चकेरी सवाई माधोपुर

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गाँव
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देशसाँचा:flag
राज्यराजस्थान
जिलातहसीलसवाई माधोपुर
पंचायत समितिजिला परिषदसवाई माधोपुर
विधानसभा क्षेत्रसवाई माधोपुर
लोकसभा क्षेत्रटोंक-सवाई माधोपुर
शासन
 • प्रणालीपंचायती राज
 • सभाग्राम पंचायत
 • सरपंचरामचीज मीना
 • उप सरपंचकमलेश मीना
जनसंख्या (2011)
 • कुल३,४४१
 • घनत्वसाँचा:infobox settlement/densdisp
समय मण्डलIST (यूटीसी+5:30)
पिन322034
दूरभाष07462
वाहन पंजीकरणRJ 25

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चकेरी राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले का एक छोटा सा किन्तु महत्वपूर्ण गाँव है। चकेरी, सवाई माधोपुर जिले मे दिल्ली मुंबई रेलवे ट्रैक पर स्थित्त एक गावं हैं जो राजस्थान के पूर्व क्षेत्र की सांस्कृतिक,राजनीतिक, सामाजिक और खेल कूद की गतिविधियों का केंद्र है और क्षेत्रीय सहयोग, एकता, सद्भाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया हैं।

गांव में कई जातियों के लोग रहते हैं ,कहावत हैं की सातो जातिया रहती हैं। मीणा जाति के लोग बहुसंख्यक हैं। दूसरी जातियों में नाथ, ब्राम्हण, जैन, बैरवा, धोबी, गवारिया, नाई, चमार, रैगर, हरिजन, कोळी, गुर्जर, खटीक, राव व राजपूत आदि शामिल हैं। सभी लोग हिन्दू धर्म को मानने वाले हैं। अल्प मात्रा में लोग मुस्लिम धर्म को भी मानते हैं। सभी लोग आपस में मिलजुलकर रहते हैं और एक दूसरे के सुख -दुःख में शरीक होते हैं।

भारत की 2011 की जनगडना के अनुसार इस गाव की आबादी 3441 थी, कुल घरो की संख्या 695 थी[१]

क्रमांक विवरण कुल पुरुष स्त्री
1 कुल जनसंख्या 3441 1733 1708
2 SC जनसंख्या 623 311 312
3 ST जनसंख्या 2005 1025 980
4 साक्षर 1703 1124 579
5 असाक्षर 1738 609 1129

स्थिति

चकेरी , सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय से २० किलोमीटर दूर हैं और ये यहाँ से अच्छी तरह से सड़क और रेलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ हैं।
यह डेल्ही मुंबई रेलमार्ग पर मखोली रेलवे स्टेशन के सानिंध्य मे बसा हुआ गांव हैं , जहाँ पर शाम सुबह और देर रात को गाड़िया मिल जाती हैं।
सड़क परिवहन के लिए यहाँ पर जीपे मिल जाती हैं ये पर केवल शाम और सुबह ही मिल पाती हैं।

प्रशासनिक व्यवस्था

चकेरी सवाई माधोपुर तहसील ,पंचायत समिति ,जिला परिषद ,विधानसभा क्षेत्र के अधीन आता हैं ,लोकसभा के लिए टोंक-सवाई माधोपुर निर्वाचन क्षेत्र के तहत आता हैं। चकेरी मैं ग्राम पँचायत हैं।ग्राम पँचायत के चुनाव भी चकेरी में नियमित होते रहे हैं और लोग अपने घरेलु मुद्दो को लेकर अपने प्रतिनिधि चुनते रहे हैं।

राजनितिक व्यवस्था

चकेरी का राजनितिक तौर पर काफी महत्त्व हैं। जब भी कोई बड़ा चुनाव होता हैं तो चकेरी में जरूर कोई न कोई बड़ी सभाए जरूर होती हैं ,इसके लिए कारण यह हैं की एक तो इसकी स्थिति काफी गाँवो को जोड़ती हैं। दूसरा चकेरी दूसरे गाँवो के राजनितिक चिंतन को प्रभावित करता आया हैं। चकेरी के लोग राजनितिक तौर पर काफी जागरूक है। वे सभी चुनावो को गंभीरता से लेते हैं।यहाँ का राजनितिक ट्रेंड चुनावों की प्रवृति पर निर्भर करता हैं जिसे हम इस तरीके से समझ सकते हैं।


गतिविधिया

खेल कूद

  1. रणथम्भोर क्रिकेट प्रतियोगिता हर साल , बर्ष के अंत में करायी जाती हैं , और लगभग बीस पच्चीस सालो से इसका निरंतर आयोजन हो रहा हैं। इस प्रतियोगिता में आस पास के गाँवो की टीम तो भाग लेती ही हैं साथ ही कई अन्य टीमें भी कई जानकारियों के कारण आती हैं , इस से आपसी भाई चारे की एक संगठित भावना देखने को मिलती हैं
  2. कुश्ती टूर्नामेंट भी गांव का एक नियमित सालाना आयोजन हैं, इसमे भाग लेने के लिए पुरे पूर्वी राजस्थान के पहलवान आते हैं , उनके साथ आने वाले लोगो और देखने वाले लोगो के इकट्ठे होने से एक काफी बंधुत्व वाला माहौल बनता हैं।
  3. ग्रामीण खेल का आयोजन[२] भी एक बार गांव में कराया गया था, जिसमे सारे खेल (कबड्डी,वॉलीबॉल,फुटबॉल, खो-खो आदि) में भाग लेने के लिए कई गाँवो ने भाग लिया था। पर उसके बाद से इनका आयोजन बंद हो गया। इन्हे शुरू कराने के लिए गांव वालो और ग्राम पंचायत को दोबारा पहल करने की आवश्यकता हैं।

सांस्कृतिक

सांस्कृतिक दृष्टि से चकेरी सवाई माधोपुर सूबे में एक अलग ही पहचान रखता हैं , ये कई सांस्कृतिक गतिविधियों का एक संगठित केंद्र हैं। यहाँ होने वाली विभिन्न गतिविधिया निम्न हैं -

  1. कन्हैया गीत
    कन्हैया गीत चकेरी को जिले में एक अलग ही पहचान देते हैं , यहाँ के लोग बिना किसी भेदभाव के मिलकर ये गीत गाते हैं। गांव में कई मौको पर इनका आयोजन किया जाता हैं[३] जिनमे दूसरे गाँवो की टीम शामिल होती हैं और अपनी संस्कृति की जीवंतता का परिचय देती हैं , इनसे गाँवो के बीच में बहुपक्षीय रिश्तो में मजबूतता आती हैं।
    चकेरी में कन्हैया गीतों के प्रति रूचि का अंदाजा इससे लगाया जा सकता हैं की गांव में एक कन्हैया दंगल स्टेडियम (मैदान ) तक का निर्माण कर लिया गया हैं। जिसमे दर्शको को आरामदायक तरीके से देखने की सुविधा मिलती हैं , जो इस प्रकार का एकमात्र मैदान हैं , उसमे प्रकाश , पानी ,छाया , वाहन पार्किंग , महिला दर्शको के लिए देखने की अद्भुत सुविधा हैं। इसका निर्माण केंद्रीय मंत्री नमो नारायण मीणा ने अपने सांसदीय कोटे से मंदिर के पास करवाया था।
    यहाँ के लोग कई धार्मिक प्रसंगो के ऊपर कन्हैया गीत गाते हैं ,साथ ही वर्तमान में नौजवानो की इनमे बढ़ती रूचि के कारण समकालीन बिषयों पर भी गीत गाये जाते हैं। यहाँ के लोगो ने पूर्वी राजस्थान के कई जिलो के कई गाँवो में प्रस्तुतियाँ दी हैं , जिनमे सर्वाधिक उल्लेखनीय उपलब्धि ललित कला केंद्र, जयपुर की प्रस्तुति हैं।
    इन गीतों के प्रसार में मेडिया स्वर्गीय रामसहाय मीणा [ भूतपूर्व सरपंच ], स्वर्गीय देवी लाल मीणा , रामकरण मीणा, मेघराज मीणा ने महत्वपूर्ण योगदान दिया हैं , वर्तमान में मेडिया धनफूल मीणा और तुलसीराम मीणा इनके प्रसार में ग्रामीणो की मदद से उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं।
    गांव के कई बुद्दिजीवी लोग भी इनके आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। साथ ही इनके आयोजन के दौरान स्थानीय राजनितिक हस्तियो को बुलाने से इनका राजनितिक महत्व भी बढ़ता जा रहा हैं।

धार्मिक

गांव में विभिन्न समयो पर कई प्रकार की धार्मिक गतिविधिया होती रहती हैं।

  1. फेरी लगाना व हरि-कीर्तन गांव का एक नियमित कार्यक्रम हैं। गांव के लोग रोजाना प्रात:काल में जल्दी उठकर के पुरे गांव में फेरी लगाते हैं, इसकी शुरुवात हनुमानजी के मंदिर से होती हैं। दूसरे कई गाँवो और शहरो में यह कार्यक्रम किन्ही विशेष अवसरों पर ही होता हैं, पर चकेरी में यह लोगो की धार्मिक सक्रियता के कारण नियमित तौर पर दैनिक होता हैं। गांव के कई लोग फेरी वालो की आवाज़ सुनकर उठते हैं और अपने कामकाज को जल्दी ही शुरू कर पाते हैं।
  2. भजन भी गांव में नियमित तौर पर होते हैं ,ये सायंकाल के समय हनुमानजी के मंदिर के प्रांगण में होते हैं। इनकी ख़ास बात यह हैं की इनमे बच्चे भाग लेते हैं। शाम होते ही पुरे गांव के बच्चे हनुमानजी के मंदिर में अगरबत्ती या दीपक जलाने आते हैं और भजन होने के बाद जाते हैं। इससे पता चलता हैं की गांव में बच्चो को एक अच्छा संस्कार बचपन से ही सीखा दिया जाता हैं।
  3. कृष्ण जन्मोत्सव हर साल कृष्ण जन्माष्टमी पर गांव के मंदिरो में आयोजित किया जाता हैं। लोग व्रत करते हैं। इस दौरान मंदिरो में रात को भजन-कीर्तन होते हैं। प्रसाद बटता हैं और तब लोग व्रत खोलते हैं। मंदिरो में कृष्ण जन्म की झाकी बनायी जाती हैं। कभी कभार मटकी फोड़ने का कार्यक्रम बच्चो के लिए रखा जाता हैं।
  4. ठाकुर जी निकालना यह कार्यक्रम भी सालाना नियमित रूप से होता हैं। इसमें मंदिरो से भगवान की मूर्तियों की झाकी पुरे धार्मिक हर्षोल्लास से निकाली जाती हैं, लोग भजन गाते हुए आगे चलते हैं, शंख बजाया जाता हैं। ठाकुरजीयो को किसी सार्वजनिक जलाशय पर ले जाय सामूहिक जाता हैं। पुरे गांव के स्त्री,पुरुष,बच्चे सभी इसमें भाग लेते हैं। लोग इस दौरान व्रत भी रखते हैं।
  5. गणेश चतुर्थी पर भी गांव में एक अलग ही उत्सुक माहौल रहता हैं। रणथम्भौर दुर्ग में स्थित त्रिनेत्र गणेशजी के मंदिर में मेला लगता हैं। पूर्वी राजस्थान के विभिन्न हिस्सों से लोग पैदल यात्रा करते हुए वहां पहुँचते हैं, पैदल यात्रियों की सेवा करने के लिए गांव में शिविर लगाया जाता हैं, उनके रात्रि विश्राम, पेयजल,खाने और चाय-नाश्ते की व्यवस्था ग्रामीणो के सहयोग से की जाते है। गांव के लोग चतुर्थी से एक दिन पहले गणेशजी की झांकी पुरे गांव से होकर निकालते हैं , जिसको रणथम्भौर ले जाया जाता हैं और वहां स्थित सरोवरों में विसर्जित किया जाता हैं। गांव के लोग भी झांकी के साथ नाचते-गाते पैदल यात्रा करते हैं।
  6. होलिका दहन गांव में हर साल होली के दिन होळी बळया नामक जगह ,जो की गांव के बीचोबीच हैं ,पर होता हैं। इसके लिए कई दिनों पूर्व होली का डाण्डा गांव के पंच-पटेलों द्वारा गाढ़ दिया जाता हैं। इसके बाद गांव के लोग वहां पर दहन की सामग्री इकट्ठी करते हैं और फिर होली के दिन शाम के समय मुहूर्त के हिसाब से दहन किया जाता हैं। लोग इस आग में गेहूं की बालियों को सेककर खाते हैं, माना जाता हैं की उनको खाने से मसूड़ों में दर्द की समस्या नही होती हैं। इस दौरान काफी लोग वहां पर इकट्टा हो जाते हैं।रात को युवा वही इकट्टा होकर कबड्डी खेलते हैं। दूसरे दिन धुलंडी का होता हैं। उस दिन पुरे गांव का माहौल रंगमय रहता हैं।
  7. गोवर्धन पूजा ऐसा कार्यक्रम हैं जिसे लोग सामूहिक तौर पर मनाते हैं। गांव की महिलाये सुबह जल्दी ही मंदिर के आगे गोबर इकट्टा कर देती हैं। शाम को गोवर्धन बनाया जाता हैं और प्रत्येक घर का कोई न कोई आदमी पूजन के लिए आता हैं। दूसरे लोग भी वहां इकट्टा होकर पटाखे चलाते हैं।

सामाजीक व आर्थिक स्थिति

चकेरी की सामाजिक स्थिति कई गाँवो के लिए प्रेरण्यस्त्रोत रही हैं। कई प्रकार के सामजिक हालातो पर चकेरी का उदहारण दिया जाता हैं। चकेरी के लोग जागरूकता के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रो मैं आगे बढ़े हैं और गांव का नाम रोशन कर रहे हैं।

गांव में कई जातियों के लोग रहते हैं ,कहावत हैं की सातो जातिया रहती हैं। मीणा जाति के लोग बहुसंख्यक हैं। दूसरी जातियों में नाथ, ब्राम्हण, जैन, बैरवा, धोबी, गवारिया, नाई, चमार, रैगर, हरिजन, कोळी, गुर्जर, खटीक, राव व राजपूत आदि शामिल हैं। सभी लोग हिन्दू धर्म को मानने वाले हैं। अल्प मात्रा में लोग मुस्लिम धर्म को भी मानते हैं।
मीणाओं का प्राथमिक कार्य खेती-बाड़ी और पशुपालन हैं। मीणाओं के अलावा नाथ, बैरवा, ब्राह्मण, जैन और गुर्जर भी खेती करते हैं। जिनमे ब्राह्मण और जैन लोग दूसरे रोजगार प्राप्त करके शहरो में बस गए हैं और अपनी जमीन में या तो साझा दे गए हैं या फिर बेच कर चले गए हैं। जो यहां पर रह भी रहे हैं उनमे से ज्यादातर ने साझे दे दिए हैं। बैरवाओ के भी कई खेत थे पर वहां पानी की कमी के कारण इन्होने बेच दिए, हालांकि इनकी जमीन SC ACT के कारण खाते नही लग सकती, पर इन्होने जिस तरीके से बेचीं हैं ये लगभग अब अपना स्वामित्व खो चुके हैं। नाथ समुदाय के कुछ लोग अपनी जमीन पर पानी की सही उपलब्धता के कारण खेती कार्य में सलग्न हैं,फिर भी इनमे से बहुत सारे तो खेती-बाड़ी छोड़ चुके हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं की खेती-बाड़ी के कामकाज मीणाओं के द्वारा ही किये जाते हैं।

मीणाओं में पढाई-लिखाई का स्तर पहले बहुत कम था, इस वजह से उनका एकमात्र जीविकापार्जन का साधन खेती बाड़ी ही थी और इनमे से नाममात्र के लोग ही नौकरी करते थे। परन्तु आगे चलकर पानी की कमी के कारण खेती कम होने लगी, जनसँख्या वृद्धि के कारण भी खेतो का बटवारा हो गया और उत्पादन में कमी आई, इससे इन्होने नौकरी की जरुरत को महसूस किया।
इसके बाद इन्होने अपने बच्चो की पढाई-लिखाई पर ध्यान दिया ताकि वो पढ़-लिखकर रोजगार ढूंढ सके और एक सम्मानजनक जीवन जी सके। तब से कई युवा पढ़-लिखकर के नौकरी लगे हैं और कई उच्च शिक्षा के लिए शहरो में गए हैं। अब इन्ही किसानो के कई छात्र तो डॉक्टर, इंजीनियर और सरकारी अफसर तक बन गए हैं और आने वाली पीढ़ी भी इनसे प्रेरित होकर आगे बढ़ रही हैं।
अब किसानो को लगने लगा हैं की "हमने तो जिंदगी दुःख-दर्दो में काट दी पर हमारे बेटे इस तरह नही जिएंगे ,हम उनकी जिंदगी सुधारने के लिए खून-पसीना एक कर देंगे" किसान लोन ले ले लेकर के अपने बचो की स्कूल, कॉलेज, कोचिंग की फीस भर रहे हैं, उनके बाहर रहने का ख़र्चा उठा रहे हैं। पर सबसे बड़ी बात हैं की चकेरी में अब औसतन एक घर में से एक नौकर (सरकारी कर्मचारी) हो गया हैं। इस प्रकार मीनाओ ने भी शिक्षा को हथियार बनाकर अपने जीवन-स्तर में सुधार लाने की कवायद शुरू कर दी हैं।

महिलाओ की स्थिति

चकेरी के लोग प्रगतिशील विचारो के हैं। जो महिलाओ को भी बराबर का दर्जा देते हैं। गांव में महिलाओ की स्थिति को निम्न उद्धरणों के माध्यम से दृष्टिगोचर कर सकते हैं।

  1. बालिका शिक्षा
    गांव में आस-पास के गाँवो की लड़कियों के अध्यन के लिए कस्तूरबा गांधी छात्रावास की सुविधा हैं , जो की एक तहसील के अंदर एक होता हैं और सवाई माधोपुर तहसील में यह सौभाग्य चकेरी गांव को मिला हैं। इस स्कूल के निर्माण के दौरान ग्रामवासियो को पडोसी गांव से संघर्ष तक में उलझना पड़ गया था। पर गांव वाले बेटियो की शिक्षा के लिए एक ठोस कदम के लिए प्रतिबद्ध थे। अब इसमें उन ग्रामीण छात्राओ के सपनो को पूरा होने का जरिया मिला हैं जो गांव में सुविधा नही होने, माहौल का अभाव या आर्थिक तंगी के कारण पढाई नही कर पाती थी।
    इसके अलावा गांव की लडकिया स्थानीय सरकारी विद्यालय में अध्यन करती हैं। गांव में बालिकाओ की शिक्षा के लिए जबरदस्त अभियान चलाया गया हैं। जिसमे जो अभिभावक अपनी बेटियो को नही पढ़ाता या फिर पढाई बंद करवा देता हैं उनकी सामाजिक भर्त्सना हनुमानजी की मंदिर पर पंच-पटेल इकट्टा होकर करते हैं। इस प्रकार सामाजिक बहिष्कार के डर से भी बालिका साक्षरता में प्रगति हुई है।
    राजस्थान सरकार की बालिकाओ को मिलने वाली साइकिल वितरण की योजना का भी लाभ लड़कियों ने उठाया हैं। यह एक प्रेरक तत्व का कार्य भी कर रहा हैं।
    अब जिस प्रगतिशील विचार पर काम चल रहा हैं वो हैं - छात्राओ के लिए अध्यन कक्षमय लाइब्रेरी। दरअसल कुछ अभिभावक छात्राओ को स्कूल टाइम के बाद घर के काम करने को बोल देते हैं, जिससे उनकी स्कूल के अलावा घर पर पढाई नही हो पाती हैं। इसलिए गांव के लोगो ने मिलकर निश्चय किया हैं की एक सार्वजनिक लाइब्रेरी केवल छात्राओ के लिए बनाई जायेगी और वे वहां पर आकर अध्यन कर सकेगी। इसके लिए ग्राम पंचायत और पंच-पटेल, सार्वजानिक उगाई के माध्यम से वित्तीय साधन जुटा रहे हैं। इसके लिए ग्रामवासियो ने जबरदस्त रुझान दिखाया क्यूंकि इससे लड़कियों को शहर भेजने की समस्या का समाधान निकल गया हैं।
    ग्रामवासियो की पहल का नतीजा हैं की गांव की छात्राए, दसवी और बारवी कक्षा में लड़को को पीछे छोड़ रही हैं। और कई इंजीनियरिंग, मेडिकल की तैयारी करने बाहर गयी हैं।
  2. विवाह
    लड़कियों की शादी से संबंधित कुछ मुद्दे होते हैं ,जैसे की - बाल विवाह ,दहेज़ आदि। इन पर भी ग्रामवासियो ने जो व्यवस्था की हैं वो दूसरे लोगो के लिए अनुकरणीय मिसाल हैं। गांव में गौना [सावा ] की परम्परा विरासत में मिली हैं जिसके तहत शादी भले ही कम उम्र में हो जाए परन्तु लड़की नियमित रूप से ससुराल तभी जायेगी जब वह वयस्क हो जायेगी। तो यह ववस्था एक बाल-विवाह की बुराई के समाधान का विकल्प थी, जो गांव के सांस्थानिक सामजिक ढांचे का अंग हैं। अब बच्चियां पढ़ने लगी हैं तो गांव वालो ने बाल विवाह पर रोक लगाई हैं। और अब शादिया अपेक्षाकृत पहले से अधिक उम्र में करने लगे हैं।
    दहेज़ रोकथाम के लिए सामजिक बहिष्कार का विकल्प अपनाया गया हैं। इसके लिए चकेरी ने आस-पास के गाँवो में भी अलख जगाई हैं और एक सभा आयोजित कर ऐसे तत्वों से सख्ती से निपटने को कहा हैं।
    गांव में शादियों में अनावश्यक खर्चो पर भी रोक लगाई गयी हैं। किसानो की अधिकतर आमदनी इन खर्चो में ही चली जाती थी और वह करजो में डूबा रहता था तो इन पर चिंता व्यक्त करते हुए डीजे, शराब, अनगिनत बारातियो आदि पर रोक लगाई गयी हैं।
  3. कामकाज
    मेहनत ग्रामीण महिलाओ की विशेषता हैं। वे शाम-सुबह घरेलु कामकाज संभालती हैं। पारिवारिक सदस्यों की देखभाल करती हैं। खाना बनाती हैं। और दिन भर आजीविका के कार्यो में लगी रहती हैं। खेती- बाड़ी की देखभाल का काम महिलाए करती हैं। खेती में देखा जाए तो महिलाओ की ही प्रधान भूमिका हैं ,पुरुष केवल बोउनी, पळाव और खलियान के काम देखते हैं अन्यथा महिलाये निराई, गुड़ाई ,खरफतवार हटाना, मवेशियों के लिए घास लाना, फसल की कटाई जैसे काम खुद करती हैं। पशुओ को जब पुरुष सदस्य चराकर घर ले आता हैं तो उन्हें पानी पिलाना हो, सांधी करना हो(पशुओ के चारे में दूसरे पौष्टिक आहार मिलाना जैसे की खळ ), दूध निकालना हो जैसे कार्य भी महिलाओ के ही भरोसे हैं। गांव की कुछ बुजुर्ग औरते तो खुद बकरिया चराने जाती हैं।
  4. पारिवारिक भूमिका
    महिला परिवार के कामो में सक्रिय भूमिका निभाती हैं। निर्णय प्रक्रिया में भाग लेती हैं। अपने पति के कार्यो में हाथ बटाती हैं।
  5. सार्वजानिक भूमिका
    गांव का लगातार तीन बार से प्रतिनिधित्व महिलाए ही कर रही हैं। कृष्णा कुमारी 2005 से 2010 तक और तुलसा देवी 2010 से 2015 तक सरपंच रही। वर्तमान सरपंच रामा देवी खुद ही बिना पारिवारिक सदस्यों के सहयोग से कामकाज संभालती हैं। इस प्रकार महिलाओ के राजनितिक सशक्तिकरण में चकेरी की सक्रिय भूमिका हैं।
  6. सांस्कृतिक भूमिका
    गांव की महिलाए पारम्परिक गीतों में विशेष उत्साह रखती हैं, जो की देवताओ के स्थानो पर, शादी, धर्म कार्यो में गाती हैं। इन गीतों की विशेष और लोकप्रिय झलक मलणी के दौरान भी देखने को मिलती हैं। छोटी-छोटी बच्चियां शाम को हनुमानजी के मंदिर पर आकर भजन गाती हैं। गांव की औरते हर साल कार्तिक महीने में सुबह उठकर स्नान करके, फेरी गाने वालो के साथ रामजी के गीत गाती हैं।

जजमानी कामकाज

गांव में कुछ समाज अभी भी जजमानी प्रथा में लगे हुए हैं। जजमानी प्रथा मुगलो के समय बनी थी जसमे कुछ वर्ग अनाज के बदले अपनी सेवाए देते थे, उनमे से कई वर्गो ने अपने पुश्तैनी कार्य को रोजगार के तौर पर जारी रखा और उसके आधार पर अपना जीवन व्यतीत करते रहे। इससे दूसरे वर्ग को भी बिना परेशानी के सेवाएं मिलती रही। इन वर्गों में से कुछ अभी भी सक्रीय हैं। हालांकि कई यह कार्य इस तरीके से बंद कर चुके हैं और अब नकद भुगतान प्राप्त करके करते हैं।

  1. पुजारी
    गाँवो में यह कार्य भी जजमानी तौर पर ही होता हैं। गांव में सभी लोग मिलकर मंदिर हेतु एक पुजारी नियुक्त कर देते हैं। वह गांव वालो की तरफ से पूजा करता रहता हैं। इसके बदले गांव वाले उसे साल में एक बार अनाज देते हैं।
  2. नाई
    किसी परिवार के बाल काटता था और साल में दो बार अनाज प्राप्त करता था। गेहूं की कटाई के बाद यह गेहू की मांग करता था और बाजरे की कटाई के बाद बाजरे की। गांव के नाईयो के किसान बटे होते हैं की फलां-फलां परिवार उसका हैं। इस प्रकार किसान और नाई संबंधित होते थे। बाल काटने के अलावा नाई शादी-विवाह में बुलावा देने भी जाते थे।
    धीरे -धीरे लोगो के बालो को कटवाने का अंदाज़ बदल गया और बालो को सवारने के साथ-साथ कटवाने के अलग-अलग स्टाइल आ गए तो नाईयो ने भी अपने को समय के अनुसार ढाल लिया और लोगो के घर पर चक्कर लगाने के बजाय अपनी दूकान खोल के बैठ गए। इसके बाद उन्होंने अनाज के लिए बाल काटना भी बंद कर दिया, क्यूंकि एक बार मिलने वाले अनाज के लिए पुरे परिवार के सालभर बाल काटने पड़ते थे। वैसे बाल आदमी के सौंदर्य में चार-चाँद लगाते हैं इसलिए नाई का कार्य कभी अप्रासंगिक नही होगा, इसलिए अब बड़े बड़े सैलून बन गए हैं। और बाल काटने के अलावा कई प्रकार के मेकअप के काम और करते हैं तथा उनकी दरे भी बदलती रहती हैं।
    इस प्रकार नाई के पेशे के ज्यादा दिनों तक जजमानी तौर पर चलने की सम्भावना अब नही रही हैं। जजमानी के तहत ये अब शादी-विवाहो में बुलावे देने तक सीमित रह गए हैं। कुछ लोगो ने इस कार्य को भी राणाओं को सौपकर इन्हे जजमानी से मुक्त कर दिया हैं।
  3. राव(राणा)
    इनका मुख्य कार्य ढोल बजाना होता था। ये शादी-विवाह के समय, किसी के बेटा होने पर व अन्य शुभ कार्यो में ढोल बजाते थे। ये शादी-विवाह में निमंत्रण देने का कार्य भी करते थे। ये गांव और गांव से बाहर न्यौता देने का कार्य भी करते हैं। ये विवाहो में लग्न ले जाने के कार्य के अलावा कई कार्य करते हैं।
    राव एक पाडे के लिए एक व्यक्ति होता हैं, वह उस पाडे में होने वाले सभी व्यक्तिगत और सामूहिक कार्यो के लिए अपनी सेवाएं देता हैं। ये अपनी सेवाओ के बदले गांववालों से बार्षिक तौर पर अनाज प्राप्त करते हैं।बदलते समय के अनुसार अपनी जजमानी और पेशे को बचाने के लिए इन्हे भी बदलाव लाने की आवश्यकता हैं। वरना शहरो में लोग आजकल निमंत्रण पोस्ट से भेज देते हैं और दूसरे कामो के लिए पेशेवर राणो को बुला लेते हैं।
  4. धोबी
    धोबी पहले जजमानी प्रथा तौर पर कपडे धोते थे पर वे अब इस प्रथा को छोड़ चुके हैं। गांव के किसान इतने सम्पन्न नही हैं की दूसरे से कपडे धुलवाए। इसलिए गाँवो के धोबी खेतिहर है जो की अपना गुजारा भेड़-बकरी चराके, मजदूरी करके करते है।
  5. लुहार
    लुहारों का कार्य कृषि के औजार बनाना होता था और फिर उनकी मरम्मत करते थे। धीरे-धीरे तकनिकी की विकास से कृषि के परम्परागत साधन खत्म हुए और इनका धंधा चौपट हो गया। ज्यादातर लुहार अपना कामकाज छोड़ चुके हैं। अब ये अपने पेशे अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
  6. रैगर
    ये किसानो के पशुओ के मरने पर उनकी खाल उतारकर ले जाते थे। फिर चमड़े की जूती बनाकर पहनाते थे और सालाना अनाज प्राप्त करते थे। धीरे -धीरे प्लास्टिक के जूते-चप्पल बड़े पैमाने पर बने, जिससे ये कार्य ख़त्म हो गया और रैगर अब उनकी मरम्मत करने तक सीमित रह गए हैं।


  1. अपराध
    चकेरी वैसे तो आपराधिक गतिविधियों के सर्कल से खुद को कोसो दूर पाता हैं। पर कभी-कभार हुए कुछ घटनाक्रमों ने गांव का नाम काफी बदनाम किया हैं। जैसे की गांव में कुछ घटनाक्रम हत्या, बलात्कार , चोरी आदि के हुए हैं। हालांकि गांववाले इनसे सख्ती से निपटते है और पंचायत करके पंच-पटेल दोषी लोगो को गांव या फिर जाति से बहिष्कार कर देते हैं, ऐसे लोगो का सम्पर्क समाज से खत्म कर दिया जाता हैं। गांव में ऐसी बाते बहुत मायने रखती हैं क्यूंकि ऐसे लोगो को न तो गांव के कार्यक्रमों में बुलाया जाता हैं, न ही इनकी गतिविधियों में गांववाले शरीक होते हैं, भाईबन्धु भी आना-जाना बंद कर देते हैं और रिश्तेदार भी शादी-विवाह जैसे कार्यक्रमों से नाता तोड़ लेते हैं। इस प्रकार की बहिष्कारात्मक सजा के कारण लोग आपराधिक गतिविधियों से बचते हैं।

आर्थिक हालत

चकेरी की अधिकांश जनसँख्या खेतीबाड़ी मैं कार्यरत हैं। अधिक जनसँख्या वृद्धि के कारण खेतो के आकार छोटे हुहे हैं, और सीमांत किसानो की संख्या बढ़ी हैं। कई समुदायों के लोग अपने परम्परागत कार्यो मैं भी लगे हैं जैसे की-नाई, राव इत्यादि

अवसंरचना

यह ग्राम पँचायत द्वारा कई कार्य कराये गए हैं, साथ ही गांव मैं राजनेताओ से अच्छे व्यवहार के कारण विधायक तथा सांसद कोटे से भी कई कार्य किये गए हैं , यहां हम इनके बारे में देख सकते हैं।

शिक्षा

शिक्षा के माध्यम से गांव में काफी जागृति आई हैं ,खासकर नवयुवक वर्ग में। चकेरी में उपलब्ध शैक्षणिक संस्थान निम्न हैं -

क्रम संस्थान प्रकार शैक्षणिक सुविधा टिप्पणी
1 राजकीय उच्च माध्यमिक विध्यालय सरकारी कक्षा 6 से 12 तक -
2 राजकीय प्राथमिक विध्यालय सरकारी कक्षा 6 तक -
3 कस्तूरबा गांधी बालिका विध्यालय सरकारी कक्षा 6 से 12 तक आवासीय
4 नानेश शिक्षण संस्थान प्राइवेट कक्षा 8 तक

सड़क

चकेरी सभी आसपास के गाँवो से सड़क द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुहा हैं, तथा जिला मुख्यालय से भी अच्छी कनेक्टिविटी हैं। चकेरी के अंदर भी सभी मार्ग लगभग सिमेंटीकृत हो चुके हैं ,जिससे ग्रामवासियो को बर्ष भर सही तरीके की परिवहनता प्राप्त होती हैं। पहले लोगो को खासकर बरसात के दौरान बढ़ी परेशानी उठानी पड़ती थी क्यूंकि पक्की सड़को के अभाव मैं गारे की समस्या रहती थी।

निकटवर्ती गाँवो के साथ संबंध तथा जुड़ाव हम इस तरीके से समझ सकते हैं, इन सभी गाँवो के साथ चकेरी अपनी भू-राजस्व सीमा (काँकड़) साझा करता हैं। इसलिए जिन गांव वालो के काँकड़ के आस पास खेत होते हैं , वे अपनी खेती संबंधी चीजो के लिए दूसरे गांव के किसानो से मदद लेते या करते रहते हैं ,जैसे की - पानी संबंधी भराई और पळाव की जरूरते , जोत आदि। इन सभी सहयोगो के कारण इनके बीच अच्छे सम्बन्ध बन जाते हैं, और आपस में बुआरी(दोस्त )बन जाते हैं।

  1. कुण्डेरा
    यह चकेरी से 3 किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित हैं। यह चकेरी से सबसे निकट क़स्बा हैं, जहां के बाजारों से गांव के काफी जरूरते प्राप्त होती हैं , यहां बुधवार को लगने वाले हाटबाज़ार ( हटवाडा ), गांव की महिलाओ के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होता हैं , इस प्रकार दैनिक जरुरतो को देखते हुए इसके साथ अच्छा सड़क संपर्क होना चाहिए और जो अभी उपलब्ध भी हैं , हालांकि यह मार्ग बरसात मैं अधिकता होने पर पुल के ऊपर पानी निकलने से विछेदित रहता हैं
  2. श्यामपुरा
    यह चकेरी से 3 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में स्थित हैं। यह चकेरी के निकट दूसरा गांव हैं , साथ ही यहां के लोगो का गोत्र भी डुंगरजाल होने के कारण ये चकेरी के साथ गोती-भाई (गोत्र भाई) का रिश्ता रखते हैं ,यह भी चकेरी के साथ पक्की सड़क द्वारा जुड़ा हुआ हैं।
  3. बाडोलास
    यह चकेरी से 5 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में स्थित हैं। यह भी पक्की सड़क द्वारा गांव से जुड़ा हुआ हैं , इसकी दुरी पांच किलोमीटर हैं
  4. रहीथा
    यह चकेरी से 3 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित हैं। रईथा भी चकेरी के साथ पक्के मार्ग से जुड़ा हुआ हैं
  5. खाट
    यह चकेरी से 3 किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में स्थित हैं। यह भी चकेरी के साथ पक्के मार्ग से जुड़ा हुआ हैं
  6. पढ़ाना
    यह चकेरी से 5 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित हैं। इसकी कनेक्टिविटी भी ठीक-ठाक हैं
  7. निनोणी
    यह चकेरी से 4 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में स्थित हैं। यह भी चकेरी के साथ पक्के मार्ग से जुड़ा हुआ हैं
  8. मखोली
    यह चकेरी से 3 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में स्थित हैं। यह पक्के मार्ग से जुड़ा हुआ नही हैं परन्तु जल्दी होने की सम्भावना हैं।
  9. दोबड़ा
    यह चकेरी से 4 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित हैं। यह पक्के मार्ग से जुड़ा हुआ नही हैं परन्तु जल्दी होने की सम्भावना हैं।
  10. सेलु
    यह चकेरी से 4 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित हैं। यह पक्के मार्ग से जुड़ा हुआ नही हैं परन्तु जल्दी होने की सम्भावना हैं।

अन्य अवसरचनाये

  1. पुल
    चकेरी को पुलो के माध्यम से अपने दो सम्पर्क मार्ग पुरे करने होते हैं ,दोनों ही गांव मैं बरसात के दौरान बहने वाली गंभीर नदी पर हैं।
    पहली पुलिया (छोटी साइज का पुल) कुंडेरा-चकेरी रोड पर हैं ,इसकी समस्या यह हैं की बरसात के दिनों मैं इसके ऊपर से काफी मात्रा मैं पानी निकलता हैं जिसका अनुमान छह फ़ीटतक लगा सकते हैं ,ऊपर डांग में हुई बरसात का पानी होने के कारण यह काफी तेज गति से आता हैं ,तो इसका बहाव यहाँ पर भी तेज होता हैं ,तैरना नही जानने वाला आदमी अगर पुलिया के ऊपर से जाता हैं तो वह बह सकता हैं ,कई बार ऐसी दुर्घटना हो चुकी हैं और कई लोग अपनी जान गवा चुके हैं। एक बार पुलिया पानी के तेज़ बहाव से टूट भी चुकी हैं ,तब इसमें दो नाले और बढ़ा दिए थे पर स्तिथि में ज्यादा परिवर्तन नही हुआ हैं ,इसका टिकाऊ समाधान ढूंढने की जरुरत हैं।
    दूसरी पुलिया चकेरी-श्यामपुरा रोड पर हैं। इसकी ऊंचाई अपेक्षाकृत थोड़ी अधिक होने के कारण इसपर ऐसी समस्या नही हैं ,तथा इससे पूर्व एनीकट का निर्माण करने के कारण पानी का वेघ भी उतना नही रह पाता।
  2. एनीकट
    यह काफी पहले बनाया गया था , अभी कुछ दिनों पहले इसकी मरम्मत करवाई गयी थी ,तथा नदी को भी नरेगा के तहत गहरा किया गया था। जिस कारण बरसात में आने वाला पानी काफी दिनों तक रुक जाता हैं , जो गांव के लोगो के सिंचाई जैसी आवश्यकताओं की पूर्ति करता हैं ,साथ ही पशुओ को पानी पिलाने और नहलाने के काम आता हैं। चकेरी की राजस्व सीमा में होने के कारण श्यामपुरा के लोगो द्वारा सिंचाई हेतु पानी लेने पर यह विवाद का विषय बन सकता हैं।
    इस प्रोजेक्ट की क्षमता का और अधिक प्रयोग हो सकता हैं। इसे मछली पालन जैसे कार्य के लिए पर्युक्त करके आजीविका का संसाधन बनाया जा सकता हैं।
  3. सिंचाई
    पूरा गांव सिंचाई के लिए ट्यूबवेल पर ही निर्भर हैं। यहां कोई दूसरा माध्यम उपलब्ध नही हैं। काफी दिनों पहले सेलु-खाट की तरफ के माळ को सुरवाल नहर से जोड़ने की बात की गयी थी ,जो ट्यूबवेलों के कारण भू-जल पर पड़ रहे दबाव को कम करने में सक्षम हो सकता था परन्तु यह परियोजना राजनितिक महत्वकांशा की कमी के कारण केवल विचाराधीन ही हैं।
    दूसरी योजना गंभीर नदी के पानी को लेकर बनाये जा सकती हैं , अभी केवल एक एनीकट हैं ज्सिकी वजह से पानी केवल काछड़ा ( नदी की पेटी में गांव के पास का इलाका ) वाले इलाके में उपलबध होता हैं और वो भी सीमित समय के लिए। यदि नदी पर एक और एनीकट उपयुक्त स्थान का चयन करके ड्याबर (चकेरी-कुंडेरा-मखोली काँकड़ वाला इलाका) वाले इलाके की सिंचाई आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती हैं , इस इलाके में सबसे ज्यादा ट्यूबवेल हैं जो भू-जल पर अत्यधिक दबाव डाल रहे हैं।
  4. बिजली
    गांव विद्युतीकृत हो चूका हैं यहां खेती व् घरेलु दोनों कार्य के लिए बिजली उपलब्ध हैं। गांव में लगभग सभी लोगो को बिजली उपलब्ध हैं। घरेलु कार्यो तथा रेल लाइन से गांव वाले भाग की तरफ खेती कार्य के लिए बिजली श्यामपुरा फीडर से प्राप्त होती हैं तथा रेल लाइन से दूसरी तरफ के माळ के लिए दूसरे स्रोत से बिजली प्राप्त होती हैं।
  5. पेयजल
    पेयजल की आपूर्ति के लिए पुरे गांव जैसा मॉडल नही हैं , कई जगह पर नलो से यह सुविधा प्राप्त होती है ,तो कई जगहों पर टंकी व् हैण्डपम्प पर निर्भरता हैं। गांव में मुख्य जगहों पर बढ़ी टंकी बना रखी हैं-
    ## होलीवळा की टंकी ## हनुमानजी के मंदिर की टंकी ## बैरवा मोहल्ले में टंकी ## गढ़ की टंकी इत्यादि।
    गांव में पानी आपूर्ति का एक और मॉडल हैं। इसमें प्राइवेट ट्यूबवेल वाले कुछ मासिक शुल्क लेकर नलो के माध्यम से पानी पहुंचाते हैं ,अभी दो-तीन ऐसे मॉडल गांव में कार्यरत हैं।

स्मार्ट गांव अभियान

चकेरी को अब आधुनिक माहौल में डालने पर जोर इस अभियान के तहत किया जा रहा हैं। ताकि गांव के लोग दुनिया में आ रहे परिवर्तनों के साथ कदम से कदम मिलाकर के चल सके। गांव की नई पीढ़ी पढ़-लिखकर आगे बढ़ चुकी हैं, अगर इनके हिसाब से सुविधाए गांव में विकसित नही की गई तो ये शहर में जाकर बस जाएंगे। इस परिदृश्य से कुछ कार्य गांव में हो चुके हैं जैसे की -

  1. बैंकिंग और एटीएम सुविधा ( sbbj की शाखा, )
  2. टेलीकॉम नेटवर्क सुविधा की परेशानियों को ख़त्म करने के लिए टॉवर()
  3. 24 घंटे कनेक्टिविटी (सड़क और रेल दोनों)
  4. आंतरिक मार्गो का सीमेंटीकरण ( ज्यादातर रास्तो में सीसी रोड बन चुके हैं)
  5. पेयजल के लिए कई टंकिया व् नल लग चुके हैं
  6. बिजली के लिए घरेलु और कृषि कामकाजों हेतु अलग -अलग फीडर स्थापित हो चुके हैं।

इनके अलावा अभी भी कई सुविधाये गांव के अंदर विकसित होना बाकी हैं। और कई पूर्व स्थापित सुविधाओ में सुधार करने की आवश्यकता हैं। जिन चीजो पर ध्यान देने का प्रस्ताव इस अभियान के तहत किया गया हैं वो इस प्रकार हैं -

  1. चिकित्सा सुविधा के लिए डिस्पेंसरी और आयुर्वेदिक चिकित्सालय की सुविधा बेहतर करने की आवश्यकता हैं। इन सरकारी सुविधावो के होते हुए भी लोग प्राइवेट क्लिनिक के भरोसे हैं या फिर शहर भागते हैं। लोगो को इस बारे में जागरूक करने की भी आवश्यकता हैं।
  2. खेलकूद के लिए अवसंरचना की कमी भी एक समस्या हैं। गांव में केवल एक मैदान हैं जो भी स्कूल परिसर का भाग हैं। आवशयकता है की एक मैदान की व्यवस्था गांव में इसके अलावा की जाए , ताकि खेलकूद में भी आगे बढ़ सके।
  3. एक सार्वजनिक पुस्तकालय भी होना चाहिए ताकि वहां पर गांव में पढ़ने वाले छात्र पढाई कर सके और घरो पर होने वाले डिस्टर्बेंस से बचा जा सके।

गांव को तत्कालीन बदलावों के संग चलने के लिए कुछ सरकारी प्रयासों में सक्रिय भागीदारी निभाने की आवश्यकता हैं।

  1. स्वच्छ भारत अभियान [४] के तहत देश को 2019 तक खुले में शौच से मुक्ति दिलाना हैं। यहां पर भी करीब सत्तर प्रतिशत लोग खुले में शौच करने जाते हैं। इस अभियान का सक्रीय सदस्य बनकर इस कुप्रथा से छुटकारा पाया जा सकता हैं। गांव में अधिकतर लोग खेती करते हैं उनको इस अभियान से जोड़ना हैं।