ईरान-इजराइल सम्बन्ध
साँचा:flagbig | इजराइल |
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ईरान - इजराइल सम्बन्ध प्राचीन काल से ही एक मधुर सम्बन्ध रहे लेकिन ईरान एक मुस्लिम बहुत राष्ट्र है तो इजराइल एक यहुदी राष्ट्र है ईरान इजराइल सम्बन्ध की दरार ईरान की क्रांति का होना और ईरान में राजशाही शासन का पतन होना मूल कारण था ईरान की इस्लामी क्रांति के बाद ईरान इजराइल सम्बन्ध और वर्तमान समय में एक दुश्मन के रूप में है।
देश तुलना
साँचा:flagicon ईरान | साँचा:flagicon इजराइल | |
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जनसंख्या | 78,692,700 | 8,412,000 |
क्षेत्रफल | 1,648,195 किमी² (636,372 वर्ग मील) | 20,770/22,072 किमी² (8,019/8,522 वर्ग मील) |
जनसंख्या धनत्व | 48/किमी² (124/वर्ग मील) | 359/किमी² (930/वर्ग मील) |
राजधानी | तेहरान | जेरुशलम (विवादित) |
सबसे वड़ा नगर | तेहरान | जेरुशलम (विवादित) |
सरकार | एकात्म राज्य, इस्लामी गणराज्य | संसदीय, धर्मनिरपेक्षता |
वर्तमान नेता | हसन रुहानी | बेंजामिन नेतन्याहू |
अधिकारीक भाषाएँ | फारसी | हिब्रू, अरबी |
प्रमुख धर्म | शिया इस्लाम 90–95%[१][२] सुन्नी इस्लाम 4–8%[३] ईसाई 1% यहूदी <0.1%.[४] | यहूदी 75% इस्लाम 15% (मुख्याता सुन्नी) ईसाई 7% दुर्ज 3% |
सकल घरेलू उत्पाद (नाममात्र) | अमेरीकी $ 405.540 विलियन ($5,193 प्रति व्यक्ति) | अमेरीकी $ 305.707 विलियन ($38,004 प्रति व्यक्ति) |
सकल घरेलू उत्पाद (पीपीपी) | अमेरीकी $ 974.406 विलियन ($12,478 प्रति व्यक्ति) | अमेरीकी $ 286.840 विलियन ($35,658 प्रति व्यक्ति) |
सैन्य व्यय | अमेरीकी $ 7.463 विलियन (1.8% का सकल घरेलू उत्पाद )साँचा:citation needed | अमेरीकी $ 16.5 विलियन (6.5% का सकल घरेलू उत्पाद)[५] |
ईरान की शाही सरकार और इजराइल के संबंध
19 नवंबर 1947 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने फिलिस्तीन को अरब और यहूदी क्षेत्रों में बांटने के प्रस्ताव को पारित किया और इस तरह से अमरीका व ब्रिटेन की मदद से फिलिस्तीन में इजराइल राष्ट्र बन गया जिसके बाद मूशे शरतूक ने ईरान के तत्कालीन विदेशमंत्री को टेलीग्राफ किया और अपने इस टेलीग्राफ में हजारों वर्ष पहले सायरस महान द्वारा यहूदियों को बचाने की घटना का वर्णन करते हुए ईरान की शाही सरकार से अपील की कि वह इजराइल को मान्यता दे और सायरस की महानता को यहूदिहयों के लिए दोहराए।
इजराइल प्रथम प्रधानमंत्री बिन गोरियान और ईरानी सम्बन्ध
ईरान की शाही सरकार ने इस्राईल में ईरानी नागरिकों की संपत्ति की निगरानी के बहाने अब्बास सैक़ल के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल इजराइल भेजा। इजराइल से संबंध बनाने की दिशा में ईरान की शाही सरकार का यह पहला क़दम था इसी दौरान तुर्की ने इजराइल को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया। तुर्की इजराइल को मान्यता देने वाला पहला इस्लामी देश बना। ईरान की शाही सरकार को अच्छी तरह से पता चल चुका था कि यहूदी लाबी अमरीका में बेहद शक्तिशाली है, इसके अलावा अरबों से उसके संबंध भी बहुत अच्छे नहीं थे और फिर 14 मार्च 1950 ईस्वी को ईरान की शाही सरकार ने इजराइल को स्वीकार कर लिया लेकिन देश विदेश और अरब देशों की कड़ी प्रतिक्रिया के बाद यह संबंध खत्म कर लिये गये लेकिन यह प्रक्रीया अधिक दिनों तक नहीं चल पाया और 18 अगस्त 1953 को अमरीका और ब्रिटेन ने मिल कर ईरान में विद्रोह करा दिया जिसके बाद एक बार फिर ईरान व इजराइल के मध्य सम्बन्ध बन गये। ईरान की शाही सरकार ने इजराइल को तेल बेचने का प्रस्ताव दिया जिसे इजराइल ने झट से स्वीकार कर लिया क्योंकि अरब देशों ने उसका बहिष्कार कर रखा था, जब मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्द अल नासिर ने स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण का एलान किया और इजराइल ने ब्रिटेन और फ्रांस की सेना के साथ मिल कर मिस्र पर आक्रमण किया तो ईरान और इजराइल के बीच तेल का लेन- देन बढ़ गया। 1957 में ईरान की शाही सरकार और इजराइल के मध्य गुप्त वार्ता हुई और दोनों के बीच एक डालर तीस सेंट प्रति बैरल तेल के समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इजराइल के तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड बिन गोरियन के आदेश से इस्राईली बंदरगाहों पर पाइप लाइनों का जाल बिछाया गया ईरान का तेल इजराइल के लिए अत्याधिक महत्वपूर्ण हो गया। सन 1959 में ईरान प्रतिदिन तीस हज़ार बैरल तेल इजराइल को देता था जो सन 1971 में पच्चावनेव हज़ार बैरल प्रतिदिन तक पहुंच गया। ईरान इजराइल को तेल की आपूर्ति करने वाला सब से बड़ा देश था और इसके अलावा ईरान व इजराइल के संबंध लगभग हर क्षेत्र में विस्तृत थे और इजराइल के राजनेता और बुद्धिजीवी ईरान के नरेश को बार बार यह याद दिलाते थे कि वह उस सायरस महान की नस्ल से है जिसने ढाई हज़ार साल पहले यहूदी की पूरी जाति को बचा लिया था। ईरान व इजराइल की यह दोस्ती ऊपर से ज़्यादा अंदर थी और इजराइल की इच्छा के बावजूद ईरान की शाही सरकार, देश की जनता और इस्लामी जगत की विशेष परिस्थितियों की वजह से ईरान व इजराइल के संबंधों को पूरी तरह से सामने लाने का पक्ष में नहीं थी लेकिन ईरान में क्रांति की सफलता के साथ ही तीस वर्षों से जारी यह सम्बन्ध खत्म हो गये और इजराइल को हर क्षेत्र में भारी नुक़सान हुआ। यही नहीं, ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद बनने वाली सरकार ने फिलिस्तीन के समर्थन में अत्याधिक महत्वपूर्ण क़दम उठाया जो निश्चित रूप से फिलिस्तीनियों के लिए आशा की किरण बना। इस्लामी गणतंत्र ईरान में सब से पहला दूतावास यह बदले हालात ही थे कि जिस देश के इजराइल के सब से अधिक गहरे संबंध थे उसी देश ने क्रांति की सफलता के बाद सब से पहले फिलिस्तीन से कूटनैतिक संबंध स्थापित किये।
यासिर अराफात
ईरान में 11 फरवरी 1979 को इस्लामी क्रांति सफल हुई और उसके ठीक एक हफ्ते बाद फिलिस्तीन लिब्रेशन फ्रंट के नेता यासिर अराफात को बुलाकर एक कार्यक्रम में फिलिस्तीनी दूतावास खोल दिया गया। फिलिस्तीन का दूतावास उसी इमारत में खोला गया जिसमें शाही सरकार के काल में इजराइल का दूतावास था। ईरान में क्रांति की सफलता के कुछ ही समय बाद लोगों ने तेहरान में स्थित इजराइल दूतावास पर कब्जा करके वहां फिलिस्तीनी दूतावास का बोर्ड लगा दिया था , ईरान में तत्तकालीन इजराइली राजदूत युसुफ हार्मलिन अपने तैंतीस कर्मचारियों के साथ ईरान में किसी अज्ञात स्थान में छुप गये थे बाद में अमरीकी रक्षा मंत्री हार्लोड ब्राउन ने मध्य पूर्व की यात्रा की और इस दौरान उनकी कोशिशों से यह लोग ईरान से निकलने में सफल हुए। छ: दिन बाद यासिर अरफात ईरान आए और क्रांति के बाद ईरान में पहले दूतावास का उदघाटन किया वह क्रांति के बाद ईरान की यात्रा करने वाले पहले विदेशी नेता भी बने। ईरान में क्रांति की सफलता को अड़तीस वर्ष गुज़र चुके हैं लेकिन इस्राईल से दुश्मनी और फिलिस्तीन से दोस्ती उसी तरह से बाक़ी है और बहुत से विश्लेषकों का मानना है कि ईरान के खिलाफ पूरी दुनिया में अमरीका के नेतृत्व में जो कुछ हो रहा है उसका मूल कारण भी यही है।