सर्वेक्षण पट्ट

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सर्वेक्षण पट्ट की सहायता से सर्वेक्षण में लगा हुआ एक सर्वेक्षक

सर्वेक्षण पट्ट या 'प्लेन टेबुल' (plane table ; १८३० के पहले 'plain table') सर्वेक्षण में उपयोगी एक उपकरण है। सर्वेक्षण पट्ट एक ठोस समतल प्रदान करता है जिस पर ड्राइंग, चार्ट और मानचित्र बनाए जाते हैं।

प्लेन टेबुल सर्वेक्षण

प्लेनटेबुल सर्वेक्षण (Planetable Survey) सर्वेक्षण की बड़ी अनोखी विधि है। सर्वेक्षण की अन्य अधिकांश विधियों में पृथ्वी की सतह पर बिंदुओं की माप लेकर, उनका अलग से परिकलन एवं आलेखन (plotting) किया जाता है। सर्वेक्षण हेतु विस्तृत क्षेत्र में प्रत्येक वांछित बिंदु की माप लेकर आलेखन करना आसध्य परिश्रमवाला ही नहीं असंभव भी है। प्लेनटेबुल सर्वेक्षण में यही असाध्य अध्यवसाय अत्यंत साध्य बन गया है। प्लेनटेबुल सर्वेक्षण की क्रिया ऐसी है कि इसमें पृथ्वी की सतह पर बिना वास्तविक माप लिए बिंदुओं की सापेक्ष स्थितियों का सीधा और सही आलेखन हो सकता है। यहीं इसकी विशेषता है। इसके अतिरिक्त प्रयुक्त उपकरण सस्ते और सरल एवं कार्यवाहक सामान्य शिक्षाप्राप्त सर्वेक्षक हो सकता है। इन आकर्षक गुणों के कारण सभी देशों में इस विधि का व्यापक रूप से प्रयोग होता है।

इस कार्य में निम्नलिखित उपकरण प्रयुक्त होते हैं। (१) प्लेनटेबुल या पटल, (२) तिपाई (stand), (३) दर्श रेखी (sight rule), (४) स्पिरिट लेबिल तथा तलमापी (spirit level) तथा (५) चुंबकीय दिक्सूचक (magnetic compass)।

उपकरणों का विवरण

प्लेनटेबुल बनाने के लिए भली प्रकार मौसम के प्रभाव से पकी लकड़ी १२ से १५ सेमी. चौड़ी और दो से तीन सेंमी. मोटी पट्टियों को भली प्रकार जोड़कर ७५ x ६० या ६० x ५० वर्ग सेंमी. का आयताकार प्लेनटेबुल तख्ता तैयार किया जाता है। इसकी एक सतह भली प्रकार छीलकर और रँदकर एकदम समतल कर दी जाती है। दूसरी ओर प्लेनटेबुल के केंद्र पर धातु की एक चकती लगा दी जाती है, जिसमें तिपाई पर कसने के लिए चूड़ियाँ कटी रहती हैं।

तिपाई में तीन पैर पेचों द्वारा सिर से जुड़े रहते हैं। पेच ढीले करके पैर खिसकाए जा सकते हैं और तिपाई का सिर एकदम क्षैतिज किया जा सकता है। तिपाई के सिर के बीचोबीच बने छेद में प्लेनटेबुल कसा जा सकता है। पैरों को खिसकाकर प्लेनटेबुल को भी स्पिरिट लेबिल से देखकर क्षैतिज किया जा सकता है। प्लेनटेबुल को कसनेवाले पेच को ढीला करके तख्ते को क्षैतिज तल में घुमाया जा सकता है और मनचाही स्थिति में कसकर स्थिर किया जा सकता है।

दर्शरेखी (sight rule)६० या ७५ सेंमी. लंबी, एक सेंमी. मोटी और लगभग पाँच सेंमी. चौड़ी धातु या लकड़ी का बना होता है। इसके दोनों लंबे किनारे एकदम सीधे और एक ओर को ढालू होते हैं, जिससे सीधी और सही रेखा खींचना संभव हो सके। दर्शरेखी के दोनों सिरों पर दो दृश्य-वेधिकाएँ या पत्तियाँ (sight vanes) लगी रहती हैं। एक पत्ती के बीच में एक झिरी (slit) कटी होती है, जिसमें से झाँककर सर्वेक्षक अपने लक्ष्य को देखता है और दूसरी पत्ती के बीच एक धागा (thread) पिरोकर दोनों पत्तियों के सिरों पर तान देता है। एक पत्ती में कटी झिरी, दूसरे में पिरोया और पत्तियों के सिरों पर तना धागा इस प्रकार रखे जाते हैं कि वह एक ही समतल में पड़ें। जब दर्शरेखी क्षैतिज पटल पर रखा हो तो झिरी और धागा पटल के तल पर लंब होंगे। यदि झिरी से झाँककर धागे से कटता कोई भी दूर का बिंदु या वस्तु देखी जाए तो दर्शरेखी प्रेक्षक की स्थिति से उस बिंदु या वस्तु की दिशा बताएगा। यदि प्लेनटेबुल पर कागज मढ़ा हो और उसपर प्रेक्षक की स्थिति चिन्हित हा, तो उस समय दर्शरेखी का एकरेखी किनारा प्रेक्षक की कागज पर लगी स्थिति को स्पर्श करता हुआ रख जाए और झिरी से होकर धागे पर कटती वस्तु या बिंदु देखकर दर्शरेखी के स्पर्शी किनारे पर रेखा खींच दी जाए तो वह प्रेक्षक की स्थिति से उस वस्तु या बिंदु की दिशारेखा होगी, जिसे किरण (ray) कहते हैं। यही क्रिया किसी दूसरी स्थिति से दोहराने पर एक ही बिंदु की दो स्थितियों से दो किरणें आपस में कटकर प्रतिच्छेद बिंदु (point of intersection) पर उसकी सही सापेक्ष स्थिति दे देंगी।

चुंबकीय दिक्सूचक एक आयताकार, काच के ढक्कनवाले, पीतल के वक्स में चुंबक की एक सुई को एक कीली पर आलंबित करके बनाते हैं। प्रयोग न होने पर सुई को आलंब से उठाकर स्थिर करने का उपाय भी रहता है। इससे प्लेनटेबुल को प्रत्येक स्थिति पर सही दिशाओं में रखने में सहायता मिलती है।

स्पिरिट लेविल

काच की नली में हलका द्रव भरकर दोनों ओर से ऐसे बंद किया जाता है कि उसके अंदर वायु का एक बुलबुला बना रहे। नली का आकार हलका वक्र लिए होता है। इसे धातु की एक चौकोर नली में ऐसे दृढ़ बंद करते हैं कि वक्र नली का उभरा भाग धातु की नली की एक सतह पर कटे छेद से दिखाई पड़ता रहे। इसे स्पिरिट लेविल या तलमापी कहते हैं। यदि स्पिरिट लेविल तिपाई पर कसे चित्रपटल पर रखा जाए और तिपाई के पैर ऐसे जमा दिए जाएँ कि तलमापी को किसी भी दो समकोण दिशाओं में प्लेनटेबुल पर रखने से उसका बुलबुला केंद्रित (centred) रहे तो प्लेनटेबुल क्षैतिज हो जाता है। प्लेनटेबुल क्षैतिज न होने से बिंदुओं की खींची गई किरणें प्रधानत: बहुत ऊँचे या नीचे में स्थित होने से गलत होंगी। अत: बिंदुओं की सही सापेक्ष स्थितियाँ प्राप्त नहीं होंगी।

कार्यविधि

वर्गांकित कागज पर सर्वेक्षण हेतु क्षेत्र में स्थित, ऐसे विंदुओं का, जिनके नियामक ज्ञात हों, वांछित पैमाने पर आलेखन कर दिया जाता है। यह कागज प्लेनटेबुल पर मढ़ दिया जाता है। कागज मढ़ने के कई तरीके हैं। यदि सर्वेक्षण कार्य बहुत थोड़े समय का हो तो कागज बटन पिनों से तख्ते पर मढ़ दिया जाता है। यदि एक या दो सप्ताह का सर्वेक्षण हो, जिसमें कागज एकदम स्थिर रहना आवश्यक हो, तो कागज के चारों किनारों पर एक सबल पतले कागज की झालर या मगजी लगाकर, उस झालर के बढ़े भाग को पटल पर दृढ़ता से चिपका देते हैं। लंबी अवधि तक चलनेवाले सर्वेक्षण, या जिसमें कागज का पूर्णतया स्थिर रहना आवश्यक हो उसमें, कागज को पटल से लगभग १५ सेंमी. अधिक लंबे और चौड़े कपड़े पर चिपका देते हैं। फिर कपड़ा प्लेनटेबुल की सतह पर दृढ़ता से खींचकर चिपका दिया जाता है। जब कपड़े पर चिपका कागज प्लेनटेबुल पर लगाते हैं तो कागज पर वर्गांकन और नियंत्रण विंदुओं का आलेखन कागज को पटल पर मढ़ने के बाद करते हैं।

तदुपरांत जिस क्षेत्र में सर्वेक्षण करना होता है, सर्वेक्षक उसमें स्थित एक ऐसे नियंत्रण विंदु पर प्लेनटेबुल ले जाता है जो उसके कागज पर अंकित हो। ऐसे विंदु को स्टेशन कहते हैं। स्टेशन के ऊपर तिपाई को उसके पैर फैलाकर लगभग क्षैतिज रखा जाता है और उसपर पटल कस दिया जाता है। उसपर तलमापी को दो क्रमानुगत समकोण स्थितियों में रखकर तिपाई के पैरों को ऐसे जमाया जाता है कि बुलबुला केंद्रित रहे। इससे प्लेनटेबुल क्षैतिज हो जाता है। इसके बाद दिक्स्थापन किया जाता है।

दिक्स्थापन प्लेनटेबुल की उस दशा को कहते हैं जब प्लेनटेबुल के चित्र पर अंकित नियंत्रण विंदुओं को कागज पर जोड़नेवाली रेखाएँ उन्हीं विंदुओं को पृथ्वी पर जोड़नेवाली रेखाओं के समानांतर हो जाएँ। यह दशा प्राप्त करने के लिए सर्वेक्षक निम्न क्रिया करता है : कल्पना करें, सर्वेक्षक भूमि पर बने A विंदु पर खड़ा है जिसकी कागज पर लगी a स्थित है। इसी प्रकार एक दूसरे विंदु की भौमिक और आलेखित स्थितियाँ क्रमश: B और b हों, तो सर्वेक्षक अपने दर्शरेखी का एक किनारा ऐसे रखता है कि (i) वह a और b पर स्पर्शी रहे, (ii) धागेवाली लक्ष्य-वेधिका b की ओर और झिरी वाली लक्ष्य-वेधिका a की ओर रहे। तब वह प्लेनटेबुल को तिपाई पर ऐसे घुमाता है कि दर्शरेखी की झिरी से B बिंदु धागे पर कटता दिखाई दे। ऐसी दशा प्राप्त होने पर वह प्लेनटेबुल कस देता है। इस प्रकार पटलचित्र अपनी सही की दिशाओं में स्थापित हो जाता है। इस दशा में यदि दर्शरेखी निर्देशक (fiducial) धार सर्वेक्षक की स्थिति a और किसी भी दूसरे आलेखित विंदु को स्पर्श करती रखी जाए तो झिरी से देखने पर देखे जानेवाले विंदु की भौमिक स्थिति धागे पर कटेगी। यह स्मरणीय है कि झिरी सदैव प्रेक्षक की ओर तथा धागे वाली दृश्यवेधिका देखे गए विंदु की ओर रहेगी।

उपर्युक्त दशा में पटलचित्र लाकर, सर्वेक्षक अपनी आलेखित स्थिति अ विंदु पर अपनी पेंसिल के सहारे दर्शरेखी की धार विंदु के स्पर्शी रखकर, अन्य विंदुओं को झिरी से आगेवाले झरोखे में धागे पर कटता देखता है और उनकी ओर किरणें खींचता है। ऐसी किरणें वह उन सभी विंदुओं की ओर खींचता है जिन्हें वह मानचित्र पर दर्शाना चाहता है, जैसे गाँव, नदी, सड़कों आदि के मोड़ और संगम। मोड़ और संगम विंदु ही इसलिए नेता है कि ऋजु भाग तो वह विंदु मिलाती रेखाओं से भी बना सकत है। यही क्रिया वह दूसरे स्टेशनों पर दोहरात है। इससे किन्हीं भी दो स्टेधनों से दी गई एक ही बिंदु की किरणें आपस में कटकर, प्रतिच्छेदन पर विंदु की सही सापेक्ष स्थिति दे देंगी। यह स्थितियाँ उसी पैमाने पर होंगी जिसपर चाँदों का आलेखन होगा। यह पटलचित्रण की प्रतिच्छेद विधि (method of intersection) कहलाती है। यदि किरणें खींचकर, उन्हीं विंदुओं की क्रमश: दूरी नापकर, किरण पर पैमाने से काट ली जाए तो भी सही विंदु प्राप्त हो जाता है। इसे सर्वेक्षण की विकिरण (radiation) विधि कहते हैं। किसी नदी, नहर, मार्ग आदि रेखक चीजों के किनारे स्थित एक स्टेशन से दूर स्थित अदृश्य स्टेशन तक क्रमानुगत किरणें देकर दूरी नापकर, विंदु लगाते हुए उनका सर्वेक्षण हो तो उसे चंक्रमण (traverse) सर्वेक्षण कहते हैं।

कटे विंदुओं को रेखाओं द्वारा मिलाकर सर्वेक्षक वस्तुओं की आकृतियाँ बना देता है। मानचित्र को देखकर भूमि पर और भूमि से मानचित्र पर बनी वस्तुओं को पहचानने के लिए सांकेतिक चिह्नों का वह प्रयोग करता है, जिससे सामान आकृतियों में भी विभेदन हो सके। उदाहरणार्थ, नहर, सड़क, रेलमार्ग आदि के स्थान पर केवल रेखाएँ बनेंगी, किंतु सर्वेक्षक उन्हें भिन्न रंगों और ढंगों से खींचकर दूसरों को समझाने में समर्थ होता है।

विंदुओं के बीच की सापेक्ष ऊँचाइयाँ सर्वेक्षक समोच्च (contour) रेखाओं से प्रदर्शित करता है। इसके लिए पटलचित्रण की क्रिया सर्वोत्तम है। भूमि सामने है और मापन, आलेखन और चित्रण क्रियाएँ साथ साथ चलती जाती हैं। सापेक्ष ऊँचाइयाँ निकालने के लिए नतिमापी (clinometer) का प्रयोग होता है। इस यंत्र से प्रेक्षक अपनी स्थिति पर किसी भी दूसरे विंदु की ऊँचाई में भिन्नता के कारण बने कोण (x) का सीधा स्पर्शज्या (tangent) पढ़ सकता है। पटलचित्र से उस विंदु की अपने से दूरी (d) निकाल सकता है और तब उस विंदु की सापेक्ष ऊँचाई (d tan x) निकाल लेता है। इस प्रकार सभी विंदुओं की सापेक्ष ऊँचाइयाँ ज्ञात कर लेता है। सर्वेक्षक की भिन्न-भिन्न स्थितियों से निकाली सापेक्ष ऊँचाइयों में एकरूपता रखने के लिए ऊँचाइयाँ किसी आधारतल से नापी जाती हैं। यह आधारतल सामान्यत: ज्वार भाटे का ध्यान रखकर नापे गए समुद्र का औसत तल माना जाता है। इस तल से समान ऊँचाई पर स्थित विंदुओं को जोड़ती रेखा को समोच्च रेखा कहते हैं। इसे खींचकर सर्वेक्षक ऊँचाई का आभास कराता है।

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