बिश्नोई
बिश्नोई अथवा विश्नोई उत्तर पश्चिमी भारत के पश्चिमी राजस्थान की एक पर्यावरण प्रेमी पंथ(संप्रदाय) है। इस पंथ के संस्थापक जाम्भोजी महाराज है। जाम्भोजी महाराज द्वारा बताये 29 नियमों का पालन करने वाला बिश्नोई है। "बिश्नोई" शब्द की उत्पति 20(बीस)+9(नौ) = बिश्नोई से हुई है। कई मान्यताओं के अनुसार श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान विष्णु के अवतार माने गए है इनसे बना 'विष्णोई' शब्द कालातंर में परिवर्तित होकर विश्नोई या बिश्नोई हो गया। अधिकांश बिश्नोई जाट जाति से है।[१]
बिश्नोई | ||
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वर्ण | वैश्य | |
मन्त्र | "विष्णु-विष्णु तू भण रे प्राणी" | |
धर्म | हिन्दू | |
भाषा | साँचा:unbulleted list | |
देश | साँचा:flag | |
मूल राज्य | राजस्थान | |
वासित राज्य | मुख्य: राजस्थान, हरियाणा अन्य: पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड | |
क्षेत्र | पश्चिमी भारत |
खेजड़ी के हरे वृक्षों की रक्षा करने के लिए अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में 363 बिश्नोईयों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये थे।[२] बिश्नोई विशुद्ध शाकाहारी होते हैं। बिश्नोई एक जाति हैं जो विशुद्ध शाकाहारी हैं वन एवं वन्यजीवों पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली हैं। बिश्नोई समाज के लोग ज्यादातर किसान खेती पशुपालन करते हैं। बड़े मेहनती एवं निडर साहसी बहादुर होते हैं।[३]
बिश्नोई समाज की पर्यावरण संरक्षण और वन एवं वन्य जीव संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका है।[४][५] इनके द्वारा प्रकृति और वन्य जीवों को बचाने के लिए संघर्ष के कई उदाहरण मिलते हैं और इन्होने अखिल भारतीय जीव रक्षा बिश्नोई महासभा की स्थापना की है।[६]।वन वन्य जीवों के संरक्षण के लिए बिश्नोई टाईगर फोर्स संस्था बनाईं गई हैं जो चौबिसों घंटे वन्यजीवों की शिकार कि घटनाओं के विरूद्ध कार्यवाही करती हैं शिकारीयोंं को घटनास्थल से पकड़ने वन्य विभाग पुलिस के सुपुर्द करने के अलावा कोर्ट में शिकारीयों के विरुद्ध पैरवी करती हैं
इतिहास
सम्वत् 1542 तक गुरु जाम्भोजी की कीर्ति चारों और फेल गई थी और इसी साल राजस्थान में भयंकर अकाल पड़ा जिसमें जाम्भोजी महाराज ने अकाल पीडि़तों की अन्न व धन्न से भरपूर सहायता की। सम्वत् 1542 की कार्तिक बदी 8 को जांभोजी महाराज ने एक विराट यज्ञ का आयोजन सम्भराथल धोरे पर किया[७] और 29 नियमों की दीक्षा एवं पाहल देकर बिश्नोई धर्म की स्थापना की। बिश्नोई पंथ में दीक्षित होने वाले अधिकांश व्यक्ति जाट थे।
खेजड़ली बलिदान
एक घटना थी जिसमें सितंबर 1730 में जोधपुर के निकट खेजड़ली ग्राम में अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में खेजड़ी के वृक्षों की रक्षा के लिए तत्पर बिश्नोई पंथ के 363 लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया। मारवाड़ के राजा के लिए महल बनाए जाने हेतु पेड़ काटने के आदेश का अनुपालन कराने में मारवाड़ के राजा के सैनिकों द्वारा यह हत्याकांड किया गया।[८] यह विश्व भर में वृक्षों को बचाने के लिए अद्वितीय और सर्वोच्च बलिदान है!!
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ www.google.com/amp/s/www.hindustantimes.com/punjab/bishnoi-faces-bumpy-ride-in-jat-vs-non-jat-contest/story-O67GzOTye68l3Af2h99d3L_amp.html
- ↑ स्क्रिप्ट त्रुटि: "citation/CS1" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।
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