फिरदौसी

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.


Ferdowsi Square (Tehran).jpg
हकीम अबुल-कासिम फिरदौसी तुसी
حکیم ابوالقاسم فردوسی توسی
जन्मसाँचा:br separated entries
मृत्युसाँचा:br separated entries
मृत्यु स्थान/समाधिसाँचा:br separated entries
व्यवसायकवि
विधाफ़ारसी काव्य, राष्ट्रीय महाकाव्य

साँचा:template otherसाँचा:main other

हकीम अबुल कासिम फिरदौसी तुसी (फारसी-حکیم ابوالقاسم فردوسی توسی) फारसी कवि थे जिन्होने जगत्प्रसिद्ध शाहनामा की रचना की। वे फारसी साहित्य के सबसे प्रभावी साहित्यकार हैं। शाहनामा में उन्होने सातवीं सदी में फारस (आधुनिक ईरान) पर अरबों की विजय होने के पहले के फारस के बारे में लिखा है। यह रचना बाद में फारस की राष्ट्रीय महाकाव्य बन गई।

जीवन परिचय

फ़िरदौसी का जन्म 920 ई. में खुरासान के तूस नामक कस्बे में हुआ। असदी नामक कवि ने उसे शिक्षा दी और कविता की ओर प्रेरित किया। उसने ईरान के पौराणिक राजाओं के संबंध में उसे एक ग्रंथ दिया जिसके आधार पर फ़िरदौसी ने शाहनामे की रचना की। इसमें 60,000 शेर हैं। वह 35 वर्ष तक इस महान कार्य में व्यस्त रहा और 25 फ़रवरी 1010 ई. को इसे पूरा किया। इस समय वह 85 वर्ष का हो चुका था। उसने यह काव्य सुल्तान महमूद ग़ज़नवी को समर्पित किया जिसने 999 ई. में खुरासान विजय कर लिया था। उसे केवल 20 हजार दिरहम प्रदान किए गए। फ़िरदौसी के तन बदन में आग लग गई। वह अपने देश से हिरात की ओर भागा किंतु भागने से पूर्व एक कविता शाहनामे में जोड़ गया, जिसमें सुल्तान महमूद की घोर निंदा की गई है।

शाहनामे में फ़िरदौसी ने ईरान के पौराणिक बादशाहों की, जिनके कारनामों से वह अत्यधिक प्रभावित था, बड़ी की प्रशंसा की है। उसकी कविता से प्राचीन ईरान के प्रति उसका प्रेम एवं अरबों के प्रति घृणा का पूरा आभास मिलता है। सभवत: कट्टर मुसलमानों को संतुष्ट करने के लिए उसने बाद में युसुफ़ जुलैखा नामक मसनवी लिखी जिसे बवहिद शासक बहाउद्दौला तथा उसके पुत्र सुल्तानुद्दौला को समर्पित किया। तदुपरांत वह अपनी मातृभूमि तूस लौट आया और वहीं उसकी मृत्यु हुई (1020-21 ई.)। उसकी क़ब्र ईरान के दर्शनीय स्थानों में है। कहा जाता है, जब उसका जनाज़ा पास के एक गाँव के फाटक से निकल रहा था, एक कारवाँ सुल्तान महमूद के भेजे हुए 60,000 दीनार लेकर पहुँचा जिनकी कवि को आशा थी। फ़िरदौसी की पुत्री ने समस्त धन, दान पुण्य में लगा दिया। शाहनामा की बड़ी ही सुंदर सचित्र हस्तलिपियाँ संसार के बड़े बड़े संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। 1811 ई. में कलकत्ते में 1878 ई. में पेरिस से और 1877-1885 ई. के बीच लाइडेन से इसके संस्करण प्रकाशित हुए। तदुपरांत भारत और ईरान से अनेक संस्करण प्रकाशित हुए। संसार की अनेक भाषाओं में इसके अनुवाद छप चुके हैं।

कहा जाता है कि महमूद गज़नवी ने फिरदौसी को यह वचन दिया था कि वह 'शाहनामा' के हर शब्द के लिए एक दीनार देगा। वर्षों की मेहनत के बाद जब 'शाहनामा' तैयार हो गया और फिरदौसी उसे लेकर महमूद गज़नबी के दरबार में गया तो सम्राट ने उसे प्रत्येक शब्द के लिए एक दीनार नहीं बल्कि एक दिरहम का भुगतान करा दिया। कहा जाता है इस पर नाराज होकर फिरदौसी लौट गया और उसने एक दिरहम भी नहीं लिया। यह वायदा ख़िलाफ़ी कुछ ऐसी थी जैसे किसी कवि के प्रति शब्द एक रुपये देने का वचन देकर प्रति शब्द एक पैसा दिया जाये। फिरदौसी ने गुस्से में आकर महमूद गज़नबी के खिलाफ़ कुछ पंक्तियां लिखी। वे पंक्तियां इतनी प्रभावशाली थी कि पूरे साम्राज्य में फैल गयीं। कुछ साल बाद महमूद गज़नवी से उसके विश्वासपात्र मंत्रियों ने निवेदन किया कि फिरदौसी को उसी दर पर भुगतान कर दिया जाये जो तय की गयी थी। सम्राट के कारण पूछने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि हम लोग साम्राज्य के जिस कोने में जाते हैं हमें वे पंक्तियां सुनने को मिलती हैं जो फिरदौसी ने आपके विरुद्ध लिखी हैं और हमारा सिर्फ शर्म से झुक जाता है। उसे निर्धारित दर पर पैसा दे दिया जायेगा तो हमें बड़ा नैतिक बल मिलेगा।' सम्राट ने आदेश दे दिया। दीनारों से भरी गाड़ी जब फिरदौसी के घर पहुंची तो घर के अंदर से फिरदौसी का जनाज़ा निकल रहा था। पूरी उम्र गरीबी, तंगी और मुफ़लिसी में काटने के बाद फिरदौसी मर चुका था। कहते हैं कि फिरदौसी की एकमात्र संतान उसकी लड़की ने भी यह धान लेने से इंकार कर दिया था। इस तरह सम्राट कवि का कर्जदार रहा और आज भी है। शायद यही वजह है कि आज फिरदौसी का शाहनामा जितना प्रसिद्ध है उतनी ही या उससे ज्यादा प्रसिद्ध वे पंक्तियां है जो फिरदौसी ने महमूद गज़नबी की आलोचना करते हुए लिखी थीं।

फिरदौसी का 'शाहनामा' दरअसल ईरान का इतिहास ही नहीं ईरानी अस्मिता की पहचान है। उसमें प्राचीन ईरान की उपलब्धियों का बखान है। सम्राटों का इतिहास है। प्राचीन फ़ारसी ग्रंथों को नया रूप देकर उनको शामिल किया गया है। मिथक और इतिहास के सम्मिश्रण से एक अद्भुत प्रभाव उत्पन्न हुआ है। प्रेम, विद्रोह, वीरता, दुष्टता, मानवीयता, युद्ध, साहस के ऐसे उत्कृष्ट उदाहरण हैं जिन्होंने 'शाहनामा' को ईरानी साहित्य की अमर कृति बना दिया है। ईरानी साहित्य में 'शाहनामा' जितनी तरह से जितनी बार छपा है उतना और कोई पुस्तक नहीं छपी है। फिरदौसी ने रुस्तम और सोहराब जैसे पात्र निर्मित किए हैं जो मानव-स्मृति का हिस्सा बन चुके हैं।

जैसा कि ईरानियों ने अपने बड़े कवियों के साथ किया है, फिरदौसी के मक़बरे के चारों ओर सुंदर बाग है। इधर-उधर उनकी प्रतिमाएं लगी हैं। संगमरमर पर उनकी कविता के विशेष प्रसंगों को उकेरा गया है।[१]

सन्दर्भ

  1. [१] स्क्रिप्ट त्रुटि: "webarchive" ऐसा कोई मॉड्यूल नहीं है। | accessdate=12 जुलाई, 2008

= बाहरी कड़ियाँ

फिरदौसी को पूर्व का होमर कहा जाता है।