सच्चिदानंद राउतराय

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सच्चिदानंद राउतराय
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सच्चिदानंद राउतराय एक उड़िया साहित्यकार हैं। इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह कविता–1962 के लिये उन्हें सन् १९६३ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (ओड़िया) से सम्मानित किया गया।[१] इन्हें १९८६ में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। स्वाधीनता-संग्राम सहित अनेक आन्दोलनों में भाग लेने के कारण कई बार जेल-यात्रा। स्नातक करने के उपरान्त बीस वर्ष कोलकाता में नौकरी और फिर कटक-वास

व्यक्तिगत जीवन

राउतराय का जन्म 13 मई 1916 को उड़ीसा स्थित खुर्दा पास गुरुगंज में हुआ था। उनकी परवरिश और शिक्षा-दीक्षा तत्कालीन बंगाल (वर्तमान में पश्चिम बंगाल) में हुयी। उन्होने गोलापल्ली के शाही परिवार की तेलुगू राजकुमारी से शादी की। उन्होने अपनी पहली कविता स्कूली छात्र के रूप में लिखी थी। 12 वर्ष की आयु से लेखन में प्रवृत्त सची राउतराय का 1932 में मात्र 16 वर्ष की आयु में पहला कविता संग्रह 'पाथेय' प्रकाशित हुआ। राउतराय की प्रसिद्धि 1939 में प्रकाशित उनकी लंबी कविता "बाजी राउत" के प्रकाशन से हुयी। इस कविता में एक 12 वर्षीय नाविक बालक की शहादत का वर्णन है, जो ब्रिटिश शासन के विरोध में प्रदर्शन के दौरान पुलिस की गोलियों का शिकार हो गया था। यह पुस्तक एक लघु महाकाव्य के रूप में प्रख्यात हुई तथा उड़ीसा के नव युवकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी। 1942 में हरींद्रनाथ चट्टोपाध्याय ने बाजी राउत तथा कुछ अन्य कविताओं का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया, जिससे राउत राय को उड़ीसा से बाहर भी ख्याति मिली। राउत राय को साहित्य के शिखर पर ले जानेवाला एक अन्य कविता संग्रह पल्लीश्री (1942) था, जिसमें उड़ीसा के ग्रामीण जीवन एवं समाज से संबंधित कवितायें हैं।[२]

ग्रामी सादगी और ग्राम्य जीवन के काव्यात्मक आनंद को अभिव्यक्ति देने वाली श्रेष्ठ रचनाओं में आज भी इन कविताओं की गिनती की जाती है। पाण्डुलिपि और अभिजान जैसे अन्य काव्य संग्रहों के प्रकाशन के साथ राउत राय उड़ीसा में आधुनिक और प्रगतिशील रचनाकारों में अग्रणी बन गए।

कार्यक्षेत्र

आधुनिक उड़िया कविता के भगीरथ के रूप में प्रख्यात ये कथा-शिल्पी, नाट्यकार एवं साहित्य-मनीषी की हैसियत से भी भारतीय साहित्यकारों में अग्रगण्य माने जाते हैं। कथा-शिल्पी और साहित्य-चिंतक होने के साथ ही साहित्य के क्षेत्र में इन्होने अनेक नए प्रयोग किए और फ्रायड तथा युंग के मनोविश्लेषण का उड़िया साहित्य-जगत में प्रवेश कराया। 1935 में प्रकाशित उनका उपन्यास 'चित्रग्रीव' अ-उपन्यास का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। स्मरणीय है कि विश्वसाहित्य में ऐण्टी नॉवल का आन्दोलन बाद में शुरू हुआ था। जनकवि सची राउतराय ने अपनी कहानियों के लिए भी विषय और पात्र जनजीवन से ही उठाये हैं। उनकी अधिकतर कहानियाँ श्रमिक, कृषक तथा अन्य पिछड़े वर्गो के संघर्षों, अभावों और उत्पीड़नों के बारे में हैं जो समसामयिक जीवन की विद्रूपता और विकृतियों पर तीखा व्यंग्य करती हैं। उनका साहित्य एक क्षयी सामाजिक व्यवस्था के विरूद्ध मानव-अधिकारों का आक्रोशी घोषणा-पत्र है। वह मानव-गरिमा और भय-मुक्ति के मन्त्रदाता हैं। आपकी साहित्य-साधना का कार्यकाल 50 से अधिक वर्षो का है।[३]

उपलब्धि

राउत राय की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि यह है कि उन्होने आधुनिक उड़िया कविता को नया मुहावरा तथा नई संवेदना प्रदान की। उनकी कृति पाण्डुलिपि उस नव काव्य की अग्रदूत थी, जिसने उड़िया कविता को काव्य स्वातंत्रय, गद्य काव्य और बोलचाल की भाषा जैसे नए रूप प्रदान किए। इस पुस्तक की विद्वतापूर्ण भूमिका में उन्होने उडिया की नई कविता का महत्वपूर्ण घोषणा पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होने कावयिक रीति के स्थान पर वाक रीति अपनाने की वकालत की है।

नए-नए काव्य रूपों में प्रयोग करने के साथ राउत राय ने अपनी कविता में विषयों की विविधता को भी अपनाया है। प्रारंभिक रचनाओं की रूमानी भावभूमि से निकलकर परवर्ती रचनाओं में उन्होने यथार्थवाद, समाजवाद, यहाँ तक कि मार्कस्वाद को भी स्थान दिया। वास्तव में यह प्रकृति उनकी प्रारम्भिक रचनाओं में भी परिलक्षित होती थी।

कृतियां

18 काव्य-संकलन, 4 कहानी-संग्रह, 1 उपन्यास, 1 काव्य-नाटक, साहित्य-समीक्षा की तीन पुस्तकें तथा साहित्यिक मूल्यों पर एक महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य प्रकाशित।

काव्य संग्रह

  • पाथेय (1932)
  • पूर्णिमा (1933)
  • रक्त शिखा (1939)
  • बाजी राऊत (132,42)
  • अभिजान (1938)
  • हांसत (1948)
  • एशियार स्वप्न (1969)

कथा संग्रह

  • मसानीर फूला (1947)
  • माटीर ताज (1947)
  • छई (1948)

चित्रग्रीवा (1935)

समालोचना

  • साहित्य विचार और मूल्यबोध (1972)
  • आधुनिक साहित्य (1983)

सम्मान

सन्दर्भ

  1. साँचा:cite web
  2. भारत ज्ञानकोश, खंड-5, पृष्ठ संख्या-52, प्रकाशक- पोप्युलर प्रकाशन मुंबई, आई एस बी एन 81-7154-993-4
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बाहरी कड़ियाँ