गोविंद बिहारी लाल
गोविन्द बिहारी लाल | |
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Born | 09 October 1889 |
Died | 1 April 1982साँचा:age) | (उम्र
Other names | गोबिन्द बिहारी लाल |
Citizenship | भारतीय |
Education | बी एससी एम ए |
Alma mater | पंजाब विश्वविद्यालय, लाहौर, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कली |
Occupation | पत्रकार |
Employer | Hearst Newspapersसाँचा:main other |
Organization | गदर पार्टीसाँचा:main other |
Agent | साँचा:main other |
Notable work | साँचा:main other |
Title | राष्ट्रीय विज्ञान लेखक संघ के अध्यक्ष |
Term | 1940–41 |
Predecessor | William L. Laurence |
Successor | John Joseph O'Neill (journalist) |
Movement | भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन |
Opponent(s) | साँचा:main other |
Criminal charge(s) | साँचा:main other |
Spouse(s) | साँचा:main other |
Partner(s) | साँचा:main other |
Parent(s) | स्क्रिप्ट त्रुटि: "list" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है।साँचा:main other |
Relatives | हर दयाल |
Awards | पुलित्सर पुरस्कार (1937) पद्मभूषण (1969) |
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गोविंद बिहारी लाल (१८८९ - १८८२) एक भारतीय-अमेरिकी पत्रकार, भारत के स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होने विज्ञान लोकप्रियकरण के लिए बहुत कार्य किया। वे लाला हरदयाल के एक सम्बन्धी तथा निकट सहकर्मी थे। उन्होने गदर पार्टी की सदस्यता ली एवं भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में प्रमुखता से भाग लिया। सन 1937 में उन्होने सम्मानित पुलित्ज़र पुरस्कार जीता। यह पुरस्कार पाने वाले वे प्रथम भारतीय थे। [१] भारत सरकार ने सन् १९६९ में आपको पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
श्री गोविन्द बिहारी लाल ने एक छात्रवृत्ति के सहारे बर्कली स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। इसके पश्चात वे हर्स्ट न्यूजपेपर्स (Hearst Newspapers) के विज्ञान सम्पादक रहे।
डॉ. गोविन्द बिहारी लाल उन जाने-माने विज्ञान लेखकों में रहे हैं जिन्होंने न केवल भारत में बल्कि पश्चिमी जगत में भी आधुनिक विज्ञान पत्रकारिता की शुरुआत की। उन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान में उच्च शिक्षा प्राप्त की। आरम्भ में वे सक्रियतापूर्वक भारत के स्वाधीनता आन्दोलन से जुड़े रहे। लेखन के प्रति उनमें बचपन से ही रुचि थी। विज्ञान की शिक्षा ग्रहण करने के साथ ही विज्ञान लेखन और पत्रकारिता की ओर उनका रुझान हुआ। वह एक समर्पित देशभक्त थे। गदर के समय वे काफी सक्रिय रहे, किन्तु उन्हीं दिनों वे अमेरिका चले गए। वहाँ जाकर वे सक्रिय पत्रकारिता के क्षेत्र में आए और उन्होंने अपने कार्य के लिए विशेष रूप से पत्रकारिता का क्षेत्र चुना।
सन् 1931 में 29 वर्षीय दो युवा विज्ञानिकों ने एसोसिएटेड प्रेस के विज्ञान संपादक हॉवार्ड ने डब्ल्यू. ब्लेकसली न्यूयार्क टाइम्स के विज्ञान लेखक विलियम लारेंस और विज्ञान पत्रकार गोविन्द बिहारी लाल को अपनी बात सुनाने के लिए आमंत्रित किया। ये वैज्ञानिक थे - डॉ० अर्नेस्ट ओ० लारेंस और रार्बट ओपेनहाइमर, (परमाणु बम के निर्माता)। उन्होंने बताया कि उन्हें विद्युत-आवेशित कणों को तीव्र से तीव्रकर गति में ऊर्जित करने वाली मशीन की आवश्यकता है, पर उनके पास धन और उपकरण नहीं हैं। डॉ० गोविन्द बिहारी लाल सहित अन्य वैज्ञानिक लेखकों ने उन वैज्ञानिकों से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की और जब यह रिपोर्ट समाचारपत्रों में छपी तो उन्हें वह मशीन मुफ्त में मिल गयी, जिसे पाने के लिए वे कितने ही प्रयास कर चुके थे। इसके अतिरिक्त डॉ० लाल ने महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन और अन्य अनेक प्रमुख वैज्ञानिकों सहित डॉ० हरगोविन्द खुराना से भी साक्षात्कार किए। वैज्ञानिक दृष्टिकोण उनमें कूट-कूट कर भरा था। उनका कहना था कि आज हमें वैज्ञानिक राष्ट्रवाद का निर्माण करना होगा; मंन्दिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों और चर्चों के गुम्बदों पर दूरबीन लगवा दी जानी चाहिए, ताकि लोग आडम्बरपूर्ण भक्ति के माध्यम से नहीं, विज्ञान के माध्यम से ब्रह्माण्डीय रहस्यों के दर्शन कर सकें।
विदेश जाने से पहले डॉ० लाल हिन्दू कॉलेज दिल्ली में पढ़ाते थे। उन्होंने 19 वर्ष की उम्र में अपने स्कूली दिनों में विकासवाद के सिद्धान्त पर भाषण दिया था और पुरस्कार जीता था। 'विदुर नवम्बर 1967 (प्रेस इंस्टीट्यूट ऑफ इण्डिया की मासिक पत्रिका) को दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा “मुझे भौतिकी, चुम्बकीय तरंगों और प्रकाश के विज्ञान से गहरा लगाव है। विज्ञान ने मुझे हमेशा रोमांचित किया। इसी रोमांच को लेकर वे अमेरिका पहुँचे। अमेरिकी समाचारपत्रों में काम करने वाले वह एकमात्र एशियाई थे। सैनफ्रांसिस्को एक्जामिनर में जब उन्होंने काम शुरू किया तो देखा कि वहां विज्ञान के बारे में ज्यादा कुछ नहीं छपता और उन्होंने नोबेल पुरस्कार विजेता रॉबर्ट मिलिकान से साक्षात्कार करने की ठानी लेकिन प्रबन्ध संपादक उसे छापने को तैयार नहीं था। तब उन्होंने अखबार छोड़ने की धमकी दी। अंततोगत्वा ब्रह्मांडीय किरणों पर उनकी रिपोर्ट प्रकाशित हुई और पाठकों ने उसे सराहा। सन् 1930 में उन्होंने अपने एक लेख में कैंसर के जैव रासायनिक कारणों की व्याख्या की और आज वास्तव में यह स्पष्ट हुआ है कि वृक्क के ऊपरी भाग में स्थित अधिवृक्क ग्रंथि से उत्पन्न एक विशेष प्रकार का हार्मोन कुछ प्रकार का कैंसर का पैदा करता है। बाद में डॉ० एडवर्ड सी० केंडाल ने खोज द्वारा इस बात की पुष्टि की जिस पर उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला। डॉ० केंडाल ने इस खोज के लिए प्रेरणा का श्रेय डॉ० लाल की रिपोर्टों को दिया।
विज्ञान पत्रकारिता के लिए 1937 में डॉ लाल को पुलिट्जर सम्मान से पुस्कृत किया गया। वह लॉस एंजिल्स टाइम्स और हार्ट ग्रुप न्यूज सर्विस के भी विज्ञान संपादक रहे। कुल मिलाकर डॉ० लाल ने सही अर्थों में भरपूर विज्ञान पत्रकारिता की और पत्रकारिता की सभी विधाओं में सफल प्रयोग किया। बीच-बीच में वे जब भी भारत आते थे, यहाँ के विज्ञान लेखकों, संपादकों के लिए प्रेरणा के स्रोत होते थे। उनका कहना था कि भारत में विज्ञान लेखक, विकास की भावना, प्रकृति के नियमों की समझ और प्रकृति के नियमों के अनुसार समाज को ढालने के प्रयासो को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
सन 1992 में कैंसर से उनका देहान्त हो गया।