नेहरू तारामंडल, दिल्ली

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तारामंडल का द्वार

नेहरू तारामंडल तीन मूर्ति भवन में वह जगह है जहां जाकर ब्रह्मांड, तारों, सितारों और खगोलीय घटनाओं से जुड़ी जिज्ञासा को शांत कर सकते हैं। भारत के अन्य शहरों के तारामंडलों की अपेक्षा इस तारामंडल के पास बहुत ज्यादा सुविधाएं नहीं हैं तो भी वह लोगों को इस रहस्यमय दुनिया की झलक दिखाता है। नेहरू तारामंडल की कल्पना एवं योजना पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बनायी थी। वे चाहती थीं कि बच्चों में विज्ञान को बढ़ावा दिया जाए।

जवाहर लाल नेहरू का साइंस और बच्चों में रुझान था। इसी को देखते हुए इंदिरा गांधी ने सोचा कि उन्हीं के नाम पर कुछ ऐसा किया जाए जिसमें बच्चों और साइंस दोनों को लाभ हो। सो, इस तरह नेहरू तारामंडल अस्तित्व में आया। तारामंडल जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल फंड के पैसे से बनाया गया था पर आज इसे नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी चलाती है। तारामंडल को बनाने की शुरुआत सन् १९८२ में हुई थी और सन् १९८४ में इसका पहला प्रोग्राम शुरू कर दिया गया था। इसका उद्घाटन भी खुद इंदिरा गांधी ने किया था। पहले शो का नाम था अवर कॉस्मिक हेरिटेज। इस शो में ब्रह्मांड के बनने के बारे में अब तक मान्य सिद्घांत बिग बैंग के जरिए ग्रहों, उपग्रहों और आकाशगंगा के अस्तित्व में आने की कहानी बताई गई थी। तारामंडल के पहले डायरेक्टर कर्नल सिंह थे। उनके बाद डॉ॰ निरुपमा राघवन आईं और आज इसकी डायरेक्टर हैं डॉ॰ एन. रत्नाश्री।

तारामंडल पूर्व

यहां तारामंडल बनने से पहले यहां एक टेनिस कोर्ट हुआ करता था, जहां कभी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उनके भाई संजय गांधी अपनी किशोरावस्था में टेनिस खेला करते थे। तारामंडल की इमारत पत्थरों से बनी है। पत्थरों से इसलिए बनाया गया, ताकि पास ही बनी दूसरी ऐतिहासिक रचनाओं जैसी मुगलकालीन बनावट की झलक इसमें आने से एकरूपता बनी रहे।[१]

तारामंडल का द्वार

सुविधाएं

ब्रह्मांड और ग्रहों-उपग्रहों की गतिविधियों को समझाने के लिए तारामंडल में एक स्काई थियेटर है जिसमें आने वाले स्कूली बच्चों और लोगों को कॉस्मिक शो दिखाया जाता है। थिएटर को खास तौर पर डोम शेप या गुंबदाकार बनाया गया। गुंबदाकार इसलिए बनाया गया है ताकि आकाश का वास्तविक दृश्य पैदा किया जा सके और थिएटर के अंदर बैठकर भी यह लगे आप अपनी छत से या खुले आकाश के नीचे बैठकर ही तारों को निहार रहे हैं। यानी जब हम छत पर बैठकर आकाश को देखते हैं तो जैसा वह दिखाई पड़ता है वैसा ही थिएटर के अंदर का माहौल बनाने की कोशिश की गई है ताकि फिल्म में दिखाए जा रहे विषय को आसानी से समझा जा सके।[१]

स्काई थिएटर में एक शो को 270 लोग एक साथ बैठकर देख सकते हैं। रोजाना यहां चार शो होते हैं। पहला शो सुबह साढ़े ग्यारह बजे होता है। इंगलिश शो सुबह साढ़े ग्यारह और शाम तीन बजे जबकि हिंदी के शो डेढ़ व चार बजे होते हैं। हर शो चालीस से पैंतालिस मिनट तक का होता है। सितारों की कहानी और आकाशीय हलचलों को बयां करते ये शो एक खास प्रोजेक्टर के जरिए दिखाए जाते हैं। जर्मनी में बना यह प्रोजेक्टर तारामंडल की शुरुआत से ही यहां है।

तारामंडल की मशीन

शो में दिखाई जाने वाली फिल्में आकाश में घटित हो रहीं ताजातरीन घटनाओं के अनुसार समय-समय पर बदल दी जाती हैं। बाद में पुराने शो में नई घटनाओं को मिलाकर एक नई फिल्म बना दी जाती है ताकि नई फिल्में आने पर भी दर्शक पुरानी सामग्री से वंचित न हो जाएं। हाल ही में दो नए शो हुए हैं न्यू सोलर सिस्टम में प्लूटो की कहानी खासी दिलचस्प है और दूसरी चंदयान जो सिर्फ सुबह साढ़े ग्यारह बजे इंगलिश भाषा वाले शो में दिखाई जाती है। तारामंडल में एक प्रदर्शनी भी लगाई गई है जिसमें फोटो और पेंटिंग्स के जरिए ग्रहों के बारे में समझाया गया है। तारामंडल के सीनियर आटिर्स्ट राजेश हर्ष का कहना है कि यह प्रदर्शनी की खासियत है कि तस्वीरों के माध्यम से ग्रहों को समझना आसान होता है क्योंकि यह ज्यादा नजदीक होते हैं। स्कूल के बच्चों को तो इससे नये आइडिया डिवेलप करने में भी मदद मिलती है।[१]

तारामंडल में दिखाये जाने वाले नक्षत्र चित्र

तारामंडल के पास अपने दो-तीन टेलीस्कोप भी हैं जिनका इस्तेमाल समय-समय पर घटित होने वाली खगोलीय घटनाओं की जांच और प्रदर्शनी के लिए किया जाता है जैसे सूर्य ग्रहण, चंद ग्रहण, कॉमेट्स की गतिविधियां। आम लोग वहां जाकर टेलीस्कोप के जरिए इन घटनाओं को देख सकते हैं। टीवी के मुकाबले खुद अपनी आंखों से ऐसी घटनाओं को देखना कहीं ज्यादा जीवंत और दूरगामी प्रभाव छोड़ने वाला होता है। यह भी मुफ्त होता। लोगों की रुचि होती है खगोलीय घटनाओं को जानने में इसलिए तारामंडल द्वारा समय-समय पर स्पेशल कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

यहां एक वजन तौलने वाली मशीन भी है जो बताती है कि चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह पर जाएं तो आपका वजन कितना हो जाएगा। तारामंडल का एक आकर्षण है सोयूज टी-10 का ओरिजिनल कैप्सूल। यह वही कैप्सूल है जिसमें पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा अंतरिक्ष यात्रा के बाद वापस आए थे। यह कैप्सूल रूस ने भारत को गिफ्ट कर दिया था। इन शो को देखने के लिए हर रोज यहां तकरीबन एक हजार से ज्यादा लोग फैमिली के साथ आते हैं। भारत के विभिन्न राज्यों से ही नहीं विदेशों से भी यहां लोग आते हैं। हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स भी आई थीं। राकेश शर्मा भी आ चुके हैं।[२]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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  1. नेहरू तारामंडल देखने की खुशी स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। नवभारत टाइम्स, १४ मई, २००८, अभिगमन तिथि: ८ अगस्त, २००९
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