जरीब एवं फीता सर्वेक्षण
ज़रीब एवं फीता सर्वेक्षण में केवल रेखीय मापों के आधार पर किसी भू-भाग का मानचित्र या प्लान बनाया जाता हैं। इस विधी से सर्वेक्षण करते समय किसी क्षेत्र में विभिन्न बिन्दुओं के बीच की क्षैतिज दूरियां तो मापी जाती है, किन्तु रेखाओं के बीच बनने वाले कोण नहीं मापे जाते।
जब किसी लम्बी दूरी को मापने के लिए एक से अधिक बार जरीब या फीते को फैलाना आवश्यक होता है तो प्रत्येक एक जरीब दूरी के पश्चात जरीब के अगले सिरे पर धरातल में एक तीर या कीलें गाड़ देते हैं। इसके दो लाभ होते हैं :
- (१) अगली दूरी को मापने के लिए जरीब के पिछले सिरे को तीर द्वारा इंगित धरातल के सही बिंदु पर पकड़ने में मदद मिलती है।
- (२) सर्वेक्षण के उपरान्त धरातल में गाड़े गए तीरों की कुल संख्या से यह ज्ञात हो जाता है कि जरीब व फीता को धरातल पर कितनी बार फैलाया गया है। सामान्य आकार वाले क्षेत्रों के सर्वेक्षण के लिए प्रायः 10 या 12 तीर पर्याप्त होते हैं। यह तीर लोहे या इस्पात की पीतल पतली छड़ के बने होते हैं तथा प्रत्येक तीर की लम्बाई 25 से 30 सेंटीमीटर के मध्य होती है। तीर का ऊपरी सिरा घुण्डी की आकृति में मुड़ा होता है। तथा निचला सिरा नोंकदार होता है जिससे इसे सफलतापूर्वक जमीन में गाड़ा जा सके।
सर्वेक्षण के प्रमुख उकपरण
- ज़रीब
- फीता
- ज़रीब की कीलें (arrows) (गाड़ने के लिए)
- सर्वेक्षण दण्ड
- गुनिया
- दिशा सूचक
- साहुलपिण्ड
जरीब सर्वेक्षण की शब्दावली
सर्वेक्षण स्टेशन
ये सर्वेक्षण क्षेत्र में स्थापित किए गए नियंत्रण बिंदु (Control Points) होते हैं, जिनकी मध्य दूरी ज़रीब / फीते द्वारा नापी जाती है। यह स्टेशन अगल-बगल के स्टेशनों से दिखाई पडने चाहिए। क्षेत्र में तथा नक्शे पर इन्हें अंग्रेजी वर्णमाला A, B, C...... से प्रदर्शित किया जाता है ।
जब दो मुख्य स्टेशनों के बीच, आवश्यक होने पर, कोई अन्य स्टेशन स्थापित किया जाता है तो उसे उप स्टेशन (Subsidiary Station) या संयोग स्टेशन (Tie Station) कहते हैं । इसे T1,T2, T3 आदि से प्रदर्शित किया जाता है। सर्वेक्षण स्टेशन पर एक या इससे अधिक सर्वेक्षण रेखाएं आकर मिलती हैं ।
सर्वेक्षण रेखाएं
दो स्टेशनों को जोड़ने वाली सीधी रेखा को 'सर्वेक्षण रेखा' (Survey Lines) कहते हैं। इसे ज़रीब रेखा (Chain line) भी कहते हैं। ज़रीब सर्वेक्षण में इसी का नाप किया जाता है। वास्तव में भूमि पर यह कोई रेखा नहीं होती है, यह तो दिशा का भान कराने के लिए मान ली जाती है। सर्वेक्षण रेखाएं प्रकार की दृष्टि से निम्न प्रकार की होती हैं -
आधार रेखा (Base line)
यह सर्वेक्षण रेखाओं के ढांचे में सबसे लंबी रेखा होती है, जिस पर सर्वेक्षण कार्य का पूरा ढांचा आधारित रहता है । यह सर्वेक्षण क्षेत्र के मध्य में डाली जाती है । क्योंकि संपूर्ण सर्वेक्षण कार्य की शुद्धता इस रेखा पर निर्भर करती है, अतः इसकी बड़ी सावधानी से दो अथवा तीन बार पैमाइश कर लेनी चाहिए। बड़े क्षेत्रों में दो आधार रेखाएं भी डाली जा सकती हैं, जो एक दूसरे को क्रॉस × की भांति काटनी चाहिए ।
मुख्य रेखा (Main line)
यह रेखाएं सर्वेक्षण क्षेत्र की सीमाओं के साथ डाली जाती हैं और मुख्य सर्वेक्षण स्टेशनों को जोड़ती है । इस प्रकार यह एक ढांचा बनाती हैं । मुख्य रेखाओं की पैमाइश भी ध्यान से करनी चाहिए । मुख्य रेखाओं को इसकी अगल-बगल के स्टेशनो के नामित अक्षरों A-B, B-C आदि से प्रदर्शित किया जाता है ।
संयोग रेखा (Tie line)
संयोग स्टेशनों (उप स्टेशनों ) को जोड़ने वाली रेखा, संयोग रेखा कहलाती है। यह रेखा क्षेत्र के भीतरी भागों को, जो मुख्य रेखा से दूर पड़ते हैं, उनकी स्थिति ज्ञात करने तथा विस्तृत विवरण लेने के लिए डाली जाती है। संयोग रेखा को संयोग स्टेशन के नामित अक्षरों, T1 - T2 आदि से पहचाना जाता है।
जांच रेखा (Check line)
सर्वेक्षण कार्य के ढांचे की शुद्धता तथा आरेखन की यथार्थता की जांच करने के लिए जो रेखा विशेष रूप से क्षेत्र में डाली जाती है, जांच रेखा कहलाती है । यह त्रिभुज ढांचे के शीर्ष से निकाली जाती है । आरेखन के समय यदि नक्शे पर इसकी लंबाई, क्षेत्र की लंबाई से मेल खा जाती है, तो सभी सर्वेक्षण रेखाओं की शुद्धता प्रमाणित हो जाती है । आवश्यक होने पर क्षेत्र में एक से अधिक जांच रेखाएं भी डाली जाती है ।
खसके (Offsets)
सर्वेक्षण रेखाओं के दोनों ओर ( पार्श्व मे ) स्थित बिन्दुओ व आकृतियों की स्थिति ज्ञात करने के लिए, सर्वेक्षण रेखा से उनकी दूरी नापी जाती है। इस प्रकार पार्श्व दूरी लेने की क्रिया को खसका कहते हैं।
खसके ज़रीब रेखा के समकोण अथवा तिरछे लिए जा सकते हैं। समकोण खसका बेहतर रहता है, क्योंकि एक ही समकोणक माप से बिंदु की स्थिति का निर्धारण किया जा सकता है जबकि तिरछे खसको की न्यूनतम संख्या दो होनी चाहिए।
जरीबवाला (Chain Man)
ज़रीब द्वारा मापन लिए दो व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है। एक आदमी ज़रीब का अगला हैंडल थाम कर आगे आगे चलता है और दूसरा व्यक्ति जरीब का पिछला हैंडल पकड़कर उसका अनुसरण करता है। अगले जरीवाला को अग्रचर या अगुआ (Leader) तथा पिछले जरीबवाला को अनुचर (Follower) कहते है। पछुआ को अगुआ की अपेक्षा अधिक अनुभवी होना आवश्यक है, क्योंकि उसी के निर्देशों के अनुसार अगुआ को कार्य करना होता है।
सर्वेक्षण कार्य मे प्रयुक्त ज़रीब के प्रकार
- जरीबें
- (१) इंजीनियरी ज़रीब या 100 फुटी ज़रीब (Engineer chain),
- (२) गंटर जरीब या सर्वेक्षक चेन (Gunter chain)
- (३) राजस्व ज़रीब या पटवारी चेन (Revenue chain)
- (४) मीटरी ज़रीब (Meter chain)
- (५) पत्ती ज़रीब या इस्पातीय बैंड (Steel band)
- फीते (Tape)
- (१) सूती फीता (Cloth or linen Tape)
- (२) धात्विक फीता या तार बुना फीता (Metallic Tape)
- (३) इस्पाती फीता (Steel Tape)
- (४) इन्वार फीता (Invar Tape)