वॅस्टर्न (शैली)

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(वेस्टर्न से अनुप्रेषित)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
१९५६ में निर्मित वॅस्टर्न फ़िल्म 'द सरचर्स' में मशहूर अभिनेता जॉन वेन

वॅस्टर्न (अंग्रेज़ी: Western), जिसका हिन्दी में अर्थ 'पश्चिमी' है,साँचा:ref कला की एक शैली या विधा है, जो अक्सर रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा, साहित्य सहित अनेक रूपों में अपनायी जाती है। वॅस्टर्नसाँचा:ref शैली की कहानियां अक्सर उन्नीसवीं सदी के अंतिम वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिमी भाग के माहौल पर आधारित होती हैं।

वॅस्टर्न सामाजिक वातावरण

अमेरिका के यूटाह राज्य में स्थित मौन्युमेंट वैली में वॅस्टर्न शैली की कई फ़िल्में बनाई गयी हैं

उन दिनों पश्चिमी संयुक्त राज्य के कई क्षेत्रों में मूल अमेरिकी आदिवासी क़बीले, अभी भी बसे हुए थे और अन्य स्थानों पर गोरे अमेरिकी उपनिवेशी आ कर बस गए थे। अमेरिकी सरकार का नियंत्रण इन इलाक़ों पर न के बराबर था। इन कहानियों में अक्सर इन आदिवासियों, उपनिवेशियों और सरकार का टकराव दर्शाया जाता है। उस ज़माने में इस क्षेत्र में छोटे-छोटे शहर थे जिनमें, क़ानून की व्यवस्था कम थी, इसलिए बहुत से पुरुष अपनी और अपने परिवार की रक्षा के लिए पिस्तौलें और बंदूकें रखा करते थे। अक्सर हर शहर में नागरिकों द्वारा नियुक्त एक ही पुलिसवाला हुआ करता था, जिसके पद को 'शॅरिफ़' (sheriff) कहा जाता था।

वॅस्टर्न कहानियों में ऐसे समाज का चित्रण किया जाता है जहाँ किसी क़ानूनी व्यवस्था के बजाय लोग स्वयं ही अपनी जान, माल और इज़्ज़त की रखवाली करते हैं। अक्सर इन कहानियों के कुछ विषय जो बार-बार देखे जाते हैं: -

  • गुन्डों का कोई गिरोह, जिसने कई कत्ल किये हैं, किसी शहर के निवासियों को या किसी उपनिवेशी श्वेतवर्णी परिवार को सता रहा है। कोई अजनबी बहादुर आदमी इत्तेफ़ाक से उस इलाक़े से गुज़रता है और गुन्डों से लड़ने में मदद करता है।
  • किसी शहर में कोई ताक़तवर ज़मींदार अपनी धाक जमाए हुए है और अपनी मनमानी करता है। कोई बहादुर आदमी आ कर उस से टकराता है और शहरवालों के लिए न्याय का नया दौर शुरू करता है।
  • किसी आदिवासी क़बीले के इलाक़े में गोरे लोग आ कर बसने लगते हैं और उनमें आपसी टकराव होता है। गोरों को कई ख़तरों का सामना करना होता है, लेकिन अंत में आदिवासी मार दिए जाते हैं। पुरानी वॅस्टर्न कहानियों में इसे केवल श्वेतवर्णीयों के दृष्टिकोण से दर्शाया जाता था, लेकिन आजकल "डान्सिज़ विद वुल्व्ज़" की तरह की वॅस्टर्न फ़िल्मों में आदिवासियों के साथ हुए भयंकर अन्याय को भी दिखाया जाता है।

इन कहानियों का मुख्य नायक अक्सर अपने वफ़ादार घोड़े के साथ यहाँ-वहाँ फिरने वाला एक वीर पुरुष होता है।[१] कई कथाओं में मुख्य नायिका एक अबला स्त्री होती है, जिसकी रक्षा या सहायता नायक करता है, जो अंतत: उस से प्रेम करने लगती है।

कथास्थल

वॅस्टर्न कहानियां और फ़िल्में उस दौर का पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका दिखातीं हैं, जब वहाँ बीहड़ वीराना था। यह भूभाग कई तरह के भौगोलिक तत्वों का मिश्रण है - पर्वत, चट्टानों से भरे रेगिस्तान और मीलों तक फैले खुले मैदान। वॅस्टर्न फ़िल्मों में इन्ही नज़ारों के बीच कथाचक्र चलता है। इन कहानियों के पात्रों को अक्सर इन क़ुदरती कठिनाइयों से जूझना पड़ता है। १९६६ में बनी प्रसिद्ध फ़िल्म "द गुड, द बैड एंड द अग्ली" (यानि "अच्छा, बुरा और बदसूरत") के कई दृश्यों में पात्रों को उनके दुश्मन रेगिस्तान में मीलों, अन्दर तक ले जाकर उनका घोड़ा ले लेते हैं और उनको अपने नसीब और हौसले के अनुसार जीने या मरने के लिए छोड़ देते हैं।

अन्य शैलियों का प्रभाव

वॅस्टर्न शैली का अध्ययन करने वालों ने अक्सर उसमे और जापानी सामुराई कथाओं में तुलना की है। सामुराई मध्यकालीन जापान के क्षत्रिय होते थे जो निडर, युद्ध में ख़ुँख़ार, शास्त्रों के इस्तेमाल में अति-सक्षम और मरते दम तक अपने राजा से वफ़ादारी करने वाले माने जाते थे। किसी भी सामुराई का फ़र्ज़ था के वह अपने राजा से पहले मरे। अगर कोई राजा मारा जाता तो सामुराई का फ़र्ज़ था के उसके मारने वालों से बदला ले। जिस सामुराई का मालिक मर चूका हो या जिसने उसे किसी वजह से अपनी सेवा से निकाल दिया हो, उसकी स्थिति अत्यंत शर्मनाक मानी जाती थी और उसे फिर कभी कोई राजा अपनी सेवा में नहीं लेता था। ऐसे सामुराई को रोनिन कहते थे। रोनिन शहर से शहर भटकते थे। क्योंकि वो जांबाज़ थे और लड़ाई करने में निपुण थे, इसलिए कईं जापानी कथाओं में दर्शाया जाता है के किसी गाँव या स्त्री पर अत्याचार हो रहा है और एक बहादुर रोनिन आकर उनकी मदद करता है। ऐसी कहानियों में काफ़ी कशमकश दिखाई जाती है क्योंकि एक तरफ तो रोनिन का स्वयं से नफ़रत करने तक का गहरा दुःख होता है और दूसरी तरफ उसकी बहादुरी और सक्षमता होती है। ठीक यही कशमकश का तत्व बहुत सी वॅस्टर्न फ़िल्मों में भी अपनाया गया है। अक्सर कथानायक के साथ कुछ शदीद दुःख वाली बात हुई होती है जिस की वजह से कभी-कभी वह पूरी तरह बदनाम भी हो चुका होता है।

इसी वजह से कुछ जापानी सामुराई फ़िल्मों का रूपांतरण कर के उन्हें अंग्रेज़ी में वॅस्टर्न शैली में बनाया गया और वे बहुत चलीं। १९५४ में बनी जापानी फ़िल्म "शिचिनिं नो सामुराई" का - जो अंग्रेज़ी में "सॅवन सामुराई" (यानि "सात सामुराई") के नाम से चली थी - अंग्रेज़ी में रूपांतर कर के "द मॅग्निफ़िसॅन्ट सॅवन" बनाया गया और यह बहुत चली।[२]

उपशैलियाँ

वॅस्टर्न शैली की फ़िल्मों की ख़ुद बहुत सी उपशैलियाँ हैं। उदहारण के लिए -

  • ठेठ वॅस्टर्न - यह एक क़िस्म की मसाला फ़िल्म है, जिसमें कथानायक हमेशा एक घुड़सवार, वीर, शक्ल का सुन्दर, गाने गाने वाला और ज़रा-ज़रा सी बात पर पिस्तौल निकलकर गोली चला देने वाला काओबॉय होता है।
  • उत्तरी वॅस्टर्न - इन वॅस्टर्न फ़िल्मों और कहानियों में कथास्थल अलास्का, कनाडा या और किसी ठन्डे इलाक़े में होता है, जहां बर्फ, भयंकर सर्दी, सर्द नदियों, वग़ैराह का प्रकोप हो। इस उपशैली में "द फ़ार कंट्री" और "नॉर्थ़ टू अलास्का" शामिल हैं।
  • स्पगॅट्टी वॅस्टर्न - स्पगॅट्टी इटली में खाए जाने वाले एक प्रकार के नूडल्ज़ होते हैं। १९६० और १९७० के दशकों में इटली के फ़िल्मदर्शकों को वॅस्टर्न का चस्का लग गया और इतालवी निर्माताओं नें वॅस्टर्न फ़िल्में बनानी शुरू कर दीं। अक्सर ये फ़िल्में कम ख़र्चे में बनाई जाती थीं जिनसे इनका स्तर थोड़ा कम होता है। इनमें इटली के आसपास की जगहों में ही शूटिंग कर के यह जतलाया जाता था की ये अमेरिका में हैं। बतौर मिसाल "द गुड, द बैड एंड द अग्ली" में रेगिस्तान के द्रश्य पश्चिमी संयुक्त राज्य के बतलाए जाते हैं, लेकिन वास्तव में वे स्पेन के आल्मेरिया के रेगिस्तान के हैं।
  • करी वॅस्टर्न - हिन्दुस्तानी खाने के मसाले को अंग्रेज़ी में "करी" बोलते हैं, इसलिए वो हिन्दुस्तानी फ़िल्में जो वॅस्टर्न शैली से प्रभावित हों उन्हें कभी-कभी करी वॅस्टर्न कहा जाता है। इसकी सब से प्रसिद्ध मिसाल "शोले" है जिसमे जय और बीरू, जो सक्षम और जांबाज़ भी हैं लेकिन जिनकी जीवनी क़ानून से भागने में गुज़र रही है, एक डाकुओं से सताए हुए गाँव में आकर उसकी रक्षा करते हैं।

इन्हें भी देखें

टिपण्णी

१.साँचा:note हालाँकि "वॅस्टर्न" शब्द का अर्थ हिन्दी में "पश्चिमी" होता है, "वॅस्टर्न" फ़िल्मों को "पश्चिमी फ़िल्में" नहीं कहा जा सकता, क्योंकि "वॅस्टर्न" शब्द इस शैली का नाम पड़ चूका है। अधिकांश पश्चिमी फ़िल्में (यानि पश्चिम में बनी फ़िल्में) "वॅस्टर्न" नहीं होतीं और, इसके विपरीत, बहुत सी जापानी, यूरोपियाई और भारतीय फ़िल्में "वॅस्टर्न" शैली में बनी होती हैं। इस से मिलता उदहारण "बासमती" है जिसका अर्थ "ख़ुशबूदार" होता है। लेकिन अंग्रेजी में "बासमती चावल" का अनुवाद करके इसे "fragrant rice" नहीं कहा जा सकता - इसे "basmati" ही कहते हैं। अगर बासमती की कोई उपनस्ल सुगन्धित न भी हो, तो भी वह "बासमती" ही कहलाएगी क्योंकि अब यह इस नस्ल का नाम पड़ चुका है। किसी अन्य नस्ल का चावल चाहे कितना भी सुगन्धित क्यों न हो, वह "बासमती" नहीं कहलाएगा।
२.साँचा:note उच्चारण सहायता के लिए ध्यान दें के "वॅस्टर्न" के "व" व्यंजन के बाद "ऍ" की मात्रा लगी है जो "ए" और "ऐ" की मात्रा से भिन्न है। अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में "ऍ" का स्वर /ɛ/, "ए" का /e:/ और "ऐ" का /æ/ दर्शाया जाता है। तीन अंग्रेज़ी शब्दों से इन तीन स्वरों का अंतर देखिये - "pain" ("दर्द") को "पेन", "pan" ("तवा") को "पैन" और "pen" को "पॅन" लिखते हैं। हिन्दी में "ऍ" का प्रयोग "रहना" जैसे शब्दों में होता है लेकिन इसे प्रथानुसार लिखा नहीं जाता। दिल्ली-क्षेत्र की हिन्दी में "रहना" को "रॅहना" उच्चारित करते हैं, लेकिन लिखते "रहना" हैं। " रहना" को पूर्वी लहजा, " रेहना" को गुजराती लहजा और "रैहना" को पंजाबी लहजा समझा जाता है।

सन्दर्भ

साँचा:reflist