लोकप्रिय विज्ञान

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धुंधला नीला बिंदु: पृथ्वी की यह तस्वीर, जिसमें पृथ्वी एक छोटे से चमकीले बिंदु की तरह दिख रही है, 14 फरवरी 1990 को वॉयेजर प्रथम अंतरिक्षयान द्वारा पृथ्वी से 6 अरब किमी दूर से ली गई थी। साँचा:quote box

लोकप्रिय विज्ञान (popular science) विज्ञान और वैज्ञानिक जानकारी की ऐसी प्रस्तुति होती है जो साधारण (ग़ैर-वैज्ञानिक) लोगों को समझ आये और उन्हें रोचक लगे। जहाँ वैज्ञानिक पत्रकारिता नये वैज्ञानिक विकास और गतिविधियों पर केन्द्रित होती है, वहाँ लोकप्रिय विज्ञान के विषय अधिक विस्तृत होते हैं। इसे पुस्तक, पत्रिकाएँ, फ़िल्में व टेलीविज़न वृत्तचित्र (डॉक्युमेंटरी) द्वारा लोगों तक पहुँचाया जाता है।[१][२][३]

सामान्य सूत्र

लोकप्रिय विज्ञान प्रस्तुतियों की कुछ सामान्य विशेषताएं शामिल हैं:

  • दर्शकों के लिए मनोरंजन मूल्य या व्यक्तिगत प्रासंगिकता
  • विशिष्टता और कट्टरता पर जोर
  • विशेषज्ञों द्वारा अनदेखी या स्थापित विषयों के बाहर गिरने वाले विचारों की खोज करना
  • सामान्यीकृत, सरल विज्ञान अवधारणाएं
  • कम या बिना विज्ञान पृष्ठभूमि वाले दर्शकों के लिए प्रस्तुत किया गया, इसलिए सामान्य अवधारणाओं को अधिक अच्छी तरह से समझाया गया
  • नए विचारों का संश्लेषण जो कई क्षेत्रों को पार करता है और अन्य शैक्षणिक विशिष्टताओं में नए अनुप्रयोगों की पेशकश करता है
  • कठिन या अमूर्त वैज्ञानिक अवधारणाओं को समझाने के लिए रूपकों और उपमाओं का उपयोग

भारत में विज्ञान लोकीकरण

भारत में विज्ञान-लोकप्रियकरण स्वतंत्रता से पहले आरम्भ हो चुका था। बंगला में 1818 ई० में तथा मराठी में 1819 ई० से विज्ञान लेखन शुरू हुआ था। उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में किए गए सत्येन्द्र नाथ बसु, जगदीश चन्द्र बसु इत्यादि के द्वारा बंगला भाषा में विज्ञान-लोकप्रियकरण के प्रयास किए गये थे। प्रो. रुचिराम साहनी ने पंजाब साइंस इंस्टीच्युट की स्थापना वर्ष 1885 में प्रो. ओमन नामक एक अंग्रेज के साथ मिलकर की। इसके अन्तर्गत उन्होंने विभाजन से पहले वाले पंजाब के कई भागों में पंजाबी भाषा में विज्ञान को लोकप्रिय बनाने हेतु बहुत काम किया। विस्तृत विषयों पर पंजाबी (तथा अंग्रेजी भाषा में भी) में, स्लाइडों तथा वैज्ञानिक प्रयोगों की सहायता से प्रो. साहनी ने पंजाब भर में करीब 500 व्याख्यान दिये।

किन्तु आरम्भिक काल में विज्ञान-लोकीकरण की गति मन्द थी जिसका कारण उत्साही लेखकों का अभाव तथा पत्र-पत्रिकाओं की न्यूनता रही है। प्रारम्भिक लेखक शायद स्वान्तः सुखाय लिख रहे थे। उनके समक्ष पारिभाषिक शब्दों का अभाव था। वे अपनी बुद्धि के अनुसार शब्द बना रहे थे। उनमें अपनी भाषा तथा देश का प्रेम ही मुख्य था। धीर-धीरे लोग अनुभव करने लगे कि कालान्तर में उन्हें देशी भाषा में ही विज्ञान की आवश्यकता होगी इसलिये लेखकों की संख्या भी बढ़ने लगी।

1913 में प्रयाग में 'विज्ञान परिषद्' की स्थापना हो जाने पर विज्ञान प्रेमी हिन्दी लेखकों के लिये नया आधार मिला। 1915 से अद्यावधि "विज्ञान" मासिक पत्रिका प्रकाशित हो रही है। इतना ही नहीं, स्वतन्त्रता के पूर्व 'विज्ञान परिषद' से विज्ञान लोकप्रियकरण की दिशा में विविध साहित्य रचा गया जिसमें औद्योगिक साहित्य उल्लेखनीय है। उस समय शिक्षित बेरोजगारों के लिये यह साहित्य उपयोगी सिद्ध हुआ। चूंकि विज्ञान परिषद की स्थापना में विश्वविद्यालयों के योग्य शिक्षकों का हाथ था इसलिये उन्होंने स्वयं विज्ञान में लेखन किया, अपने शिष्यों को लिखने का प्रशिक्षण दिया और 30-35 वर्षों में हिन्दी क्षेत्र में तमाम लेखकों को ला खड़ा किया। शायद ही कोई विज्ञान लेखक रहा हो, जिसका सम्बन्ध "विज्ञान परिषद्' से न रहा हो। अन्य प्रान्तों में भी स्वतन्त्रता के पूर्व इसी उत्साह से कार्य चला।

स्वतन्त्रतापूर्व तक हिन्दी में विज्ञान पत्रकारिता शैशवास्था में थी किन्तु विज्ञान की विविध पत्रिकाओं के सम्पादकों में उल्लेखनीय कर्मनिष्ठा एवं दूरदर्शिता थी। उनमें जनसेवा का भाव सर्वोपरि था और लोकप्रियकरण के लिये शायद यह सबसे पहली शर्त है। प्रयाग में ही 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' की स्थापना के बाद उसके वार्षिक सम्मेलनों में प्रतिवर्ष विज्ञान परिषदों की आयोजना की जाने लगी तो सुप्रसिद्ध विज्ञान लेखक हिन्दी के मंच से अपनी बातों, अपनी योजनाओं की घोषणा करने लगे। उस समय हिन्दी साहित्य के कर्णधारों को लग रहा था कि विज्ञान के लेखक भी उन्हीं के अंग हैं और इस तरह सृजित विज्ञान साहित्य हिन्दी साहित्य का अंग है। हिन्दी में विज्ञान लोकप्रियकरण को यहीं से ठोस आधार भी मिला। फिर तो विज्ञान पत्रिकाओं की धूम मच गयी। 1925 ई० के पूर्व हिन्दी में विज्ञान विषयों की 42 पत्रिकायें थीं जिनके मूल्य कम थे, ग्राहक संख्या सीमित थी किन्तु ये पत्रिकायें बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश - सभी प्रान्तों से निकल रही थीं।

विज्ञान के लोकप्रियकरण में लगी सरकारी, अर्द्धसरकारी तथा गैरसरकारी संस्थाओं की लम्बी सूची है फिर भी वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, सी. एस. आई. आर., आई. सी. एम. आर., आई. सी. ए. आर., एन. आर. डी. सी. (सभी नई दिल्ली), देश के विभिन्न कृषि प्रौद्योगिक विश्वविद्यालयों, विभिन्न आई. आई. टी. के हिन्दी कक्ष, एन. सी. एस. टी. सी, एन. सी. ई. आर. टी., एन. बी. टी., विभिन्न प्रदेशों की हिन्दी ग्रन्थ अकादमियाँ, विज्ञान परिषद् प्रयाग इत्यादि के नाम उल्लेखनीय हैं।

हिन्दी में विज्ञान लोकप्रियकरण का प्रयास करने वाले उल्लेखनीय व्यक्ति

इसके अतिरिक्त कुछ छिटफुट प्रयास भी हुए।

  • पं० लक्ष्मी शंकर मिश्र ने 1885 में गतिविज्ञान पर पुस्तक लिखी।
  • प्रो० त्रिभुवन कल्याण दास गज्जर ने 1888 में वैज्ञानिक साहित्य प्रकाशित करने की दिशा में वैज्ञानिक पुस्तकों के लेखन, अनुवाद और प्रकाशन का बीड़ा उठाया।
  • श्री हीरालाल खन्ना का विज्ञान साहित्य में काफी योगदान रहा। वह विज्ञान परिषद् प्रयाग के सभापति भी रहे।
  • श्री सुखसम्पत राय भण्डारी ने 1932 के आसपास 'बीसवीं शताब्दी अंग्रेजी-हिन्दी कोश' निकाला। यह पांच खण्डों में है, और इसमें एक लाख से अधिक शब्द पर्यायों और विवरणों साहित दिए गए हैं।
  • श्री हरगू लाल ने 1857 के आस-पास विज्ञान और स्कूली वैज्ञानिक उपकरणों/मॉडलों के निर्माण और प्रचार प्रसार के क्षेत्र में काम किया। वे अम्बाला में शिक्षक थे। अम्बाला के ही श्री नंदलाल और उनके पुत्र पन्नालाल द्वारा इसी प्रकार का कार्य करने के उल्लेख मिलते हैं।
  • देवी शंकर मिश्र सन 1930-1950 के आसपास सक्रिय रहे। उन्होने 'प्राणिशास्त्र' और 'नव विज्ञान' नामक दो पत्रिकाएं प्रकाशित की। अपने समय में वह एक समर्पित विज्ञान लेखक/पत्रकार रहे हैं।

अंग्रेजी भाषा के उल्लेखनीय विज्ञान प्रचारक

लोकप्रिय विज्ञान के कुछ स्रोत

  • कॉसमॉस: ए पर्सनल वॉयेज (ब्रह्माण्ड: एक निजी यात्रा) - 1980 के बहुदर्शित टेलिविजन कार्यक्रम, कार्ल सेगन

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

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