भगवंतराय खीची

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महराज भगवन्तराय खींची ( -- मृत्यु सं. 1793 वि. ) असोथर के एक बड़े गुणग्राही राजा तथा हिन्दी कवि थे जिनके यहाँ बराबर अच्छे कवियों का सत्कार होता रहता था। इनके पास 14 परगने थे, जिसके यह स्वतंत्र राजा थे। उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के रहनेवाले थे। सं. 1793 वि. में ये अवध के प्रथम नवाब वजीर बुर्हान-उल-मुल्क से युद्ध करते हुए स्वर्गवासी हुए।

असोथर, फतेहपुर जनपद मुख्यालय से 30 किमी० और उत्तर में यमुना से 6 किमी० की दूरी पर स्थित है। भगवंतराय वंश मध्य प्रदेश के राघवगठ का हिस्सा है। असोथर रियायत का संबंध पटना, पुवायां मनकापुर, बेंती, भदरी, बस्ती, उड़ीसा, राजस्थान और मध्यप्रदेश की वरदीखटाई जैसी तमाम रियायतों से जुड़ा हुआ है।

साल 1712-13 में दिल्ली की गद्दी पर मुगल वंशज जहांदार शाह बैठा, तो बंगाल के सहायक सूबेदार फर्रुखसियर ने खुद को सम्राट घोषित ही नहीं किया, बल्कि 18 अक्टूबर को दिल्ली पर धावा बोलने के लिए पटना से कूच कर दिया।

जहांदार शाह के पुत्र अजउद्दीन के नेतृत्व में फर्रुखसियर की सेना से जिले के खजुहा नामक जगह पर युद्ध हुआ जिसमें ऐझी परगना के प्रभावशाली जमीदार भगवंतराय खीची की मदद से फर्रुखसियर को विजय हासिल हुई और वह 11 जनवरी 1713 में दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। इसके बाद भगवंतराय का दबदबा बढ़ा और धीरे-धीरे असोथर राज्य के राजा बन गए। मोहम्मद रंगीले शाह दिल्ली की कुर्सी पर बैठे, तो 1719 में भगवंतराय ने अपने को स्वतंत्र राजा घोषित किया और चंदेल शासकों के पैनागढ़ (वर्तमान में पैनाकला) के किले की मरम्मत कराई। भगवंतराय की मित्रता छत्रसाल बुंदेला, राव राजा मर्दन सिंह, डौडियाखेडा जैसे प्रभावशाली राजाओं से थी।

वर्ष 1734 ई में प्रधानमंत्री वजीर आजम ने कोड़ा के फौजदार और अपने साले जांनिसार खां को खत्म करने के लिए भेजा। भगवंतराय ने बड़ी चतुरता से आक्रमण करके फतेहपुर में जांनिसार को मार डाला और उसकी बेगमों की शादी अपने संबंधियों से कराई। जानिसार की बेटी की शादी अपने बेटे रूपराय के साथ करा दी। इसकी खबर मिलते ही कमरुद्दीन ने अपने 70000 सैनिकों के साथ गाजीपुर किले में धावा बोला दिया लेकिन इस बात की सूचना पाकर रात में ही भगवंतराय किला छोड़कर भाग गए। यमुना नदी में बाढ़ के कारण कमरुद्दीन उनका पीछा नहीं कर पाया और उसे वापस लौटना पड़ा। इसके बाद दिल्ली सरकार ने भगवंतराय को दबाने के लिए अवध के नवाब सआदत खां नर्वन को भेजा, जो कानपुर, खजुहा के रास्ते होकर गाजीपुर पहुंचा।

युद्भ में भगवंतराय ने दस हजार सैनिकों के साथ मुकबला किया जिसमें चालीस हजार सैनिकों वाली सआदत की सेना हार गई। ऐसी हालत में दोनों पक्षों में सुलह हो गई। इसके बाद भगवंतराय को 14 परगनों का स्वतंत्र राजा घोषित कर दिया गया। भगवंतराय को राजा की गद्दी मिलने से नाखुश अवध के नवाब ने साजिश करके चौधरी दुर्जन सिंह द्वारा भगवंतराय की पूजा करते समय कटारी घोंपकर हत्या करवा दी. उनके सेनापति भवानी सिंह को भी मार डाला. इसके बाद से ही यह भू-भाग अवध नवाब के अधिपत्य में चला गया।

कवि

भगवन्तराय खींची कई सुकवियों के आश्रयदाता और बड़े गुणग्राही नरेश थे। महाराज छत्रसाल और छत्रपति शिवाजी का जैसा गुणगान 'भूषण' ने किया वैसे ही अनेक सुकवियों ने इनका भी गुणगान किया।

'रामायण' और 'हनुमतपचीसी' इनकी दो रचनाएँ कही जाती हैं। शिवसिंह सरोज में लिखा है कि इन्होंने सातों कांड रामायण बड़े सुंदर कवित्तों में बनाई है। यह रामायण तो इनकी नहीं मिलती पर हनुमानजी की प्रशंसा के ५० कवित्त इनके अवश्य पाए गए हैं जो सम्भव है रामायण के ही अंश हों। खोज में जो इनकी "हनुमत् पचीसी" मिली है उसमें निर्माणकाल १८१७ दिया है।

कांडों में विभक्त रचना 'रामायण' कवित्त छंद में ही लिखी गई है। 25 ओजस्वी छंदों में हनुमान के शौर्य पराक्रम का 'हनुमतपचीसी' में कवित्वपूर्ण वर्णन किया गया है। इनकी 'हनुमतपचासा' नामक एक और कृति मिली है जिसमें कुल 52 छंद हैं। संभव है यह कृति 'रामायण' का कोई अंश हो। प्राचीन काव्यसंग्रहों में इनके छिट पुट में शृंगारी छंद भी पाए जाते हैं।

इनकी कविता बड़ी ही उत्साहपूर्ण और ओजस्विनी है। एक कवित्त देखिए––

विदित विसाल ढाल भालु-कपि-जाल की है,

⁠: ओट सुरपाल की है तेज के तुमार की।

जाहीं सों चपेटि कै गिराए गिरि गढ, जासों,

⁠: कठिन कपाट तोरे, लंकिनी सों मार की॥

भनै भगवंत जासों लागि भेंटे प्रभु,

⁠: जाके त्रास लखन को छुभिता खुमार की।

ओढ़े ब्रह्मअस्त्र की अवाती महाताती, वंदौं,

⁠: युद्ध-मद-माती छाती पवन-कुमार की॥

सन्दर्भ