बिपिन बिहारी गांगुली

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
बिपिन बिहारी गांगुली
বিপিনবিহারী গঙ্গোপাধ্যায়
5 नवंबर 1887 से 14 जनवरी 1954 ई०
Kolkata Bowbazar 4.jpg
बहूबाज़ार क्षेत्र में स्थापित बिपिन बिहारी गांगुली की मूर्ति
जन्मस्थल : हालिशहर, उत्तर 24 परगना, पश्चिम बंगाल
आन्दोलन: भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम

बिपिन बिहारी गांगुली (5 नवंबर 1887 - 14 जनवरी 1954) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सदस्य और एक राजनीतिज्ञ थे। उनका जन्म 5 नवंबर 1887 को हालिशहर, उत्तर 24 परगना, पश्चिम बंगाल में हुआ था। उनके पिता का नाम अक्षयनाथ गांगुली था।

क्रांतिकारी जीवन

गांगुली ने बरिंद्र कुमार घोष और रासबिहारी बोस के करीबी सहयोगी के रूप में अनेकों क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय भाग लिया थी। मुरारीपुकुर षडयंत्र और बम मामले जैसी घटनाओं से उनका सीधा संबंध था। वह आत्मोन्नति समिति के संस्थापक सदस्य थे जो कि जुगांतर समूह की एक गुप्त क्रांतिकारी संस्था थी।

प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) की शुरुआत के दौरान, भारतीय क्रांतिकारियों ने कुछ ऐसा साहसी काम करने का फैसला किया, जिससे उन्हें भारतीय स्वतंत्रता के उनके संघर्ष के लिए पर्याप्त संख्या में आग्नेयास्त्रों की प्राप्ति हो सके। 1905 के बंगाल विभाजन के बाद से ही, ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों का विरोध अपने चरम पर पहुंच गया था। इसकी शुरुआत 'वंदे मातरम' अखबार के खिलाफ देशद्रोह के मामले से हुई, जिसमें अरबिंदो घोष और बिपिन बिहारी गांगुली जैसे नेताओं पर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को बढ़ावा देने में उनकी भागीदारी साबित होने का आरोप लगाया गया था। बिपिन बिहारी गांगुली को इस मामले में 6 महीने की जेल हुई थी।

बिपिन बिहारी गांगुली ने 24 अगस्त 1914 को एक साहसी सशस्त्र डकैती की योजना बनाई थी। इस डकैती को "रोडा कंपनी हथियार डकैती" के रूप में जाना जाता है। डकैती 26 अगस्त 1914 को हुई थी और यह एक बहुत ही सनसनीखेज घटना थी। स्टेट्समैन ने 30 अगस्त 1914 को अपने संस्करण में डकैती को " दिन के उजाले में सबसे बड़ी डकैती" के रूप में वर्णित किया था।

1915 में, बेलियाघाटा कोलकाता में एक व्यवसायी की जुगांतर समूह द्वारा कार की लूट में, उन्होंने जतिंद्रनाथ मुखर्जी की सहायता की थी। इन घटनाओं के लिए उन्हें हथियारों के साथ गिरफ्तार किया गया था।

1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान बिपिन बिहारी गांगुली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और 1930 में उन्होंने बंगाल राज्य समिति के सम्मेलन की अध्यक्षता की। वे 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुए। उन्हें उनके जीवन काल में 24 बार करागार में डाला गया जो कि मंडालय, रंगून और अलोपुर में स्थित थे।

राजनैतिक जीवन

वे मजदूर आंदोलन से जुड़े थे। राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना के बाद वे बंगाल प्रांतीय संगठन के अध्यक्ष थे। पहले आम चुनाव (1952) में वे उत्तर 24 परगना जिले के बीजपुर केंद्र से चुने गए और पश्चिम बंगाल विधान सभा के सदस्य बने।

सन्दर्भ