के बाद भी 2006 में भारत सरकार ने हर तरफ निगरानी बनाए रखी और इससे सम्बंधित मामलों की खोज जारी रखी। इसी बात को ध्यान में रखते हुए 2011 में याज संक्रमण के होने की आशंकाओं की जांच की गई।
मई 2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को याव्स से मुक्त घोषित कर दिया।[६१] भारत पहला ऐसा देश था, जहाँ याव्स स्थानिक था और जिसने इसे समाप्त किया।[६२] भारत में इस सफलता ने अन्य देशों को भी उत्साहित किया, जो भारत द्वारा विकसित की गई तकनीकों का उपयोग करके वर्ष 2020 तक याव्स को खत्म करने का प्रयास करेंगे।[६३]
बुरुली व्रण
बुरुली व्रण (बुरुली अल्सर) भी भारत में कोई समस्या नहीं है।
2019 में चिकित्सकों ने भारत में बुरुली अल्सर के एक मामले की पुष्टि की थी, लेकिन रोगी नाइजीरिया से था जहाँ यह बीमारी मौजूद है।[६४]
फंगस
मायसेटोमा
मायसेटोमा (कवकगुल्म) त्वचा के नीचे होने वाला एक संक्रमण है, जो भारत में फंगस या बैक्टीरिया के कारण होता है।[६५][६५] राजस्थान में इस बीमारी का कारण आमतौर पर कवक (फंगस) है, लेकिन भारत में कहीं और इसका कारण आमतौर पर बैक्टीरिया होता है।[६५]
कुछ स्वास्थ्य सर्वेक्षणों से पता चलता है कि मध्य भारत में मायसेटोमा एक आम संक्रमण है।[६६]
इस बीमारी का इलाज कठिन है[६७] और कवक के लिए किया जाने वाला उपचार बैक्टीरिया पर कोई असर नहीं छोड़ता है।[६७] जब यह बीमारी बैक्टीरिया से होती है तब इसके उपचार में ज्यादा समय लगता है।[६७]
साल 1874 में एक ब्रिटिश सर्जन हेनरी विंडीके कार्टर ने “ऑन मायसेटोमा ऑर द फंगस डिजीज ऑफ इंडिया” नामक एक पुस्तक लिखी थी।[६८]
अन्य
खुजली
भारत में संभावित स्थानों में खुजली कि समस्या होने का प्रतिशत १३-५९% के बीच रहता है।[६९]इस पर कम ही शोध हुआ है कि किस तरह यह अवस्था भारतीय लोगों के दैनिक जीवन, उनके आराम तथा निद्रा को प्रभावित करती है।[६९]
विभिन्न महामारी आधारित अध्ययनों में भारत में अलग-अलग स्थानों एवं समय पर हुई खुजली कि घटनाओं का ब्योरा है।[७०][७१]
पर्मेथ्रीन और इवर्मेक्टीन दवाईयां भारत में उपचार के लिए सामान्यत उपलब्ध रहती हैं।[७२][७३]
सर्पदंश
ज़हर के फैलने का खतरा साँप के काटने से हो सकता है, जबकि साँप का काटना अपने आप में खतरा नहीं है।[७४][७५] भारत में साँप की चार प्रजातियाँ अधिकतम साँप के काटने की ज़िम्मेदार है: नाग, करैत, दबौया सांप और फुरसे (सॉ-स्केल्ड वाईपर)।[७६] इन चार साँपों के अलावा कई और प्रकार के साँप हैं जिनके काटने पर सुनियोजित चिकित्सा सुविधा की आवश्यकता पड़ सकती है।[७६]
मई 2018 में विश्व स्वस्थ्य संगठन ने साँप के काटने को एक वैश्विक स्वास्थ्य प्राथमिकता घोषित की।[७७]
भारत के कुछ भागों में पारम्परिक चिकित्सा के माध्यम से सर्पदंश का इलाज किया जाता है।[७८]
प्रतिविष की तैयारी चुनौती भरी है क्योंकि अलग-अलग साँपों के काटने पर प्रतिविष की आवश्यकता अलग होती है और भारत में कई प्रकार के साँप मौजूद हैं।[७९]
सर्पदंश की 97% घटनाएँ गाँव के स्थानों में होती हैं।[८०]
साँपों का भारतीय समाज और संस्कृति में विशेष महत्व है।[८१] इस कारण से कई लोग जो सर्पदंश-पीड़ित होते हैं, अपनी इस अस्वस्थता को अन्य लोगों की तुलना में कम इलाज के लिए कम महत्वपूर्ण समझते हैं।[८१]
2010 भारत में की गई एक सर्पदंश समीक्षा में पता चलता है कि इस समस्या की सूचना कम ही दी गई है और इसके लिए अपर्याप्त स्वास्थ्य चिकित्सा मौजूद है।[८२]
1954 में किए गए एक अध्ययन में 1940 से होने वाले सर्पदंश की घटनाओं की समीक्षा की गई। इस अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि हर वर्ष 300,000-400,000 सर्पदंश होते हैं जिनमें से 10% घातक होते हैं।[८३] जिन चिकित्सा सुविधाओं को मौजूद होना चाहिए पर जो कई बार उपलब्ध नहीं होते हैं, उनमें पूर्ण रूधिर स्कंदन और विष परिचयन किट शामिल हैं।[८४]
महामारी विज्ञान
काला अजार, लसीका फाइलेरिया और कुष्ठ रोग के आधे मामले भारत और दक्षिण एशिया में पाए गए हैं।[८५] ओर रेबीज से होने वाली मौतों में से एक तिहाई भारत और दक्षिण एशिया के एक चौथाई हिस्सा है।
2014 तक डेंगू और जापानी इंसेफेलाइटिस के बारे में अच्छी जानकारी नहीं थी, लेकिन ये बीमारियां भारत में भी एक बड़ा हिस्सा हैं। 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जिन 17 एनटीडी को मान्यता दी थी, उनमें से 6 बीमारियाँ भारत में आम हैं।[८६] उन 6 बीमारियों में लसीका फाइलेरिया, काला-अजार, लेप्टोस्पाइरता, रेबीज, मृदा-संचारित हेल्मिन्थिसिस और डेंगू बुखार हैं।
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीजस (वैश्विक रोग भार) अध्ययन एक नियमित रूप से अद्यतन की गई रिपोर्ट है, जो यह बताने का प्रयास करती है कि दुनिया की प्रत्येक बड़ी बीमारी कोनसी है ओर उन बीमारियों से किस हद तक व्यक्ति प्रभावित है। यह रिपोर्ट बीमारियों की आश्चर्यजनक समस्याओं की पहचान करता है और उन्हें स्वास्थ्य पेशेवरों के बीच अज्ञात होने का वर्णन करता है।
2016 के ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीजस अध्ययन का एक आश्चर्यजनक आश्चर्य यह है कि भारत में 16 सबसे उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों में से 11 में सबसे ज्यादा और सबसे खराब मामले हैं। दुनिया में होने वाली सभी उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारियों के सबसे अधिक मामले भारत में हैं।
उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग | भारत में मामले | विश्व स्तर पर कुल मामले | भारत का प्रतिशत वैश्विक कुल का |
भारतीय घटना क्रम का रैंक |
---|---|---|---|---|
एस्कारियासिस | 2220 लाख | 7990 लाख | 28% | 1 |
अंकुश कृमि (हुकवर्म संक्रमण) | 1020 लाख | 4510 लाख | 23% | 1 |
ट्राइकोराइसिस | 680 लाख | 4350 लाख | 16% | 1 |
डेंगू बुखार* | 530 लाख | 1010 लाख | 53% | 1 |
लसिका फाइलेरियासिस | 87 लाख | 294 लाख | 29% | 1 |
रोहे (ट्रेकोमा)† | 18 लाख | 33 लाख | 53% | 1 |
सिस्टोसोमियासिस | 819,538 | 27 लाख | 31% | 1 |
कुष्ठ रोग | 187,730 | 523,245 | 36% | 1 |
फीताकृमिरोग | 119,320 | 973,662 | 12% | 1 |
विसरल लीशमैनियासिस | 13,530 | 30,067 | 45% | 1 |
रैबीज* | 4,370 | 13,340 | 33% | 1 |
- * - केवल नए मामले
- † - केवल दृश्य हानि का कारण बनने वाले मामले
रोक-थाम
भारत सरकार एनटीडी को कम करने और इसे खत्म करने के उद्देश्य से स्वास्थ्य देखभाल में वित्तीय निवेश करने में विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ अपना सहयोग प्रदान करती है, ताकि जल्द से जल्द इन बीमारियों छुटकारा मिल सके।[८९]
2005 में भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय, बांग्लादेशी स्वास्थ्य मंत्रालय और नेपाल स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2015 तक अपने साझा क्षेत्र में काला अजार को खत्म करने के लिए एक समझौता किया था, जो आगे काफी लाभदायक साबित हुआ था।[९०]
2015 के एक अध्ययन में बताया गया था कि भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम कुष्ठ दर को कम करने के लिये काम कर रहे थे, लेकिन वो इस बीमारी को जल्द खत्म करने में असफल हुए थे। लेकिन सरकार अभी भी इसके लिए लगातार प्रयास कर रही है।[९१]
2017 में भारत सरकार ने एनटीडी को खत्म करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की योजनाओं में भाग लेना शुरू किया।[८६] ताकि इस बीमारी को जल्द से जल्द खत्म किया जा सके। इन सभी संगठन में सरकार का सीधा उद्देश्य गरीबी कम करना, स्वच्छता को बढ़ावा देना था, साथ ही सभी को स्वास्थ्य, और शिक्षा बेहतर मिले इस उद्देश्य को पूरा करने की सरकार ने नई रणनीति बनाई।[८६]
समाज और संस्कृति
उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग गरीबी क्षेत्रों के रोग हैं और समाज में गरीबी कम करने से उन्हें कम किया जा सकता है।
कुछ लोग बीमारी होने पर शर्मिंदगी महसूस करते है, लेकिन यह बीमारी किसी की गलती नहीं है।[९२] भारत सरकार ने कभी-कभी बीमारियों के बारे में बताने के लिए स्वास्थ्य अभियान चलाए हैं ताकि लोग ज़रूरत पड़ने पर चिकित्सा सहायता के लिए सहज महसूस कर सकें।[९२]
संदर्भ
अधिक जानकारी
- स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
बाहरी कड़ियाँ
- search results for "India" प्लोस नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज में।
- ↑ अ आ इ ई उ साँचा:cite journal
- ↑ साँचा:cite journal
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- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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