विश्नोई जाट

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साँचा:mbox विश्नोई जाट (विश्नोई) बिश्नोई जाट (बिश्नोई) [१] [२] ये जाट समुदाय का एक प्रकतिवादी संप्रदाय है जिसके संस्थापक जम्भेश्वरजी 15 वीं शताब्दी के अंत में रहते थे।

ये मूल रूप से विभिन्न कुलों वंशो औऱ गोत्रों के हिन्दू जाट हैं।[३] गुरु जम्भेश्वरजी के 29 सिद्धांतों को मानने वालों को विश्नोई कहा जाता था।[४] [५] [६]

29 उपदेश

मूल रूप से बिश्नोइयों को पहले प्रकृति संरक्षण के 20 नियमों के लिए चुना गया था और उसके बाद उनके द्वारा 9 और नियमों का चयन किया गया था, इसलिए उन्होंने 'बीसनोई' को 'विश्नोई' नहीं कहा क्योंकि वे अब लिखित रूप में या कई प्रकार की पुस्तकों में जाति के संदर्भ के रूप में लिखे गए हैं। या कबीले। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि धर्म या पंथ परिवर्तन के बाद भारत के जाटों को दूसरी जाति भी कहा जाता था, जैसे - सिख, जसनाथी(नाथ जाट), विश्नोई, दादुपंथी, रामस्नेही, गंवरिया (विक्रेता) आदि। एच.ए.रोज के अनुसार [७]अपने अनुयायियों के मार्गदर्शन के लिए उनके द्वारा दिए गए 29 उपदेश इस प्रकार हैं:-

तीस दिन सूतक - पंच रोज़ रतवंती नारी
सेरा करो स्नान - सिल - संतोख - ऐसी प्यारी:
पाणि - बानी - इधनी - इतन्द लिज्यो छन।
दया - धर्म हिरदे धरो - गरु बताई जानी
चोरी - निंद्य - झूठ - बड़ज्या बड़ न करियो कोए
अमल- तमाकु - भंग - लिल दूर ही त्यागो:
पागल - मुझसे दूर हो जाओ।
अमर रखाओ था - जमानत तनी न बहो
अमाश्या बारात - रूंख लिलो न घर।
होम जप समाध पूजा - बश बैकुंठी पाओ
उन्तीस धर्म की आखिरी गरु बताई सो

जिसकी इस प्रकार व्याख्या की गई है: - "बच्चे के जन्म के 30 दिन बाद और मासिक धर्म के पांच दिनों के बाद एक महिला को खाना नहीं बनाना चाहिए। सुबह स्नान करें। व्यभिचार न करें। संतुष्ट रहें। संयमी और शुद्ध रहें। अपने पीने के पानी को छान लें। अपनी वाणी से सावधान रहें। अपने ईंधन की जांच करें यदि कोई जीवित प्राणी इसके साथ जल जाए। जीवित प्राणियों पर दया करें। अपने मन में कर्तव्य को शिक्षक के रूप में रखें। दूसरों की बुराई मत करो। झूठ मत बोलो। कभी झगड़ा मत करो। अफीम, तंबाकू, भांग और नीले कपड़ों से बचें। आत्माओं और मांस से भागो। देखें कि आपकी बकरियां जीवित हैं (मुसलमानों को नहीं बेची जाती हैं, जो उन्हें भोजन के लिए मार देंगे)। बैल के साथ हल न करें। पहले दिन उपवास रखें अमावस्या। हरे पेड़ों को मत काटो। अग्नि के साथ बलिदान। प्रार्थना करें। ध्यान करें। पूजा करें और स्वर्ग प्राप्त करें। और शिक्षक द्वारा निर्धारित 29 कर्तव्यों में से अंतिम - 'अपने बच्चों को बपतिस्मा दें, यदि आप एक सच्चे बिश्नोई कहलाएंगे '।"[८]

29 नियम

१- प्रतिदिन प्रात:काल स्नान करना
२- ३० दिन जनन – सूतक मानना,
३- ५ दिन रजस्वता स्री को गृह कार्यों से मुक्त रखना,
४- शील का पालन करना,
५- संतोष का धारण करना,
६- बाहरी एवं आन्तरिक शुद्धता एवं पवित्रता को बनाये रखना,
७- तीन समय संध्या उपासना करना,
८- संध्या के समय आरती करना एवं ईश्वर के गुणों के बारे में चिंतन करना,
९- निष्ठा एवं प्रेमपूर्वक हवन करना,
१०- पानी, ईंधन व दूध को छान-बीन कर प्रयोग में लेना,
११- वाणी का संयम करना, दया एवं क्षमा को धारण करना,
१२- चोरी, निंदा, झूठ तथा वाद–विवाद का त्याग करना,
१३- अमावश्या के दिन व्रत करना, १४-विष्णु का भजन करना,
१५- जीवों के प्रति दया का भाव रखना,
१६- हरा वृक्ष नहीं कटवाना,
१७- काम, क्रोध, मोह एवं लोभ का नाश करना,
१८- रसोई अपने हाध से बनाना,
१९- परोपकारी पशुओं की रक्षा करना,
२०- अमल, तम्बाकू, भांग, मद्य तथा नील का त्याग करना,
२१- बैल को बधिया नहीं करवाना

==लेखक ठाकुर देशराज विश्नोई जाट जो बीकानेर, जेसलमेर और मारवाड़ (सांचौर इलाका) में ज्यादा बसते हैं, राजस्थान में 69,873 हैं। बीकानेर, जयपुर, भरतपुर, मारवाड़, किशनगढ़ और मेवाड़ इन रियासतों में हर एक दूसरी जाति से इनकी संख्या अधिक थी। किसी-किसी रियासत में उनकी आबादी कुल आबादी का 23 प्रति सैंकड़ा तक थी।

भरतपुर-राज्य की ड्योढी़, डीग, कुम्हेर और नदवई, बीकानेर की प्रत्येक तहसील जयपुर की मालपुरा, सांभर, शेखावटी, तोरावटी, खेतड़ी और सीकर, किशनगढ़ की अराई, किशनगढ़, रूपनगर और सरवाड़ की विलाड़ा, डिडवाना, जोधपुर, मालानी, मेरता, नागौर, पर्वतसर और सांभर, मेवाड की भीलवाड़ा, कपसिन और रसमिन तहसील और निजामतों में वे मधु-मक्खियों की भांति भरे पड़े हैं।

राजपूतों जिनके कि नाम से यह प्रान्त सम्बोधित होता है, की आबादी कुल 6,33,830 समस्त राजस्थान में थी जो कि कुल आबादी का 56.5 था। विश्नोई जाटों को मिलाकर राजपूताने के जाटों की जो संख्या होती है राजपूत उनमें आधे के करीब होते थे। अर्थात् राजस्थान में जाट राजपूतों से दुगुनी संख्या में बसे हुए थे और उनसे पहले से भी। - जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठ 694


अनुग्रहित पुस्तक

  • A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/B - Bishnoi p. 110[९]

बाहरी लिंक

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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  1. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. ब-211
  2. O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.52, s.n. 1775
  3. Mahendra Singh Arya et al: Adhunik Jat Itihas, p. 268
  4. Mahendra Singh Arya et al: Adhunik Jat Itihas, p. 268
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  7. A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/B, pp.110-112
  8. A glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Province By H.A. Rose Vol II/B, pp.110-112
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